सेना को नाराज करने वाली विसंगतियां
- सातवें वेतन आयोग की सिफारिश में सेना के विभिन्न स्तर के अफसरों के वेतन में मनमाने तरीके से कटौती कर दी गई. सेना के प्रत्येक रैंक के अफसरों का वेतन उनके रैंक के मुताबिक बढ़ने के बजाय घट गया.
- अन्य केंद्रीय कर्मचारियों और सेना के वेतन में भीषण खाई बना दी गई है.
- सातवें वेतन आयोग ने सेना के जवान से लेकर जूनियर कमीशंड अफसर तक को रैंक के मुताबिक मिलने वाला विशेष ‘मिलिट्री सर्विस पे’ (एमएसपी) एक कर उसे 52 सौ रुपये पर फिक्स कर दिया. एमएसपी के घालमेल की कार्रवाई से ‘रैंक एंड हाइरार्की’ (पद और वरिष्ठता) की मर्यादा जाती रही, जो सैन्य अनुशासन का अनिवार्य पहलू है. सेना अधिकारी इसे सैन्य अनुशासन और वरिष्ठता-पंक्ति की ऐतिहासिक परम्परा को ध्वस्त करने का षडयंत्र बताते हैं.
- सातवें वेतन आयोग ने युद्ध या ऑपरेशन के दौरान जख्मी हुए सैनिक या अफसरों को मिलने वाले विशेष पेंशन लाभ में भी सिविल अफसरों-कर्मचारियों की विकलांगता को घुसा दिया और युद्ध विकलांगता के गौरव को मटियामेट कर दिया.
ओआरओपी का ढिंढोरा पर सच कुछ और
सेना को ‘वन रैंक वन पेंशन’ देने का मसला भी इसी तरह लालफीताशाही में फंस गया है. ओआरओपी के बारे में सरकार जो कुछ भी दावा करती है, व्यवहार में वह सच नहीं है. जमीनी सच्चाई यही है कि ‘वन रैंक वन पेंशन’ के नाम पर पेंशन की राशि एक बार (वन-टाइम) बढ़ा दी गई. सरकार इसे ही ओआरओपी कहती है और ढिंढोरा पीटती है. जबकि ओआरओपी की व्याख्या यह नहीं है.
ओआरओपी की संसद में दर्ज परिभाषा ‘समान रैंक को समान पेंशन’ लगातार दिए जाने के रूप में है. लेकिन यहां भी नौकरशाहों ने इसे तोड़ मरोड़ कर ‘वन-टाइम पेंशन’ बना दिया और पेंशन की राशि में एक बार बढ़ोत्तरी कर ओआरओपी का सियासी-परचम लहरा दिया. सरकार के सामने मुश्किल यह भी है कि सेना में ओआरओपी व्यवस्था लागू होने पर दूसरी सरकारी सेवाओं में इसकी मांग न उठने लगे. कई दूसरी सेवाओं में ऐसी मांग उठी भी है.
सेना के समानान्तर ओआरओपी देने की मांगें बिल्कुल बेमानी हैं और इसे सरकार एकबारगी ही खारिज कर सकती थी, लेकिन नौकरशाह इसे हवा देकर जिंदा रखना चाहते हैं. बहरहाल, सैन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के पेंशन की राशि में वर्ष 2006 और 2009 में भी बढ़ोत्तरी की गई थी, लेकिन उसे तत्कालीन यूपीए सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ नहीं कहा था. इसी तरह एनडीए-2 के कार्यकाल में भी सैनिकों के पेंशन की राशि एक बार बढ़ाई गई थी. लेकिन तब भाजपा ने भी इसे ‘वन रैंक वन पेंशन’ नाम नहीं दिया था.
केंद्र सरकार कहती है कि ओआरओपी जारी कर दिया गया है और केवल डेढ़ लाख पूर्व सैनिकों के ओआरओपी का बकाया (एरियर) भुगतान बाकी रह गया है. सरकार के इस दावे के बरक्स सच्चाई यह है कि डीफेंस एकाउंट्स (पेंशन) के प्रिंसिपल कंट्रोलर ने सभी बैंकों को यह सख्त निर्देश दे रखा है कि पेंशन पेमेंट ऑर्डर (पीपीओ) में रिटायर कर्मी के ग्रुप, सेवा की अवधि और रैंक दर्ज न हो तो एरियर का भुगतान नहीं किया जाए. क्लर्कीय भूल की वजह से लाखों पीपीओ आधे-अधूरे हैं और उनका भुगतान रुका पड़ा है.