आखिर ऐसी कौन सी बात है, जो एक साथ पार्टी के अंदर इतना बड़ा भूचाल आ गया और एक साथ कई लोग चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए? बीते विधान सभा चुनाव (2009) में बरकट्ठा से भाजपा अमित कुमार यादव ने 39485 वोट लाकर पहले स्थान पर रहे थे, जबकि अमित कुमार यादव के चाचा जानकी प्रसाद यादव झाविमो के टिकट पर 30117 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे थे. 
ajsuदिल्ली में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा के झारखंड जीतने के सपने शायद पूरे न हो पाएं. हाल ही में आए एक सर्वे के मुताबिक पार्टी को राज्य में पूर्ण बहुमत न मिलने की आशंका है. राज्यभर में किए गए इस सर्वे मेें इस बात का खुलासा हुआ कि 41 प्रतिशत लोग वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ही अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. सर्वे के मुताबिक आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 29 से 35 सीटों के बीच मिलने की संभावना है. इसका मतलब यही है कि पार्टी 81 सदस्यीय विधान सभा में पूर्ण बहुमत से दूर रह सकती है.
वैसे इसके कई कारण माने जा रहे हैं लेकिन इनमें से प्रमुख कारण के रूप में भाजपा और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू)के गठजो़ड को ही माना जा रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि इस गठबंधन से भाजपा को फायदे की बजाय नुकसान होने जा रहा है. इस गठबंधन को लेकर कई जिलों के भाजपा कार्यकर्ताओं में पार्टी के प्रति रोष की भावना है. हजारीबाग, रामगढ़, रांची से लेकर धनबाद तक विद्रोह का बाजार इतना गर्म हो चुका है कि भाजपा को पहले जो लाभ होने की उम्मीदें दिख रही थीं, वर्तमान समय में नुकसान की ओर ब़ढती नजर आ रही हैं. इसका एक और कारण टिकटों के बंटवारे में भेदभावपूर्ण रवैये को भी माना जा रहा है. इन जिलों में 17 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी में किसी को टिकट नहीं मिलने के अलावा वैश्य समुदाय के नेताओं का कोई खास तवज्जो नहीं दिया जाना भी भाजपा के लिए खासा नुकसानदायक हो सकता है. शायद यही वजह है कि पार्टी से खिन्न होकर बरही विधानसभा क्षेत्र में आजसू की साबी देवी ने जहां झामुमो का दामन थाम लिया, वहीं सदर विधानसभा से प्रदीप प्रसाद निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद चुके हैं. बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र में भी नाराजगी कुछ कम नहीं है. आजसू के अर्जुन प्रसाद अधिवक्ताओं के साथ बैठक कर निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं और जनसंपर्क तेज कर दिया है. जबकि बरकट्ठा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के भीतर भी अंदरूनी अंतर्कलह हावी है. भाजपा से ही अलग होकर देवीलाल साव ने जहां बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है वहीं राजेंद्र प्रसाद एक क्षेत्रीय दल से टिकट प्राप्त कर लिया है. इतना ही नहीं कई ने तो भाजपा के अमित यादव के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने का भी मन बना लिया है.
आखिर ऐसी कौन सी बात है, जो एक साथ पार्टी के अंदर इतना बड़ा भूचाल आ गया और एक साथ कई लोग चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए? बीते विधान सभा चुनाव (2009) में बरकट्ठा से भाजपा अमित कुमार यादव ने 39485 वोट लाकर पहले स्थान पर रहे थे, जबकि अमित कुमार यादव के चाचा जानकी प्रसाद यादव झाविमो के टिकट पर 30117 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे थे. वहीं तेजी से पार्टी बदलने वाले नेता दिगंबर प्रसाद मेहता 21119 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे तथा कांग्रेस के टिकट पर जयशंकर पाठक 11493 मत लाकर चौथे स्थान पर, पांचवें स्थान पर झामुमो के कमलनयन सिंह थे, जिन्होंने 9769 वोट लाया था. छठवें स्थान पर भुनेश्‍वर प्रसाद मेहता रहे थे, जिन्हें मात्र 7321 वोट पर ही संतोष जताना पड़ा था. आसन्न विधानसभा में इस बार जयशंकर पाठक हजारीबाग सदर विधानसभा के प्रत्याशी हैं, जबकि भुनेश्‍वर प्रसाद मेहता एवं कमलनयन सिंह चुनाव से बाहर हैं. लेकिन जानकी यादव पुन: झाविमो से प्रत्याशी हैं और कहीं ऐसा न हो, कि भाजपा की अंतर्कलह में वे बाजी मार लें. चूंकि बीते विधानसभा में वे मात्र 9468 वोट से ही पराजित हुए थे. जबकि 2009 के चुनाव में अमित कुमार यादव को सहानुभूति वोट भी हासिल हुआ था. इसका कारण यह था कि उनके विधायक पिता स्वर्गीय चितरंजन यादव का निधन भी उसी के आस-पास में हुआ था.
भाजपा को अपने पारंपरिक वोट बैंक के नाराज होने से नुकसान उठाना पड़ सकता है. अभी तक भाजपा ने ऐसे वोट बैंकों को अपने पक्ष में करने की कोई कोशिश नहीं की है, जबकि भाजपा की इस उपेक्षा से नाराज वोट बैंक विकल्पों की तलाश प्रारंभ कर चुका है. ऐसी स्थिति में पहले चरण के चुनाव में ही भाजपा को कुछ स्थानों पर नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक में वैश्य समुदाय है. इसके अलावा मारवाड़ी और पंजाबी भी पिछले कई चुनावों में भाजपा के पक्ष में मतदान करते आये हैं. इस बार इन तीनों ही वर्गों में भाजपा के प्रति नाराजगी नहीं तो उदासीनता जरूर है. पलामू में तो वैश्य मोर्चा ने भाजपा के विरोध का ऐलान भी कर दिया है. वहां से किसी भी वैश्य को टिकट नहीं दिये जाने की वजह से ऐसी घोषणा हुई है. रांची और आस-पास के इलाकों में भी बनिया और इसकी उपजाति के मतदाताओं की अच्छी-खासी तादाद है. रघुवर दास को पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये जाने के बाद यह वर्ग अपने लिए आनुपातिक सीट पाने की उम्मीद में था, लेकिन राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया. दूसरी तरफ रांची समेत कई इलाकों में लगातार भाजपा के लिए हर स्तर पर काम करने वाला मारवाड़ी समुदाय भी इस बार अचानक नाराज नजर आने लगा है. यद्यपि इससे जुड़े लोग इस बारे में औपचारिक तौर पर कुछ नहीं कहते पर ऐसे संकेत मिलते हैं कि रांची सीट के लिए इस बार कुछ लोगों को यह उम्मीद थी कि अजय मारू को भी टिकट मिलेगा, लेकिन चार बार के विधायक सीपी सिंह को ही पार्टी ने टिकट दिया. वहीं रामगढ़ से भी भाजपा की ओर से मारवाड़ी समुदाय के नेता दावेदार थे, लेकिन इस सीट पर गठबंधन में आजसू के खाते में गयी. लगभग यही स्थिति पंजाबी समुदाय की रही. इसके कई बड़े नेता हाल के कुछ घटनाक्रमों की वजह से भाजपा से दूर चले गये हैं. जबकि रांची और जमशेदपुर में यह वर्ग प्रभावी तरीके से मतदान करता है. इसके बाद भी पार्टी के नेताओं ने इस समाज के लोगों को मनाने का काम नहीं किया. जिसकी वजह से ही इन तीनों ही वर्गों में फिलहाल भाजपा के समर्थन की लहर नहीं है. समाज से जुड़े प्रमुख लोग आपसी स्तर पर विकल्प की तलाश पर चर्चा भी कर रहे हैं, लेकिन अब तक भाजपा विरोधी कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
अब ऐसे समय में जब चुनाव का समय माथे पर आ चुका है भाजपा को पार्टी के भीतर अंतर्कलह का नुकसान उठाना प़ड सकता है. कमोवेश यह तस्वीर सर्वे में भी सामने आई है. हालांकि पार्टी नेता इस बात का दावा कर रहे हैं कि प्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि उनके दावों में कितनी सच्चाई है.

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