यह बेहद दुखद है कि ओडिशा सरकार महाराजा आर सी भंजदेव के द्वारा कुष्ठ पी़िडत लोगों के लिए दान की गई ज़मीन को वापस लेेने की कोशिश कर रही है. यह जानकर और भी ज्यादा दुख हुआ कि इसकी शुरुआत उस ज़िला अधिकारी द्वारा दबाव डालने के बाद की गई, जिसके मन में कुष्ठ पी़िडत लोगों की सेवा से ज्यादा बारीपा़डा ज़िले में ब़ढ रही ज़मीन की कीमतों को लेकर लालच है. यह सबकुछ उसने अपनी इच्छानुसार किया. ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने के लिए ज़िला अधिकारी ने अपने उच्चाधिकारियों को गुमराह किया और ग़लत जानकारियां दीं. 
jameenज़मीन का वह हिस्सा जिसे ज़िला प्रशासन हथियाने का प्रयास कर रहा है, वह स्व. ग्राहम स्टुअर्ट स्टेन को मयूरभंज ज़िले के कुष्ठ रोगियों की सेवा करने के लिए उपयोग में लाने को दी गई थी. मयूरभंज के राजा ने वह ज़मीन दी थी, जिस पर स्टेन रहे और कुष्ठ रोगियों की 34 साल तक सेवा की. 1999 में एक पागल भी़ड द्वारा मौत के घाट उतारे जाने के पहले तक वे रोगियों की सेवा में लगे रहे.
लोग शायद अभी तक उस घृणित और भयावह कृत्य को भूले नहीं होंगे, जिसमें एक संतस्वरूप व्यक्ति ग्राहम स्टेन और उनके दो पुत्रों, फिलिप और टिमोथी, को मौत के घाट उतारा गया था. उनकी मौत का कारण सहृदयता, ईश्‍वर का प्रेम फैलाना और मयूरभंज ज़िले के कुष्ठ पी़िडत लोगों की सेवा करना था. उनके द्वारा किए गए समाजसेवा के कार्यों को कट्टरपंथियों ने ग़लत तरी़के से समझा.
हालांकि, अपने पति और दो बच्चों को खोने के बाद भी स्टेन की पत्नी ग्लैडी स्टेन ने अपने स्टेन द्वारा किए जा रहे समाज सेवा के कार्यों को जारी रखा. ग्लैडी को ग्राहम स्टेन के मिशन में बेहतर कार्य करने के लिए पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया.
ज़िला प्रशासन के ज़मीन हथियाने के इस ताज़ा क़दम से ग्लैडी काफ़ी हतप्रभ हैं, जो कि अभी भी अपने पति के सपनों को साकार करने के लिए काम कर रही हैं. वे इस मामले में स़िर्फ दुख प्रकट करती हैं कि मिशन के कार्य में अवरोध डालने वाले इस काम में सरकार का भी रोल है. यह मिशन 118 साल पुराना है और अपने आप में भारत का विरला मिशन है.
ज़िला अधिकारी राजेश प्रभाकर ने इस मामले में कहा कि ज़मीन सरकार की है और मिशन अपने कार्यों के लिए सरकारी ज़मीन का इस्तेमाल कर रहा है. हमने जनता की भलाई के लिए ज़मीन का एक हिस्सा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए लिया है. इस मामले में इएमएसएम (इवांजेलिकल मिशनरी सोसायटी इन मयूरभंज) की तरफ़ से कोई शिकायत नहीं मिली है.
इएमएसएम के एक अधिकारी का कहना है कि यह ज़मीन मिशन की है, जिसे महाराजा ने 1902 में दान में दिया था. 1974 के बाद से इसपर ट्रस्ट इटानी का अधिकार है, जिस पर यह संस्थान लेप्रोसी होम चलाया जा रहा है. ज़मीन का पूरा उपयोग किया जाता है और इसमें कुष्ठ पी़िडतों के लिए फ़सलें उगाई जाती हैं. ग्राहम स्टेन और उनके सहयोगियों द्वारा लगाए प़ेड-पौधे यहां मौजूद हैं. इसलिए ज़िला अधिकारी का कथन सही नहीं है.
एक स्थानीय निवासी ने बताया कि इस ज़मीन को महाराजा आर सी भंजदेव द्वारा रोगियों के इलाज और पुनर्वास के लिए दिया गया था. यह ज़मीन 1902 में दी गई थी, उसके बाद से इस ज़मीन का इस्तेमाल कुष्ठ रोग को मिटाने के लिए ऑस्ट्रलियाई मिशन (होम काउंसिल) और लेप्रोसी मिशन ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है.
कुष्ठ रोगियों को ठीक करने के लिए इस मिशन की शुरुआत 1896 में महाराजा आर सी भंजदेव के आह्वान पर की गई थी. जिसे लेकर ऑस्टे्रलियाई मिशनरी केट एलनबाई 1897 मे यहां आई थीं. बाद में उनकी बहन ग्रेस एलनबाई ने भी उनके साथ काम किया. उन्होंने मयूरभंज के कुष्ठ पी़िडतों की सेवा की. दुर्भाग्य से उस समय लोगों में इस बीमारी के ख़तरे का प्रतिशत बहुत ज्यादा था. कुष्ठ रोगियों की देखभाल करना उस समय की सबसे ब़डी समस्या थी. इसे देखते हुए महाराजा ने ज़िले के बाहरी छोर पर मुर्गाबा़डी में 36 एक़ड जमीन कुष्ठ रोगियों के इलाज और उनके पुनर्वास के लिए दी थी. 1926 में केट एलनबाई ने इस ज़मीन को ट्रस्ट के हवाले कर दिया था, जिसका नाम है इएमएसएम.
महाराजा ने इसके अलावा भी 4.5 एक़ड ज़मीन म्युनिशिपल ऑफिस के नज़दीक बाजपा़डा कोर्ट के ठीक सामने भी दी थी. यह ज़मीन मिशनरियों के रहने और चर्च स्थापित करने के लिए दी थी. इसे मिशन कंपाउंड के नाम से जाना जाता है.
मिशनरी आए और यहां पर मरीजों के इलाज और उनके पुनर्वास पर काम करना शुरू कर दिया. 1965 में 24 वर्ष के ग्राहम स्टेन यहां आए. बारीपा़डा के रहने वाले अपने पत्र मित्र इंजीनियर शांतनु सतपति के ज़रिए वे यहां आए थे.
ग्राहम स्टेन ने यहां के कुष्ठ रोगियों के लिए दिन रात काम किया, रोगियों के घाव धुले और उनमें इस सेवा के प्रति आदरभाव जगाया. इस दौरान उस ज़मीन पर मरीजों के पुनर्वास के लिए वार्ड और घर भी बनाए गए. बाक़ी बची ज़मीन का इस्तेमाल मरीजों के लिए स्वास्थ्यवर्धक फल और सब्ज़ियां उगाए जाने के लिए किया जाता रहा.
स्टेन ने कई प्रयासों के ज़रिए स्थानीय लोगों को मिशन के कार्य से जो़डने की कोशिश की. उन्होंने मिशन में एक डेयरी फार्म भी खोला. लेकिन लेप्रोसी मिशन द्वारा इस फार्म को चलाए जाने के कारण लोगों में एक भय भी था, जिस कारण कोई भी वहां से दूध नहीं खरीदता था. डॉ. विनोद प्रसाद और उनके पुत्र विभू प्रसाद ने पहली बार यहां से दूध ख़रीदा. फार्म की स्थापना उन्होंने इसलिए कि थी कि जिससे लोगों से कुष्ठ रोग के प्रति भय को निकाला जा सके और सभी को साथ लेकर इस भयावह बीमारी को समाप्त करने के लिए साथ काम किया जा सके.
मयूरभंज लेप्रोसी मिशन की 34 सालों की सेवा के दौरान ग्राहम एक मज़बूत स्तंभ बन गए. इस दौरान आने वाली उपहार व दान राशि उन्हीं के पास आती थी, लेकिन 36 एक़ड ज़मीन पर मिशन का ही अधिकार रहा. जब ग्राहम स्टेन की हत्या हुई, उस समय तक भू व्यवस्था कार्यालय द्वारा ज़मीन के एक हिस्से के काग़ज़ात क्लीयर नहीं हो पाए थे. दान और उपहारस्वरूप आए धन से स्टेन ने उस ज़मीन में पुनर्वास के लिए वार्ड और घर के अलावा मछलियों के तालाब व साल फॉरेस्ट भी बनाया था.
स्टेन की कू्रर हत्या के बाद उनकी विधवा ग्लैडी स्टेन ने मिशन की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. अपने पति के सपनों को पूरा करने के लिए ग्लैडी ने ग्राहम की याद में एक अस्पताल की शुरुआत की. ग्राहम स्टेन मेमोरियल नाम के इस अस्पताल के क्षमा और प्रेम के प्रतीक के रूप में ख्याति अर्जित की, जिसकी वजह से ग्लैडी को साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
अब जब कि वे अपने काम को और वृहद स्तर पर ले जाना चाहती हैं तो उन्होंने पाया कि अभी तक उस ज़मीन को मिशन के नाम पर दर्ज ही नहीं किया गया है. इसके लिए दिए गया प्रार्थना पत्र उस समय के राजस्व अधिकारी ने ख़ारिज कर दिया था. सबसे आश्‍चर्य की बात तो यह है कि विभाग का ऐसा निर्णय न स़िर्फ इस मिशन के कार्यों में बाधा पैदा करेगा, बल्कि भूमाफ़िया के लिए भी रास्ते खोलेगा.
स्थानीय पत्रकार जानकी शास्त्री कहती हैं कि कुष्ठ रोगियों की सेवा के उद्देश्य के साथ खोले गए इस 118 साल पुराने मिशन को अब उतना महत्व नहीं दिया जा रहा है. हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि कुष्ठ रोग के मामले में शून्य के स्तर पर आ पहुंचे हैं, लेकिन सरकार इस सच्चाई से आंख चुरा रही है कि हाल में इस रोग के मामले प्रकाश में आए हैं. मिशन में लगभग हर सप्ताह नए मामले आते हैं और इसमें से कई मामले नौजवानों के भी हैं. हम इस बात को लेकर आश्‍वस्त हैं. हमें शहर मेंे कुष्ठ रोगी स़डकों पर भीख मांगते हुए नहीं दिखाई देंगे, जैसा कि तीस साल पहले हुआ करता था. यह ऑस्टे्रलिया के लोगों का बलिदान ही है कि एलनबाई, कैमरन, ग्राहम और ग्लैडी जैसे मिशनरियों के बुलावे पर मयूरभंज ज़िले में आकर यहां के कुष्ठ रोगियों की सेवा की और ज़िले को इस बीमारी से मुक्त करने में योगदान दिया.

प्रशासन ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर इस ज़मीन को हथियाने का प्रयास किया है. इसमें उन्होंने मुख्यमंत्री को भी जो़ड लिया है जो इस प्लांट का शिलान्यास करने वाले थे. दुर्भाग्य से कोई भी उन सैक़डों कुष्ठ मरीजों के बारे में नहीं सोच रहा है जिनका यहां इलाज चल रहा है. कम से कम 100 ऐसे कुष्ठ पी़िडत परिवार यहां रहते हैं, जिनका अपने गांवों में वापस लौट कर जाना मुमकिन नहीं है. वे इस रोग के ख़ात्मे से जु़डे कार्यों में भी लगे हुए हैं. 

लोग इस मिशन में उपहार और दान देकर इसे चलाने में मदद कर रहे हैं. लेकिन लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? वे ऐसा मानते हैं कि ईश्‍वर इंसानों को प्रेम करता है, क्योंकि उसने इंसानों को प्रतिमूर्ति के स्वरूप ही बनाया है. इंसानों के पास जीने का और स्वस्थ रहने का अधिकार है. यह उनके बलिदान का ही प्रतीक है कि वे ऐसा सोचते हैं कि उनकी पेंशन में से कुछ हिस्सा ऐसे लोगों के लिए उपयोग किया जाए, जिन्हें इसकी ज़रूरत है. इसी वजह से यह मिशन निर्बाध रूप से चल रहा है. यह वाकई में दुखद है कि सरकार और लोगों ने अभी तक इस बात एहसास नहीं किया है कि वे इस मिशन का दबाने के बाद वे कितने निरीह हो जाएंगे. वे उसमें भागीदार ही नहीं चाहते हैं, बल्कि उसे ह़डपना भी चाहते हैं जो कभी महाराजा ने कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए दान में दिया था. क्या हम उन रोगियों से भी ज्यादा ग़रीब नहीं बनते जा रहे हैं?
सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि प्रशासन ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर इस ज़मीन को हथियाने का प्रयास किया है. इसमें उन्होंने मुख्यमंत्री को भी जो़ड लिया है जो इस प्लांट का शिलान्यास करने वाले थे. लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी उन सैक़डों कुष्ठ मरीजों के बारे में नहीं सोच रहा है जिनका यहां इलाज चल रहा है. कम से कम 100 ऐसे कुष्ठ पी़िडत परिवार यहां रहते हैं, जिनका अपने गांवों में वापस लौट कर जाना मुमकिन नहीं है. वे इस रोग के ख़ात्मे से जु़डे कार्यों में भी लगे हुए हैं. इस मामले में जनता की प्रतिक्रिया के बाद मुख्यमंत्री ने प्लांट का शिलान्यास नहीं किया है. इससे यह प्रतीत होता है कि ज़िला प्रशासन ने प्लांट की ज़मीन को लेकर अपने उच्चाधिकारियों को अंधेरे में रखा हुआ था.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here