सर्दी में गर्मी का अहसास… सदा सूखे रहो… गर्मी में हो जाओ कूल कूल….! किन्हीं इश्तेहारों की पंच लाइन तक तो लुभावने लगते थे… लेकिन ये अब धरातल पर आ लगे हैं….! एक दिन सर्द हवाएं, अगले रोज़ तमतमाते सूरज दादा के दीदार और अगले ही दिन झमाझम बारिश का माहौल…! कन्फ्यूजन के मारे जन तय नहीं कर पा रहे हैं कि स्वेटर जैकेट पहन कर निकलें या रैन कोट छाता साथ लेकर…! सर्दी की उम्मीद में गर्म वार्मर पहन निकलें तो गर्मी के मारे खुद को और अपने कपड़े चयन की समझ को नोंच खाने का दिल होता है….! बात कुदरत के हाथों की है, इसलिए ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं है, क्योंकि हरि करें, सो खरी…! लेकिन मौसम के इस बिगड़ैल स्वभाव के ज़िम्मेदार कुदरत नहीं, बल्कि कुदरत का बनाया हुआ नमूना इंसान ही है…! अंधाधुंध पेड़ों की कटाई, पहाड़ों का समतलीकरण, नदियों का मैदान बना दिया जाना, तालाबों पर अट्टालिकाएं खड़ी कर दिया जाना… कारखानों की चिमनियों से उगलता धुंआ और अनाप शनाप वाहनों के धधकते साइलेंसर….! हरियाली बचाने के कोई उपाय नहीं, बस प्रकृति को नष्ट करने की होड़ ने जो हालात बनाए हैं, उससे मौसम के असंतुलिकरण के अलावा किसी बात की कल्पना करना निर्थरक ही है….! सब बातों के लिए सरकार की तरफ नजरें उठाए, हर मुसीबत के लिए खुदा के सामने हाथ फैलाए लोगों को सरकारों और ईश्वर का एक ही संदेश हो सकता है, कुछ काम अपने भरोसे, बूते और समझ से कर लिया करो… वरना सर्दी में गर्मी और बारिश के मज़े लेते रहो…!

पुछल्ला
कायदे एक पक्षीय
नियम भेदभाव भरे न हों
कानून आयद हुए, नियम प्रचलन में आए, तरीके समझाए जा रहे हैं। न मुहब्बत की इजाजत होगी, न नफरत को प्रदेश में पैर धरने दिया जाएगा। खुशी की बात है। कुछ लोगों को इन हालात से कुछ ज़्यादा खुशी है। वजह नासमझी है। किसी एक व्यक्ति, एक वर्ग, एक समाज, एक धर्म पर उसके पालन की जिम्मेदारी, ना मानने पर सजा के प्रावधान माने जा रहे हैं। गलतफहमी है साहेब जी आपकी, एक लोकतांत्रिक प्रदेश, एक कानून, एक सजा, एक सा प्रावधान सबके लिए है। इनकी बारी से वह खुश न हों, उनके अंजाम के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

   खान अशु

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