मैं हिटलर को हारते हुए देखना चाहती हूं….यही कहना था डायना रोडेन का. द्वितीय युद्ध के दौरान न जाने कितनी महिला जासूसों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. उन्हें उनके बलिदान के लिए जाना जाता है. डायना ऐसी ही महिला जासूसों में शुमार की जाती हैं जिन्होंने हिटलर की तानाशाही के ख़िलाफ़ अपनी जिंदगी की बाज़ी लगाकर लड़ाई लड़ी. भले ही इस जंग में उनकी मौत हो गई हो लेकिन उनके जज्बे की जीत हुई और आख़िरकार जर्मन सेनाओं को हार का स्वाद चख़ना पड़ा. आइए महिला जासूसों की अपनी श्रृंखला में इस बार आपको रूबरू कराते हैं बहादुर जासूस डायना रोडेन से…

page-10डायना रोडेन का जन्म 31 जनवरी 1915 को ब्रिटेन में हुआ था. उनके पिता मेजर एलड्रेड ब्रिटिश सेना में अधिकारी थे. उनकी मां का नाम मुरियल क्रिस्चियन था. वे अपने मां बाप की पहली संतान थीं लेकिन उनके मां बाप के बीच रिश्ते बेहतर न होने के कारण शादी ज्यादा दिनों तक टिक न सकी और जब डायना बहुत छोटी उम्र की थीं तभी दोनों अलग हो गए. डायना की मां उन्हें लेकर फ्रांस चली गईं.
अपनी शिक्षा की शुरुआत डायना ने वहीं से की लेकिन कुछ सालों बाद उनकी मां एक बार फिर रहने के लिए ब्रिटेन वापस आ गईं. यहां उनका दाखिला मैनर हाउस स्कूल में कराया गया. यहीं पर उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की. इसके बाद वे फिर फ्रांस चली गईं और एक पत्रकार के रूप में नौकरी में कदम रखा. बातचीत के दौरान लोगों के मन से बातें उगलवा लेने की ट्रेनिंग की शुरुआत यहीं से हुई. डायना ने अपने पेशे में महारत हासिल करना शुरू कर दिया. वे ब़डे-ब़डे लोगों के साक्षात्कार लिया करती थीं. साक्षात्कार के दौरान वे उन लोगों से वह बातें भी उगलवा लिया करती थीं जो साधारणतया वे लोग किसी और को बताने से गुरेज किया करते थे.
जब द्वितीय विश्‍व युद्ध की शुरुआत हुई तो उन्होंने फ्रेंच रेड क्रॉस संस्था ज्वाइन कर ली. उन्हें एंग्लो अमेरिकन एंबुलेंस कॉर्प में रखा गया. मई 1940 में मित्र राष्ट्र की सेना जर्मनी के हाथों हार गई. लेकिन डायना को फ्रांस से बाहर निकल पाने का मौका नहीं मिला. वे फ्रांस के भीतर ही फंस कर रह गईं. डायना हार मानने वालों में से नहीं थीं, वे काफी दिनों तक इस बात का इंतज़ार करती रहीं कि कब उन्हें एक मौका हाथ लगे और वह वहां से भाग निकलें. ऐसा मौका उन्हें जल्दी ही मिला जब उनके रेड क्रॉस के ही एक सहयोगी के जरिए वहां से भागने में सफलता हाथ लगी. वे पहले फ्रांस से छिपते-छिपाते स्पेन पहुंचीं और फिर पुर्तगाल के रास्ते ब्रिटेन पहुंचने में कामयाब रहीं.
सितंबर 1941 में उन्होंने ब्रिटेन की ऑक्जिलरी विमेन एयर फोर्स ज्वाइन कर ली. यह महिलाओं का एक ऐसा दस्ता था जो मुश्किल में फंसे लोगों की मदद किया करता था. उन्होंंने वहां ब्रिटेन के लिए बेहतरीन सेवाएं देना शुरू दिया जिसकी वजह से कुछ ही दिनों बाद उनका प्रमोशन कर दिया गया.
उसी दौरान डायना की तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्प ताल में भर्ती होना पड़ा. बीमारी के दौरान उनकी मुलाकात एक ब्रिटिश अधिकारी हैरी स्पोंबर्ग से हुई जो उनके बगल की एक मरीज को देखने आए हुए थे. हैरी ने डायना से यह इच्छा ज़ाहिर की कि वे उनकी सेक्रटरी बनें. इसके बाद पहले से एयर फोर्स की महिला शाखा में तैनात डायना ने मिलिट्री ट्रेनिंग भी लेनी शुरू कर दी. ट्रनिंग में जब उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा था तो उनके कई अधिकारियों के साथ मुधर रिश्ते बन गए. ऐसे ही एक अधिकारी विलियम सिंपसन से एक मुलाकात के दौरान अपनी यह इच्छा जाहिर की कि उन्हे फिर लौटकर फ्रांस जाना है और नाजियों के खिलाफ काम करना है. उन्होंछने सिंपसन से कहा था कि मैं हिटलर की सेनाओं को हारते हुए देखना चाहती हूं. उनकी इच्छा थी कि वे ब्रिटेन में रहकर फ्रांस की मदद न करें बल्कि वहां जाकर जर्मन सैनिकों के साथ लोहा लें. इसके लिए वह फ्रांस में जर्मनी के विरोध के लिए बने फ्रेंच रजिस्टेंस ग्रुप को ज्वाइन करना चाहती थीं.

जब द्वितीय विश्‍व युद्ध की शुरुआत हुई तो उन्होंेने रेड क्रॉस संस्था ज्वाइन कर ली. मई 1940 में मित्र राष्ट्र की सेना जर्मनी के हाथों हार गई. डायना फ्रांस के भीतर ही फंस कर रह गईं. वे काफी दिनों तक इंतज़ार करती रहीं कि कब उन्हें एक मौका हाथ लगे और वह भाग निकलें. ऐसा मौका उन्हें जल्दी ही मिला जब उनके रेड क्रॉस के ही एक सहयोगी के जरिए वहां से भागने में सफलता हाथ लगी. वे पहले फ्रांस से छिपते-छिपाते स्पेन पहुंचीं और फिर पुर्तगाल के रास्ते ब्रिटेन पहुंचने में कामयाब रहीं.

उन्हें इसका मौका भी जल्दी ही मिला और उन्हें अपनी दो महिला साथियों, नूर इनायत खान और लॉयर वैली, के साथ जर्मनी अधिकृत फ्रांस में उतारा गया. वहां पर उन्होंने अपने साथियों के साथ जर्मन सेना की कई गोपनीय जानकारियां ब्रिटेन तक पहुंचाई. डायना आसानी से जर्मन अधिकारियों को अपने जाल में फांस लिया करती थीं. कई जर्मन अधिकारी उनके काफी करीब आ गए थे और उन्हें इस बात की भनक भी नहीं लगती थी कि उनकी सारी जानकारियां विरोधियों तक पहुंचाई जा रही हैं.
उनकी गिरफ्तारी भी बहुत ही नाटकीय अंदाज में हुई. नवंबर 1943 के मध्य में जासूसों को वायरलेस के जरिये यह जानकारी दी गई 18 नवंबर को ब्रिटेन की ओर से एक और नया जासूस भेजा जा रहा है. सभी महिला जासूस उसकी मदद के लिए तैयार हो चुकी थीं. लेकिन 18 नवंबर को ब्रिटिश एजेंट की बजाये एक जर्मन एजेंट वहां पहुंचा जिसने वहां मौजूद ब्रिटिश जासूसों की गिरफ्तारी करवा दी. डायना भी अन्य जासूसों के साथ गिरफ्तार कर ली गईं. डायना को अन्य साथियों साथ जर्मन प्रताड़ना गृह ले जाया गया. जहां उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ना दी गई. बाद में जहरीले इंजेक्शन के जरिये उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया.
डायना को ब्रिटिश जासूसों के इतिहास में काफी इज्जत से याद किया जाता है. उन्होंने ब्रिटेन की ओर से फ्रांस को बचाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. मौत के बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से कई पुरस्कार दिए गए. जिस जर्मन प्रताड़ना गृह में उन्हें यातनाएं दी गई थीं अब वह फ्रांस का हिस्सा है. वह अब एक ऐतिहासिक जगह बन चुकी है. यहां पर डायना की याद में उनके नाम का मेमोरियल भी बनाया गया है.

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