भारत के चुनाव आयुक्त का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के सब से अनुभवी अधिकारीयों में से किया जाता था ! लेकिन वर्तमान समय में भारत के केंद्रीय सरकार ने इस अनुशासन का उल्लंघन करते हुए 1980 के बॅच के इंडियन रेवेन्यू सर्विस के सुशील चंद्रा नाम के व्यक्ति को भारत के चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्त कर दिया है ! क्योंकि वर्तमान समय की सरकार, भारत की सभी संविधानिक संस्थाओं को अपने मनमर्जी से उनका इस्तेमाल करना चाहती है ! फिर वह सर्वोच्च न्यायालय हो या हमारे देश का सबसे बड़ा सभागार लोकसभा – राज्यसभा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों को भी सत्ताधारी दल अपनी मनमर्जी से उनका इस्तेमाल करना चाहती है ! जिसके लिए किसानों को लेकर पास किए गए बील हो या अभि के बजट सत्र में राहुल गांधी ने अदानी उद्योग समूह को लेकर की गई टिप्पणी के कई शब्दों को संसदीय कार्य प्रणाली के रेकॉर्ड से हटाने के निर्णय हो! (भले वह आंदोलन के कारण वापस लेने पडे होंगे ! लेकिन राज्यसभा के उपसभापति,श्री. हरिवंश ने तथाकथित आवाजी मतदान से किसानों के खिलाफ के बिलों को मंजूरी करा लेने की चालाकी पूरी दुनिया ने देखा है ! )
भारतीय संविधान के 324 के प्रावधान के अनुसार हमारे चुनाव आयोग को स्वायत्तता प्राप्त है ! और उसी स्वायत्तता का इस्तेमाल भारत के चुनाव के इतिहास में पहली बार और अभितक अंतिम बार ! श्री. टी. एन. शेषन ने इस्तेमाल करने का प्रयास किया है ! मुझे तो पचहत्तर साल के इतिहास में दुसरा उदाहरण दिखाई नहीं देता है ! वह स्थानीय निकाय के चुनाव से लेकर, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधानपरिषद, राष्ट्रपती तथा उपराष्ट्रपति के भी चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं ! इसलिये उनकी निस्पक्षता के बारे मे कोई भी संशय नही हो इसलिए उन्हें स्वायत्त अधिकार दिए गए हैं !
लेकिन पिछले कुछ दिनों से और मुख्यतः 2014 के बाद के चुनावों को देखते हुए ! लगता नहीं की हमारे देश का चुनाव आयोग अपने संविधानिक भुमिका का निस्पक्षता के साथ निर्वाह कर रहा हैं ! हमारे संविधान में साफ – साफ लिखा है ! “कि किसी भी चुनाव में धर्म, जाती, संप्रदाय तथा धन और बल का प्रयोग करने की पूरी तरह से मनाही है !” लेकिन 2014 तथा 2019 के चुनाव में वर्तमान समय में भारत की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने खुल कर धर्म, जाति, संप्रदाय तथा धन और बल का इस्तेमाल करने के शेकडो उदाहरण मौजूद रहते हुए ! चुनाव आयोग मुकदर्शक की भूमिका में खड़ा रहा है ! और संबंधित गलतियों को लेकर विरोधी दलों की शिकायतों को नजरअंदाज किया है !
उसका सबसे ताजा उदाहरण अभि हालही में संपन्न गुजरात के विधानसभा चुनाव में, भाजपा के वरिष्ठ नेता और भारत के गृहमंत्री श्री. अमित शाह ने नरोदा पटिया के विधानसभा चुनाव प्रचार में ! 2002 के दंगों के बारे में सिर्फ समर्थन ही नहीं किया ! उल्टा “दंगा चिरशांती के लिए आवश्यक था ! ” जैसी संविधान के विरोधी, गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी करते हुए ! उस जधन्य कांड में शामिल एक गुनाहगार की बेटी को अपने दल के तरफसे टिकट देकर ! उसके समर्थन में भाषण देते हुए यह सब कहा है ! और इस भाषण को लेकर चुनाव आयोग को सज्ञान लेकर कारवाई करने की विनती की गई थी ! तो चुनाव आयोग ने कहा “कि इस भाषण में ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नही है !” ऐसा पूर्वाग्रह युक्त चुनाव आयोग की की वजह से ही ! और उसके बाद इस समय के गुजरात विधानसभा चुनाव में खुलकर 2002 के दंगों के समर्थन के भाषणों की झड़ी लग गई ! जिसमें भारत के गृहमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक शामिल है ! लेकिन हमारे चुनाव आयोग के कानों में जूँ भी नहीं रेंगी ! और हमारे संविधान के धर्म, जाति, संप्रदाय तथा धन – बल के इस्तेमाल की खुली छूट ! भारतीय जनता पार्टी के लोगों को देने के कारण ! गुजरात के चुनाव के नतीजे बुरी तरह प्रभावित हुए है ! और इसीलिये हमारे देश के चुनाव आयोग की निस्पक्षता की पोल खुल गई है ! वह अपनी निस्पक्षता को भूल कर किसी विशेष दल के प्रति अपनी निष्ठा खुलकर गुजरात के चुनाव में दिखा चुका है ! जिसके उपर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए थी ! लेकिन आत्मविश्वासहीन विरोधी दलों के कारण आज भी वह उस पद पर कार्यरत रहते हुए और क्या काम करने वाले हैं ?
और वही चुनाव आयोग, अब शिवसेना के चुनाव चिन्ह को लेकर, कल दिए गए फैसले को देखते हुए ! शतप्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर दिया गया फैसला है ! इस बात में कोई शक नहीं है ! हमारे देश की सभी संविधानिक संस्थाओं को, नब्बे साल पहले के नाजीवादी जर्मनी में जिसतरह से ! हिटलर ने डॉ.पॉल जोसफ गोएबल्स की मदद लेकर जर्मनी की सभी संविधानिक संस्थाओं को अपने मनमर्जी से निर्णय लेने के लिए मजबूर करने का उदाहरण इतिहास में मौजूद है ! बिल्कुल भारत में आज वैसाही आलम जारी है !
जिस तरह से रंजन गोगोई को मुख्य न्यायाधीश बनाकर राममंदिर का फैसला हमारे देश के संविधान की अनदेखी करते हुए देने के लिए मजबूर किया ! और तुरंत मुख्य न्यायाधीश के पद पर से रिटायर होने के चंद दिनों के भीतर ! उन्हें राष्ट्रपति के द्वारा राज्यसभा में मनोनीत करने के लिए कहा गया ! उसी तरह गुजरात दंगों के जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा मनोनीत, एस आईटी के प्रमुख जिन्हें गुजरात दंगों के विवादास्पद घटनाओं की मुखतः नरोदा पटिया, गुलमर्ग सोसाइटी के जैसे जधन्य कांडों की जांच-पड़ताल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी ! डॉ. आर के राघवन (पूर्व संचालक सी बी आइ ) नरेंद्र मोदी को क्लिनचिट देने के एवज में ! आज सायप्रस के एंबेसेडर के पद पर बहाल किया है ! उसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सदाशिवन को केरल के राज्यपाल तथा नोटबंदी और तीन तलाक जैसे विवादास्पद और अत्यंत संवेदनशील मुद्दों के बारे में फैसला लेने वाले पूर्व न्यायाधीश श्री. अब्दुल नझीर के अपने पद से निवृत्त होकर एक हप्ताह के भीतर उन्हें आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के पद पर नियुक्त करने का उदाहरण मौजूद हैं ! इस तरह से हमारे देश के संविधानिक पदो पर बैठे हुए लोग अपनी निवृत्ती के बाद इस तरह के लाभकारी पदो पर नियुक्त होने के लालच में कौन सी सरकार के खिलाफ निर्णय लेने वाले हो सकते हैं ?
हिटलर ने जर्मनी में यही फार्मूले का इस्तेमाल करते हुए पंद्रह साल तक जर्मनी की चांसलर के पद पर कार्यरत रहते हुए अपनी मनमानी करते हुए लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया ! और जर्मनी की जनता के उपर एक छत्र राज किया था ! हालांकि मैंने नरेंद्र मोदी ने 16 मई 2014 के दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद ही ! “इंडियन एडिशन अॉफ फासीस्ट इरा में भारत का प्रवेश हो चुका है !” इस टाइटल से टिप्पणी करते हुए एक लेख लिखा है ! जो नौ सालों के कार्यकाल को देखते हुए हूबहू दिखाई दे रहा है !
डॉ सुरेश खैरनार 19 फरवरी 2023, नागपुर