jailउत्तर प्रदेश की जेलों में औकात से अधिक कैदी ठुंसे हुए हैं. यहां तक कि फांसी की सजा पाए कैदी भी उत्तर प्रदेश की जेलों में ही सबसे अधिक हैं. इन आधिकारिक आंकड़ों से उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था दोनों की एक साथ समीक्षा हो जाती है. अभियोजन की लचर व्यवस्था के कारण विभिन्न आरोपों में बंद कैदियों को विचाराधीन बन कर जेल में दिन काटना पड़ता है तो धीमी न्यायिक व्यवस्था में ‘तारीख पर तारीख’ की ऊबाऊ प्रक्रिया विचाराधीन कैदियों का जीवन नष्ट कर देती है. कैदियों की भारी भीड़ के कारण यूपी की जेलें जानवरों का बाड़ा बन चुकी हैं. क्षमता से अधिक कैदियों के भरे होने के कारण जेल प्रबंधन भी विवश है. इस अराजकता का फायदा उठा कर यूपी की जेलों पर माफियाराज चल रहा है.

अब तो जेल विभाग भी कैदियों की भीड़ से त्राहिमाम कर रहा है. जेल विभाग की तरफ से सरकार को बार-बार यह योजना दी जाती है कि वयोवृद्ध कैदियों, महिला कैदियों, अच्छे आचरण वाले कैदियों और लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की रिहाई की जाए, जिससे जेलों का बोझ कम हो सके. लेकिन सरकारें इस पर कोई ध्यान ही नहीं देतीं. नेताओं को बस अपने गुर्गों और साथी अपराधी सरगनाओं की रिहाई की फिक्र होती है.

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के कारागार विभाग ने आधिकारिक तौर पर कहा कि यूपी के केंद्रीय कारागारों में 50 प्रतिशत अधिक कैदी रह रहे हैं. जिला कारागारों की स्थिति तो नारकीय है. सरकारी सूचना बताती है कि उत्तर प्रदेश के नैनी (इलाहाबाद), वाराणसी, फतेहाबाद, बरेली और आगरा के पांच केंद्रीय कारागारों में कुल 7438 पुरुष कैदी, 60 महिला कैदी और 120 अल्पवयस्क कैदियों के रखने की क्षमता है. इनमें नैनी जेल ऐसी अकेली सेंट्रल जेल है जहां 60 महिलाओं और 120 अल्पवयस्क कैदियों के रखे जाने की व्यवस्था है. अन्य जेलों में केवल पुरुष कैदी ही रखे जाते हैं. सबसे अधिक क्षमता नैनी जेल की है, जहां 2060 कैदी रखे जा सकते हैं.

इसके बाद बरेली केंद्रीय कारागार में 2053 कैदियों के रखने की व्यवस्था है. वाराणसी केंद्रीय कारागार में सबसे कम 996 कैदियों के रखने की क्षमता है. लेकिन हालत यह है कि इन पांच केंद्रीय कारागारों में 30 अप्रैल 2017 तक कुल 9353 सजायाफ्ता कैदी बंद थे. जिसमें 9290 पुरुष, 29 महिलाएं, सात अल्पवयस्क और 27 विदेशी कैदी थे. इनके साथ कुल 2117 विचाराधीन कैदी भी बंद थे, जिनमें 1921 पुरुष, 67 महिलाएं, 119 अल्पवयस्क तथा 10 अन्य कैदी बंद थे. इसके साथ ही महिला कैदियों के साथ 02 बच्चे और 01 बच्ची भी थी. यानि, इन पांच केंद्रीय कारागारों में कुल 11 हजार 470 कैदी थे, जिसमें 11 हजार 211 पुरुष, 96 महिला, 126 अल्पवयस्क, 27 विदेशी और 13 अन्य कैदी थे, जो इन कारागारों की क्षमता से 50 प्रतिशत अधिक है.

अगर पांच केंद्रीय कारागारों, लखनऊ और बरेली के तीन विशेष कारागारों और उत्तर प्रदेश के 70 कारागारों को मिला दिया जाए, तो इन सब जेलों को मिला कर कैदियों को रखने की कुल क्षमता 58 हजार 111 है, जिसमें 51,839 पुरुष, 2,956 महिला और 3,316 अल्पवयस्क कैदियों को रखने की व्यवस्था है. इस साल 30 अप्रैल को यूपी में कुल 27,207 दोषसिद्ध कैदी थे, जिसमें 25,975 पुरुष, 1,079 महिलाएं, 83 अल्पवयस्क और 137 विदेशी कैदी थे. साथ ही महिला कैदियों के साथ 33 बच्चे और 34 बच्चियां भी थीं.

उक्त तारीख तक उत्तर प्रदेश के सभी कारागारों में कुल 65,152 विचाराधीन कैदी थे, जिसमें 59,507 पुरुष, 2,706 महिलाएं, 3,001 अल्पवयस्क, 227 विदेशी और 115 अन्य कैदी शामिल थे. इसके अतिरिक्त महिला कैदियों के साथ 239 बच्चे और 165 बच्चियां भी थीं. 30 अप्रैल 2017 तक यूपी के कारागारों में कुल 92,830 कैदी थे, यानि करीब एक लाख कैदी. यह इन कारागारों की वास्तविक क्षमता से 60 प्रतिशत अधिक है. साथ ही विचाराधीन कैदियों की संख्या दोषसिद्ध कैदियों से ढाई गुणा अधिक है.

कैदियों की भीड़ के कारण यूपी की जेलों में अराजकता काफी बढ़ गई है. इस वजह से भ्रष्टाचार और माफियागीरी चरम पर है. जो जितना बड़ा दबंग है, जेल में उसे उतनी ही अच्छी सुविधा मुहैया होती है. जेलों और जेल के अस्पतालों पर माफियाओं और अपराधी सरगनाओं का वर्चस्व है, उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं. बड़े अपराधियों और माफियाओं के लिए जेलें रिसॉर्ट्स की तरह हैं. वहीं से वे अपना गैंग चलाते हैं और कुछ दिन आराम फरमाते हैं और जेल में रहने तक सुरक्षित भी रहते हैं. जेलों से ही रंगदारी टैक्स और फिरौतियां वसूली जाती हैं. बड़े ठेके-पट्टे देने-दिलाने का काम भी जेलों से होता है.

रियल एस्टेट का धंधा भी जेलों से फल-फूल रहा है. जेलों में बंद माफिया मोबाइल के जरिए अपना काम आसानी से कर रहे हैं. उनके पास दर्जनों सिम कार्ड होते हैं. इनके मुलाकाती भी आसानी से जेलों में बेरोक-टोक मिलते हैं. दबंगों और माफियाओं को सामान्य बैरक में नहीं रहना पड़ता. उनके लिए सामान्य कैदियों की सेवादारी भी उपलब्ध रहती है. भोजन से लेकर शराब, सिगरेट, नशीली दवाएं और अय्याशी की तमाम सुविधाएं जेलों में उपलब्ध हैं. जेलकर्मियों को पैसा दें और सुख भोगें. सामर्थ्यवान और माफिया कैदियों को जेल जाने के फौरन बाद ही जेल प्रबंधन की मिलीभगत से उन्हें अस्पताल में दाखिला मिल जाता है.

इसके बाद वे अस्पताल में मौज करते हैं और सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. अस्पतालों से ही अपना धंधा चलाते हैं और वहीं मुलाकातियों का दरबार भी लगाते हैं. यूपी की जेलों में बंद माफिया सरगना बबलू श्रीवास्तव, मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, खान मुबारक, सुभाष ठाकुर, डॉ. उदयभान, मुकीम काला, योगेश भदौड़ा, उधम सिंह करनावन, विनोद बावला, धनंजय राय, रणदीप भाटी, अनिल दुजाना जैसे माफिया सरगनाओं का जेलों से ही अपराध-साम्राज्य चलता है. जेल और प्रशासन के अफसर इन माफियाओं के एजेंट के बतौर काम करते हैं.

माफियाओं की जेलें बदलीं, पर कुछ हासिल नहीं हुआ योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभालते ही सौ से अधिक बड़े अपराधियों और माफिया सरगनाओं की जेलें इधर से उधर बदलीं. उन्हें अपने गृहनगर से काफी दूर दूसरी जेलों में भेजा गया ताकि उनका स्थानीय नेटवर्क निष्क्रिय किया जा सके. जिनकी जेलें बदली गईं उनमें मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अतीक अहमद, शेखर तिवारी, अनवारुल हक, मुकीम उर्फ काला, उदयभान सिंह उर्फ डॉक्टर, किरनपाल उर्फ टीटू, रॉकी उर्फ काकी और आलम सिंह जैसे कुख्यात नाम शामिल हैं. मुख्तार अंसारी को लखनऊ से बांदा जेल भेजा गया. अतीक अहमद को नैनी सेंट्रल जेल से देवरिया, मुन्ना बजरंगी को झांसी जेल से पीलीभीत और शेखर तिवारी को बाराबंकी से महाराजगंज जेल शिफ्ट किया गया है. इसी तरह अन्य कैदियों को भी दूर-दराज की जेलों में शिफ्ट किया गया, लेकिन आपराधिक नेटवर्क को नष्ट करने या नाकाम करने का सरकार का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया.

यूपी की जेलों में सबसे अधिक फांसी की सज़ा पाए क़ैदी

उत्तर प्रदेश की जेलें एक तरफ अत्यधिक कैदियों को अपने यहां ठूंसे रखने का रिकॉर्ड बना रही हैं, तो दूसरी तरफ सबसे अधिक फांसी वाले कैदियों को भी रखी हुई हैं. यूपी की जेलों में 69 कैदी ऐसे हैं, जो मौत की सजा के तामील होने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन स्थिति यह भी है कि यूपी की कई जेलों में जल्लाद नियुक्त नहीं हैं. ऐसी जेलों में इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल भी शामिल है.

यूपी की विभिन्न जेलों में कुल 69 ऐसे कैदी हैं, जिन्हें न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. इनमें निठारी में कई मासूम बच्चों की हत्या करने वाला सुरेन्द्र कोली भी शामिल है. फांसी के सजायाफ्ता कैदियों में से ज्यादातर कैदियों ने अपनी सजा को ऊपरी अदालत में चुनौती दे रखी है. लेकिन कुछ कैदी ऐसे भी हैं, जिनकी सजा सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखी है और उनकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है.

नैनी जेल में फांसी के पांच सजायाफ्ता कैदी बंद हैं. निचली अदालत से उन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. अब इनका मामला हाईकोर्ट में लंबित है. हालांकि, नैनी सेंट्रल जेल में फांसी देने की कोई व्यवस्था भी नहीं है. कारागार विभाग ने काफी अरसे से यहां कोई जल्लाद भी नियुक्त नहीं किया है. इसी तरह ससुराल के सात लोगों की हत्या करने का आरोपी सलीम आगरा सेंट्रल जेल में फांसी की सजा के तालीम होने का इंतज़ार कर रहा है. सलीम की पत्नी शबनम पर भी अपने माता-पिता और दो भाइयों समेत परिवार के सात लोगों की हत्या का इल्जाम है. वह मुरादाबाद जेल में बंद है.

सत्र न्यायालय ने इन दोनों का डेथ वॉरंट जारी कर दिया था, लेकिन कानूनी नुक्तों में यह मामला फंसा हुआ है. उत्तर प्रदेश के बरेली केंद्रीय कारागार में भी दो ऐसे अपराधी हैं, जिन्हें अदालत ने फांसी की सजा सुना रखी है. लेकिन उन्होंने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है. फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में एक कैदी पप्पू कोरी को निचली अदालत से फांसी की सजा सुनाई गई है. यह मामला भी ऊपरी अदालत में अपील में है. उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के निठारी में नरकंकालों के मिलने के बाद सनसनी बने हत्यारोपी सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद मेरठ जेल में बंद रखा गया है. उसे एक से ज्यादा मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, लेकिन यह मामला भी अभी लंबित ही है.

फांसी के सजायाफ्ता कैदियों के मामले में उत्तर प्रदेश की जेलें पूरे देश में अव्वल हैं. दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है. महाराष्ट्र की जेलों में 41 ऐसे कैदी बंद हैं, जिन्हें विभिन्न अदालतों से फांसी की सजा मुकर्रर हो चुकी है, लेकिन ऊपरी अदालतों में अपील के कारण लंबित हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश की विभिन्न जेलों में कुल 325 कैदी फांसी के सजायाफ्ता कैदी हैं, जिन्हें विभिन्न अदालतों से मौत की सजा सुनाई जा चुकी है. इस सूची में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है. जैसा ऊपर बताया कि यूपी की जेलों में 69 कैदी बंद हैं, जिन्हें मौत की सजा सुनाई जा चुकी है. यह आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का है. विशेषज्ञों का आकलन है कि 2017 तक मौत की सजा प्राप्त कैदियों का ताजा आंकड़ा चार सौ के पार चला गया है.

विडंबना यह है कि देश की विभिन्न जेलों में फांसी की सजा प्राप्त कैदियों की संख्या कितनी है, इसका कोई आधिकारिक और अद्यतन रिकॉर्ड केंद्र सरकार के पास नहीं है. गृह मंत्रालय इतना ही कह पाता है कि जेलों में बंद मृत्युदंड प्राप्त कैदियों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश उसके बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और बिहार में है. फांसी की सजा पाए कैदियों की संख्या मध्य प्रदेश में 38 और बिहार में 30 है. कर्नाटक की जेलों में 22 कैदी फांसी की सजा प्राप्त हैं, तो केरल में इनकी संख्या 16 है. दिल्ली की तिहाड़ जेल में मृत्युदंड पाए नौ कैदी बंद हैं.

एक अध्ययन के आधार पर हम यह भी जानते चलें कि फांसी की सजा पाने वाले इन कैदियों में 84 प्रतिशत कैदी ऐसे हैं, जिन्होंने पहली बार अपराध किया. इन कैदियों में अधिकतर गरीब और कम पढ़े लिखे हैं. फांसी की सजा पाए 74.1 प्रतिशत कैदी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के हैं. इनमें 76 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, ओबीसी या धार्मिक अल्पसंख्यक समूह से हैं. इन कैदियों में 23 प्रतिशत ऐसे हैं, जो कभी स्कूल नहीं गए, जबकि 61.6 प्रतिशत कैदी माध्यमिक तक की शिक्षा पूरी नहीं कर पाए. फांसी की सजा पाए कैदियों में 34 प्रतिशत ओबीसी, 24.5 प्रतिशत एससी/एसटी और 24 प्रतिशत सामान्य वर्ग के हैं.

20.7 प्रतिशत कैदी धार्मिक अल्पसंख्यक समूह के हैं. रिपोर्ट के अनुसार फांसी की सजा पाने वाले कैदियों में 12 महिलाएं भी शामिल हैं. देश में सामाजिक संगठनों की तरफ से लगातार यह मांग उठती रही है कि जनहित और देशहित में यह जरूरी है कि फांसी की सजा पाए लोगों के खिलाफ लंबित मामलों का जल्द से जल्द निबटारा हो, क्योंकि फांसी के मामलों का लंबित होना अपने आप में घोर अन्याय है. फांसी की सजा को लटका कर रखना अमानवीय है. लिहाजा, सरकार और न्यायालय दोनों को मिलकर ऐसा समाधान निकालना चाहिए कि ऐसे मामले लंबे समय तक लंबित न रहें.

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