अदालत की पेशी नजदीक है क्या…?
विवादों की सुर्खी बटोरने की उनकी आदत है या अदा, ठीक से कहा नहीं जा सकता…! भोपाल की तरफ जब भी उनका रुख होता है, एक शिगूफा जरूर छोड़ा जाता है…! मस्जिद, अज़ान से लेकर गांधी तक पर ऐतराज… हर बात पर कलह और हर बात से दिक्कत…!
यूं तो तेज कदम भी चल लेती हैं… मौका मिलने पर नृत्य मुद्रा में भी आ जाती हैं…! बीमारियां और नासाज तबीयत के हालात तभी बनते हैं, जब अदालत की पेशी, आतंकी मामलों पर बहस या सुनवाई की तारीख नजदीक होती है…! महामारी काल में पूरी तरह शहर से दूरी बनाए रखने के बाद भी बीमारी का अचूक नुस्खा अपना कर खुद को मासूम साबित करने की कोशिश हो गई थी…!
फिर उनकी आमद हुई… फिर राजधानी के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों का चक्कर लगा…! सूरत और क्रिया कलाप से पूरी तरह स्वस्थ… लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ जाने का शोर…! डॉक्टर भी आया, चेक अप भी हुआ, दवा भी दी गई… और फिर सियासत का पाठ भी पढ़ा गया…!
हर सफर विकास चर्चा से नजरें चुराने, लोगों की अपेक्षाओं को दबाने और सिंपैथी का चादर सिर पर जमाए रखने एक नया विवाद बिखेरकर जाना उनकी आदत में है…! इस बार खामोशी छाई रही… बीमारी का सहारा आने वाली किसी अदालती तारीख के नजदीक होने का इशारा कर रही है…!
पुछल्ला
अनलॉक की मंशा पर पानी फेरता आरक्षण
दो साल बाद पाबंदियों से निजात मिली। सब कुछ अनलॉक। शोर उठा, चुनावी तैयारी है शायद। आवाज़ आई, ये कैसे हो पाएंगे। पंचायतों का आरक्षण दो साल पुराना हो चुका है। जिला जनपद के लिए प्रक्रिया फिलहाल लेट लतीफी में अटकी है। विपक्षियों ने अदालत की शरण जाने का मन बनाना भी शुरू कर दिया है।