देश की सुप्रीम अदालत ने 2002 के गुजरात दंगों में मोदी का हाथ होने वाली जकिया जाफ़ री की अर्ज़ी को खारिज कर दिया है । और इस तरह मोदी जी को क्लीन चिट दे दी गयी है । इस पर कलकत्ता से निकलने वाले टेलीग्राफ अखबार ने चुटीली हैडलाइन डाली । मोदी के दोनों हाथ ऊपर हैं और पूछा जाता है कि क्या ये हाथ साफ हैं । जवाब होता है , हां । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है । अगले दिन दो घटनाएं होती हैं । अमित शाह एक इंटरव्यू देते हैं और मोदी जी की तारीफ में क्या क्या नहीं कहते । उधर तुरंत जकिया जाफरी की सहयोगी तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में लिया जाता है । साथ ही गुजरात के तत्कालीन पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्री कुमार को भी । और इनके समेत पहले से जेल में बंद पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट पर केस दर्ज किया गया है । सारे संकेत सामने हैं और स्पष्ट हैं । देश उनके लिए एक बड़ा भंवर बनता जा रहा है जो मोदी को , उनकी सरकार को, उनकी नीतियों को, आरएसएस को नापसंद करते हैं । साफ संकेत हैं कि या तो शरण में आओ या भंवर में फंसो । मुसलमानों के लिए भी साफ यही संकेत हैं । सत्ता की जैसी नंगई हम देख रहे हैं। गारंटी से कहा जा सकता है इसकी कल्पना कभी किसी ने नहीं की होगी । एक आदमी ‘लार्जर दैन लाइफ’ हो चुका है । अब उस पर हंसना , चुटकुले बनाना अपनी नपुंसकता को जाहिर करना है । सब पकड़े जाएंगे, धीरे-धीरे सब मारे जाएंगे और हर चीज को ‘जस्टीफाई’ कर दिया जाएगा । ऐसे में किसी गृहयुद्ध की जरूरत ही नहीं रह जाएगी । हम सोचते थे कि यह देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है । लेकिन जब एक पक्ष को समाप्त ही कर दिया जाएगा तो कैसा गृहयुद्ध होगा । यह सारा मंजर किसी के लिए खतरनाक हो सकता है पर राजा खेल रहा है। वह झूठ बोल रहा है। वह श्लील को अश्लील सिद्ध कर रहा है । वह चाहता है कि दुनिया मौजूदा भारत को सलाम करें । कल के भारत पर थूके । उसके सारे प्रयत्न इसी दिशा में हैं । गली गली में उसके पक्ष में तू तू मैं मैं हो । लोग रोटी पानी , रोजगार , गुजर बसर भूल जाएं उसके अवतारी पुरुष मानें । रोटी का मुद्दा देश की ‘छद्म’ सुरक्षा के सामने गौण हो जाए । देश बंटेगा , जो बंट चुका है तो राजा सुरक्षित होगा । क्योंकि तर्क के सामने कुतर्क का पलड़ा भारी पड़ता है । जाहिल समाज को देख कर सभ्य समाज भागता है । देवता राक्षसों से हमेशा पिछड़े हैं । कोई कह सकता है यह तस्वीर व्यर्थ में डराने वाली है ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा । यही तो राजसत्ता चाहती है । इसीलिए हर तरफ भ्रम ही भ्रम हैं । जो बेहद सुनियोजित तरीकों से पूरे समाज में फैला दिये गये हैं । हमेशा आस में जीने वाला गरीब आज भी आस से बंधा है । इसलिए उसके जीवन में झूठ ने इस की चादर और बड़ी कर दी है । इसीलिए नोटबंदी और ऐसे कुकर्मों का कोई एक सत्य उसे पता नहीं । पता चलने भी नहीं दिया जाता । कोई कहे कि भ्रम की उम्र बहुत छोटी होती है तो वह राजा के षड़यंत्री दिमाग से वाकिफ नहीं । जानते वही हैं जो 2014 में भी भरपूर विरोध में खड़े थे । जो विरोध से समर्थन में आकर खड़े हो गये थे वे अब अवाक हैं इसलिए पुनः विरोध में खड़े हैं । पर हर किसी को इस विरोध की कीमत चुकानी पड़ेगी ।
हमारा सोशल मीडिया गश खाये पड़ा है । वह भ्रमित ज्यादा लगता है । वह समझता है कि रोजाना की घटनाओं पर अपने पक्ष के लोगों को बैठा कर चाय की लंबी लंबी चुस्कियों से सरकार को हिला देंगे । वह नहीं समझता कि कोई एक दिन ही बाकी है कि जहां वह बचा है । सब कुछ स्टीरियो टाइप हो चला है । कोई फर्क नहीं बचा इस डिजिटल मीडिया में और सरकार जनित मीडिया में । जब समाज ही भ्रमित है तो वह इस डिजिटल मीडिया से क्या ज्ञान लेगा । फेसबुक वाला समाज जमीन पर शून्य है । लेकिन इस समाज की गफलत में जीता डिजिटल मीडिया बुद्धि पर जैसे ताला लगा कर बैठा है। पिछले एक हफ्ते के कार्यक्रमों को ही लीजिए। ‘सत्य हिंदी’ जैसे भांड हो गया है । उसे महाराष्ट्र के संकट से आगे कुछ दिखाई नहीं दिया । ‘सत्य हिंदी’ में बहस या विश्लेषण के छः कार्यक्रमों में से एक में भी कोई दूसरा विषय चला ही नहीं । शाम चार बजे और सात बजे के कार्यक्रम तो पूरी तरह से भांड बन गये हैं । पता नहीं श्रवण गर्ग जैसे दिग्गज और वरिष्ठ पत्रकार कैसे एक बेहूदा बहस में चले आते हैं हर रोज । इस एक हफ्ते में बड़ा घोटाला हुआ, असम में भयानक बाढ़ आयी जहां मानवता त्राहि-त्राहि कर रही थी । इस बहाने भी कोई बहस नहीं हुई कि एक तरफ बाढ़ जैसी विभीषिका और उसी राज्य में एक होटल भगोड़े विधायकों का शरणस्थल । अभी तक मोदी को सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट पर कोई कार्यक्रम नहीं । जब महाराष्ट्र के की कार्यक्रमों की अति हो गयी तब मैंने मुकेश कुमार को व्यक्तिगत संदेश भेजा । मुकेश कुमार ने एक संजीदा व्यक्ति की भांति मेरी पीड़ा को समझा और अगले दिन उनका विषय बदल गया । उन्होंने मोदी को मिली क्लीन चिट पर बढ़िया कार्यक्रम किया । यही कारण है कि मुकेश कुमार के कार्यक्रमों को लोग बहुतायत में पसंद करते हैं । मुकेश कुमार की खूबी है कि वे गम्भीरता को कहीं चुकने नहीं देते । आलोक जोशी समझते हैं कि महाराष्ट्र की आड़ में बहुत से कार्यक्रम छूटे जा रहे हैं फिर क्यों चिपके हैं इससे । नीलू व्यास तो ऐसा लग रहा है जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गयी हो। फूहड़ता की हद होती है । इन लोगों को लगता है कि हमारे देखने वालों की संख्या अच्छी खासी है । इन्हें नहीं पता कि ‘लल्लनटाप’ जैसों की संख्या भी इनसे भी कम नहीं । और रवीश कुमार के मात्र एक कार्यक्रम के सामने तो ये कहीं टिकते नहीं । आलोक जोशी भी काफी संजीदा व्यक्ति हैं पर वे अपने औरे की गिरफ्त में हैं । उनके औरे में उनके दोस्त हैं । लोग आशुतोष को एक समझदार मूर्ख की तरह लेते हैं । वे निदा फ़ाज़ली की पंक्तियों को दोहराते हैं कि, ‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी / जिसको भी देखना कई बार देखना’ । वे कहते हैं हमने आजादी के बाद आज तक कोई ऐसा एंकर नहीं देखा जो नमस्कार कहने के लिए पूरी सांस भर कर लगभग चिल्लाता हो। उनका अंदाजा है कि शायद उन्हें अपनी बुद्धिमानी का बहुत गुरूर हैं । ऐसे लोगों की बातें फोन पर मैं सिर्फ सुनता रहता हूं । दरअसल ये समझदार लोग इन्हीं चीजों में लटे पटे हैं । कोई समझे ऐसे कार्यक्रम और ऐसा सोशल मीडिया हमें क्या देगा और जंजीरों में कसते जाते समाज को कैसे उबार पाएगा । कुछ भी उठा कर देख लीजिए । कोई भी वेबसाइट में हर कोई समझे हुए लोगों को ही समझा रहे हैं । कहीं से भी कुछ नया ज्ञान या नयी जानकारी नहीं दी जा रही । बस थके मांदे चुनिंदा पत्रकार घूम फिर कर वहीं वहीं अपने दिमाग का भूसा लाद रहे हैं । क्या कीजिएगा । कोई मोर्चा , कोई मंच, कोई विपक्ष कारगर सिद्ध नहीं हो रहा । जड़ता के बादल चारों ओर से घिरते चले आ रहे हैं । मोदी शाह में धैर्य नाम की कोई चीज नहीं । जब सत्तर फीसदी समाज भोले , नादान, गरीब और अनपढ़ों का हो और वे सब वोट के पहरेदार हों तब जुल्मी और जिद्दियों को आराम नहीं भाता । वे कोई चीज कल पर नहीं छोड़ते । इसलिए 2024 के बाद तेजी से बदलती खूंखार सत्ता को आप देखेंगे । तब तक का समय खुद को समझदार कहने वालों के पास बचा है । वरना हम यही दोहराएंगे , ‘होई है वही जो राम रची राखा’ । इस पंक्ति के अर्थ को अपने पक्ष में भी देखा जा सकता है। पर कहीं से कोई सार्थक पहल तो हो !!

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