आजकल एमपी में बड़े बोले वचन चल रए हैं बाबा… कोई केता है कि बिना खोदे गाड़ देंगे, तो किसी ने कह दिया के ठोक डालेंगे….! कोई कहकर खामोश हो जाता है कि अब पुराने नामों से धर्म विशेष की बदबू आती है तो किसी को किसी मजहब का खानपान पसंद नहीं आ रहा….! मामला होने से पहले ही मन बना लिया जाता है कि कुछ व्यवधान आएगा, एडवांस में धमकी प्रसारित हो जाती है, कुछ करोगे तो एफआईआर कर देंगे, सजा देंगे, जीवन खराब कर देंगे….! बोल वचन या बदबोल की अंताक्षरी जैसे हालात में हर कोई ज्यादा कड़वे बोल बोलकर वाहवाही लपकने के लिए तैयार दिख रहा है….! ‘उसको’ बुरा कहकर ‘इसके’ अच्छे हो जाने की दलील बेमानी जरूर लगती है, लेकिन देने की कोशिशें की जा रही हैं….! दिल्ली से लेकर यूपी तक और नागपुर से छनकर आती हवाओं का रुख अब मप्र को उस तमगे से बाहर करता दिखाई देने लगा है, जिसे कभी शांति का टापू करार दिया जाता था….! एक अच्छे काम के लिए किए जा रहे प्रयासों में बलवा करने पर उतारू लोगों की भागीदारी और उकसाने की हद तक चले जाने की छूट ने मुखिया को वह याद रखने के हालात से भी बाहर कर दिया, जो उन्होंने खुद ही कभी फरमाया था, प्रदेश में किसी भी जगह बलवा हुआ, हालात बिगड़े तो पहली गाज उस जिले के कलेक्टर, एसपी पर गिरेगी… इंदौर, उज्जैन, मंदसौर कार्यवाही का इंतजार ही करते रह गए, कार्यवाही किसी और दिशा में जाती रही और अब लोगों को धमकाती भी दिख रही है कि ‘वह’ जो करना चाहें करने दो, कार्यवाही की दिशा खिलाफ खड़े होने वाले की तरफ हो सकती है….! राजा का कर्म सबको साधने का, सबका ख्याल रखने का, सबका हित रखने का और सबके लिए भलाई चाहने का है… तो यह राज तंत्र कौनसे दर्जे का हो चला है, जो दो संतानों को अलग-अलग नजरिए, अलग-अलग मापदंड से देखता दिखाई दे रहा है….!
पुछल्ला
सैंया भए कोतवाल तो…
कतार में एक हजार से ज्यादा थे। कुछ ज्यादा जानकार और अनुभवी भी थे। अपनी बारी आने के लिए कभी दुआएं करते रहे तो कभी मन्नतें मांगते रहे। जरूरत पड़ी तो साहब और मंत्री जी की चौखट की माथा टिकाई भी कर आए। लेकिन हुआ वह, जिसके होने की उम्मीद नहीं थी। ‘साहब’ की ‘बेगम’ को बड़े साहब की कुर्सी सौंप दी गई है। उम्मीद यह भी की जा रही है कि न कोई आंख खुली रखे और न ही मुंह खोले। ‘सैंया’ के ‘कोतवाल’ होने का इतना फायदा लेना तो बनता ही है कि कुर्सी लपक ली जाए। पता नहीं वरियता सूची से आने तक उम्मीदें बरकरार रहें न रहें।
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खान अशु