पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य असम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में 23 दिसंबर को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सोंगबिजीत धड़े ने आदिवासी समुदाय के 37 लोगों की हत्या कर दी. खबर लिखे जाने तक इस हिंसा में मारे जाने वाले लोगों की संख्या 83 तक पहुंच गई, जबकि 100 से ज्यादा लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं. मारे गए लोगों में ज्यादातर लोग आदिवासी थे. ये लोग चाय के बागानों में काम करते थे. असम में शुरू हुई इस ताजा हिंसा को एनडीएफबी-एस के खिलाफ पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाई की प्रतिक्रिया बताया जा रहा है. पुलिस की हालिया कार्रवाई में इस गुट के कई नेता और कार्यकर्ता मारे गए थे. इसके बाद एनडीएफबी-एस ने धमकी दी थी कि यदि ऐसा होता रहा तो हम ऐसा सबक सिखाएंगे कि आप भूल नहीं पाएंगे. इसके बाद उग्रवादी संगठन ने आदिवासी समुदाय के लोगों को मारना शुरू कर दिया. इन लोगों ने बच्चों और औरतों को भी अपना शिकार बनाने से गुरेज नहीं किया. गौरतलब हो कि यह धड़ा शांति वार्ता का विरोध करता रहा है. असम के निर्दोष आदिवासी बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को मारना मानवता के खिलाफ अपराध है. इस घटना को पाकिस्तान के पेशावर में हुई आतंकवादी घटना की तरह देखा जा रहा है. यह घटना पाकिस्तान में हुई आंतकी वारदात जितनी ही खतरनाक है.
सरकार ने इस घटना के बाद एनडीएफबी-एस के खिलाफ और ज्यादा कड़ी कार्रवाई करने का मन बना लिया है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुवाहाटी में शीर्ष अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक करने के बाद कहा कि उग्रवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. इन गुटों को आतंकी संगठन करार दिया जाएगा और इनसे कोई बातचीत नहीं होगी, इनके खिलाफ सिर्फ कार्रवाई होगी. एनडीएफबी-एस का कृत्य एक आतंकवादी वारदात है. सरकार इस गुट के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत काम करेगी. उनके मुताबिक उग्रवादियों के सफाये के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा. उन्होंने कहा कि उग्रवाद से निपटने के लिए केंद्र सरकार असम सरकार को हर तरह की मदद करेगी.
इसके बाद सरकार ने इस मामले के की जांच एनआईए को सौंप दी है. सेना ने भी उग्रवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑलआउट शुरू कर दिया है. सेना के नेतृत्व में चलाए जा रहे इस ऑपरेशन की शुरुआत फुलबरी से की गई है. सुरक्षा बलों के निशाने पर एनडीएफबी-एस के 74 उग्रवादी हैं जिन्होंने इस नरसंहार को अंजाम दिया है. सेना के ऑपरेशन की जानकारी पड़ोसी देशों म्यांमार और चीन को भी दी गई है. केंद्र सरकार एनडीएफबी-एस के खिलाफ कार्रवाई के लिए भूटान से भी मदद लेने पर विचार कर रही है, जिससे कि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन की तरह का अभियान चलाया जा सके.
वर्तमान में असम में बोडो लोगों की एक स्वायत्त परिषद है. जिसे बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट चलाती है. लेकिन प्रवासियों के वहां जमीन लेने पर बोडो लोगों के बीच खासा असंतोष है. लोग चाहते हैं कि जिस ज़मीन पर आदिवासी हैं वे वहां से हट जायें. वर्तमान विवाद का यह भी कारण हो सकता है.
इस तरह के गुटों से निपटना मुश्किल इसलिए भी हो जाता है क्योंकि ये अरुणाचल प्रदेश और भूटान की सीमा से लगे हल्की गश्त किये जाने वाले इलाकों के जंगलों में डेरा डालकर रहते हैं. साल 2003 तक असम में तीन प्रमुख उग्रवादी संगठन एनडीएफबी, युनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और कामतापुर लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन थे, जो इस क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे और यहां रहकर ही अपनी गतिविधियां चलाते थे. लेकिन साल 2003 में ही भूटानी सेना ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें तबाह कर उस क्षेत्र से खदेड़ दिया. इसके बाद यह खबर आई कि ये संगठन घने जंगल और कम आबादी वाले क्षेत्रों में चले गये हैं.
एनडीएफबी-एस अभी भी अरुणाचल प्रदेश और भूटान सीमा के पास अधिक सक्रिय है और पृथक बोडोलैंड की मांग करते रहते हैं. .यहीं से वे अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं. असम की हालिया वारदात के पीछे कोई आर्थिक कारण नहीं है. इस वारदात को केवल लोगों के बीच आतंक और खौफ का माहौल बनाने के लिए अंजाम दिया गया था. यदि पूर्व में असम में हुई इस तरह की घटनाओं पर नज़र डाली जाए तो इससे पहले यहां मुसलमानों और बोडो समुदाय के लोगों के बीच हिंसक संघर्ष हुए हैं. आदिवासियों और बोडो लोगों के बीच संघर्ष की बहुत कम घटनायें हैं. 20 साल पहले बोडोे इलाके में इस तरह की वारदातें हुई थीं. तब मुख्य रूप से संथाल आदिवासियों को निशाना बनाया गया था. उस घटना में हताहत हुए आदिवासी आज भी शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं. यह विवाद अब तक नहीं सुलझ सका है. वर्तमान हिंसक वारदात के बाद इलाके के हजारों लोगों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया है. लोग बेघर हो गए हैं.
वर्तमान में असम में बोडो लोगों की एक स्वायत्त परिषद है. जिसे बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट चलाती है. लेकिन प्रवासियों के वहां जमीन लेने पर बोडो लोगों के बीच खासा असंतोष है. लोग चाहते हैं कि जिस ज़मीन पर आदिवासी हैं वे वहां से हट जायें. वर्तमान विवाद का यह भी कारण हो सकता है. एक कारण बदले की कार्रवाई भी हो सकती है. निचले असम में आदिवासियों और बोडो लोगों के बीच संघर्ष की खबरें भी आ रही हैं. हाल ही में हुए चुनाव में एक गैर-बोडो उम्मीदवार ने बोडो उम्मीदवार को हरा दिया था क्योंकि सारे गैर बोडो लोग इकट्ठा हो गए थे. यह भी इस विद्रोह की जड़ में मूल कारणों में से एक है. इसके बाद उग्रवादियों को लगने लगा था कि क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई है. असम में जातीय हिंसा का पुराना और खूनी इतिहास है. मोदी सरकार सरकार इस तरह की जातीय हिंसा पर रोक लगाने के लिए गंभीर दिखाई पड़ रही है. यदि शुरूआती दौर में ही राज्य सरकार और केंद्र सरकार स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर पाये तो यहां के हालात और गंभीर हो जायेंगे.