सहरसा में बंगाली बाजार स्थित रेल ओवरब्रिज सभी राजनीतिक दलों के लिए एक ऐसा नासूर बन गया है, जिसपर सभी नेता चुप्पी साधे हैं. चुनाव के वक्त अचानक यह एक अहम मुद्दा बनकर उभरता है और चुनाव बीतने के बाद भी गाहे बगाहे इसकी गूंज सुनाई पड़ जाती है. लेकिन अफसोस इस बात का है कि आम आदमी के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस ओवरब्रिज का निर्माण बरसों से अधर में लटका है. इसे बनाने को लेकर केवल वादे ही किए जा रहे हैं. जमीन पर इन वादों को अमलीजामा पहनाने की कोई सूरत नजर नहीं आती है.
मधेपुरा के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने जीतने से पहले और बाद में भी यह स्पष्ट कहा था कि अगर लोकसभा चुनाव 2019 के पूर्व आरओबी सहरसा का निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ तो वे नामांकन तक नहीं करेंगे. इस बात में कितनी ताकत है यह तो अगले चुनाव में ही पता चल जाएगा. इसी तरह यहां के सांसद रह चुके शरद यादव ने भी आरओबी के निर्माण को लेकर ढिंढोरा तो खूब पीटा, लेकिन निर्माण की आज तक कोई सुध नहीं ली. जब पत्रकारों ने शरद यादव से रेल ओवरब्रिज निर्माण के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि जो सांसद हैं, उनसे पूछो कि आखिर कब तक बनेगा.
वैसे आरओबी निर्माण की सुगबुगाहट होते ही नेताओं में इसका श्रेय लेने की होड़ मच जाती है. सहरसा-पंचगछिया रेलखंड के बीच एनएच 107 स्थित समपार संख्या 31 बंगाली बाजार रेलवे ढाला पर रेल ओवरब्रिज निर्माण को लेकर पहली बार तत्कालीन रेलमंत्री रामबिलास पासवान द्वारा 4 नवम्बर 1996 को आधारशिला रखी गई. दूसरी बार 22 फरवरी 2000 को तत्कालीन रेल राज्यमंत्री स्व. दिग्विजय सिंह द्वारा जब शिलान्यास किया गया, तब उस वक्त बिहार के मुखिया व जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार राजग गठबंधन में अटल बिहारी सरकार के दौरान रेल मंत्री थे. फिर जब गरीब रथ को हरी झंडी दिखाने के लिए राजद सुप्रीमो सह तत्कालीन रेलमंत्री भारत सरकार के रूप में लालू प्रसाद का 12 जून 2005 को सहरसा आगमन हुआ, तब उस ऐतिहासिक क्षण में भी तीसरी बार आधारशिला रखकर कोसीवासियों की मुराद पूरी करने की भरसक कोशिश की गई.
इस बीच रेल ओवरब्रिज निर्माण का सब्जबाग दिखाकर न केवल स्थानीय स्तर पर राजनीतिक रोटी सेकने का प्रयास किया गया, बल्कि कइयों को आंदोलनकर्ता के रूप में पहचान भी मिली. राज्य के अन्य शहरों में जहां रेल मंत्रालय ने बिना किसी आंदोलन और मांग के स्थानीय जरूरतों के आधार पर खुद आरओबी का निर्माण किया, वहीं सहरसा के निवासियों को आरओबी निर्माण के लिए जंग करनी पड़ रही है. आरओबी निर्माण नहीं होने के पीछे पूर्व विधान पार्षद मो. इसराइल राइन को भी लोगों ने खूब कोसा, मगर सच्चाई यह है कि मो. राइन खुद आश्चर्यचकित हैं कि इस तरह की अफवाह क्यों और कैसे फैलाई गई?
आरओबी निर्माण नहीं होने से सहरसा में महाजाम की समस्या आम हो गई है. इस महाजाम से उबरने के लिए ही सांसद पप्पू यादव ने आम जनता की भावना को समझते हुए चुनौती स्वीकार की और इस दिशा में पहल की. जबकि लोकसभा चुनाव 2014 की सुगबुगाहट के दौरान जदयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मधेपुरा के सांसद शरद यादव ने आरओबी के मुद्दे को भुनाने के लिए 22 फरवरी 2014 को तत्कालीन रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चौधरी द्वारा चौथी बार शिलान्यास कराया.
शिलान्यास के बाद निर्माण की पहल के क्रम में मिट्टी की जांच करवाई गई. जब शरद यादव, पप्पू यादव से चुनाव हार गए तो बौखला कर आरओबी पर पूछे गए सवालों को लेकर पत्रकारों पर भड़क गए. फिर जब 2019 का लोकसभा चुनाव करीब देखकर भाजपा की सरगर्मियां तेज हुई, तब एक बार फिर शरद यादव मैदान में आ गए. अब वे भी योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं. इधर, पप्पू यादव भी सांसद शरद यादव के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं कि क्या उन्होंने सदन में कोसी व कोसी के निवासियों की समस्याओं को कभी उठाया.
हालांकि खगड़िया के पूर्व सांसद व जद यू नेता दिनेश चन्द्र यादव ने 7 जुलाई 2009 को लोकसभा में कहा कि सहरसा जंक्शन से पचगछिया रेलवे स्टेशन के बीच सहरसा बंगाली बाजार के समपार सं. 31 पर रेल रोड ओवर ब्रिज निर्माण की स्वीकृति वर्ष 1997 में हुई थी. लेकिन आज तक उक्त ओवर ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया है. उक्त पुल का निर्माण सहरसा प्रमंडलीय मुख्यालय के बीच एन.एच-107 पथ पर होना है. ओवर ब्रिज निर्माण नहीं होने से घंटों रेलवे ढाला पर ट्रेन आने के कारण जाम लगा रहता है, जिससे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है.
इस बीच जब आरओबी सहित अन्य कार्यों के बारे में क्षेत्रीय सांसद चर्चा करने लगे, तब भाजपा को यह महसूस हुआ कि केंद्र में सरकार सरकार मेरी और योजना भी मेरी, तो फिर इसका श्रेय सांसद पप्पू यादव कैसे ले सकते हैं? इसके बाद भाजपा विधायक नीरज कुमार बबलूू, भाजपा के पूर्व विधायक संजीव कुमार झा, डॉ. रामनरेश सिंह, पूर्व विधायक डॉ. आलोक रंजन आदि ने कहा कि मधेपुरा रेल इंजन कारखाना हो या अन्य कोई विकास योजना, सभी की जानकारी भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय को दी थी.
इधर, समाजसेवी उमेश दहलान ने आरओबी के नक्शे को शहर उजाड़ने वाला नक्शा करार देकर नए नक्शे से निर्माण की बात कही है. उन्होंने इस बाबत रेल मंत्रालय को भी आवेदन दिया है. कहा जाए तो कागजों पर तो सब हो रहा है, बयानों में भी सब कहा जा रहा है, लेकिन जमीन पर हालात जस के तस हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अब नेतागण किस तरह के बहाने लेकर सहरसा के चुनावी मैदान में कूदते हैं.