तीन दिन के साइंस फेस्टिवल का समापन

कला और विज्ञान एक सिक्के के दो पहलू हैं। वैज्ञानिक विशेषताओं से जुड़ी कलाओं को सहेजने और उनको उनके उचित स्थान तक पहुंचाने की कोशिश की जाना चाहिए। विभिन्न परंपरागत कलाओं को आगे बढ़ाने के लिए इनका पेटेंट कराया जाना चाहिए, ताकि इनकी पहचान बरकरार रह सके।
इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल के समापन समारोह में मुख्य अतिथि गोपाल आयंगर ने ये बात कही। उन्होंने कहा कि अब दौर दाढ़ी वाले वैज्ञानिक का नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी बिना दाढ़ी वालों पर आ गई है। इस मौके पर प्रवीण रामपुरावाला ने कहा कि कलाकारों से देश है। देश की इस धरोहर को जिंदा रखने के लिए कारीगरों से ज्यादा जिम्मेदारी सरकारों की भी है। कार्यमक्रम को संबोधित करते हुए डॉ एके श्रीवास्तव ने कहा कि मप्र में करीब दो करोड़ जनजातीय निवास करती हैं। इनकी सभी की अपनी अलग अलग कलाएं हैं। इन कलाओं को बाजार न मिल पाने से इनका अस्तित्व खत्म हो रहा है। इसकी फिक्र के साथ ही ऐसे आयोजन और सतत चर्चाएं जरुरी हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ सारिका वर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राजीव सिंह ने किया। इस मौके पर देशभर से आए कलाकारों ने अपने विचार और सुझाव मंच के साथ शेयर किए।


गौरतलब है कि तीन दिवसीय साइंस फेस्टिवल का शुभारंभ 10 दिसंबर को मप्र के केबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा ने किया था। इन दिनों में जहां हजारों लोगों ने विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों को देखा, वहीं देशभर से पहुंचे शिल्पियों की कला को भी निहारा। कार्यक्रम विज्ञान भारती द्वारा आयोजित किया गया था। जिसको विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद आदि के सहयोग से किया गया था। जिसमें मप्र और गोवा के विभिन्न शासकीय और आशसकीय विभागों ने सहयोग दिया था।

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