इस वर्ष सरकार ने धान खरीद का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया, लेकिन घोषणा यह की गई कि जो भी किसान धान खरीद केन्द्र पर धान लेकर आएगा, उन सभी किसानों से धान लिया जाएगा. इसके लिए किसानों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा. किसानों के लिए सबसे बड़ी बाधा तो इसी से शुरू हुई, जिसके कारण बहुत से किसान सरकार की इस हाईटेक व्यवस्था में फंस गए. इसके बाद भी सरकारी तंत्र के कई  सवालों से किसान परेशान हो जाते हैं. लाचार होकर किसानों को घर आए व्यापारियों को औने-पौने मूल्य पर धान बेचने कोे विवश होना पड़ता है. यही कारण है कि बिहार का प्रति वर्ष अधिक धान पड़ोस के राज्यों में चला जाता है.

biharबिहार की अर्थव्यवस्था आज भी खेतों पर निर्भर है. यहां के अधिकतर लोग जो भी नौकरी-धंधे करें, लेकिन उनके परिवार खेती-किसानी से जरूर जुड़े हैं. शहरों मेें रोजगार के लिए पलायन की संस्कृति बढ़ी है, इसके बावजूद बिहार की अधिकतर आबादी आज भी गांवों में निवास करती है. गांव में रहने के कारण स्वाभाविक रूप से लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं. यही कारण है कि 21वीं सदी में भी बिहार की अर्थव्यवस्था खेती पर ही केन्द्रित है.

यह अलग बात है कि खेती की व्यवस्था में सिंचाई, बीज और कृषि उपकरण में पिछले तीन दशक में काफी परिवर्तन आया है. नए-नए शोधों से बिहार में भी खेती तथा किसानों की स्थिति में कुछ सुधार आया है. परंतु सरकारी व्यवस्था ने किसानों के लिए सरकार की ओर से घोषित तमाम योजनाओं पर पानी फेर दिया है. बिहार में किसानों से सरकारी स्तर पर न्यूनतन समर्थन मूल्य पर धान खरीद  की जाती है. राज्य के प्राथमिक कृषि साख समितियों के माध्यम से किसानों से धान खरीद की जाती है. पिछले वर्ष रिकॉर्ड धान की खरीद हुई थी.

इस वर्ष सरकार ने धान खरीद का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया, लेकिन घोषणा यह की गई कि जो भी किसान धान खरीद केन्द्र पर धान लेकर आएगा, उन सभी किसानों से धान लिया जाएगा. इसके लिए किसानों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा. किसानों के लिए सबसे बड़ी बाधा तो इसी से शुरू हुई, जिसके कारण बहुत से किसान सरकार की इस हाईटेक व्यवस्था में फंस गए. इसके बाद भी सरकारी तंत्र के कई  सवालों से किसान परेशान हो जाते हैं. लाचार होकर किसानों को घर आए व्यापारियों को औने-पौने मूल्य पर धान बेचने कोे विवश होना पड़ता है. यही कारण है कि बिहार का प्रति वर्ष अधिक धान पड़ोस के राज्यों में चला जाता है. राज्य सरकार ने धान खरीद की शुरुआत 15 नवम्बर 2017 से की थी. धान की खरीद पैक्सों के माध्यम से की गई. इसके अलावा कई स्थानों पर धान क्रय केन्द्र के माध्यम से भी किसानों के धान की खरीद की गई.

बिहार सरकार ने अनुमानित 140 लाख मिट्रिक टन धान उत्पादन से प्रेरित होकर वित्तीय वर्ष 2017-18 में धान की खरीद के लिए कोई लक्ष्य ही निर्धारित नहीं किया और सभी किसानों से धान खरीदने का निर्णय लिया. बिहार सरकार के कृषि विभाग के निदेशक हिमंाशु राय के अनुसार, 2017-18 में धान का अनुमानित उत्पादन 140 लाख मिट्रिक टन और चावल का 95 लाख मिट्रिक टन है. कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 2017-18 में धन की खरीद 15 नवम्बर से शुरू होकर 31 मार्च 2018 तक की गई. कुछ केन्द्रों पर आने वाले सभी किसानों से धान की खरीद की गई.

हालांकि बिहार सरकार पिछले तीन वर्षों से धान की खरीद का लक्ष्य करीब 30 लाख मिट्रिक टन रखती थी. धान की खरीद राज्य के 38 जिलों के 8471 पैक्सों तथा व्यापार मंडल के जरिए 1470 रुपए प्रति क्ंिवटल करती थी. इस साल सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1550 रुपए तथा ग्रेड ए के लिए 1570 रुपए प्रति क्ंिवटल की दर से धान की खरीद की. धान बेचने वाले किसानों को दिक्कत यह हो गई कि कृषि विभाग ने धान खरीद के लिए सभी किसानों का ऑनलाईन पंजीकरण अनिवार्य कर दिया. कारण बताया गया कि इससे धान की खरीद पारदर्शी तरीके से हो सकेगी. हालांकि धान की अधिप्राप्ति की सीमा एक सौ क्विंटल से बढ़ाकर डेढ़ सौ क्ंिवटल कर दी गई.

गया जिले के 332 पैक्स के अध्यक्षों में से कई ने बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष किसानों सें धान की खरीद आधी हुई है. कहने को तो राज्य सरकार ने 15 नवम्बर 2017 से धान खरीद की घोषणा कर दी, लेकिन सही रूप में जनवरी 2018 से धान खरीद की शुरुआत हुई. इस खरीद में भी सरकारी व्यवस्था का ऐसा-ऐसा पेंच था जिसके कारण किसान अपने धान को पैक्स में नहीं बेचकर व्यापारियों के हाथों औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हुए. इसका कारण यह है कि फसल तैयार होते-होते किसान कर्जदार हो जाते हैं. कर्ज को चुकाने के चक्कर में किसान तुरंत और नकद राशि मिलने के कारण धान को सस्ते दामों पर व्यापारियों को बेच देते हैं.

कुछ सरकारी केन्द्रों पर पहले तो किसानों के धान को सामान्य तो कभी खराब बता कर लेने से इंकार कर दिया जाता है या फिर दलालों के माध्यम से सरकारी क्रय केन्द्र पर धान बेचना पड़ता है. राज्य सरकार ने इस वर्ष धान खरीद के लिए 25,500 करोड़ रुपए की राशि दी है, जिसमें एफसीआई बिस्कोमान, एसएफसी को पांच-पांच करोड़ जबकि पैक्सों को दस करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है. लेकिन इन राशि में से आधी राशि की भी धान की खरीद नहीं हो सकी है. गया जिले के मानपुर प्रखंड के अमरा पंचायत के पैक्स अध्यक्ष श्रवण कुमार ने बताया कि सरकारी व्यवस्था में गड़बड़ी के कारण इस वर्ष धान की खरीद समुचित रूप से नहीं हो सकी.

उन्होंने बताया कि जो धान पैक्स ने खरीदे और चावल बनवाया है, उस चावल को राज्य खाद्य निगम नहीं ले रहा है. बताया जा रहा है कि गोदाम खाली नहीं हैं. इससे सभी पैक्सों के अध्यक्षों की परेशानी बढ़ गई है. जबकि खरीदे गए सभी धान के चावल को 31 जुलाई 2018 तक एसएफसी के गोदाम को दे देना है. धान खरीद के लिए किसानों का ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य कर बिहार सरकार कृषि रोड मैप को उत्पादन- उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की माली हालत में सुधार लाने का प्रयास बता रही है.

किन्तु किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाना अब भी बड़ी चुनौती है. भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन के मोर्चों पर बिहार सरकार को काफी काम करना पड़ेगा. फिलहाल बिहार के पैक्स अध्यक्ष खरीदे गए धान से बने चावल को राज्य खाद्य निगम के गोदाम में नहीं भेज पा रहे हैं. राज्य खाद्य निगम के अधिकतर गोदाम को खाली नहीं बताया जा रहा है. पहले किसानों को धान बेचने में परेशानी, अब पैक्सों को चावल देने में परेशानी हो रही है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here