मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र में जार्ज के अलावा बिजेंद्र चौधरी भी निर्दलीय उम्मीदवार थे. वह भी पूर्व विधायक हैं. पिछले चुनाव में उनकी कोई खास उपलब्धि नहीं रही. उसके बाद वह लोजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन लोजपा का भाजपा के साथ जाना उन्हें जंचा नहीं और उन्होंने लोजपा छोड़ दी. हारने वाले प्रमुख निर्दलीय प्रत्याशियों में नवादा लोकसभा क्षेत्र से राजबल्लभ यादव एवं कौशल यादव भी हैं. 
om-prakash-n-putul-deviबिहार की राजनीति में निर्दलीय सांसदों एवं विधायकों की भूमिका कई मौक़ों पर बेहद अहम रही है. कई बार ऐसा हुआ कि कुछ नेताओं ने दल का टिकट ठुकरा कर निर्दलीय चुनाव मैदान में जाने का साहस किया और सफल भी हुए. 2009 के लोकसभा चुनाव और बाद में हुए उपचुनाव में भी यह कहानी दोहराई गई. इस साल उनमें से कुछ नेताओं ने दल का दामन थाम लिया, तो कुछ के तेवर बरकरार हैं. कुछ नए महारथी भी इस बार बतौर निर्दलीय प्रत्याशी भाग्य आजमाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में चार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते, जिनमें से तीन फिलहाल नीतीश को समर्थन दे रहे हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में कई उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे, जिनमें दो को जीत हासिल हुई. बांका से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव लड़े थे और उन्होंने जीत हासिल की थी. बांका सीट से उस समय राज्य के कल्याण मंत्री रहे दामोदर रावत भी मैदान में थे. 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू द्वारा समता पार्टी के दो संस्थापक सदस्यों के टिकट काटे गए थे, जिनमें एक दिग्विजय सिंह थे और दूसरे जार्ज फर्नांडिस.
2010 में दिग्विजय सिंह का निधन हो गया. उसके बाद हुए उपचुनाव में बांका से उनकी पत्नी पुतुल देवी बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ीं और उन्हें जीत हासिल हुई. बीते जनवरी माह में पुतुल देवी भाजपा में शामिल हो गईं. सूत्र बताते हैं कि इस बार पुतुल बांका से भाजपा की उम्मीदवार होंगी. इसी तरह सीवान के चर्चित निर्दलीय सांसद ओम प्रकाश यादव का नाम आता है. उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में सीवान से राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना को हराया था. सांसद बनने के बाद यादव ने केंद्र की यूपीए सरकार को अपना समर्थन दिया. बीते दिसंबर माह में उन्होंने भ्रष्टाचार, महंगाई और विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ सरकार के रवैये का हवाला देते हुए अपना समर्थन वापस ले लिया. फिलहाल वह भाजपा में शामिल हो चुके हैं. संभावना है कि वह सीवान से भाजपा के उम्मीदवार होंगे.
वहीं कुछ निर्दलीय उम्मीदवार ऐसे रहे, जो जीते तो नहीं, लेकिन उन्होंने विजयी उम्मीदवार को जबरदस्त चुनौती दी थी. वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र से जदयू सांसद वैद्यनाथ प्रसाद महतो को मोहम्मद फखरुद्दीन ने कड़ी टक्कर दी. फखरुद्दीन ने 94 हजार वोट हासिल किए. वह पहली बार 2005 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के टिकट पर मैदान में उतरे, लेकिन मात्र 250 वोटों से राजग उम्मीदवार चंद्रमोहन राय से हार गए. छह महीने बाद फिर चुनाव हुए, जिसमें बतौर राजद उम्मीदवार वह एक बार फिर बहुत कम मतों से चंद्रमोहन राय से हार गए. फखरुद्दीन कहते हैं कि उन्होंने 2009 में लालू यादव से कहा था कि बेतिया एवं वाल्मीकि नगर में मुसलमानों और यादवों की संख्या अच्छी है, इसलिए किसी एक जगह से मुसलमान उम्मीदवार उतारिए, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और वह मजबूरी में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े. फखरुद्दीन रामकृपाल के साथ ही राजद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं, लेकिन कहते हैं कि भाजपा में नहीं जाएंगे. हम सेक्युलर हैं और रहेंगे.
फखरुद्दीन का आरोप है कि लालू मोदी का भूत दिखाकर मुसलमानों को डरा रहे हैं. कांग्रेस से उनका समझौता जगजाहिर है, लेकिन उन्होंने गुप्त समझौता भाजपा से भी किया है कि वह बिहार की दस सीटों पर कमजोर उम्मीदवार उतारेंगे. फखरुद्दीन इस बार फिर बतौर निर्दलीय मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं. वहीं राजद-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आई है. पिछले लोकसभा चुनाव के निर्दलीय उम्मीदवारों में एक अहम नाम है ददन पहलवान का. ददन इस बार बक्सर से बतौर बसपा प्रत्याशी मैदान में हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से जगतानंद विजयी हुए थे और उन्हें एक लाख 32 हजार मत मिले थे. ददन चौथे स्थान पर थे और उन्हें एक लाख 26 हजार मत मिले थे. उस बार बक्सर से बसपा प्रत्याशी थे श्यामलाल कुशवाहा, जिन्हें एक लाख 28 हजार मत मिले थे. ददन को उम्मीद है कि वह इस बार जरूर जीतेंगे. वह कहते हैं कि क्षेत्र में लगभग तीन लाख मतदाता अनुसूचित जाति के हैं, जबकि यादव मतदाताओं की संख्या भी तीन लाख के आसपास है.
2005 के विधानसभा चुनाव में मधुबनी की बिस्फी सीट से हरिभूषण  ठाकुर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए थे. उन्होंने 2009 का लोकसभा चुनाव भी मधुबनी से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा था, लेकिन असफल रहे. फिलहाल यहां से भाजपा के हुकुमदेव यादव सांसद हैं. जदयू के नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह फिलहाल बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भी बतौर निर्दलीय भाग्य आजमाया था. 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जदयू का टिकट मिला. 2005 में मटिहानी से निर्दलीय जीतने वाले बोगो सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर पाए. इसी तरह कटिहार लोकसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में पूर्व मंत्री हिमराज सिंह और कांग्रेस के पूर्व विधायक मुबारक हुसैन बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़े थे. कहते हैं कि कटिहार से राकांपा प्रत्याशी तारिक अनवर की हार की वजह मुबारक रहे. फिलहाल हिमराज राकांपा के साथ हैं.
राजबल्लभ को 78 हजार मत मिले थे, जबकि कौशल यादव को 59 हजार मत. कौशल एवं उनकी पत्नी फिलहाल जदयू के विधायक हैं. नवादा के सांसद फिलहाल भाजपा के भोला सिंह हैं. इस बार भी कुछ उपेक्षित-असंतुष्ट उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में उतरेंगे. जानकारों का मानना है कि निर्दलीय उम्मीदवारों की उपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्हें जो वोट मिलते हैं, वे उनके व्यक्तिगत होते हैं. ग़ौरतलब है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में स़िर्फ नौ निर्दलीय उम्मीदवारों को विजयश्री हासिल हुई थी, जबकि 1957 में सर्वाधिक 73 निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.

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