गठबंधन टूटने के बाद कौन सबसे अधिक फ़ायदे में रहेगा, सवाल यही है. पिछले कुछ सालों में जिस तरह से कांग्रेस-एनसीपी सरकार में घोटाले हुए हैं, उसे देखते हुए मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन को ऩुकसान उठाना पड़ेगा. कांग्रेस के अलावा, सिंचाई घोटाले में मुख्य रूप से एनसीपी शामिल थी. आम जनता में एनसीपी नेताओं के रवैये को लेकर भी असंतोष है. एनसीपी सिंचाई घोटाला, हाईवे टोल-टैक्स, ग्रामीण इलाकों में बिजली कटौती को लेकर जनता के निशाने पर है.
19 अक्टूबर को चुनाव परिणाम आ जाएगा. 15 अक्टूबर को राज्य की 288 सीटों पर मतदाना होना है. इन सीटों के लिए छह हज़ार उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए हैं. जहां तक गठबंधन का सवाल है, तो एक तरफ़ भाजपा और शिवसेना ने अपना 25 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया, वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस और एनसीपी ने भी अपना 15 साल पुराना गठबंधन समाप्त कर लिया. कांग्रेस और सपा में भी गठबंधन की पहले ख़बर आई, लेकिन बाद में वह भी टूट गया. हां, भाजपा का गठबंधन ज़रूर आरपीआई से हुआ है. कांग्रेस ने सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस पिछले 15 सालों के बाद पहली बार अकेले चुनाव मैदान में उतरी है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 174 और एनसीपी ने 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
हरियाणा के साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम क़रीब सभी दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है. बदले राजनीतिक हालात में कांग्रेस, भाजपा, एनसीपी और शिवसेना के सामने खुद को साबित करने की एक बड़ी चुनौती है. वैसे भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटना दोनों दलों के लिए नुक़सानदायक साबित हो सकता है. इन दोनों ही दलों का वोट आधार क़रीब-क़रीब एक है. अब जब दोनों एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ेंगे, तो हो सकता है कि इसका फ़ायदा किसी और को मिल जाए. वैसे, पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस की स्थिति अच्छी रही है, लेकिन अब ये दोनों भी अलग-अलग हैं. जाहिर है, इससे इस क्षेत्र में दोनों को ऩुकसान उठाना पड़ सकता है.
शुरुआत से ही शिवसेना राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 171 पर चुनाव लड़ती थी, जबकि बाकी सीटें भाजपा के खाते में जाती थीं. लोकसभा चुनाव में भाजपा को ज़्यादा सीटें मिलती थीं और शिवसेना को कम. एनडीए को पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में जबरदस्त सफलता मिली. इस जीत का सेहरा मोदी लहर के हिस्से में गया था. ग़ौरतलब है कि महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है, जहां तक़रीबन सभी राजनीतिक दलों का संगठनात्मक ढांचा मज़बूत है. 2009 की तुलना में भाजपा के मतों में 9.13 और शिवसेना के मतों में 3.60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. इस सबसे भाजपा का उत्साहित होना स्वाभाविक है. ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए सीटों के मसले पर शिवसेना से अलग होना आसान हो गया. वैसे, भाजपा के लिए फिलहाल एक ऩुकसान यही है कि उसका एक मजबूत नेता गोपीनाथ मुंडे अब उसके साथ नहीं है.
बहरहाल, गठबंधन टूटने के बाद कौन सबसे अधिक फ़ायदे में रहेगा, सवाल यही है. पिछले कुछ सालों में जिस तरह से कांग्रेस-एनसीपी सरकार में घोटाले हुए हैं, उसे देखते हुए मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन को ऩुकसान उठाना पड़ेगा. कांग्रेस के अलावा, सिंचाई घोटाले में मुख्य रूप से एनसीपी शामिल थी. आम जनता में एनसीपी नेताओं के रवैये को लेकर भी असंतोष है. एनसीपी सिंचाई घोटाला, हाईवे टोल-टैक्स, ग्रामीण इलाकों में बिजली कटौती को लेकर जनता के निशाने पर है. उधर एनसीपी के बड़े नेता सूर्यकांत पाटिल, पूर्व मंत्री बबनराव पचपुते, पूर्व एनसीपी प्रदेश अध्यक्ष अजित घोरपड़े पार्टी से निकल चुके हैं. इतना ही नहीं, उप-मुख्यमंत्री अजित पवार के व्यवहार से भी एनसीपी में असंतोष है.
बहरहाल, भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि विदर्भ क्षेत्र में उसकी अच्छी पैठ है. पृथक विदर्भ का भाजपा शुरू से समर्थन करती आ रही है. विदर्भ के भाजपा नेताओं को लगता है कि महाराष्ट्र का विभाजन करके विदर्भ को अलग राज्य बनाने से पार्टी को फ़ायदा होगा और चूंकि मोदी लहर भी है, तो इस वजह से इस इलाके में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीती जा सकती हैं. ग़ौरतलब है कि शिवसेना पृथक विदर्भ का विरोध करती है. नतीजतन, भाजपा को भी लगा कि शिवसेना के साथ रहते हुए वह अपने अलग विदर्भ के एजेंडे को पूरा नहीं कर पाएगी.
वैसे, चुनाव पूर्व से अधिक चुनाव बाद बनने वाले समीकरण दिलचस्प होंगे. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जो सबसे बड़ी पार्टी होगी, उसी की सरकार बनने की संभावना सबसे अधिक होगी. ऐसे में अभी भाजपा फ़ायदे में आती दिख रही है. चुनाव बाद, चाहे वह शिवसेना हो, एनसीपी हो या फिर मनसे, इनमें से कोई भी भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे सकता है. यह भी हो सकता है कि शिवसेना और भाजपा ने जिस गठबंधन को तोड़ दिया, उसे वे चुनाव के बाद फिर से बना लें.
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