छठे वेतन आयोग के समय ही केंद्रीय कर्मियों के ग्रुप-ए अफसरों के लिए ‘नॉन फंक्शनल स्केल अपग्रेडेशन’ (एनएफयू) का फार्मूला लागू कर उनके वेतन में अतिरिक्त आकर्षक लाभ जोड़ दिया गया था. लेकिन एनएफयू फार्मूला सेना के अधिकारियों पर लागू नहीं किया गया था. विडंबना यह है कि सेना के अफसरों को न ग्रुप-ए में रखा गया है और न आईएएस-आईपीएस की तरह उन्हें सेंट्रल सर्विस में रखा गया है.
एनएफयू फार्मूले के कारण सेना और सिविल अफसरों के वेतन की खाई इतनी बढ़ गई है कि सेना के अफसर हीन भावना का शिकार हो रहे हैं. सेना में भी एनएफयू फार्मूला लागू करने की मांग पर सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही. सातवें वेतन आयोग ने सेना के जवान से लेकर जूनियर कमीशंड अफसर तक और कमीशंड अफसरों को रैंक के मुताबिक मिलने वाले विशेष ‘मिलिट्री सर्विस पे’ (एमएसपी) को नासमझ तरीके से एकसाथ मिला दिया और उसे 52 सौ रुपये पर फिक्स कर दिया.
जबकि जूनियर कमीशंड अफसर का एमएसपी नियमतः 10 हजार रुपये होना चाहिए था. एमएसपी के घालमेल की कार्रवाई से ‘रैंक एंड हाइरार्की’ (पद और वरिष्ठता) की मर्यादा जाती रही, जो सैन्य अनुशासन की अनिवार्य आवश्यकता है. एमएसपी के विलय से जितना ‘मिलिट्री सर्विस पे’ शुरुआती कमीशंड अफसर (लेफ्टिनेंट) को मिलेगा उतना ही ब्रिगेडियर जैसे वरिष्ठ अफसर को भी मिलेगा.
युद्ध या ऑपरेशन के दौरान जख्मी हुए सैनिक या अफसरों को मिलने वाले शत प्रतिशत पेंशन (लास्ट ड्रॉन सैलरी) लाभ को सातवें वेतन आयोग में नया फार्मूला लागू कर कम कर दिया गया. युद्ध विकलांगों को मिलने वाले पेंशन की राशि काफी कम हो गई, जबकि अन्य केंद्रीय कर्मचारियों के ड्यूटी के दौरान जख्मी हो जाने पर उनका वेतन-लाभ बढ़ा दिया गया.
सातवें वेतन आयोग की इस अजीबोगरीब सिफारिश पर केंद्र सरकार की कार्रवाई कम आश्चर्यजनक और हास्यास्पद नहीं है. इसकी विचित्रता देखिए कि सिविल सेवा में तैनात अतिरिक्त सचिव (एडिशनल सेक्रेटरी) स्तर के केंद्रीय कर्मी को विकलांगता पेंशन 70 हजार रुपये मिल रही है जबकि जनरल स्तर के सैन्य अधिकारी को महज 27 हजार रुपये विकलांगता पेंशन निर्धारित की गई है.
देश के किसी आम नागरिक को भी इतनी जानकारी रहती है कि सेना में ड्यूटी के दौरान हुई विकलांगता कितनी घातक और गंभीर होती है. ‘नॉन फंक्शनल स्केल अपग्रेडेशन’ (एनएफयू) के निर्धारण में भी ऐसी ही शैतानी उजागर हुई है. छठे वेतन आयोग के समय से ही सैनिकों को मिलने वाले ‘मिलिट्री सर्विस पे’ में जूनियर कमीशंड अफसर और जवानों को एक ही धरातल पर ला खड़ा किया गया.
दूसरी तरफ कमीशंड अफसरों में सबसे जूनियर अफसर लेफ्टिनेंट और ब्रिगेडियर जैसे कमांड स्तर के वरिष्ठ अधिकारी को एक ही धरातल पर लाकर रख दिया गया है. सेना के तीनों अंगों की यह साझा मांग है कि सैन्य बलों के लिए भी ‘नॉन फंक्शनल स्केल अपग्रेडेशन’ (एनएफयू) तत्काल प्रभाव से लागू हो और सिविल व मिलिट्री सेवाओं के लिए एक समान पे-मैट्रिक्स का नियम बहाल हो.
Read also : सैयद अली शाह गिलानी : बेटों को जवान होते नहीं देख पाया
ताजा हालत यह है कि भारतवर्ष की सम्पूर्ण सेना सातवें वेतन आयोग द्वारा निर्धारित वेतन नहीं ले रही है. पूरी सेना पुराने वेतन से काम चला रही है. सेना प्रमुखों के विरोध पत्र मिलने से हड़बड़ाए प्रधानमंत्री के दबाव में रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए अलग से वेतन निर्धारण किए जाने की अधिसूचना तो जारी कर दी, लेकिन सेना में कोई भी नया वेतनमान अब तक (खबर लिखे जाने तक) लागू नहीं हुआ है. सशक्त आईएएस लॉबी के प्रभाव में मीडिया इस खबर को दबाए हुए है. केंद्र सरकार नौकरशाही की गिरफ्त में है. नेताओं को तो कुछ समझ में नहीं आता और आईएएस लॉबी उन्हें बेवकूफ बना-बना कर अपना हित साधती रहती है.