कृष्णा शर्मा ‘दामिनी’

 

हमेशा ही अपनी व्यक्तिगत राय लिखने से बचती हूँ, क्योंकि बुजुर्गों से सुना है दूसरों को नही ख़ुद को ही बदलो ,तो अपने आप से जीत पाओगे और फिर सभी ।
26 /01/2021 हमारी आज़ादी का प्रतीक तिरंगे का वाक्या हम बख़ूबी जानते है ,जिसके लिए आज भी सीमा पर हमारे सैनिक अपने घर से कफ़न बांधकर, नवेली दुल्हन की मेहंदी को रुस्वा कर, कंगन- चूडियों को रोता छोड़कर, अपने बच्चे अनाथ-यतीम होने की भी परवाह किये बिना, बूढ़े-मां बाप अपने जवान शहीद बेटे को गर्व से कंधा देते है| बहने अपनी राखी को भाई के कफ़न के साथ विदा करती है| ये सब इसलिए नही होता कि उनको शहीद होने का खिताब मिलेगा – कोई परमवीर चक्र मिलेगा, कोई बहुत बड़े सम्मान से नवाज़ा जाएगा ।
ये सब एक भारत का नौ जवां, एक हिदुस्तान का बेटा, बूढ़े मां बाप का इकलौता बेटा, अपने बच्चों का पिता,बहन की राखी, अपने सुनहरे ख्याबों को दफ़्न कर देता है सिर्फ़ सिर्फ़ सिर्फ़ इस तिरंगे के लिए, तिरंगे को अपना कफ़न बनाने के लिए,खुद को ख़ुशी ख़ुशी न्यौछावर कर देता है|
ये सब देखकर कर आज हमारे सैनिकों के दिल पर क्या गुज़र रही होगी, हमारे अनगिनत शहीदों की रूह भी रो पड़ी होगी इस मंज़र को देखकर, उस वक़्त मुझे ख़ुद ऐसा लग रहा था जैसे मेरे सीने से मेरा कोई आँचल खींच रहा है, मैं आज क्यों इतनी लाचार दिखाई दे रही हूँ, मुझे ख़तरा बाहर वालों की बजाए अपनों से ज़्यादा है, हज़ारों की तादाद में होते हुए भी किसी की हिम्मत नही हुई उसके पैर में या हाथ में गोली मार दी जाती ताकि वो अपने गन्दे हाथों से देश की इज़्ज़त पर हाथ न डाल पाता। मैं भी ख़ुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी।
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