पूरे देश में कोरोना के भयावह होते प्रकोप के बीच हरिद्वार

में जारी महाकुंभ मेले के जल्द से जल्द समापन को लेकर जो राजनीति हुई या हो रही है, उससे सवाल तो हमारी और हमारे संतो की समझदारी पर खड़े हो रहे हैं। हिन्दुओं के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में से एक कुंभ में अब तक 2 हजार से ज्यादा कोरोना संक्रमित पाए गए हैं और दो प्रमुख संतों की जान जा चुकी है। ये वो संत हैं, जो गंगा में पवित्र स्नान कर चुके थे। हालात बिगड़ते देखकर स्वयं उत्तराखंड सरकार को ही मेला जल्द खत्म करवाने को लेकर पहल करनी चाहिए थी, लेकिन वहां के मुख्यमंत्री ‘गंगा मैया के रहते किसी को कोविड नहीं होगा’, जैसा मूर्खतापूर्ण बयान दे रहे थे। अभी भी राज्य सरकार कह रही है कि मेला निर्धारित तारीख 30 अप्रैल तक चलेगा।

इस बीच हालात की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जूना अखाड़ा के प्रमुख अवधेशानंद गिरीजी से सीधे बात कर मेले को प्रतीकात्मक रखने का आग्रह किया, जिसे मानकर जूना अखाड़ा ने मेला समाप्ति की घोषणा कर दी। इसके पहले दो और अखाड़े अपने डेरे समेट चुके थे। लेकिन चूंकि प्रधानमंत्री ने केवल अवधेशानंद गिरी जी से बात की, इसको लेकर संत समाज में बवाल मच गया। सवाल उठ रहा है कि प्रधानमंत्री ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि से बात क्यों नहीं की? वैसे खुद महंत नरेन्द्र गिरी भी कोरोना पाॅजिटिव पाए गए। जूना अखाड़ा तो 13 मान्य अखाड़ों में से एक है।

वैसे प्रधानमंत्री चाहते तो पहले शाही स्नान के बाद ही संतों से कुंभ समाप्ति की अपील कर सकते थे। इस बीच मेला समापन और कोरोना संक्रमण को लेकर संन्यासियों और बैरागियों में ठन गई है। बैरागियों ने संन्यासियों पर आरोप लगाया है कि वो मेले को जानबूझ कर जल्द समाप्त करवाना चाहते हैं और मेले में संक्रमण फैला रहे हैं। उधर मप्र सहित बाकी राज्य सरकारों ने कुंभ मेले से लौटने वालों की जांच करने तथा उन्हे पहले क्वारंटीन रहने के लिए कहा है। क्योंकि डर है कि ये लोग लौटने के बाद अपने इलाकों में कोरोना का संक्रमण फैला सकते हैं।

निश्चय ही कुंभ हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में है। यह हिंदू समाज की आस्था का सैलाब लेकर आता है। कुंभ सैंकड़ो बरसों से आयोजित हो रहा है। इसमे स्नान करना पुण्यदायी माना जाता है। कुंभ के आयोजन के पीछे कई कथाएं हैं। सबसे ज्यादा प्रचलित कथा सागर मंथन की है। देव और दानवों के बीच सागर मंथन में निकले अमृत कुंभ को लेकर जो छीना झपटी हुई, उसमें जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें छलकीं, वहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। उनमें से हरिद्वार एक है। महाकुंभ हर 12 साल में होता है।

निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हरिद्वार में इस साल जब 1 अप्रैल को कुंभ अपनी गरिमा और शान के साथ शुरू हुआ, तब भी यह आशंका जताई जा रही थीं कि इतने बड़े धार्मिक जमावड़े को कोरोना से कैसे बचाया जा सकेगा। क्योंकि तब तक देश में कोरोना की दूसरी लहर ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था और अप्रैल आते-आते उसका स्वरूप बेहद गंभीर और जानलेवा होने लगा था। जिससे पुण्य नगरी हरिद्वार भी अछूती नहीं रही। कोरोना वायरस के चलते सरकार ने इसकी अवधि घटाकर पहले ही 1 माह कर दी थी। राज्य सरकार का दावा है कि उसने कोविड प्रोटोकाॅल के तहत कोरोना जांच व इलाज आदि की पूरी व्यवस्थाएं की थीं। इस कुंभ में 4 शाही स्नान होने थे। जिसमें से 2 हो चुके हैं और दो बाकी हैं।

लेकिन इस महाकुंभ शुरू होने के दूसरे दिन 2 अप्रैल को मेले में 7 कोरोना पाॅजिटिव मिलने के बाद ही संकेत मिल गया था कि आगे स्थिति गंभीर होने वाली है। सरकार को तभी मेला प्रतीकात्मक रूप से आयोजित करने की पहल शुरू कर देनी थी। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। परिणामस्वरूप श्रद्धलुओं की भीड़ बढ़ती गई। दूसरे शाही स्नान में करीब साढ़े 13 लाख लोगों ने गंगा में पवित्र डुबकी लगाई। कहीं भी कोविड नियमों का पालन होता नहीं दिखा। मानो आस्था ही कोरोना का शर्तिया वैक्सीन हो।

लेकिन वायरस किसी का सगा नहीं होता। वह न धर्म देखता है, न सम्प्रदाय। न भावना की पवित्रता से उसे कुछ लेना-देना है और न ही किसी सियासत से। न ‍ितलक-छापे से न टोपी-पगड़ी से। उधर जानकारों की आशंका सही साबित हुई। दूसरे शाही स्नान के दिन कोरोना संक्रमित निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिल देव दास का निधन हो गया। इसके चार दिन बाद जबलपुर में नर्मदा कुंभ की नींव रखने वाले जगदगुरू डाॅ.श्याम देवाचार्य महाराज ने कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद दम तोड़ दिया। दोनो ही संत मध्यप्रदेश के थे। महामंडलेश्वर कपिल दास के निधन के बाद निरंजनी अखाड़े ने कुंभ छोड़ने का फैसला किया। निरंजनी अखाड़ा जूना अखाड़े के बाद दूसरा सबसे बड़ा नागा संन्यासी अखाड़ा है। अखाड़े ने कहा है कि शाही स्नान के बाद उसके लिए कुंभ समाप्त हो गया है। इस अखाड़े के कई साधु संक्रमित हो गए थे।

बहरहाल प्रधानमंत्री की अपील के बाद 6 अखाड़ों ने कुंभ विसर्जन की घोषणा कर दी, लेकिन बाकी 7 अखाड़े अभी अड़े हुए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अगर प्रधानमंत्री एक महामंडलेश्वर के निधन के बाद ही मेला समाप्ति की अपील कर देते तो कुछ जानें बच सकती थीं। वैसे भी राज्य सरकार कुंभ मेले में संक्रमितों का आंकड़ा तो बता रही है, लेकिन मौतें कितनी हुईं, यह नहीं बताया जा रहा। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री की अपील के बाद मेले में आए साधु-संतो के बीच खुलकर आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं।

शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष व शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने कुंभ विसर्जन को राजनीति से प्रेरित फैसला बताया तो निर्मोही अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने इसे परंपरा से खिलवाड़ करार दिया। स्वामी आनंद स्वरूप ने आरोप लगाया कि कोई भी अखाड़ा कुंभ का मनमर्जी से विसर्जन नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री ने तो मेले को प्रतीकात्मक बनाने की अपील की थी लेकिन अखाड़ों ने नेताओं को खुश करने के लिए कुंभ का विसर्जन ही कर डाला। जब अखाड़े स्वयं फैसले कर रहे तो अखाड़ा परिषद जैसी संस्था का महत्व ही क्या रह गया ?

अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अणि अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने कहा कि 27 अप्रैल के शाही स्नान में तीनों वैष्णव अखाड़ों के साथ श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन के साथ श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के संत भी शामिल होंगे। निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविंदर सिंह ने कहा कि कुंभ 30 अप्रैल तक चलेगा। 27 अप्रैल का शाही स्नान सब मिलकर करेंगे। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने तो यहां तक कहा कि कुंभ में कोविड के अत्यधिक प्रसार होने का डर फैलाया जा रहा है।

उन्होंने दावा किया कि हरिद्वार महाकुंभ से कोविड नहीं फैल सकता, यह पिछले प्रयाग कुंभ में 33 वैज्ञानिकों के शोध में सिद्ध हुआ था। गंगाजल वैक्सीन का काम करता है। यह शोध किन वैज्ञानिकों ने कब किया, उसकी रिपोर्ट क्या है, यह उन्होने नहीं बताया। और पिछले प्रयाग कुंभ में कोविड कहां था? वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गंगा में अपना जल स्वयं स्वच्छ करने वाले बैक्टीरिफाज पाए जाते हैं। लेकिन गंगा में बढ़ते प्रदूषण के चलते इनकी संख्या भी घटती जा रही है, जिसका कोई हल अभी तक नहीं हो सका है।

प्रधानमंत्री की अपील के बाद पंचदशनाम जूना अखाड़ा ने भी कुंभ विसर्जन की घोषणा कर दी। उसके सहयोगी अग्नि अखाड़ा और किन्नर अखाड़ा ने भी इस फैसले का समर्थन किया है। इसके बाद पंचायती अखाड़ा, श्री निरंजनी और श्री तपो निधि आनंद अखाड़े ने भी कुंभ विसर्जन का ऐलान कर दिया। लेकिन कुछ दूसरे अखाड़े उनका विरोध कर रहे हैं। निर्मोही अखाड़े के अध्यक्ष महंत राजेंद्र दास ने कुंभ में बढ़ते संक्रमण के मामलों के लिए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि को जिम्मेदार ठहराया है।

इस आरोप के पीछे कारण यह हो सकता है कि वो पहले बड़े संत हैं, जो मेले में कोरोना संक्रमित पाए गए थे। इस बीच खबर यह है कि मेले की रौनक अब घटने लगी है। असमंजस के बीच कई लोग घरों को लौटने लगे हैं। इनमें से कितने संक्रमित होकर लौट रहे हैं, यह साफ नहीं है। बेशक धार्मिक मेले आस्था का विराट उत्सव होते हैं, लेकिन आस्था के साथ विवेक का सहारा भी जरूरी है।

श्रद्धा किसी श्रद्धालु की जान से बढकर नहीं है। हो भी नहीं सकती। ईश्वर के जिन रहस्यों को हम अभी तक ठीक से समझ नहीं पाए हैं, वायरस उनमें से एक है। यह बात समाज के प्रबोधनकार साधु-संतो को भी समझनी चाहिए और उससे भी ज्यादा उन सरकारों को, जो हर बात में वोट का डीएनए की खोज में लगी रहती हैं।

वरिष्ठ संपादक

अजय बोकिल

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