मुझे होश आया, तबसे बगैर कोई तिब्बत के उपर साहित्य या जानकारी पढे ! मै स्वाभाविक रूप से तिब्बत के लोगों को, तथाकथित चीनी क्रांति के बाद साम्राज्यवाद के विरुद्ध सतत बोलने वाले कम्युनिस्ट चीन ने ! अपने साम्राज्यवादी विस्तार के तहत ! तिब्बत को चीन का हिस्सा बताते हुए ! अपने कब्जे में कर लिया है ! ( 1948-49) और उस कारण तिब्बत से लाखों की संख्या में, विस्थापित तिब्बती लामा, और उनके अनुयायि पैदल ही भारत में आये हैं ! इसपर बीबीसी की एक डॉक्युमेंटरी भी है ! लेकिन आने के रास्ते में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिससे कुछ लोग मारे गए हैं !
अपने मर्जी से किसी का एक जगह से दूसरी जगह पर जाना ! और मजबूरी में जाने की बात में ! जमीन आसमान का फर्क है ! और पृथ्वी के किसी भी हिस्से में ! किसी को भी मजबूरन अपनी जन्मभूमि, या वतन छोड़कर सिर्फ अस्तित्व बनाएं रखने के लिए ! चले जाना, फिर वह तिब्बती हो, या साडेसात हजार सालों से भी अधिक समय से विस्थापन के शिकार यहुदी जिनके विस्थापन को अंग्रेजी में ( Exodus ) और 1990 के बाद ध्कश्मीर के पंडितों से लेकर, फिलिस्तीनी शरणार्थियों को लेकर, कुर्दिश, अझरबैजानी, सिंधी, बलुच, उगुर, अफगानी, बंगला देशी, या बंगला देश में अटके हुए बिहारी मुसलमान, और वर्तमान समय में रशियन आक्रमण के शिकार युक्रेन के नागरिकों का पलायन हो ! मतलब कई कारणों से ! मुलनिवासियो को, अपनी मातृभूमि को छोड़कर, सिर्फ जीने के लिए ! और कही भी रहने के लिए मजबूर होना पडे ! इससे पीड़ादायक बात कोई और हो नही सकतीं हैं ! किसिका कोई भी मूल निवास स्थान हो ! वह वहां पैदा होने के कारण ! उसके साथ उसकी एक पेड़ की जैसे, जडें भी जुडी रहती है ! और विस्थापन के बाद, किसी भी दुसरी जगह लाख अच्छी होगी ! तो भी वह अपनी ही जन्मभूमि को याद करता है !
और एक मुरझाए हुए पेड के जैसा रहता है ! और ऐसे शरणार्थियों को मैंने लेबनान,(बैरूत) दमास्कस, इस्तंबूल, अंकारा,ढाका, जम्मू, ऊधमपुर, पेशावर, क्वेट्टा, कराची तथा तिब्बतियों के भारतीय कॅम्प धर्मशाला, कुशालनगर (कुर्ग – कर्नाटक) दिल्ली तथा भंडारा और उत्तर बंगाल के तथा उसके ही बगल के सिक्किम में देखने का मौका मिला है ! उन्हें देखने के बाद, मेरे मन में आया ! कि ऐसा अनुभव दुनिया में किसी के भी हिस्से में नहीं आना चाहिए !
और यह बात हिंदी उर्दु के साहित्यकारों में से ! राही मासुम रझा साहब ने ‘आधा गाँव’ नामके उपन्यास में बखुबी रेखांकित किया है ! और इसी विषय-वस्तु को लेकर, समस्त विश्व में एकसेबढकर, एक साहित्यकृती मौजूद है !
मै आज मुखतः तिब्बती शरणार्थियों को लेकर आप सबसे मन की बात करने के लिए ! विशेष रूप से यह पोस्ट लिखने की कोशिश कर रहा हूँ !
पिछले महीने में ही राजगीर में! तिब्बत के सवाल पर, एक सम्मेलन हुआ! उसमें मेरे अजिज दोस्त, प्रोफेसर आनंद कुमार को ! भारत – तिब्बत मैत्री संघ का अध्यक्ष बनाया गया है ! एकदम सही आदमी को अध्यक्ष पद के लिए मनोनीत करने वाले ! सभी प्रतिनिधियों का ! और प्रोफेसर आनंद कुमार का विशेष अभिनंदन करता हूँ !
शायद आज की तारीख में ! वर्तमान समय में, भारत में प्रोफेसर आनंद कुमार ! एकमात्र भारतीय नागरिक होंगे जो तिब्बत की समस्या को लेकर, लगातार सक्रिय हैं ! मुझे खुद को याद आ रहा है कि ! 1994 में दिल्ली में आयोजित भारत – तिब्बत मैत्री संघ के संमेलन ! मंडी हाउस के पास हिमाचल प्रदेश भवन के मुख्य हॉल में आयोजित हुआ था ! जिसमें में एक सामान्य प्रतिनिधि के हैसियत से शामिल था ! तो उसके आयोजकों में सबसे प्रमुख प्रोफेसर आनंद कुमार ही थे ! और उस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष श्री. सतपाल मलिक थे ! जो अचानक किसी कारण से नहीं आये थे ! तो अचानक ही प्रोफेसर आनंद कुमार ने ऐलान किया ! “कि इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. सुरेश खैरनार करेंगे !” मुझे तबतक तिब्बत के उपर कोई खास जानकारी नहीं थी ! निचे सभागार में कहीं कोने में बैठा हुआ था ! और उस सम्मेलन में सुनने के अलावा ! और कोई तैयारी कर के नहीं आया था ! और अचानक उद्घाटन समारोह का अध्यक्ष बनाया गया ! तो बहुत ही घबराहट हुई ! मैं अपनी खुर्ची से उठ भी नही पा रहा था ! तो प्रोफेसर आनंद कुमार ने खुद स्टेज से निचे सभागार में उतरकर ! मुझे हाथ पकडकर स्टेजपर लेकर गए ! और स्टेजपर आदरणीय दलाई लामा और प्रोफेसर रिंगपोचे के बीचोंबीच ! मतलब अध्यक्ष वाले आसन पर मुझे बैठाया ! आदरणीय दलाई लामाजी की सिर्फ फोटो या फिल्म में देखते – देखते बड़ा हुआ था ! उनकी बगल में आधे दिन के आसपास ! समय तक बैठने ! और उसके पहले उन्होंने मेरे कंधे पर एक रेशमी कपड़ा ओढ़कर ! और मेरे दोनों गालों पर ! अपने दोनों हाथों से, बच्चों को जैसे बड़े लोग प्यार से सहलाते है ! वैसे ही सहलाया ! और पता नहीं मुझे लगा कि “मैं कोई और दुनिया में चला गया हूँ ! अध्यात्मिक प्रभाव क्या होता है ? यह एहसास जीवन में पहली बार हो रहा था ! और मैंने अध्यक्ष का पद संभालने के बाद! कार्यक्रम की कार्रवाई शुरू करने की घोषणा की ! और एक के बाद एक तिब्बती प्रतिनिधि ! ” हमारे मन में चीन के प्रति कोई द्वेष नही है ! हम अध्यात्मिक साधना से, तिब्बत को आजाद कर रहे हैं ! लगभग दोपहर खाने के पहले तक ! जितने भी, प्रतिनिधियों के भाषण हुए ! सबकेसब कुलमिलाकर सब की एक जैसे ही बात थी ! इस कारण मेरा अध्यक्षीय भाषण अपने आप तैयार हो गया था !
जैसे ही सभा के अंत में ! अध्यक्षीय भाषण देने की घोषणा हुई ! मैंने कहा “कि अध्यात्मिक साधना व्यक्तिगत उन्नति के लिए ठीक है ! लेकिन किसी राष्ट्र की आजादी के लिए बिल्कुल अपर्याप्त ही नहीं ! अव्यवहारिक भी है ! राष्ट्र को मुक्त कराने के लिए ! विशेष रूप से जो, अबतक के राष्ट्रों के आजाद होने के उदाहरण, हमारे सामने है ! उदाहरण के लिए, ताजा – ताजा दक्षिण अफ्रीका की !(अप्रैल 1994) आजादी की, लड़ाई को ही देख लिजिए ! नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में ! लाखों लोगों के संघटीत प्रयास के कारण ही ! श्वेत लोगों को हारकर ! स्थानीय अश्वेत लोगों को ! सत्ता सौपने का उदाहरण सामने है ! और सुबह से मेरे बोलने के पहले तक एक भी तिब्बती प्रतिनिधि के भाषण में यह जज्बा नही था ! इसलिए एक हजार साल भी बुद्धम शरणम गच्छामि ! करते रहोगे तो भी ! तिब्बत को आजाद नहीं कर सकोगे !
हाँ हम महात्मा गाँधी जी के अनुयायी हैं ! और महात्मा गाँधी जी के सत्याग्रह के जैसा ! भारत के जितने भी तिब्बती कैम्पो में ! तिब्बती लोग रह रहे हैं ! सभी मिलकर, चलो तिब्बत की घोषणा करते हुए ! तिब्बत के तरफ चलने की तारीख को तय करते हैं ! हम भी पहली पंक्ति में ! शामिल होने के लिए तैयार हैं ! आप जितना देर करोगे ! उतनी ही तिब्बत की आजादी दूर होते जाएगी ! क्योंकि तिब्बत की यादें ! आप बुजुर्गों के मन में है ! लेकिन 1948-49 के बाद भारत में पैदा हुए !
लोगों को कोई तिब्बत की यादें ! या हवा – पानी की कल्पना नहीं है ! आज वह हमारे बीच में ! पब कल्चर और खाओ – पीओ मस्त जिंदगी जिओ ! के नशे में धुत्त है ! मुझे जमनापार अशोकविहार बुद्ध पार्क में ! ठहराया गया है ! मैं वहां कल रात में ! आपके कैम्प में, घुमते हुए देखकर हैरान रह गया ! कि आपके अपने बच्चों को हाथों में बिअर के कैन ! लेकर पस्चिम के संगीत के ताल पर ! थिरकते हुए देखकर लग रहा हैं ! कि वह अपने माता-पिता की जन्मभूमि से ! भौगोलिक और मानसिक रूप से कोसो दूर है ! और आप लोग जितनी अधिक देर करोगे ! और सिर्फ, हम अध्यात्मिक साधना से ! आजादी प्राप्त करने की भाषा करते रहोगे तो ! वह आजादी कभी भी नहीं मिलने वाली ! और यह 50 के बाद पैदा हुए आपके अपने बच्चों को ! तिब्बत का आकर्षण लगभग नहीं है ! और आप लोग भी ! कितने दिनों की जीवन यात्रा करेंगे ? एक न एक दिन आपको इस जीवन से जाना हैं ! तो तिब्बत की यादें, बताने वाले भी जब नही रहेंगे ! तो फिर जो बच्चे कभी तिब्बत को देखे ही नहीं ! तो उन्हें तिब्बत का आकर्षण कैसे हो सकता है ? वह यहां के पब कल्चर में मस्त है ! और यह स्थिति सिर्फ दिल्ली के कैम्प की ही नहीं है ! कुशालनगर से लेकर धर्मशाला, सिक्किम तथा, बंगाल से लेकर ! महाराष्ट्र तथा अन्य सभी तिब्बती कैम्पो में मिल सकती है ! इसलिए आज इसी संमेलन में एक संकल्प लेना चाहिए ! कि हम इस – इस तारीख से चलो तिब्बत ! के मार्च की शुरुआत करते हैं ! तो हम भी उस मार्च में शामिल होने का वादा करते हैं !”
तो इस भाषण के बाद आदरणीय दलाई लामाजी ने ! दोबारा मुझे अपने गले लगाते हुए ! मेरे कान में कहा कि ” मैं अभी – अभी योरोपीयन देशों की यात्रा से लौटा हूँ ! और बहुत ही निराश था ! लेकिन आज आपको सुनने के बाद ! मुझे आशा कि किरणें दिखाई दे रही है !” और दुसरे दिन उन्होंने अपने प्रेसिडेंट सुट अशोका होटल में निमंत्रित किया ! और दुसरे दिन प्रोफेसर आनंद कुमार, सुधिंद्र भदौरिया, रंजना कुमारी ! इन सभी साथियों के साथ ! अशोका होटल के प्रेसिडेंट सुट में गए ! आदरणीय दलाई लामाजी ने पुनः तिब्बती संस्कृति के अनुसार ! हमारा सत्कार किया ! और मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर ! बैठकर इतनी आत्मियता से बातचीत की ! जिसे मैं जीवन में कभी भी भूल नहीं सकता ! और कौन लोग अध्यात्मिक शक्ति के है ! मालूम नहीं लेकिन आदरणीय दलाई लामाजी है ! इस बारे में मेरे मन में कोई शक नहीं है !
लेकिन मैंने अपने भाषण में कहा वैसे तैयारी करना ही तिब्बत की मुक्ति का मार्ग हो सकता है ! अन्यथा दिल्ली – राजगिर के जैसे ! कितने भी संमेलन कर लिजिए, कुछ भी नहीं होने वाला ! अब तो तिब्बत की यादें बताने के लिए भी कितने लोग बचें है ? मुझे शक है ! और धर्मशाला से कुशालनगर तक रह रहे तिब्बती शरणार्थी ! लगभग भारत के रंग में रंग गए हैं ! इसलिये आज नई पीढ़ी को तिब्बत की लड़ाई के लिए तैयार करना बहुत ही कठिन काम है ! लेकिन करना आवश्यक है ! अन्यथा वह और कितने दिनों तक शरणार्थियों की जिंदगी जियेंगे ?
डॉ सुरेश खैरनार 19 दिसंबर 2022, नागपुर
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