जासूसों की कहानियों की शृंखला में हम इस बार आपको एक ऐसे जासूस के बारे में बता रहे हैं, जिसने हिटलर की नाक मेंे दम कर दिया था. जर्मनी के ही रहने वाले क्लॉस फुश का जन्म 1911 में हुआ था. उनके पिता जर्मनी में लूथेरियन मिनिस्टर थे और शांति प्रचारक मंडली के सदस्य भी थे. पहले विश्व युद्ध से पहले वे शांति मिशन के अपने दोस्तों से मिलने के लिए इंग्लैंड भी गए थे. क्लॉस जब अपने किशोरावस्था में पहुुंचे तो उन्हें बचपन की सभी यादें लगभग ताजा थीं. अपने पिता से बेहद लगाव होने के कारण पिता की सारी स्मृतियां उनके दिमाग में बसी हुई थीं, लेकिन मां को वे लगभग भूल चुके थे. जब वे मात्र दस साल के ही थे, तभी उनकी मां ने आत्महत्या कर ली थी. क्लॉस को अपनी मां के बारे मेें इतना भी नहीं याद था कि उनकी मौत होने पर उन्होंने स्कूल से छुट्टी भी ली थी या नहीं.
क्लॉस की बड़ी बहन एलिजाबेथ भी शांति प्रचारक थी. उसने अपने जैसे विचार रखने वाले एक दोस्त से शादी कर ली थी, जिससे उनका एक बेटा भी था. नाजियों ने उसकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उसे कई बार जेल की हवा खिलाई थी. 1939 में गेस्टापो द्वारा उसका पीछा किया गया. बचते हुए वह एक पुल पर से कूद गई और सामने से आती एक ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मृत्यु हो गई थी. क्लॉस का बड़ा भाई जर्मनी में लॉ स्कूल में पढ़ता था. उसे सियासी हरकतों में शामिल होने का आरोप लगा कर निकाल दिया गया था. इसके बाद उसका ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता. क्लॉस के परिवार का जीवन काफी दुखद पस्थितियों में गुजरा था. परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ अलग-अलग समय पर कुछ न कुछ दुर्घटना हुई थी. क्लॉस की छोटी बहन क्रिस्टल को शीजोफ्रेनिया की बीमारी थी. उसका समय कॉलेज में कम पागलखाने
क्लॉस की बड़ी बहन एलिजाबेथ भी शांति प्रचारक थी. उसने अपने जैसे विचार रखने वाले एक दोस्त से शादी कर ली थी, जिससे उनका एक बेटा भी था. नाजियों ने उसकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उसे कई बार जेल की हवा खिलाई थी. 1939 में गेस्टापो द्वारा उसका पीछा किया गया. बचते हुए वह एक पुल पर से कूद गई और सामने से आती एक ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मृत्यु हो गई थी. क्लॉस का बड़ा भाई जर्मनी में लॉ स्कूल में पढ़ता था. उसे सियासी हरकतों में शामिल होने का आरोप लगा कर निकाल दिया गया था. इसके बाद उसका ज्यादातर जीवन जेल में ही बीता.
आने-जाने में ज्यादा बीतता था. 1933 में जब क्लॉस जर्मनी से स्विट्जरलैंड जा रहा था, तब नाजियों ने उस पर भी नजर रखी थी. वहां प़ढाई के दौरान हिटलर के विरोध के लिए क्लॉस ने जर्मन सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली थी. उनके दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि हिटलर की ब़ढती हुई ताकत को सिर्फ यही पार्टी जवाब दे सकती है, लेकिन उन्हें अपनी इस सोच के लिए निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि जब जर्मनी में 1932 मेंे चुनाव हुए तो सोशलिस्ट पार्टी ने हिटलर का ज्यादा विरोध नहीं किया और उसे सत्ता पर आसानी से काबिज हो जाने दिया. पार्टी की ऐसी हरकतों की वजह से क्लॉस खिन्न हो गए और उन्होेंने पार्टी का साथ छो़डकर जर्मनी कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली.1933 में रेशटंग जल गया था. हिटलर ने इस अग्निकांड के लिए कम्युनिस्टों को दोषी ठहराया और पूरे देश में उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई. उस समय क्लॉस बर्लिन में थे. उन्होंने किसी तरह से अपनी जान बचाई और देश से बाहर निकलने में कामयाब हो गए. जर्मनी से भागकर वे फ्रांस पहुंचे. जब से पेरिस पहुंचे तो उस समय उनके पास सिर्फ एक छोटा सा सूटकेस था. उनके पास उनके पिता के दिए हुए कुछ पते भी थे, जो उनके दोस्तों के थे. क्लॉस ने अपने पिता के दोस्तों से संपर्क साधना शुरू किया. इन्हीं लोगों की वजह से वे कुछ दिनों तक आसानी के साथ पेरिस में रह सके, लेकिन वे वहां पर बहुत दिनों तक टिक न सके. उन्होंने इसके बाद इंग्लैंड की तरफ रुख किया और वहीं पर आगे का आशियाना भी जमाने का प्रयास करने की कोशिश की. दरअसल, इंग्लैंड में उनके पिता के शांति मिशन से संबंधित कई दोस्त रहते थे, जिनकी वजह से क्लॉस को वहां किसी परेशानी का सामना नहीं करना प़डा.
क्लॉस फुश ने इंग्लैंड से भौतिकशास्त्र में पीएचडी की और कुछ समय इंग्लैंड के परमाणु बम प्रोजेक्ट में भी काम किया. इस दौरान उसने इंग्लैंड की हथियारों की खोज से संबंधित खुफिया जानकारियां सोवियत रूस को दी, जिसकी बदौलत रूस ने दूसरे देशों से पहले हाइड्रोजन का आविष्कार कर लिया. इंग्लैंड में काम करते समय क्लॉस फुश ही हथियारों से संबंधित अमेरिका और इंग्लैंड की खोजों की जानकारियां रूस पहुंचा दिया करते थे. उन्हें 1943 में अमेरिका भेजा गया, जहां उन्होंने मैनहटन प्रोजेक्ट पर काम किया. इस दौरान उन्होंने अमेरिका के हाइड्रोजन बम बनाने के प्लान की पूरी जानकारी केजीबी को दी. उन्होंने यूरेनियम 235 के उत्पादन का पूरा डाटा भी केजीबी को सौंपा, जिसके दम पर सोवियत रूस ने परमाणु हथियारों के मामले में अमेरिका पर बढ़त बना ली. अमेरिका से वापस 1946 में इंग्लैंड लौटने पर क्लॉस फुश पकड़े गये, जहां उनसे कुछ रूसी जासूसों के नाम उगलवाए गए. इस दौरान उन्हें 14 साल की सजा हुई, लेकिन 9 सालों बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया. क्लॉस फुश ने बाकी की अपनी जिंदगी जर्मनी में बिताई.