लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दो दशकों से सोई भारतीय जनता पार्टी को जगा दिया है. दिल्ली की कुर्सी के लिए जीत का स्वाद चखते ही भाजपाई उत्तर प्रदेश में भी सपने देखने लगे हैं. मोदी की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी समय से पूर्व चुनाव की तैयारियां भाजपा में शुरू हो गई हैं. मंथन का दौर चल रहा है, रणनीति बनाई जा रही है. सड़क पर धरना-प्रदर्शन और सदन में तीखे हमले करके समाजवादी पार्टी सरकार के ख़िलाफ़ माहौल गरमाया जा रहा है. भाजपाई कोई बड़ा मुद्दा उठाने की बजाय बिजली-पानी, किसानों की समस्याओं, बिगड़ी क़ानून व्यवस्था जैसे छोटे-छोटे बुनियादी मसलों पर अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव तक उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे स्थान के लिए लड़ने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटें क्या मिलीं, वह जोश से लबरेज हो गई. लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद भाजपा आराम नहीं करना चाहती है. चुनाव अभी भले ही तीन साल दूर हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति प्रदेश में आगे बढ़ाते हुए भाजपा को उन सात लोकसभा सीटों पर अपनी मौजूदगी बढ़ानी है, जहां उसे आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह ने उन सातों लोकसभा क्षेत्रों में नए प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं.
सांसद एवं गोरखपुर के दिग्गज हिंदूवादी नेता योगी आदित्य नाथ को आजमगढ़ का ज़िम्मा सौंपा गया है. आजमगढ़ की सीट 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खाते में आई थी, लेकिन 2014 में यहां से मुलायम सिंह यादव मैदान में कूद पड़े और भाजपा के रमाकांत को हार का मुंह देखना पड़ा. कन्नौज संसदीय क्षेत्र, जहां से डिंपल यादव बमुश्किल चुनाव जीती थीं, उसका ज़िम्मा इटावा से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी रहे अशोक दोहरे को सौंपा गया है. कांग्रेस अध्यक्ष एवं यूपीए की चेयर पर्सन सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली की ज़िम्मेदारी वरिष्ठ संघ प्रचारक और मोदी सरकार के मंत्री कलराज मिश्र को सौंपी गई है. बदायूं की ज़िम्मेदारी 65 वर्षीय संतोष गंगवार को दी गई है, जो मोदी कैबिनेट में स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री हैं. 2009 में फूलपुर सीट पर बसपा का कब्जा रहा था, लेकिन इस बार यह सीट भाजपा की झोली में आ गई. यहां से सांसद चुने गए केशव मौर्य को राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल का चैन छीन लिया था. राहुल कांगे्रस का ऐसा चेहरा हैं, जिसके कंधों पर कांग्रेस का भाग्य टिका हुआ है.
फिरोजाबाद सीट, जिस पर सपा का परचम लहराया था, उसकी ज़िम्मेदारी राम शंकर कठेरिया को दी गई है, जो आगरा से भाजपा सांसद हैं. मैनपुरी का ज़िम्मा कौशल किशोर को सौंपा गया है. मैनपुरी में मुलायम सिंह को जबरदस्त जीत हासिल हुई. अगर बात कौशल किशोर की करें, तो मुलायम सिंह को घेरने के लिए मैनपुरी भेजे गए कौशल को पिछली मुलायम सरकार में पद मिला हुआ था. भाजपा के उक्त सातों प्रभारियों से कहा गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में 15 दिनों में एक बार जाकर पार्टी की स्थानीय इकाई के पदाधिकारियों का मार्गदर्शन करें और उनसे उनकी मुश्किलें भी पूछें. इसके अलावा प्रत्येक माह एक जनसभा का भी आयोजन किया जाएगा, जहां कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचेगा, बल्कि उसमें क्षेत्रीय जनता की परेशानियां सुनी जाएंगी और उनके निराकरण का प्रयास किया जाएगा. उन विधानसभा सीटों की भी नब्ज टटोली जा रही है, जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को बढ़त नहीं मिली थी, भले ही वे चुनाव जीत गए थे. ऐसे क़रीब 60 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें भाजपा के लोकसभा प्रत्याशियों को सपा एवं बसपा उम्मीदवारों से पीछे रहना पड़ा था.
बदले माहौल में भाजपा आलाकमान उत्तर प्रदेश में ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाना चाहता है, जिनका अपना भी मजबूत जनाधार है. उनमें गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्य नाथ का नाम सबसे ऊपर है, जोे पाकिस्तान और आतंकवाद जैसे मसलों पर काफी आक्रामक रवैया अपनाते रहे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह द्वारा आजमगढ़ को आतंकवादियों का अड्डा कहने पर काफी हंगामा मचा था. आजमगढ़ की कमान संभालने के बाद योगी इसी मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कह रहे हैं कि वह आजमगढ़ से आतंकवाद और देशद्रोही शक्तियों को जल्द से जल्द बाहर निकालने की चुनौतीपूर्ण ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हैं. वह कहते हैं कि हिंदुत्व और विकास में कोई अंतर नहीं है. हिंदुत्व ऐसे हर शख्स को स्थान देने में भरोसा रखता है, जो देश के कल्याण के बारे में सोचता है. हम प्रत्येक समुदाय को विकास और सुरक्षा का भरोसा दिलाना चाहते हैं. लब्बोलुआब यह कि भाजपा आलाकमान राज्य में बनी बढ़त लगातार बरकरार रखना चाहता है. उसे अच्छी तरह विश्वास है कि मोदी का चमत्कार 2017 के विधानसभा चुनाव में भी चलेगा. मोदी जिस तरह उत्तर प्रदेश को अहमियत दे रहे हैं, वह किसी से छिपा नहीं है. मोदी की कैबिनेट में राज्य का अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व है. वह (मोदी) लगातार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संपर्क में हैं, ताकि संवादहीनता की वजह से राज्य के विकास में किसी तरह की बाधा न आए. आने वाले कुछ समय में उत्तर प्रदेश की तस्वीर काफी साफ़ हो जाएगी. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अखिलेश ने विकास का नया एजेंडा सेट करके मोदी के वेग को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया है. अखिलेश अब हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं करते. उनकी योजनाएं सभी वर्गों के लोगों के लिए बन रही हैं. जो हालात बन रहे हैं, उनसे तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा.
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