दुनिया के इतिहास में 1 मई की तारिख मजदूर दिवस के रूप में दर्ज है. 1 मई 1886 में अमेरिका के शिकागो से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. दरअसल इस दिन अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने 8 घंटे काम की मांग को लेकर एक साथ हड़ताल शुरू की थी.इस हड़ताल में 11,000 फ़ैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हज़ार हजदूरों ने हिस्सा लिया था. लेकिन भारत में लेबर किसान पार्टी ने 1 मई 1923 को मजदूर दिवस मानाने की शुरुआत की थी. मजदूर दिवस को लेबर डे , कामगार दिन, कामगार दिवस, अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में जाना जाता है.

ऐसा नहीं है कि अमेरिका में हुई मजदूरों की हड़ताल के बाद उन्हें उनका हक मिल गया था. अधिकारों की इस लड़ाई में कुछ लोगों की जान चली गई तो कुछ को अपना खून तक बहाना पड़ा था. दरअसल 1886 में हुई इस हड़ताल के दौरान दुर्भाग्यवस शिकागो की हेय मार्केट में विस्फोट गया.जिसके बाद पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी. जिसमें बड़ी संख्या में मजदूर जख्मीं हुए तो वहीं सात मजदूरों की मौत हो गई.

इस घटना के बाद इसके बाद मजदूरों ने लगातार धरना- प्रदर्शन कर वेतन बढ़ाने और काम के घंटे कम करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया. क्योंकि उस दौर में मजदूरों को सप्ताह के सात दिन 12-12 घंटे लंबी शिफ्ट में काम करना पड़ता था. फैक्ट्रियों में काम करने वाले बच्चों का काफी शोषण भी किया जाता था. ज्यादातर मामलों में उन्हें मुश्किल हालातों में काम करना पड़ता था . खदान और फार्म में काम करने वाले बच्चों के हालात काफी बुरे थे. मजदूरों द्वारा अपने हक़ के लिए आवाज उठाने के बाद 1889 में पेरिस में हुई अंतरराष्ट्रीय महासभा की बैठक में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया गया. लेबर डे के मौके पर दुनिया के 80 से अधिक देशों में छुट्टी होती है.

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