तमिलनाडू के तिरुनेलवेली के रहने वाले 30 वर्षीय मुरुगन एक सड़क हादसे में बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए. एम्बुलेंस उन्हें लेकर सात घंटे तक केरल के कोल्लम और तिरुवनंतपुरम के कई अस्पतालों का चक्कर लगाती रही, लेकिन किसी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया. समय पर उपचार न मिलने से उनकी मौत हो गई. ख़बरों में बताया गया कि जिन अस्पतालों में उन्हें ले जाया गया, उन्होंने गवाहों के अभाव में मुरुगन को भर्ती करने से इंकार कर दिया.
इस घटना की तरफ ध्यान आकर्षित करने का मकसद यह है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 को अनुमोदित कर दिया है. सरकार की ओर से जारी 30 पन्नों के इस दस्तावेज़ को देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के इतिहास में बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया जा रहा है. यह भी दावा किया जा रहा है कि एनएचपी 2017 बदलते सामाजिक-आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और महामारी-विज्ञान परिदृश्य में मौजूदा और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अस्तित्व में आई है. यह नीति राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 का स्थान लेगी. इस दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि एनएचपी 1983 और एनएचपी 2002 ने पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान स्वास्थ्य नीति को सही दिशा देने का कार्य किया.
नई स्वास्थ्य नीति की प्रस्तावना में जो तारीफ की गई है, उसेे समझने के लिए मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज स्टडी’ पर एक नजर डालनी होगी. इसके अनुसार, भारत स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं के मामले में 195 देशों की सूची में 154 वें स्थान पर है. शर्मिंदगी की बात यह है कि स्वास्थ्य सुविधाएं देने में भारत अपने पड़ोसियों श्रीलंका, बांग्लादेश, चीन और भूटान से भी पीछे है. शिशु मृत्युदर के मामले में भारत की रैंकिंग सोमालिया और अफगानिस्तान से भी नीचे है. अब सवाल यह उठता है कि बेहतर ढंग से काम करने का यह नतीजा है तो नई स्वास्थ्य नीति से क्या उम्मीदें लगाई जा सकती हैं. यह स्थिति तब है, जब भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है.
नई स्वास्थ्य नीति में सबके लिए स्वास्थ्य के सिद्धांत पर काम करते हुए कमज़ोर वर्ग के लोगों को मुफ्त दवा और इलाज की सुविधा उपलब्ध कराना है. साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट को बढ़ाकर जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के स्तर तक लाना, जो फ़िलहाल 1.5 प्रतिशत है. इसके अलावा बीमारियों, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के साथ जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है. नई नीति में सरकार का ध्यान प्राथमिक स्वास्थ्य पर अपेक्षाकृत अधिक केंद्रित करने की बात कही गई है. बड़ी बीमारियों के इलाज के लिए निजी क्षेत्र पर भी निर्भर होने की बात की गई है, यानी इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों का सहयोग लिया जाएगा. लेकिन प्राइवेट अस्पतालों से जुड़ी ऊपर दर्ज घटनाएं ये बताती हैं कि यह कम कितना मुश्किल है.