देश के अंदर आतंकवादियों से लड़ते जवानों की फजीहतें जारी हैं. दुरूह बर्फीली चोटियों पर तैनात सैनिकों की तकलीफदेह मुसीबतें जारी हैं. सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों पर राजनीति जारी है. सेना के कंधे पर राष्ट्रवाद को रख कर सियासत का धंधा जारी है. लेकिन उसी सेना का वेतन बंद है, जिसके बूते सत्ता को मजबूत करने का हथकंडा चल रहा है. सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर केंद्रीय कर्मचारी और अधिकारी मौज ले रहे हैं, लेकिन सैनिकों की सुध कोई नहीं ले रहा.
तीनों रक्षा प्रमुखों ने प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को संयुक्त पत्र लिख कर सातवें वेतन आयोग की सिफारिश में सेना के प्रति बरती गई सुनियोजित विसंगतियों को तत्काल दूर करने की मांग की है. सेना के तीनों प्रमुखों का पत्र केंद्र सरकार के मुंह पर तमाचा है.
इस पत्र से सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में नौकरशाही की बदमाशियां साफ-साफ उजागर हुई हैं. थल सेना, वायु सेना और नौसेना के प्रमुखों का साझा पत्र चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अरूप राहा के जरिए प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री तक पहुंचा.
पत्र में कहा गया है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सेना का मनोबल ध्वस्त करने के लिए काफी हैं. सेना के अफसरों और अन्य रैंकों पर काम करने वाले सैन्यकर्मियों का वेतन जान-बूझकर नीचे कर दिया गया. सैन्यकर्मियों की बेसिक सैलरी के निर्धारण में अलग मापदंड अपनाए गए, जबकि केंद्रीय कर्मचारियों की बेसिक सैलरी का निर्धारण अलग मापदंड से किया गया.
सेना के साथ संकुचित व्यवहार किया गया, जबकि केंद्रीय कर्मचारियों के लिए आयोग और सरकार ने हृदय के द्वार खोल दिए. इसका नतीजा यह हुआ कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में तो अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो गई, लेकिन सेना का वेतन अप्रत्याशित और अनपेक्षित रूप से काफी कम हो गया. सैन्य कर्मियों की बेसिक सैलरी कम हो जाने से उन्हें मिलने वाले अन्य भत्तों की राशि भी घट कर काफी कम हो गई.