9फैजाबाद संसदीय क्षेत्र के पत्ते प्रमुख चारों दलों ने खोल दिए हैं. भाजपा, कांग्रेस, सपा एवं बसपा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद हर खास-ओ-आम में कयासों का दौर शुरू हो गया है. एक ओर जहां घोषित प्रत्याशियों ने मतों के धु्रवीकरण के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दी है, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में अंतर्कलह भी मुखर होने लगी है. फिलहाल माना जा रहा है कि दोनों दलों में हो रही अंतर्कलह से चुनावी नतीजे बेअसर रहेंगे. भाजपा, सपा और कांग्रेस के मध्य मुकाबले की तस्वीर साफ़ दिखाई पड़ने लगी है. यदि बसपा ने अंतिम समय प्रत्याशी बदल कर मुस्लिम कार्ड इस्तेमाल किया, तो एक बार फिर चुनावी समीकरण में परिवर्तन हो सकता है.
मौजूदा सांसद एवं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. निर्मल खत्री चुनावी समर में कूदेंगे, यह तो शुरू से माना जा रहा था. उनके नाम की घोषणा के बाद यह संदेह भी दूर हो गया कि फैजाबाद संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस किसी अन्य प्रत्याशी को मैदान में उतारेगी. यही वजह थी कि सांसद डॉ. निर्मल खत्री ने पहले से ही कांग्रेसियों को लामबंद करने का काम आरंभ कर दिया था, परंतु प्रत्याशी बनाए जाते ही स्थानीय वरिष्ठ कांग्रेसियों ने उनका विरोध शुरू कर दिया. पीसीसी सदस्य इकबाल मुस्तफा ने त्यागपत्र देकर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया और उन्हें फैजाबाद संसदीय क्षेत्र से आप का प्रत्याशी भी बना दिया गया. इसी मध्य आप के स्थानीय नेताओं ने अंदर-अंदर विरोध शुरू किया और वे इकबाल मुस्तफा का आपराधिक इतिहास खंगालने लगे.
ग़ौरतलब है कि 2007 में इकबाल मुस्तफा के ख़िलाफ़ कोतवाली नगर में धांधली का मुकदमा कायम किया गया था. आप में शामिल होने के मात्र चंद दिनों के अंदर ही इकबाल मुस्तफा ने रणनीति बदलते हुए आप का टिकट वापस ही नहीं किया, बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. निर्मल खत्री से मेल-मुलाकात भी बढ़ा ली. वैसे अभी तक इकबाल मुस्तफा की कांग्रेस में वापसी नहीं हुई है, परंतु माना जा रहा है कि वह कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध नहीं करेंगे. दूसरी ओर सांसद प्रतिनिधि एवं पीसीसी सदस्य डॉ. खलील अहमद ने खत्री पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते हुए बगावत का ऐलान कर दिया है. नतीजतन, उन्हें और वरिष्ठ कांगे्रसी नेता पवन पांडेय को पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया गया. वरिष्ठ कांग्रेसी डॉ. सत्येंद्र नाथ त्रिपाठी ने भी अपने पद से त्यागपत्र देते हुए कांग्रेस को अलविदा कह दिया है. ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल खत्री के हाथ से मुस्लिम वोट खिसकता नज़र आ रहा है, जिसे वह अपनी जीत का हिस्सा मानते रहे हैं.
भाजपा के लिए फैजाबाद का क़रीबी शहर अयोध्या राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी महत्व रखता है. यही वजह है कि दो बार लोकसभा प्रत्याशी रहे पूर्व राज्यमंत्री लल्लू सिंह की पराजय के बावजूद पार्टी नेतृत्व ने मोदी लहर को महत्व देते हुए उनके नाम की ही घोषणा पुन: प्रत्याशी के रूप में की है. इसके पूर्व फैजाबाद क्षेत्र के प्रमुख दावेदार एवं रुदौली के भाजपा विधायक रामचंद्र यादव और गोंडा के कद्दावर नेता बृजभूषण सिंह का नाम लिया जा रहा था. यह भी चर्चा थी कि फायर ब्रांड नेता विनय कटियार को इस महत्वपूर्ण सीट पर उतारा जा सकता है. विश्‍व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंहल के वीटो इस्तेमाल करने के कारण एक बार फिर लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी गई. प्रतिक्रिया स्वरूप विनय कटियार समर्थकों ने प्रदर्शन और पुतला दहन आरंभ किया, लेकिन विनय कटियार और रामचंद्र यादव प्रत्याशी चयन के मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्व के फैसले के ख़िलाफ़ एक शब्द बोलने को तैयार नहीं हैं. माना जा रहा है कि छुटभैया भाजपाइयों का यह विरोध दम तोड़ देगा.
सूबे में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार कायम है. पार्टी ने यहां से कद्दावर नेता एवं बीकापुर के विधायक मित्रसेन यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है. मित्रसेन यादव इसके पूर्व भाकपा के प्रदेश नेता थे और अपने बूते पर विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव जीतते थे. मिल्कीपुर क्षेत्र में सपा की पकड़ मजबूत होने का श्रेय मित्रसेन को ही जाता है. वह तीन बार सांसद रह चुके हैं, परंतु इस बार लोकसभा चुनाव में समीकरण बनते- बिगड़ते दिखाई पड़ रहे हैं. कभी उनके सिपहसालार रहे रामचंद्र यादव अब भाजपा से विधायक हैं, वहीं उनके पुत्र एवं पूर्व राज्यमंत्री आनंद सेन शशि प्रकरण में कई सालों तक जेल में बंद रहे. न्यायालय ने उन्हें बरी ज़रूर कर दिया है, परंतु शशि प्रकरण के चलते मित्रसेन यादव के हाथ से दलित मत काफी हद तक खिसक चुका है, जिसका नतीजा लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा.
बहुजन समाज पार्टी ने पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बब्लू को अपना प्रत्याशी बनाया है. बीकापुर और गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र में जितेंद्र सिंह बब्लू की जमीनी पकड़ को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. चर्चाओं का दौर शुरू है. चूंकि किसी दल ने अभी तक किसी मुस्लिम प्रत्याशी को चुनावी दंगल में नहीं उतारा है, इसलिए माना जा रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती कभी भी प्रत्याशी बदल कर मुस्लिम अथवा ब्राह्मण कार्ड खेल सकती हैं. राजनीतिक खेमों में चर्चा है कि यदि प्रत्याशी बदला गया, तो इंद्र प्रताप तिवारी खब्बू अथवा फिरोज खां गब्बर को प्रत्याशी बनाया जा सकता है. दोनों में से यदि कोई भी बसपा का नया प्रत्याशी बना, तो भाजपा, कांग्रेस एवं सपा के चुनावी गणित में हेरफेर हो सकती है और नतीजा चौंकाने वाला आएगा. यदि बसपा ने प्रत्याशी नहीं बदला, तो भी चुनाव परिणाम रोचक होगा.
 

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