Indian army

सातवें वेतन आयोग के प्रसंग में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को सेना प्रमुखों द्वारा लिखे गए विरोध-पत्र पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने एयर चीफ मार्शल अरूप राहा और नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा पर सिफारिशें लागू करने का दबाव बनाया. लेकिन रक्षा मंत्री का कोई हथकंडा काम नहीं आया. अब रक्षा मंत्रालय के वित्त सलाहकार और कार्मिक प्रशिक्षण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में 22 सदस्यीय समिति वेतन आयोग की विसंगतियों का अध्ययन कर रही है. अध्ययन कब पूरा होगा और विसंगतियों को दूर कर सेना में संशोधित वेतनमान कब लागू होगा, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है.

सातवें केंद्रीय वेतन आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके माथुर की रिपोर्ट ने भारतीय सेना को असंतोष से भर दिया है. इस वेतन आयोग ने इतना असंतुलन बढ़ा दिया है कि न केवल आईएएस, आईएफएस और आईपीएस बल्कि अर्धसैनिक बलों के अधिकारी भी वेतन और भत्तों के मामले में सेना से काफी आगे निकल गए हैं.

दूरदराज के इलाकों में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों और सेना के अधिकारियों को मिलने वाले स्पेशल ड्यूटी भत्ते में भी भीषण विसंगति और भेदभाव बरता गया है. उत्तर-पूर्व में तैनात होने वाले आईएएस अधिकारी को विशेष भत्ते के तौर पर 60 हजार रुपये मिलेंगे लेकिन सियाचिन ग्लेशियर जैसी दुर्गम जगह पर तैनात सेना अधिकारी को विशेष भत्ते के तौर पर बमुश्किल 30 हजार रुपये प्राप्त होंगे. आपने देखा ही कि विकलांगता भत्ते को भी बदलकर किस तरह सिंगल स्लैब व्यवस्था में ला दिया गया जिसमें सभी को एक समान भत्ता मिलेगा.

सड़क पर गिर कर जख्मी होने वाले सिविल सेवा के अधिकारी जितनी विकलांगता पेंशन पाएंगे, सीमा पर दुश्मन और आतंकियों की गोली से जख्मी होकर विकलांग होने वाले सैन्य अधिकारियों और जवानों को भी उतनी राशि विकलांगता पेंशन के रूप में मिलेगी. यह मोदी सरकार का राष्ट्रवाद है, सैन्य प्रेम है और सेना के प्रति सम्मान-भाव है.

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सेना के प्रति नौकरशाहों का रवैया हमेशा से ऐसा ही रहा है. छठे वेतन आयोग के समय भी सेना के स्तर को नीचे करने की कोशिशों के खिलाफ तत्कालीन नौसेना अध्यक्ष एडमिरल सुरेश मेहता ने यूपीए-1 काल में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को पत्र लिख कर सख्त विरोध जताया था. इस पर वर्ष 2008 में प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था.

लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला. आजादी के बाद से ही सेना को कमजोर बना कर रखने की नौकरशाहों की कोशिश जारी है. संयुक्त कमान को तोड़ कर सेना को तीन विभिन्न शाखाओं में बांटने का निर्णय इसका पहला अध्याय है.

इसके बाद आईएएस लॉबी नेताओं को बहका कर सत्ता-सुविधाओं पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगी रही. पांचवां और छठा वेतन आयोग आते-आते आईएएस लॉबी की यह भूख सारी हदें पार कर गई. सेना के अफसरों को न केवल नीचे के दर्जे पर रखे जाने की साजिश की गई, बल्कि सेना को कम वेतन देकर उनका मनोबल गिरा कर रखने की प्रक्रिया भी लगातार जारी रही. सेना नौकरशाही की गंदी मंशा समझती है.

आईएएस लॉबी की शातिराना साजिशों का ही परिणाम है कि सेना के तीनों प्रमुखों को महत्वपूर्ण सरकारी पदाधिकारियों की वरीयता सूची में धीरे-धीरे काफी नीचे खिसका दिया गया. सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों को कैबिनेट सचिव और अटॉर्नी जनरल के बाद के क्रम में 13वें स्थान पर जगह दी गई है. वेतन निर्धारण की प्रक्रिया में भी सेना को कभी शामिल नहीं किया जाता. तीसरे वेतन आयोग के समय सेना को प्रक्रिया में शामिल किया गया था.

लेकिन उसके बाद सेना को पूरी तरह दरकिनार ही कर दिया गया. वर्ष 2009 में अलग सैन्य वेतन आयोग के गठन का प्रस्ताव आया था, लेकिन लालफीताशाहों ने उसका गला घोंट दिया. अब उसका कोई नामलेवा भी नहीं रहा.

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