IMG_1746देश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया का नारा देकर देशी-विदेशी उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए रास्ता खोल दिया है, लेकिन लखनऊ-दिल्ली राजमार्ग पर स्थित सीतापुर जनपद में उद्योग लगाने के लिए अभी तक किसी उद्योगपति ने पहल नहीं की है. इस जनपद में जो बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान पहले से मौजूद हैं, वे भी शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते दम तोड़ते जा रहे हैं. सीतापुर की कई नामचीन मिलें बंद हो चुकी हैं, जिनमें 126 मूंगफली ऑयल मिलें, बाला जी वेजिटेबिल प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड (सुहागिन- डालडा फैक्ट्री), एशिया प्रसिद्ध प्लाईवुड फैक्ट्री, सहकारी कताई सूत मिल, महमूदाबाद शुगर मिल एवं महोली चीनी मिल कमलापुर समेत कई छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां प्रमुख हैं. अभी कुछ दिनों पहले जनपद की एकमात्र कागज फैक्ट्री का भी कामकाज ठप हो गया. सीतापुर की कई सूत कताई मिलें दम तोड़ चुकी हैं. इस जनपद के भूड़ इलाके में मूंगफली की अच्छी पैदावार होती थी, जिसे देखते हुए हरियाणा एवं राजस्थान से मारवाड़ी समाज के पूंजीपतियों ने यहां आकर मूंगफली ऑयल मिलें लगाई थीं. इधर दो दशकों से किसानों का मूंगफली की खेती से मोहभंग हो गया और वे अन्य फसलों को तरजीह देने लगे. नतीजतन, मूंगफली ऑयल मिलों को पर्याप्त मात्रा में मूंगफली मिलनी कम हो गई और एक-एक करके सभी 126 मूंगफली ऑयल मिलें बंद हो गईं. सीतापुर में धान, गेहूं और गन्ना भी पर्याप्त क्षेत्रफल में बोया जाता है. मौजूदा समय में जनपद में रामगढ़ चीनी मिल, जवाहरपुर चीनी मिल, सेक्सरिया शुगर मिल, बिसवां दि अवध शुगर मिल एवं हरगांव सहकारी किसान चीनी मिल महमूदाबाद चालू हालत में हैं, जबकि महोली चीनी मिल दो दशकों से अधिक समय से बंद है. इस मिल द्वारा निर्मित चीनी अपने बड़े दाने के लिए पूरे देश में विख्यात थी. कमलापुर चीनी मिल भी कई सालों से बंद है. इस मिल पर किसानों के 12 करोड़ रुपये से अधिक पैसा बकाया है. मिल में ताला लगा हुआ है और बेशक़ीमती मशीनें पड़ी-पड़ी जंग खा रही हैं. महमूदाबाद सहकारी सूत कताई मिल सेमरी चौराहा के पास स्थापित की गई थी. कुछ वर्षों तक तो वह चली, लेकिन नेताओं एवं श्रमिक संगठनों के धरना-प्रदर्शनों के चलते मिल घाटे में चली गई और आख़िरकार उसे बंद करना पड़ा. कर्मचारियों को वीआरएस का लाभ देकर नौकरी से छुट्टी कर दी गई. सीतापुर नगर के जीटी रोड पर स्थित सुहागिन-डालडा फैक्ट्री, जिसका वनस्पति घी पूरे देश में सबसे अच्छा माना जाता था, उसे कथित मिलावट की सूचना पर तत्कालीन ज़िलाधिकारी विजय शंकर पांडेय ने प्रबंधन के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके बंद करा दिया. तबसे आज तक इस फैक्ट्री में वनस्पति घी का उत्पादन नहीं हो सका और इसमें काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारी एवं श्रमिक बेरोज़गार हो गए.
प्लाईवुड प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड सीतापुर द्वारा निर्मित प्लाई की वजह से इसका डंका न स़िर्फ भारत में बजता था, बल्कि एशिया के विभिन्न देशों तक इसकी प्लाई (सीता टैक्स) की मांग थी. इस नामचीन प्लाईवुड फैक्ट्री की स्थापना अंग्रेज उद्योगपति थॉमसन ने की थी. जब थॉमसन भारत छोड़कर इंग्लैंड वापस जाने लगे, तो उन्होंने इसे व्यवसायी जफरुल्लाह के हाथों बेच दिया. कुछ वर्षों तक यह ठीकठाक ढंग से चली. इसमें हज़ारों कर्मचारी-श्रमिक तीन पालियों में काम करते थे. यहां रेल मार्ग द्वारा असम तक की लकड़ी आती थी, लेकिन छोटी-बड़ी मांगों को लेकर विभिन्न श्रमिक संगठनों के बैनर तले आएदिन हड़ताल, धरना-प्रदर्शन आदि होने लगे और उत्पादन दिनोंदिन गिरता चला गया. अंतत: फैक्ट्री मालिक ने इसे बंद कर दिया, जिससे हज़ारों श्रमिकों की रोजी-रोटी जाती रही. यही नहीं, श्रमिकों-कर्मचारियों का वेतन एवं फंड आदि भी मिल प्रबंधन पर बकाया हो गया. ज़िले में दर्जनों चावल मिलें हैं, लेकिन वे भी शासन-प्रशासन की ढुलमुल नीतियों के चलते बंदी की कगार पर हैं. उन्हें पर्याप्त मात्रा में बिजली नहीं मिल पा रही है. ऐसी कई समस्याएं मिल मालिकों के आगे मुंह बाए खड़ी हैं, जिनके निदान के लिए राइस मिलर्स एसोसिएशन आएदिन आंदोलन करता रहता है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता. ज़िले में कभी भारी मात्रा में सरसों, लाही, गेहुंआ, अलसी, तिल आदि तिलहनी फसलें हुआ करती थीं, लेकिन रबी की फसल देर से बोने की वजह से पहले की अपेक्षा अब तिलहनी फसलें पर्याप्त मात्रा में नहीं होती हैं, जिसके चलते कई तेल मिलें बंद हो चुकी हैं और कई बंदी की कगार पर हैं. अब यहां के कुछ व्यवसायी राजस्थान से टैंकरों द्वारा सरसों का तेल मंगाकर उसे डिब्बों-पीपों में पैक करके थोक एवं फुटकर विक्रेताओं को बेचते हैं. यही नहीं, ज़िले की कई गुड़-चीनी बेलें भी बंद हो चुकी हैं. गांजरी क्षेत्र एवं ब्लॉक एरिया में गुड़ बनाने वाले कोल्हू कढ़ाई कुटीर उद्योग के रूप में कुछ लोगों ने लगा रखे हैं. सीतापुर का नाम दरी उत्पादन के लिए भी लिया जाता है, लेकिन सूत और पर्याप्त बिजली न मिलने के कारण यह उद्योग भी दम तोड़ रहा है. दरी-दरा बनाने वाले बुनकरों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. हथकरघा चलाकर दरी बनाने से लागत का पैसा भी नहीं वसूल हो पा रहा है. बुनकरों के लिए शासन द्वारा अनेक योजनाएं चलाई गई हैं, लेकिन पात्र बुनकरों को उनका लाभ नहीं मिल पा रहा है.


खोखले सरकारी दावे
बुनकरों के लिए समाजवादी पार्टी सरकार कई तरह की योजनाएं लागू करने का दावा करती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उक्त योजनाएं कारगर तरीके से लागू दिखती नहीं हैं. सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दावा किया कि मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में भी बुनकरों के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई थीं और अब अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में भी बुनकरों के कल्याणार्थ कई योजनाएं शुरू की गई हैं. चौधरी ने कहा कि सपा सरकार बनने के बाद हथकरघा बुनकरों के लिए आर्थिक पैकेज योजना के तहत 21,620 व्यक्तिगत बुनकरों, 924 प्राथमिक समितियों एवं 12 एपेक्स समितियों को 65.11 करोड़ रुपये जारी किए गए. वित्तीय वर्ष 2013-14 में घोषित आर्थिक पैकेज योजना में लगभग 1,000 प्राथमिक समितियों एवं व्यक्तिगत बुनकरों को लाभांवित किया गया. बुनकर क्रेडिट कार्ड योजना के तहत वर्ष 2013-14 में 7,520 बुनकरों को क्रेडिट कार्ड जारी करते हुए 806.61 लाख रुपये का ऋण वितरित किया गया. 2013-14 में माह सितंबर तक 4.328 बुनकरों को क्रेडिट कार्ड जारी करते हुए 603 लाख रुपये का ऋण वितरित किया गया. कच्चे माल की आपूर्ति हेतु धागे की खरीद पर 10 प्रतिशत सब्सिडी पाने के लिए 42,157 बुनकरों को पासबुक जारी की गई. हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहन देने के लिए जनेश्‍वर मिश्र राज्य हथकरघा पुरस्कार की धनराशि भी बढ़ा दी गई है.

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