संघ लोक सेवा आयोग जल्द ही प्रशासनिक सेवा परीक्षा और राज्य नागरिक सेवा के बाबुओं की अखिल भारतीय सेवाओं में पदोन्नति की प्रक्रिया में व्यापक बदलाव करने जा रहा है. अगर यूपीएससी की अनुशंसा स्वीकार कर ली जाती है तो बहुत जल्द ही इस सेवा में आने को इच्छुक प्रतिभागियों को प्रारंभिक परीक्षा के साथ वस्तुनिष्ठ प्रकार की दो भिन्न परीक्षाओं में भी बैठना पड़ेगा. सिविल सेवा के लिए उन्हें निर्णय लेने के कौशल के अलावा अभिवृत्ति कौशल भी साबित करना होगा. संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डी पी अग्रवाल का मानना है कि भावी प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के चयन में रुझान से ज़्यादा उसकी अभिवृत्ति मायने रखनी चाहिए. अग्रवाल का यह भी मानना है कि सिविल सेवा में प्रवेश की निर्धारित आयु सीमा भी कम होनी चाहिए. वह प्रतिभागियों की प्रयास संख्या भी कम करने के पक्षधर हैं. संघ लोक सेवा आयोग ग्रामीण इलाक़ों के वैसे प्रतिभागियों को भी प्रोत्साहित करना चाहता है, जिन्होंने स्नातक की शिक्षा इस सेवा के लिए प्रयास कर रहे शहरी प्रतिभागियों की तुलना में देर से पूरी की है.
इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रयास की संख्या में कमी करने की जो अनुशंसा की है, वह महज़ भीड़ कम करने के लिए है. एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्ताव राज्य सेवा के अधिकारियों की अखिल भारतीय सेवा में पदोन्नति के संबंध में है. संघ लोक सेवा आयोग का मानना है कि चयन का आधार प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार होना चाहिए, न कि बाबुओं की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट के आधार मात्र पर उन्हें पदोन्नत कर देना चाहिए. इस प्रणाली के लागू होने के बाद स़िर्फ असली बाबू ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की दहलीज को पार कर सकेंगे. इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले दिनों में हम इस प्रस्ताव के बारे में और भी बहुत कुछ सुनेंगे.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here