क्या हम आने वाले समय में मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच में टसल देखेंगे ? 2014 से मोदी ऐसी गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर हैं जो अपने मनमाने तरीकों से जैसी चाहे वैसी चल रही है। अगर कोई राजा धरती पर महामानव की छवि बना कर अश्वमेध का घोड़ा छोड़े तो किसकी ताकत है जो उसे पकड़ने की हिमाकत करे। आप संविधान और लोकतंत्र की चौखट से इतर एक ताकतवर शासक की जो जो कल्पना कर सकते हैं वह साक्षात हमारी आंखों के सामने है। पर नियति अंत का समय भी सुनिश्चित करती है। जिसे हम ‘एक्सपायरी’ के नाम से जानते हैं। आज की मोदी सरकार हार के मुहाने पर बैठी है। पर सवाल है कि वह इतनी आसानी से क्या हारेगी। मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अपने बड़बोलेपन और अपने झूठों को पकड़ कर रखने की है । हर चुनाव का फलसफा यही होता है। हर चुनाव में मोदी के माथे पर पसीना और शिकन नजर आती है तब उन्हें कोई निर्लज्ज फैसला करना होता है। इस बार क्या होगा ? देश टकटकी लगाए यही देख रहा है। लेकिन इसके उलट एक संभावना बनती हुई देश देख रहा है।
सुप्रीम कोर्ट से आने वाले समय में सरकार का टकराव। मामला राफेल का हो या पैगासस का। सुप्रीम कोर्ट ने एक लंबे अरसे बाद देश में उम्मीद जगाई है। इतना तय समझिए कि यदि यह सरकार अपने धतकरमों और षड़यंत्रों से पुनर्स्थापित हो गयी तो यह अंतिम बार होगा और इस बार न संविधान बचेगा, न लोकतंत्र, न सुप्रीम कोर्ट और न गांधी। हिंदू राष्ट्र की कल्पना ड्रैकुला का बोध कराती है। दुख तो यही है कि लोकतंत्र की ताकतें पतली गली से इस सरकार को सब कुछ मुहैया करा रही हैं। हम वहां वहां चोट करने में फेल हो रहे हैं जहां जहां से यह सरकार कवच धारण करती है या आक्सीजन लेती है। चार पांच महीने बाद सबकी निगाहें यूपी चुनाव पर लगी होंगी। वही 2024 का निर्णायक भी है।
हमारा सोशल मीडिया कितना निर्णायक साबित होगा यह भी देखना है। ‘सत्य हिंदी’ के लिए पिछली बार मैंने लिखा था – ‘आंए बांए शांए और अनाप शनाप’। इसे व्याख्यायित करने का मौका नहीं मिला। इतना सच है कि ‘सत्य हिंदी’ तेजी से लोकप्रिय हुआ है। और यह भी सच है कि साख भी बनी है। लेकिन यहां हाबड़ ताबड़ ज्यादा दिखाई देती है। स्वयं आशुतोष ही एंकरिंग करते हुए बच्चों की सी हाबड़ ताबड़ में दिखते हैं।
कभी या तो टापिक बेहद हल्के लगते हैं या कभी गम्भीर होते भी हैं तो पैनल में पांच पांच छ छ लोग। बिल्कुल गोदी मीडिया की तरह। और घूम फिर कर पैनल में वही वही चेहरे। नाम गिनाना सही रहेगा क्या ? पिछली बार विजय त्रिवेदी ने तुषार गांधी से बात की और उसके बाद आशुतोष और कार्तिकेय से। अच्छा लगा। ऐसे में ‘चिल्लपों’ नहीं होती। सत्य हिंदी के फैलाव में नीलू व्यास भी नया कार्यक्रम लेकर आयीं हैं। मैंने उन्हें व्यक्तिगत सुझाव दिया है कि विषय राजनीति से इतर रखें तो ताजगी भी मिलेगी और विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। ‘बेबाक’ नाम से यह कार्यक्रम है। अभी तक के एपीसोड अच्छे लगे। अपूर्वानंद से बातचीत बढ़िया रही। नोटबंदी के पांच सालों पर खूब चिल्लाया गया पर मोटी चमड़ी पर क्या असर होना है।
संतोष भारतीय के ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय दुबे शो बहुत जानदार रहा। अपनी चर्चा में उन्होंने कई बातों पर टिप्पणी की। यह तो उन्होंने कई बार बताया है और सभी मानते हैं कि मौजूदा अर्थ व्यवस्था उस आर्थिक माडल का ढांचा है जिसे नरसिंह राव, डा. मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने तैयार किया था। उसे ही आगे की सरकारों ने बढ़ाया और मजबूत किया। अटल बिहारी वाजपेयी के समय जो आरएसएस इसके विरोध में दिखती थी आज मोदी काल में वही आरएसएस इसके सामने विवश है। अभय जी ने कहा कि मोदी सरकार का ‘स्किल मंत्रालय’ और कुछ नहीं गांवों को बरबाद करके शहरों को मजबूती से आबाद करना और वहां लोगों को आर्थिक दास बनाना है। उन्होंने कहा, हम यूरोपियन समाज, अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र की घिसी पिटी कार्बन कापी बनने के लिए अभिशप्त हैं और मोदी सरकार इस काम को बड़े मनोयोग से करने में लगी हुई है। उन्होंने आने वाले समय को लेकर अपना डर भी बताया। जो जाहिर है वह हर किसी के साथ है। उन्होंने कहा, मैं स्वयं को विवश पाता हूं। हम लोग कब तक और कितने दिनों तक ऐसी चर्चा कर पाएंगे, पता नहीं। जब ‘त्रिपुरा जल रहा है’ इतना भर ट्वीट करने पर एक पत्रकार पर ‘UAPA’ लगाया जा सकता है तो कुछ भी हो सकता है।
दरअसल संकट सब पर है। क्या फेसबुक, क्या ट्विटर, क्या चैनल, क्या सोशल मीडिया और क्या विरोध में खड़ा व्यक्ति। यह अच्छी बात है कि गोदी मीडिया में जाने से अब लोग कतराने लगे हैं। पहले अभय दुबे ने कहा और अब अपूर्वानंद ने भी स्वीकार किया कि गोदी मीडिया के चैनलों में जाना मेरी बेवकूफी थी, जो मुझसे हुई। अभी भी हमारे कुछ घमंडी लोग जाते हैं और मैं कहूंगा कि मोदी को फिर से सत्ता में लाने में उनका परोक्ष हाथ रहा है। फैजान मुस्तफा के लीगल विषयों पर बनाये गये वीडियो बड़े दिलचस्प और जानकारीपूर्ण होते हैं। वे जरूर देखा कीजिए। आरफा खानम शेरवानी ने त्रिपुरा वाले मुद्दे पर अच्छी चर्चा की। लेकिन जब तक गोदी मीडिया, ट्रोल आर्मी या व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी अपने उद्देश्यों में कामयाब रहेंगी तब तक मोदी सरकार को हिला पाना मुश्किल ही लगता है। क्योंकि आज मोदी देश है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले देश नहीं हैं। देश से मेरा मतलब असंगठित श्रेत्र के लोगों से है।ट्रोल आर्मी और आरएसएस समाज में बिछ चुके हैं। इतना खयाल रखिए। और यह भी कि सोशल मीडिया पर आपका कुछ भी देश के बीस परसेंट से ज्यादा लोगों को हिलाता तक नहीं। सोशल मीडिया प्रबुद्धों की जगह है। उससे आगे बढ़ने की न उसकी कुव्वत है और न इच्छा है।