कल 18 सितम्बर हमारे छोटे बेटे जिसे हम प्यार से छोटु ही बोलते थे ! लेकिन उसका नाम कुणाल था ! था इसलिये कि 18 सितम्बर 1999 के दिन अपने कालेज से वापस लौटते वक्त दोपहर के तीन बजे के आसपास, नागपुर विश्वविद्यालय के व्हाईस चांसलर के सरकारी आवास के सामने से होकर गुजरती सडक पर उनके गेट के सामने ही उसे दक्षिण दिशा की ओर से आने वाले ट्रक ने ऑन दी स्पाट कुचल दिया था !
और उस समय मैं नागपुर से आंध्र एक्सप्रेस में बैठकर दिल्ली के लिए निकल चुका था ! यह घटना घटने के बाद पुलिस को उसके आई कार्ड से पता चला ! तो शाम को वह वायुसेना नगर के केंद्रीय विद्यालय के क्वार्टर में जहाँ पर मैडम खैरनार प्रिन्सिपल होने के कारण रहते थे ! तो पुलिस हादसेके दो-तीन घंटे बाद पहुँची ! तबतक मेरी गाड़ी इटारसी के स्टेशन पर पहुँच चुकी थी ! और उस समय रेल मंत्री नितीश कुमार थे ! तो यह खबर उनके कानों पर किसी समाजवादी मित्रों ने डाली होने के कारण ! इटारसी स्टेशन के स्टेशन मास्टर हाथों में वाकी-टाकी लेकर डॉ सुरेश खैरनार कौन है ? कृपया वह जिस भी किसी कोच में हो यही उतर जाये ! और उसी तरह के स्टेशन के माइक से भी घोषणा जारी थी ! और तबतक यह गाडी नहीं हिलेगी यह भी बोला जा रहा था ! मेरे अगल बगल के दुसरे पैसेंजर साला कौन खैरनार है ? उसके कारण गाडी लेट हो रही है करके अपनी भडास निकाले जा रहे थे ! और मेरे मन में था कि, तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर के मुझे उतार लेने का आदेश दिया होगा !
क्योंकि मै मध्य प्रदेश के किसी जगह पर नर्मदा बांध के खिलाफ मेधा पाटकर का अनिश्चित काल का अनशन जारी था ! और मैं पूर्व गृह मंत्री इंद्रजित गुप्ताजी के साथ सलाह-मशवरा के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन के पास उसके अनशन को लेकर एक डेलीगेशन ले जाने के लिए ! दिल्ली के लिए उस ट्रेन में बैठा हुआ था ! 19 सितम्बर को हमारे प्रतिनिधि मंडल को जिसमें कुलदिप नायर, इंद्रजित गुप्त,रजनी कोठारी इत्यादि मान्यवर शामिल होने वाले थे ! राष्ट्रपति के आर नारायणन के पास जाना था !
जब आधे घंटे से भी ज्यादा समय हो रहा, देखकर फेलो पैसेंजरोकी गालियां सुनकर ! आखिर में खिडकी पर से ही बगल से जा रहे स्टेशन मास्टर को पुछा कि खैरनार को क्यों उतार रहे हो ? तो तुरंत वह बोले कि क्या आप ही खैरनार है ? तो मैंने कहा हाँ मैं ही हूँ ! लेकिन क्या बात है ? मुझे उतार लेने का इतना बड़ा हंगामा क्यों हो रहा है ? तो उन्होंने कहा कि आपके घर नागपुर में कुछ घटना होने के कारण ,हमको दिल्ली से रेल भवन से आदेश है कि ! आपको इटारसी स्टेशन पर उतार कर वापस नागपुर की ट्रेन में बैठा दिया जाए ! तो मैंने कहा कि मेरा विश्वास नहीं है ! तो वह बोले कि सामने ही मेरा ऑफिस है ! आप चलकर फोन से पता कर लिजिये तबतक मैं यह गाडी रोक कर रखता हूँ ! मैं उतरकर उनके ऑफिस के फोन से घर पर बात करनी चाही तो घर का फोन नहीं लगा !(उस समय मोबाईल फोन नहीं आये थे !) तो किसी पडोसी के घर पर फोन कर के पता किया ! तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहाँ कि छोटे बाबा की तबीयत ठीक नहीं है ,और उसे अस्पताल में भर्ती किया है ! तो मैंने अपने सामान को गाडीसे उतार कर स्टेशन मास्टर के ऑफिस में बैठकर नागपुर वापस लौटने के लिए इंतजार करने के लिए बैठा ! तो स्वयं स्टेशन मास्टर काफी आवभगत करने लगे ! तो मैंने कहा कि यह सब क्यों ? तो बोले सर आप तो हमारे रेल मंत्री के मित्र है ! यह मुझे दिल्ली के रेल भवन ने कहा है ! कि अगर आप इटारसी स्टेशन नहीं उतरे होते तो आगे भोपाल, झाँसी, ग्वालियर, आग्रा और दिल्ली तक आपको उतार कर वापस नागपुर की ट्रेन में बैठाने का आदेश दिया है !
मै इटारसी स्टेशन से वापस पडोसी के घर फोन कर के पता करने की कोशिश की कि आखिर बात क्या है ? क्योंकि मुझे स्टेशन पर हमारे बडे बेटे कृष्णा ने अपने मोपेड से ड्राप किया था ! इसलिए मुझे लगा वापस जाते वक्त उसके साथ कुछ हुआ होगा ! क्योंकि लगातार बारिश हो रही थी ! तो मुझे बार-बार उसके बारे मे चिंता हो रही थी ! तो पडोसी के घर से स्पष्ट कहा गया कि छोटे बाबा की तबीयत ठीक नहीं है ! और उसे अस्पताल में भर्ती किया है ! वापसी की गाडी इटारसी स्टेशन से रात में दस बजे के आसपास निकली ! स्टेशन मास्टर खुद मुझे बैठाने के लिए आकर ,थ्री टायर रिजर्वेशन के कोच में बैठा ते हुए उन्होंने टी टी को कहा कि, इन्हें बर्थ दो या अपनी बर्थ पर एडजस्टमेंट कर के ,बराबर नागपुर स्टेशन पर भी उतारने के लिए मदद करो ! खैर मै गाडी में एक क्षण के लिए भी सो नहीं सका यह अलग बात है ! और मनमे एक तुफान शुरू हो गया था ! कि मामला कुछ भी हो मुझसे कुछ छुपाया जा रहा है ! और नागपुर स्टेशन पर जब सुबह के तीन बजे के आसपास सुरेश अगरवाल और अन्य काफी मित्रों को देखकर तो उतरते ही मैने पूछा कि बाबु प्लीज मुझे सचमुच ही क्या हुआ है ? यह बात बताओं तो बाबु उर्फ सुरेश अगरवाल ने कहा कि अपने छोटुके एक्सीडेंट में मौत हो गई है ! तो मैंने कहा कि मुझे संबंधित पुलिस स्टेशन ले चलो ! तो रात के चार बजे के आसपास हम लोग स्टेशन से सीधे अंबाझरी पुलिस स्टेशन पहुंचे तो मैंने सबसे पहले स्पाट पंचनामा और एफ आई आर की रिपोर्ट देखा ! पुलिस ने कहा कि एक्सिडेंट हुआ वह ट्रक बाहर खडा है !और ड्राइवर को हमने हवालात में बंद कर के रखा है ! आप चाहें तो उसे मिल सकतें ! मैंने ड्राइवर से नहीं मिलता कहा और पुलिस स्टेशन से एक्सीडेंट हुआ उस जगह पर जाकर देखा ! कि बिल्कुल व्हाईस चांसलर के बंगले के मेन गेट के सामने ही है एक्सीडेंट स्पाट था ! रोड के साइड में मोटरसाइकिल के रेअर रेड लाइट का कवर के टुकड़े पडे थे ! और बारिश के कारण अन्य कुछ भी नहीं दिखाई दिया ! हा पुलिस स्टेशन मे छोटु जीस मोटरसाइकिल से कालेज गया था वह खडी देखा था ! और पुलिस ने कहा कि एक्सिडेंट स्पाट से यह गाडी हमारे हवालदार ने चलाकर लाया है ! आप चाहें तो उसे ले जा सकते ! एक्सीडेंट के जगह से वापस वायुसेना नगर के केंद्रीय विद्यालय के क्वार्टर में पहुचते-पहुचते सुबह हो गई थी ! मेरे साडू भाई डॉ देवेंद्र तुरसकर और मेडम तुरसकर को देखां तो उन्होंने कहा कि हमने मेडम खैरनार को निंद की दवा देकर सुलाया है !
सबेरे का नित्य कर्म के बाद मै नागपुर मेडिकल कॉलेज में ,जहाँ छोटुके बाॅडी का पोस्टमार्टम होने के बाद ही हम उसे पहले घर लायें ! कलकत्ता से 1997 मे नागपुर आते वक्त हमारा एक परिवार का सदस्य ! अल्सेशियन हंटर डॉग भी नागपुर साथ में लाया था ! जिसे शेरु के नाम से दोनों बेटे पुकारते थे ! और छोटुके साथ शेरू की विशेष दोस्ती थी ! जब भी वह कालेज जाता था तो शेरू आंगन में ऊसके गए हुई दिशा की ओर टक टकी लगाएं बैठा रहता था ! तो उस दिन से वह उसी जगह पर बैठे बगैर खाना, पीना करते हुए बैठा रहा ! वैसे भी शेरू घर में आया तबसे हमें लगता था ,कि इसे सिर्फ बोलने की शक्ति नहीं है ! अन्यथा यह सामने होने वाले हरेक घटना को बहुत ही गौर से देखता था !
मेधा पाटकर जबतक हम कलकत्ता में रहे हमारे ही घर ,अपने दल बल के साथ ठहरा करतीं थीं ! और मेरी और उसकी कोई गंभीर चर्चा होने के समय ,शेरू हमारे सामने जमीन पर नीचे गर्दन डालकर आँखो से हम दोनों को बारी बारी से देखता था ! तो मेधा बोलीं कि शेरू हमारे सामने कैसी-कैसी हरकत कर रहा? तो मैंने कहा कि उसकी बहुत इच्छा है कि ,तुम्हें बताया जाए कि सिर्फ नर्मदा बचाओ से कुछ नहीं होगा ! समस्त विकास की अवधारणा को लेकर कुछ करों ! तो मेधा बोलीं कि शेरू के आडमे आप बोल रहे हैं !
मुख्य बात 18,19 सितम्बर 1999 के दिन हमारे घर में हम लोग तो विलक्षण मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे थे ! लेकिन हमारे घर का यह पांचवा सदस्य शेरू ! छोटुके एक्सीडेंट के बाद बहुत ही डिस्टर्ब था ! यह देखकर हमको और भी ज्यादा दुःख होता है कि ! यह मुक जानवर भी कितना संवेदनशील है ! और हम लोग तो कुछ खा-पीरहे थे ! लेकिन उसने काफी दिनों तक खाना-पीना छोड़ रखा था ! और उसके उछलकूद मचाने की हरकतें नदारद थी ! तब एहसास हुआ कि चतुष्पाद प्राणियो में भी संवेदनशीलता की भावनाओं का शायद मनुष्य प्राणियो से कुछ ज्यादा ही अंश है !
बाद में अंबाझरी स्मशान भूमि के विद्युत वाहिनी में 19 सितम्बर को दोपहर के तीन बजे दफन कर के वापस लौट आए ! तो शेरू आंगन में उसी जगह पर बैठे गेट के तरफ टकटकी लगाये देखें जा रहा है ! और हमारे लाख कोशिशों के बावजूद वह टस से मच नहीं हो रहा था ! और खाने-पीने का तो सवाल ही नहीं !बहुत ही हृदयस्पर्शी दृश्य था !
छोटु प्रिमॅच्युअर बेबी था ! 11 अप्रेल 1981 के दिन उसका सिजेरियन सेक्शन से इस दुनिया में प्रवेश हुआ था ! तो देखा कि उसकी तालु, घुटने की जगह और कानों की पालीया आधी अधूरी थी ! और सिजेरियन ऑपरेशन हमारी दोनों की दोस्त डॉ रानी बंग जिसका आज ही जन्मदिन है ! और उसको असिस्टेंट किया डॉ अभय बंग ने ! यह प्रिमॅच्युअर बेबी वर्धा के सिविल अस्पताल से एंबुलेंस द्वारा सीधा इस दुनिया में आने के बाद सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज में बेबी यूनिट में शिफ्ट करना पड़ा ! मै और मेरे अजीज दोस्त मोहन थुटे एंबुलेंस में बहुत सारे स्टर्लाइज काॅटन में लपेटकर ,अपने हाथों पर बारी-बारी से दोनों ने मिलकर दस किलोमीटर दूर ! क्योकिं सीजेरियन ऑपरेशन वर्धा के सिविल अस्पताल में हुआ ! जहाँ बेबी यूनिट न होने के कारण सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज के बेबी यूनिट में दस दिनों तक रखा था !
और इधर वर्धा के सिविल अस्पताल में मेडम खैरनार सीजेरियन ऑपरेशन के कारण एडमिट थी ! वह बार-बार पूछती थी कि बच्चे को कहा रखा है ? और सचमुच ही बच्चा जीवित है ? या आप लोग छुपा रहे हो ? दस दिनों के बाद सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज के बेबी यूनिट से, जब उसे वर्धा सिविल हास्पीटल मेडम खैरनार के पास लाया गया,तब उन्हें विश्वास हुआ कि बच्चा जीवित है !
प्रिमॅच्युअर बेबी होने के कारण हमको उसके लिए सब कुछ छोड़ सिर्फ और सिर्फ उसके लिए गिनकर दस साल देना पडा ! क्योंकि उसकी इम्युन सिस्टम बहुत ही कमजोर होने के कारण हर मोसम के क्रास होने के समय सर्दी, बुखार, पेचिश अक्सर हुआ करतीं थीं ! जब वह पाँच छह महीने का होगा तब मेडम खैरनार को हैदराबाद किसी इंटरव्यू में जांना था ! तो हम सभी को साथ जाना पडा ! और उसे जो पेचिश शुरू हुई रूकने का नाम नहीं ले रहीं ! और वापसी के सफर में हमारे टिकट का घोटाला हो गया था ! हम लोग एक दिन पहले ही उस गाडी में चढ गए थे ! तो टी टी ने थोड़ी टीटीगिरी दिखाईं लेकिन हमारे फेलो पैसेंजर लोगोने गजब का सहयोग किया ! मेडम खैरनार की अच्छी खासी सुती साडी को फाड-फाडकर हम उसकी टट्टी पोंछकर खिड़की के बाहर फेकते हुए, सेवाग्राम स्टेशन आने तक संपूर्ण एक साडी फाड कर फेंके ! तो सेवाग्राम स्टेशन पर उतरे तो सामने मेरी एक गाँधी वादी मित्र के पिता खडे हैं ! लेकिन वह अपने बडे साहब को लेने आए थे ! सो उन्होंने हमें टाटा करते हुए ,अपने साहब को लेकर निकल गए ! यह सब नजारे को कुछ नन्स देख रहीं थीं ! तो उन्होंने खुद होकर कहा कि हमारे पास गाडी है ! हम आप लोगों को सेवाग्राम मेडिकल कॉलेज छोड़कर आते हैं ! तो उन्होंने तुरंत अपने गाडी में लेकर सीधा कॅज्यूल्टि में खुद बात करने के बाद सीधे बच्चोके वार्ड में दाखिल होने के बाद ही , अपने चर्च की और निकलने का निर्णय हमें पूछकर की हम लोग जाए ! कहाँ गाँधी-विनोबाजी के अनुयायी ? और कहा येसूख्रिस्त के अनुयायी ?
आज की परिस्थितियों को देखकर लगता है कि ! महात्मा गाँधी या विनोबाजी के नाम की माला जपने के आगे इन्होंने और कुछ नहीं लिया ! तथाकथित गाँधी-विनोबाजी के अनुयायी कहा है ? और क्या कर रहे हैं ? इनके असंवेदनशील व्यवहार के कारण भी आज देश की ऐसी स्थिति बनी हुई है !
लेकिन जब वह आहिस्ता आहिस्ता बडा होने लगा ! तो हमारे घर आने वाले मित्रों को देखकर तो हमारे दोनों बेटे जुडवा लगते थे ! क्योंकि दोनों के भीतर सिर्फ पंद्रह महीने का फासला था ! और छोटुके तबीयत में इतना अच्छा सुधार हुआ की ! अपने बडे भाई कृष्णा से सिर्फ थोडा उंचाई में कम था ! लेकिन उसे जीवन भर कृष्णा के कपड़े और पाठ्यक्रम की पुस्तकों पर ही अपने पढाई करनी पडी ! और सबसे अहम बात दोनों ही एक दूसरे के दोस्त थे ! उन्होंने अन्य दोस्त नहीं बनाये या नहीं बनें ! दोनों ने मेडिकल कॉलेज में आसानी से जाने की काबिलियत हासिल की थी ! लेकिन अपनी माँ के कारण बायोलोजी में माइक्रोबायोलोजी की तरफ रुख किया कृष्णा ने जब बीएस्सी में प्रथम श्रेणी और प्रथम क्रमांक से पास करके नागपुर विश्वविद्यालय के माइक्रो बायोलोजी के पोस्ट ग्रेजुएट में दाखिल होने के समय छोटु बीएस्सी के फाइनल इयर में था ! और 18 सितम्बर 1999 के दिन वह अठारह साल और पाँच महीने और एक सप्ताह की उम्र का था !
छोटु बगैर किसी ट्रेनिंग कीबोर्ड पर बहुत ही सुंदर धुनें कंपोज करता था ! और पेंटिंग तो वह बचपन से ही बनाया करता था ! हमारे कलकत्ता के घर वसंत पंडित नाम के ,वाटर कलर के मशहूर चित्रकार आते थे ! तो उन्हें छोटुके बनाये चित्र इतनें अच्छे लगते थे ! तो वह हमारे पीछे पड गए थे ,कि छोटुके चित्रो कि कलकत्ता में किसी प्रतिष्ठित गॅलरी में प्रदर्शनी करना चाहिए ! तब छोटुकी उम्र दस से पंद्रह के बीच कि होगी ! हमारे घर में खाना बनाने की ड्यूटी मेरी होने के कारण छोटु खुद ही खाना बनाने के लिए तैयार रहता था ! कृष्णा ने कभी रूचि नहीं दिखाई ! छोटुकी अपनी खुद की ही रुचि थी ! चाय अद्रक पीस कर बनाया करता था ! हमारे कलकत्ता के घर सभी मित्रों का ठहरना लगा रहता था एक बार भाई वैद्द ठहरे थे और उन्होंने चाय की फर्माइश की तो छोटु बोला कि मैं बनाता हूँ अद्रक पीस कर तो भाई बोले छोटु नो अडलट्रेशन ! तो छोटु हैरान होकर बोला कि अंकल जी आप अद्रक पीस कर डालने को अडलट्रेशन कैसे बोल रहे हैं ? तो भाई बोले छोटु मै शुध्द चाय का शौकीन हूँ ! इसलिए मुझे चाय पत्ती डाली हुई चाय चाहिए !
मेडम खैरनार कलकत्ता के ईस्टर्न कमांड के मुख्यालय, फोर्ट विलियम केंद्रीय विद्यालय की प्राचार्या होने के कारण हमको साडे चार सौ स्क्वायर फीट कारपेट एरिया वाला, अंग्रेजी सल्तनत की नीवं डालने वाले पहले किले फोर्ट विलियम के एक प्रवेशद्वार के उपर सेंट जॉर्ज गेट यह आवास मिला था ! तो शेरू से लेकर, इगल, कबूतरों की जोड़ी से लेकर एक मिठ्ठू भी पालने का शौक मुख्य रूप से छोटु और उसके सहयोगी बडे भाई कृष्णा भी !
कलकत्ता जैसे महानगरमे गिनकर पंद्रह साल रहें 1982 से 1997 तक ! और हमारे पास गाडी थी लॅब्रेटा स्कूटर ! जिसपर चारों बैठे कहा-कहा नहीं घुमे ! लेकिन खरोंच तक नहीं आई ! और कलकत्ता से आकर सिर्फ दो साल में कलकत्ता से एक चौथाई से भी कम आबादी के नागपुर में वह भी एक साइडमे अपने गाडी को स्टैण्ड पर खडी कर के, झुककर कुछ देख रहा था ! और पिछेसे एक लोहे की बाल्टीयोसे लदा हुआ ट्रक आकर, लगातार बारिश हो रही थी ! और वह जगह पर एस आकार का मोड होने की वज़ह से ड्राइवर को ठीक से नहीं दिखाई दिया होगा ! और हमारे बेटे के उपर से इतना सामान लदा हुआ ट्रक चलकर गया तो शरीर का कौन-सा पार्ट बचा होगा ? क्योंकि देखने वाले लोग कह रहे थे ,कि एक एक शरीर के हिस्से को इकट्ठा कर के ट्रक से ही कंबल लेकर समेट कर डाला ! क्योंकि ड्राइवर ट्रक छोडकर भाग गया था ! और बाद में वह खुद ही पुलिस स्टेशन जाकर सरेंडर किया था ! कोइंसेडेंटली ड्राइवर मुसलमान था और ट्रक फैजाबाद का था ! तो कुछ लोगों ने अपने कान्पिरसी थियरी से मेडम खैरनार के पास कान भरने की कोशिश भी की ! आज से बाईस साल के भी पहले से हमारे समाज की मानसिकता का भी यह मिटर है ! मैंने कहा कि अगर वही ड्राइवर हिंदू होता तो ? क्या हिन्दुओं से एक्सीडेंट नहीं होता है ? क्या हो गया है आप लोगों को ? हर बात में हिंदू-मुस्लिम करते रहते हो ! हमने हमारे साडे अठारह साल के बच्चे को खोया है ! और कितने लोग मारोगे तो हमारे बेटा वापस आयेगा ?
आज कुणाल जीवित होता तो चालीस साल के उम्र का होता ! उसिसे एक साल बडा भाई कृष्णा ने जंतुविज्ञान में महारत हासिल कर के ! वर्तमान समय में नागपुर की भारत सरकार की निरी नाम की प्रयोगशाला में कोरोना से लेकर अन्य बिमारियों के उपर मुलभुत संशोधन के काम में लगा है ! और गत दो साल से वह पंद्रह घंटे काम कर रहा है ! और अलग-अलग टेस्टिंग की किट से लेकर जीनोम सिक्वेंसिग जैसे महत्वपूर्ण संशोधन में लगा हुआ है ! कुणाल भी उसी तरह के काम मे रहा होता क्योंकि उसका रोल मॉडल उसका बडा भाई ही था !