वर्तमान सत्ताधारी दल राजनीतिक दबाव डालकर ! गोवा के आंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के समापन समारोह में ! प्रमुख जूरी इस्राइल के नदाव लॅपिड के, कश्मीर फाईल्स सिनेमा के बारे में, की गई समिक्षा को ! अन्य ज्यूरी तथा इस्राइल के कॉनसूलेट जनरल कोबी शोशानी को लेकर, कश्मीर फाईल्स के अभिनेता अनुपम खेर को साथमे लेकर संयुक्त पत्रकार परिषद लेकर ! और इस्राइल के एंबेसेडर तथा फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री और अन्य कलाकारों को लेकर ! नदाव लॅपिड की समिक्षा को लेकर काफी होहल्ला जारी है ! और सबसे हैरानी की बात उस फेस्टिवल में शामिल अन्य ज्यूरी जिसमें बंगाल के सुदिप्तो सेन भी शामिल है !
यह सब देखकर, बिल्कुल आजसे नब्बे साल पहले के जर्मनी की याद दिला दी है ! नदाव लॅपिड ने, कश्मीर फाईल्स के बारे में, बिल्कुल सिनेमा के हिसाब से, कश्मीर फाईल्स की सही समीक्षा की है ! क्योंकि इस फिल्म को देखने के बाद ! मैंने भी खुद लगभग इसी तरह से “कश्मीर फाईल्स कितनी सच्ची कितनी झुठी” के नाम से आजसे छ महिना पहले ही समिक्षा लिखि है !
क्योंकि मैं 1974 से कश्मीर में आना-जाना करने वाले लोगों में से एक हूँ ! और कश्मीर के पंडितों को 1990 से कराया गया पलायन की वास्तविकताओं को लेकर फॉलोअप कर रहा हूँ !
हहहऔर सबसे महत्वपूर्ण बात श्री. अशोक कुमार पांडेय ने अपनी किताब, ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ (बसने और बिखरने के 1500 साल), राजकमल प्रकाशन की, 5 जनवरी 2020 को पहला संस्करण, और मार्च 2022 तक छठा संस्करण छ्प चुका है ! इस किताब में पन्ना नंबर 307 में, कश्मीरी पंडितों का विस्थापन : घर से बेघर इस शिर्षक से शुरू में ही लिखा है कि ! “जनवरी, 1990 कश्मीर के इतिहास में एक भयावह वर्ष की शुरुआत लेकर आई थी ! अनुभवहीन वी. पी. सिंह सरकार ! कश्मीर को लेकर कोई पहलकदमी करने की स्थिति में नही दिख रही थी ! तो देश के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के बीच जो संबंध थे, उनमें कटुता के अलावा कुछ नहीं था ! मुफ्ती की महत्वाकांक्षा दिल्ली में गृहमंत्रालय नही, श्रीनगर में मुख्यमंत्री निवास था !
कश्मीर में आई बी प्रमुख श्री. ए. एस. दुलत (KASHMIR THE VAJPAYEE YEARS) इस किताब के लेखक और फारूक अब्दुल्ला के प्रिय थे ! तो मुफ्ती उनपर भरोसा नहीं करते थे ! वी पी सिंह का खुद का कश्मीर का अनुभव, पिछले चुनाव से अधिक नहीं था ! तो राष्ट्रीय मोर्चा सरकार भाजपा के समर्थन पर टिकी थी ! जिसका समर्थन – आधार घाटी के मुसलमान नहीं, जम्मू के हिंदू थे ! इन सब, संगतियो – विसंगतियों ने मिलकर, कश्मीर के राज्यपाल पद के लिए, भाजपा की पसंद के जगमोहन को चुना ! जगमोहन और फारूक के रिश्तों से पाठक परिचित हैं ! मुफ्ती जानते थे “कि जगमोहन का राज्यपाल बनने का मतलब फारूक का इस्तीफा ! और ऐसे में कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना पूरा हो सकता था !” भाजपा जानती थी “कि जगमोहन कश्मीर में सख्ती से दमन की नीति अपनायेंगे ! और यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए मुफीद होगा ! जबकि शायद वी पी सिंह उस वक्त कुछ जानने समझने की कोशिश नहीं कर रहे थे ! तो मुफ्ती का निर्णय उनके लिए काफी था ! उस दौरान कश्मीर के मुख्य सचिव रहे ! मूसा रजा ने अपने संस्मरण में, मुफ्ती से अपनी मुलाकात का जिक्र किया है ! जिसमें मुफ्ती ने जगमोहन को भेजने पर उनकी आपत्ति के जवाब में कहा : मैं फारूक को बचपन से जानता हूँ ! वह कभी गंभीर राजनीतिक नेता नही रहे ! वह एक एक्सिडेंटल मुख्यमंत्री है ! उन्हें जिंदगी में ऐश – ओ – आराम इतने जरूरी है कि, मुझे नहीं लगता कि वह इस्तीफा देंगे ! एक बार जब हम जगमोहन की नियुक्ति कर देंगे ! तो उन्हें मोटरसाइकिल और जहाज दे देंगे ! वह मस्त रहेंगे, और अपनी जिंदगी के मजे लेंगे ! वह खुश रहेंगे और जगमोहन वास्तविक प्रशासनिक जिम्मेदारीया सम्हालेंगे ! ”
मूसा मुफ्ती के इस आकलन से भी सहमत नहीं थे, कि फारूक राजनीति में गंभीर नहीं हैं ! और उनकी मान्यता थी कि ” एक लोकतांत्रिक सरकार का कश्मीर में होना एक बफर का काम करेगा ! ” खैर मुफ्ती की फारूक के इस्तीफे को लेकर सोच भी गलत साबित हुई ही ! कश्मीरी नेताओं के दिल्ली के सहारे निजी स्वार्थों के लिए लिये ! गए ऐसे अदूरदर्शी निर्णयों ने ! कश्मीर और भारत, दोनों को इसके पहले, और इसके बाद भी ऐसे जख्म दिये ! जो धीरे – धीरे नासुरो में बदलते गए ! कांग्रेस और नॅशनल कॉन्फरन्स, दोनो ने इस निर्णय का विरोध किया ! लेकिन अंततः जब निर्णय हो ही गया तो ! फारूक अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया ! और इंग्लैंड चलें गए ! अकबर लिखते “हैं – – उनकी मुद्रा कुछ ऐसी थी : उन्हें हर बात का दोष दिया जा रहा है ! ठीक है, अब वह जा रहे हैं, और बाकी सब लोग अपने – अपने समाधान आजमा ले ! उन्होंने कहा कि देखता हूँ, आजादी की यह लड़ाई उन्हें कहा ले जाती है ? चूंकि वह आजादी के समर्थन में नहीं है, इसलिए वह जा रहे हैं ! किसिने उनके इस्तीफा देने के बाद उनसे कहा कि कश्मीर के लोग उनसे खुश नहीं है, तो फारूक ने जवाब दिया “कि मैं भी उनसे कहा खुश हूँ ?”
उन कातिल जाडो में, कश्मीर के हालात की बानगी, उस दौर पर लिखी हर किताब में मिल जायेगी ! लेकिन दुलत से अधिक विश्वसनीय किसका बयान हो सकता है :
“1989 – 90 के जाडो में, श्रीनगर एक भयानक भूतहा शहर जैसा था ! जो युद्ध के तांडव का आरंभ देख रहा था ! रूबीया सईद के अपहरण ने बगावत का बांध खोल दिया ! हत्याएं रोजमर्रा की चीज बन गई ! बमबाजी और फायरिंग अब मुख्यमंत्री के आवास के पास के, सब से सुरक्षित इलाकों में भी होने लगी थी ! ट्रकों में बंदूकें लहराते हुए युवा, कैंट के क्षेत्र के आसपास दिखाई देने लगें थे ! आतंकवादियों द्वारा शहर के केंद्रीय इलाकों में मिलिटरी परेड होते थे ! कश्मीरीयो को भरोसा था ! कि वे अब मुक्ति के मुहाने पर है ! कईयो ने तो अपनी घडीया पाकिस्तान के समय से मिला ली थी ! पाकिस्तानी जासूसों के लिए यह शानदार वक्त था ! इस वक्त कोई किसी पर भरोसा नहीं करता था !
राज्य सरकार जम्मू में थी ; शहर में इंटेलिजेंस संस्थाओं को छोड़कर शायद ही कोई केंद्रीय कर्मचारि बचा था ! ”
यहां रुककर देखें तो, ऐसे हालात में किसी प्रशासक के पास विकल्प भी कितने थे ? लेकिन जगमोहन के साथ समस्या यह थी कि ! उन्हें कश्मीर में मुस्लिम – विरोधी माना जाता था ! इमर्जेंसी के दौरान, दिल्ली में, मुस्लिम बस्तियों को हटाने से लेकर ! पहली बार राज्यपाल रहते हुए ! फारूक की बर्खास्तगी से लेकर, हिंदु त्योहारों पर मांस की बिक्री रोकने जैसे ! अपने निर्णयों से, जगमोहन ने इसे अर्जित किया था ! और उनपर राज्यपाल शासन के दौरान ! भर्तियों में पंडितों के प्रति पक्षपात करने के आरोप लगे थे ! तो ऐसे समय में उन्हें राज्यपाल नियुक्त करना ! असल में एक रणनीतिक भूल थी ! इस तरह एक काश्मिरी मुस्लिम को गृहमंत्री बनाकर, काश्मिरी जनता का दिल जीतने की कवायद ! जगमोहन को राज्यपाल बनाये जाने के साथ ही ! सिर के बल खडी हो गई ! अगर उनकी जगह किसी अन्य व्यक्ति को भेजा गया होता ! तो शायद तुरंत वैसी प्रतिक्रिया नहीं होती, जैसे जगमोहन के आने पर हुई ! 18 जनवरी 1990 के दिन उनके राज्यपाल चुनें जाने की घोषणा हुई, 19 जनवरी को उन्होंने जम्मू में कार्यग्रहण किया ! और उसी दिन अर्द्धसैनिक बलों ने घर – घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी ! उन्हें प्रभावित करने के लिए सी आर पी एफ के महानिदेशक श्री. जोगिंदर सिंह ने उसी दिन- रात में श्रीनगर के डाऊनटाऊन से, लगभग 300 युवाओं को गिरफ्तार कर लिया ! अशोक धर बताते हैं “कि तलाशी के दौरान पुराने शहर के छोटा बाजार इलाके में ! कुछ महिलाओं के साथ सुरक्षा बलों के दुर्व्यवहार से लोग भडके हुए थे ! जिसके चलते 20 जनवरी की रात को पूरे शहर में उग्र प्रदर्शन हुए ! यह कश्मीर की सबसे कुख्यात रात थी ! पूरा श्रीनगर विरोध में सडकों पर आ गया और बदहवासी में चीख – पुकार मच गई !”
उस रात का जुलूस खेमलता वखलू के घर के सामने से भी गुजरा था ! उन्होंने बहुत विस्तार से उस दृश्य और अपनी मनोदशा का वर्णन किया है :
” श्रीनगर ने अपने सदियों के रंग – बिरंगे इतिहास में बहुत सी घटनाएँ देखीं है ! लेकिन 21 जनवरी 1990 की रात, दुनिया की सबसे खुबसूरत घाटी कश्मीर में रह रहे लोग भूल नहीं सकेंगे – -! उस दिन चीजें अलग थीं ! हर चेहरे पर डर आशंका और उम्मीदें थीं ! मैं डर और व्यग्रता से भरी हुई थी ! किसी भी वक्त, किसी भी क्षण कुछ भी हो सकता था ! अचानक हर तरफ से तेज आवाजें उठने लगीं ! पूरा वातावरण भयमिश्रित गुस्से से भरी इनसानी आवाजों के विस्फोट से दहल गया !
उस सर्द अंधेरी रात के आसमान से प्रतिध्वनित होते लोगों की भारी भीड़ से ! सबसे ऊंची आवाज में उठते नारे थे ! फोन के लगातार बजने से जैसे हमारी धड़कने रूक जाती थी ! इतना गहरा था हमारा डर ! कि जैसे मौत की देवी महाकाली का बुलावा हो ! फोन उठाते हुए मेरे हाथ काप रहे थे ! एक डरा हुआ युवक शहर के भीतरी हिस्से से फोन कर रहा था ! उसकी आवाज़ डर, परेशानि और व्यग्रता से कांप रही थी ! उसकी आवाज़ साफ सुनाई नहीं दे रही थी ! लेकिन जो कुछ सुनाई दे रहा था : ‘ साहिब, हम यहां जैनदार मोहल्ले में रहते हैं ! हम मौत के जबड़े में फंसे हैं ! प्लीज पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर दिजीए ! निचे गली में लोगों का समंदर है ! वो भयानक नारे लगा रहे हैं ! हम मरने वाले हैं !
मैने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन करने की कोशिश की लेकिन उनके टेलिफ़ोन ठंडे पडे थे ! कुछ बजे लेकिन किसी ने उठाया नही– !
इस बीच कई जुलूसो में लोगों की एक बड़ी भीड़ हमारी गली में आ गई ! वह नारे लगा रहे थे ! जो हमारे कानों और दिमाग में बम की तरह फूट रहे थे ! हम यह महसूस करके कांप रहे थे ! कि लोगों की यह भीड़ दरवाजे को तोडकर हमारे कंपाऊंड में घुस जाएगीं, और घर को तहस-नहस कर देगी – – -! कई हफ्तों से लगातार बढ़ती हुई धमकियां, और प्रपोगंडा अनियंत्रित और भावनात्मक रूप से उत्तेजित भीड़ से, ऐसी हरकत की आशंका जगा रहीं थीं ! किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था ! क्योंकि उस वक्त प्रशासन चरमरा चुका था ! और कानून – व्यवस्था बनाये रखने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी छोड़ चुका था !
लोगों की क्रुध्द भीड यमराज की तरह थी ! ऐसी थी उस वक्त हमारी असुरक्षा की भावनाए ! हम अपना विवेक और सोचने – समझने की क्षमता खो चुकें थे ! ऐसा लग रहा था, हम जड होकर जम गए थे – – ! हम जैसे डर के देवता के हाथों की कठपुतलियां थे !
अल्लाह- हो – अकबर ! इंडियन डॉग्स, गो बॅक ! हम क्या चाहते, आजादी ‘— ये वे अंगारों जैसे नारे थे ! जिन्हें भीड लगा रही थी ! जब भीड़ हमारे घर के सामने कुछ देर के लिए रूकी तो ये नारे और तेज हो गए !
हम घर के भीतर डर से जैसे जम गए ! सारे दरवाजे – खिडकियां बंद कर दीए, और बत्तीया बुझा दी ! हम प्रार्थना कर रहे थे कि हे माँ दुर्गा, मां अम्बा, कृपा करके रोक दो यह बर्बादी का खेल – – -! थोडी देर बाद हमारे घर के सामने की भीड़ ने चलना शुरू कर दिया ! और शांतिपूर्वक चले गए – – -! पूरा शहर चीखो से गुंज रहा था ! भारत के खिलाफ ये नारे ! देशभक्त जनता के सीने मे, एक जख्म की तरह चुभ रहे थे ! एक तरफ उन्हें मृत्यू और विनाश का डर था और दूसरी तरफ लोगों को भयानक गुस्सा था !
शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था, लेकिन 21 जनवरी फिर जुलूस निकाला गया ! जिसपर अर्द्धसैनिक बलों ने गौ कदल पर फायरिंग की ! बड़ी संख्या में लोग मारे गए ! आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 35 ! लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार पचास से सौ के बीच की जनसंख्या में, मरने वालों की संख्या बताई जा रही थी ! उस वक्त कश्मीर में द गार्जियन के संवाददाता के रूप में मौजूद विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि जुलूस शांतिपूर्ण था ! जबकि वखलू बताती है ! “कि जुलूस में आतंकवादी शामिल थे ! जिन्होंने पहले गोलियां चलाई थी ! जो भी हो, लेकिन गौ कदल की लाशों ने लोगों में और भी अधिक गुस्सा भर दिया गया था ! नतीजा अगली रात और एक जुलूस !”
इस पूरे आख्यान में दो शब्द बार – बार सुनाई देते हैं – – – डर और गुस्सा ! इन्हीं दोनों ने मिलकर, नब्बे के दशक की वह भयावह शुरुआत की ! जिसमें काश्मिरी पंडितों को कश्मीर छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थियों की स्थिति में जाने के लिए मजबूर किया गया ! और कश्मीरी मुसलमानों को दमन, हिंसा और डिस्टोपिया के गहरे और अंतहीन दलदल में धकेल दिया ! यह सब तथ्यों को देखते हुए ! कश्मीर के पंडितों को ! 1990 मे पलायन करने के कारणों का पता चलता है ! “कि कौन – कौन सी वजह से उन्हें व्हॅली से अपने पुश्तैनी घरो को छोड़कर जवाहर टनल के दुसरे हिस्से में रहने के लिए मजबूर किया गया है ?
भारत की सत्ता में बीजेपी को पहली बार, आने के छ साल, और अभी आपको साढे आठ साल ! मिला कर पंद्रह साल होने वाले हैं ! और 370 तथा 35 अ हटाने को भी साडेतीन साल हो रहे हैं ! फिर भी पंडितों को लेकर कश्मीर फाईल्स जैसि घटिया फिल्म बनाने के अलावा और कौन सी पहल की है ? आपने एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की कृती को क्या कहेंगे ? और इन सब ऊलजलूल हरकतों से कश्मीर के हालात पर कौन सा प्रभाव पडा है ? उल्टा आपने पहले से ज्यादा लोगों को डर के माहौल में रहने के लिए मजबूर कर दिया है !
और ऐसे माहौल में आप एक – एक कश्मीरी के पिछे एक फौजी नौजवान खडा कर दिया ! तो भी कश्मीर में एक भी पंडित वापस जाने वाला नहीं है ! अगर कश्मीर में प्रेम आपसी सौहार्द पूर्ण वातावरण नही बनता है ! तो हजारों वर्ष हो जायेंगे तो भी पंडितों के विस्थापन का मसला हल नहीं होगा ! क्योंकि उसी समय भागलपुर के दंगों में भागकर गए मुसलमान आज तैतीस साल हो गये हैं ! लेकिन अपने पुश्तैनी गांवों में वापस लौटने का नाम नहीं ले रहे हैं !
कश्मीर फाईल्स जैसे सिनेमा बनाकर आप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए जरूर कामयाब हो पाएंगे ! लेकिन वह भी तात्कालिक रूप में ! बार – बार वहीं मंदिर – मस्जिद, कश्मीर के पंडितों को लेकर टुच्ची राजनीति ! अल्प समय के लिए कर सकते हो ! लेकिन 140 करोड़ के आबादी के देश के लिए, इस तरह की हरकतों को रोकने का काम, एक ना एक दिन करना ही होगा ! अन्यथा देश की एकता और अखंडता को खतरा करने वाले लोगों को सत्ता से बाहर करने के अलावा और कोई उपाय नहीं है !
आस्चर्य की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने इस फिल्म के प्रमोशन के समय में जो वाक्य कहे है वहीं आज भी मौजू है ! “Narendra Modi said” that the movie had rattled the entire ecosystem of freedom of expression but dose not want the truth to be told.
अगर नरेंद्र मोदी को अभिव्यक्ती की आजादी के प्रति इतनी ही संवेदनशीलता है तो ! गत साढ़े आठ साल से एक – एक करके समस्त भारतीय मिडिया संस्थाओं को अपनी ओर (आखिरी गढ, एन डी टी.वी था ! जिसे आपने आपके चहेते उद्योगपति गौतम अदानी के माध्यम से कब्जे में करने के लिए कौन – कौन से हथकंडे अपनाए ? यह पूरी दुनिया जानती है ! ) अपने सत्ताधारी पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल करते हुए ! समस्त विरोधी दलों के लिए कोई भी जगह छोडी नही है ! और छोडी भी है तो ! उनके खिलाफ बदनामी की मुहिम जैसे चला रखी है !
नरेंद्र भाईसाहब आप भी आपातकाल के भृक्तभोगी हो ! और हम भी ! लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी ने, लाख सेंसरशिप लगा रखी थी ! लेकिन कुलदीप नायर से लेकर गौरकिशोर घोष, यदुनाथ थत्ते, धर्मवीर भारती, अज्ञेय, रघुवीर सहाय, बी जी वर्गिस, मिनू मसानी, एन जी गोरे तथा एस एम जोशी, बॅरिस्टर वी एम तारकुंडे, गोरेवाला, अम्लान दत्त, कांती शाह, चो रामास्वामी, शरद जोशी (हिंदी के लेखक) गणेश मंत्री, कुमार प्रशांत जैसे शेकडो लोग थे ! जो सेंसरशिप के बावजूद अभिव्यक्ति करते थे !
लेकिन गत साडेआठ सालो से, आपने खुद ऐसा आतंक मिडिया संस्थाओं के मालिकों के खिलाफ, तथाकथित जांच एजेंसियों का धाक दिखाकर बना रखा है ! जिसे देख कर 1975 के समय का आपातकाल और उसमें लगी सेंसरशिप भी फिकि लगने लगीं है !
क्योंकि गत आठ साल के अधिक समय से तथाकथित मुख्य धारा के मिडिया संस्थाओं के अच्छे – अच्छी शख्सियतें हमारे जैसे लोगों के इंटरव्यू या लेखों को देने मे डरते हैं ! अभी हप्ते भर पहले, एक प्रमुख अखबार ने मुझे अपने अखबार की गाड़ी भेज कर ससम्मान अपने दफ्तर में बुलाया ! और एक घंटे से अधिक समय तक इंटरव्यू करने के बावजूद ! आज एक हप्ते से अधिक समय हो रहा है ! लेकिन अभितक उन्होंने अपने अखबार में देने का कष्ट नहीं किया ! और शायद करेंगे भी नहीं ! क्योंकि आपके अघोषित आपातकाल के बारे में, हमने आपातकाल के चालिस साल के उपलक्ष्य में, इंडियन एक्सप्रेस के संपादक श्री. शेखर गुप्ता ने आपके दल के भिष्मपितामह श्री. लालकृष्ण आडवाणी जी का इंटरव्यू 2015 के 26 जून के पहले जो एन डी टी.वी कार्यक्रम वॉक वुइथ टॉक के टाइटल से प्रस्तुत किया गया है ! और उसमे उन्होंने कहा “कि एक आपातकाल की घोषणा चालिस साल पहले हुई थी ! लेकिन आज गत वर्ष भर से ज्यादा समय हो रहा हम लोग अघोषित आपातकाल में जी रहे हैं !” (जिनके कारण आज आप राजनीति में मौजूद हो ! वह बीजेपी के बुजुर्ग नेता श्री. लालकृष्ण अडवाणी खुद आपके एक साल के कार्यकाल को देखते हुए बोले है ! ) और उसके बाद काफी पतन, संविधानिक संस्थानों से लेकर मिडिया संस्थाओं का होना लगातार जारी है ! अभी – अभी सर्वोच्च न्यायालय ने जजो की नियुक्तियों को लेकर सरकारी हस्तक्षेप की तक्रार की है ! चुनाव आयोग की भी हालत अच्छी नहीं है ! मतलब आजादी के बाद के विकसित मुल्यो को ताक पर रखकर सब कुछ जारी है !
आपके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या की है ! आपको भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश के ! प्रधानमंत्री पद पर बने आज साडेआठ से उपर साल हो गये ! लेकिन आपने आज तक, एक भी अधिकृत मिडिया के साथ वार्ता करने का कष्ट नहीं किया है ! हां अपने आवास पर सुरक्षित रूप से, अक्षय कुमार जैसे सिनेमा के कलाकार को आप कौन सी सब्जी पसंद करते हैं ? और कौन सा रंग का कुर्ता या जेकेट ज्यादा पसंद करते हो ? जैसे सवालों के जवाब देने को ! अगर आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते है ! तो आप ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने समझने के लिए पुनः अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है ! हालांकि आप को और भी बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है वह बात दिगर है !
जॉर्ज अॉरवेल के अॅनिमल फॉर्म में ! जो जनतंत्र की व्याख्या की गई है ! आप बिल्कुल उसी तर्ज पर ! अपने विचार अभिव्यक्तियों से लेकर, स्वतंत्रता, न्याय, समता और बंधुता जैसे ! मुलभूत मानवी मुल्यो की व्याख्या करते हुए, नजर आते हैं ! हालांकि उसमें आपकी गलती कुछ भी नहीं है ! क्योंकि आपनेही कई बार कहा है कि ! “मैं उम्र के सत्रह साल में अपने घर के बाहर निकल कर संघ की शाखा में जाने की शुरूआत किया हूँ !”
और मै अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ ! “कि कोई भी व्यक्ति संघ की शाखा में उम्र के पंद्रह साल के बाद भी जाता है ! तो वह भले शारीरिक रूप से बढता होगा ! लेकिन मानसिक रूप से वह सत्रह साल का ही रह जाता है !” मैं आठवीं कक्षा में पढ़ने के समय संघ की शाखा में गया था ! और चंद दिनों के भीतर ही हिंदुत्व और मुख्यतः अल्पसंख्यक और दलित, आदिवासी तथा स्त्रियों के खिलाफ बदनामी की मुहिम देखने के बाद मैंने संघ के वरिष्ठ अधिकारियों से कहा !” कि यह राष्ट्रीय एकात्मता के लिए विशेष रूप से खतरनाक है ! क्योंकि एक बटवारा हमनें 1946-47 के दौरान विभाजनकारी विचारों के कारण भुगता है ! और कितने बटवारे भुगतेंगे ?” तो मुझे संघ स्थापना दिवस दशहरे के दिन आजसे 58 साल पहले ! शिंदखेडा (जिल्हा धुळे) के शाखा से ! खान्देश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बौद्धिक प्रमुख ! श्री. नाना ढोबळजी ने संघ में सवाल पूछने की शिक्षा के कारण ! मुझे संघ से बाहर निकल जाने के लिए कहा है ! अब जिस संघठन में सिर्फ मिलिट्री या पैरा मिलिट्री के जवानों के जैसा ! रेजिमेंटेंशन किया जाता हो ! ऐसे संगठन से आप जैसे सवालों को नापसंद करने वाले ! और किसी भी तरह की ! चिकित्सा को नापसंद करने की ! मनोवृत्ति के ही लोग पैदा होना स्वाभाविक है !
आजसे नब्बे साल पहले ! यूरोप के इटली और जर्मनी में बेनिटो मुसोलीनी और हिटलर नाम के दो सनकी लोगों ने ! कुल मिलाकर पच्चीस साल इटली और जर्मनी और कुछ हदतक उन्होंने जिते हुए कुछ मुल्कों में ! अपने फासीस्ट राज्य चलाने की कोशिश की है ! जो आज भारत में जारी है ! बिल्कुल हूबहू वहां भी ऐसाही माहौल था ! लेकिन हर बात की एक सिमा होती हैं ! और जर्मनी तथा इटली के उन दोनों तानाशाह का अंत बहुत ही दुखद रहा है ! 1945 में एक को लोगों ने पेडपर टांग कर फांसी लगाकर देखकर ! दुसरे ने तुरंत ही अपने खुद के पिस्तौल से अपनी कनपटी पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली ! और पेट्रोल छिडकर अपने शव को नष्ट करने की, कोशिश का इतिहास मौजूद हैं ! और इस बात को सिर्फ 77 साल हो रहे हैं ! आज भी उस समय के कुछ लोग जिवित है !
हमें संघ की शाखा में, हिटलर का महिमामंडन सुनने का मौका मिला है ! और जिस संगठन की निंव, हिटलर और मुसोलीनी के फासिस्ट विचारों के आधार पर खडी होती है ! उससे निकलने वाले लोगों से, स्वातंत्र्य, समता और बंधुभाव और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की उम्मीद करना बेकार है ! सबसे बड़ा उपाय उन्हें सत्ता से हटाने के सिवा दुसरा और कोई उपाय हो नही सकता ! क्योंकि यह मानवता के लिए बहुत आवश्यक है !
डॉ सुरेश खैरनार 1 दिसंबर 2022, नागपुर