एक और बात कि स्वर्ण जमा करने और उधार देने की प्रस्तावित योजना वस्तुतः प्रभावी होगी या नहीं, इसका दारोमदार पूरी तरह से इस बात पर है कि भारत में सक्रिय गोल्ड ट्रेडिंग (जिसमें मंदड़िया बिक्री और बॉन्ड क्रय-बिक्री और स्वर्ण खदानों के लिए ग्लोबल स्केलिंग शामिल हों) लागू कर पाते हैं या नहीं, लेकिन भारतीय पृष्ठभूमि में यह सारी चीज़ें नहीं हैं. ऊपर लिखित कारणों से सरकारी गोल्ड बॉन्ड और स्वर्ण मौद्रिकरण योजनाएं सफल नहीं हो पाएंगी.

backkkkkवित्त मंत्री अरुण जेटली प्रशंसा के पात्र हैं कि उन्होंने अपने बजट भाषण में स्पष्ट रूप से स्वर्ण आयात कम करने की बात स्वीकारी. दरअसल, लगभग 30 वर्षों से चालू खाते के घाटे का एकमात्र कारण स्वर्ण आयात ही रहा है. यह घाटा वित्तीय वर्ष 2013 में सकल घरेलू उत्पाद का 4.7 प्रतिशत था, जिसमें स्वर्ण आयात का हिस्सा 3 प्रतिशत से अधिक था.
इसका मुख्य कारण यह था कि मौजूदा आयात विनियमन (आरबीआई का फेमा मास्टर सर्कुलर) में स्वर्ण आयात को दूसरी वस्तुओं (जिनमें आवश्यक वस्तुएं शामिल हैं) के मुकाबले अधिक तरजीह दी गई है. इस विनियमन में स्वर्ण आयात की अनुमति तीन बुनियादों पर दी गई है : 1.कन्साइनमेंट के आधार पर 2. निर्धारित मूल्य के आधार पर 3. धातु-लोन के आधार पर. ऐसी प्राथमिकता से विदेश से सोना भेजने वाले के लिए स्वर्ण आयात से संबंधित मूल्य और मुद्रा का जोखिम समाप्त हो जाता है और इसका सारा जोखिम सोने के गहने खरीदने वालों पर आ जाता है. यह स्थिति कोयला, खाद्यान तेल के लिए नहीं होती, क्योंकि यह वस्तुएं सीधे तौर पर आयात की जाती हैं. लिहाज़ा, मैंने दिसम्बर 2012 में रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर डॉ. सुब्बाराव और मौजूदा गवर्नर डॉ. रघुराम राजन को सुझाव दिया था कि स्वर्ण और दूसरी वस्तुओं का आयात फेमा के प्रावधानों के मुताबिक किया जाए. दरअसल, आरबीआई द्वारा स्वर्ण आयात को दूसरी वस्तुओं के आयात जैसे रेगुलेशन (विनियमन) लगाने से वांछित नतीजे प्राप्त हुए और स्वर्ण आयात में जल्द ही दोगुनी कमी आ गई. समान रेगुलेशन (विनियमन) होने की वजह से वित्तीय वर्ष 2014 के लिए चालू खाते का घाटा सकल घरेलु उत्पाद का 1.7 प्रतिशत रह गया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि आरबीआई ने अभी हाल ही में इस विनियमन को ख़त्म कर दिया है और मीडिया रिपोर्टों की मानें, तो स्वर्ण आयात में एक बार फिर उछाल आ चुका है. नतीजतन, वित्तीय वर्ष के मौजूदा तिमाही में चालू खाता घाटा बढ़कर 2.1 प्रतिशत हो गया है. इस पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री ने स्वर्ण आयात कम करने के लिए अपने बजट भाषण में निम्नलिखित तीन सुझाव दिए हैं.
भारत स्वर्ण का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और हर साल 800 से 1000 टन स्वर्ण का आयात करता है. हालांकि भारत का स्वर्ण का कुल स्टॉक 20000 टन है, लेकिन इस स्वर्ण का न तो व्यापार होता है और न ही इसे मुद्रीकृत किया गया है. इसलिए मेरे हिसाब से : (क) एक स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (गोल्ड मोनीटाइज़ेशन स्कीम) लागू करने का प्रस्ताव है, जो मौजूदा गोल्ड डिपॉजिट और गोल्ड मेटल लोन योजना का स्थान लेगा. नई स्कीम के तहत स्वर्ण जमाकर्ता अपने मेटल (धातु) एकाउंट्स पर ब्याज हासिल करेगा और लोन भी हासिल कर सकता है.
(ख) इसके अतिरिक्त स्वर्ण खरीदने के विकल्प के तौर पर एक वैकल्पिक वित्तीय सम्पत्ति (सरकारी गोल्ड बॉन्ड के रूप में) विकसित की जाए. इस बॉन्ड पर एक सीमित ब्याज निर्धारित होगा और स्वर्ण के बाज़ार भाव के मुताबिक कभी भी मुद्रा में भुनाया जा सकेगा.
(ग) अशोक चक्र वाला स्वर्ण का भारतीय सिक्का ढाला जाए. इस तरह के स्वर्ण का भारतीय सिक्का विदेशों में ढाले गए सिक्कों की मांग को कम कर देगा. साथ ही देश में उपलब्ध स्वर्ण को रीसायकल करने में भी सहायक होगा.
प्रस्तावित सरकारी गोल्ड बॉन्ड स्कीम अपनी डिजाइन और तर्क में बिल्कुल गोल्ड इटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) की तरह है. अंतर केवल इतना होगा कि गोल्ड इटीएफ ब्याज नहीं देता, लेकिन डीमेट फॉर्म (अभौतिक रूप) में रखे गए स्वर्ण के निवेश से हासिल रिटर्न निवेशक को अदा करता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में सभी 14 गोल्ड ईटीएफ 40-50 टन से अधिक स्वर्ण नहीं रखते, जो वित्त मंत्री के बजट भाषण में बताए गए कुल 800-1000 टन आयातित स्वर्ण का केवल 5 प्रतिशत है. लिहाज़ा, गोल्ड ईटीएफ स्वर्ण धातु की मांग को ख़त्म नहीं कर पाता और इसके परिणामस्वरूप स्वर्ण धातु निवेशकों के लिए सोने की मांग का एक विकल्प बन जाता है. इस प्रस्तावना की गंभीरता को ऐसे समझा जा सकता है कि स्वर्ण का मूल्य 70 के दशक के आखिरी वर्षों में सबसे अधिक 850 डॉलर प्रति ओजेड (आउंज़) से घट कर 90 के दशक में 270 डॉलर प्रति ओजेड और फिर सितम्बर 2011 में सबसे अधिक 1920 डॉलर पर पहुंच गया. स्वर्ण की कीमतों में सबसे अधिक वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. इसके पीछे तर्क यह है कि अगर हम एक बार फिर यह मान लें कि गोल्ड बॉन्ड 1000 टन स्वर्ण आयात की मांग के बराबर होगा, तो बॉन्ड भुनाने के समय इसका कुल घाटा 25 अरब डॉलर होगा. यही नहीं, सरकारी गोल्ड बॉन्ड के बड़े निवेशक की वजह से स्टॉक मार्केट में इनकी कीमतों में परिपक्वता के समय तेज़ी से वृद्धि करवा सकते हैं. इसकी वजह से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
फरवरी 2013 में कॉमोडिटी एक्सचेंज के किसी विशेषज्ञ ने ऊपर बताए गए गोल्ड बॉन्ड जैसे ही एक बॉन्ड का प्रस्ताव रखा है. उनका प्रस्ताव है कि सरकारी गोल्ड बॉन्ड से प्राप्त राशि का निवेश बुनियादी ढांचे से संबंधित योजनाओं में किया जाए और बॉन्ड का लाभ धारक को बिना मूल्य जोखिम के या घाटे के दिया जाए. मूल्य जोखिम को कम करने के लिए गोल्ड कॉल ऑप्शन (यानी स्वर्ण खरीदने का विकल्प) खुला रखना चाहिए, लेकिन स्वर्ण खरीदने का यह विकल्प, जिसमें 1000 टन वार्षिक स्वर्ण आयात की मांग की आवश्यकता होती है, सिद्धांत रूप से तो ठीक है, लेकिन वास्तविकता में प्रभावकारी नहीं है. यह सरकार पर भी उतना ही लागू होता है, जो स्वर्ण की मूल्य वृद्धि के जोखिम को स्वर्ण वायदा खरीद कर कम करना चाहती है. खरीद का विकल्प और स्वर्ण वायदा दोनों का जोखिम कम करने का अनुपात 1 होगा, जिसका मतलब होगा कि 1000 टन स्वर्ण की मांग होगी और यह मांग सरकारी बॉन्ड के बजाए स्वर्ण धातु बाज़ार से पूरी होगी, जिसके लिए स्वर्ण आयात करना पड़ेगा. यह वायदा कारोबार, जोखिम में कमी और मूल्य निर्धारण का बुनियादी सिद्धांत है, जो एक मूल्य के आधार पर संचालित होती है. दूसरे शब्दों में मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलेगा. अगर कोई संपत्ति है, जो गोल्ड बॉन्ड का प्रतिलाभ देने के योग्य है, तो वह है गोल्ड यानी स्वर्ण. लिहाज़ा, प्रस्तावित सरकारी गोल्ड बॉन्ड वास्तविक नहीं हो सकता.
अब दूसरे बजट प्रस्ताव यानी 20000 टन घरेलू स्वर्ण भंडार के तथाकथित मौद्रिकरण का रुख करते हैं, जिसके बारे में वित्त मंत्री ने अपने भाषण में बिल्कुल सही कहा कि न तो इसका व्यापार हुआ है और न ही मौद्रिकरण.
पूरी दुनिया के स्वर्ण भंडारों और न्यूयॉर्क, लन्दन, सिंगापुर और हांगकांग के कर्जदाता बाज़ार की खास बात यह है कि उधार स्वर्ण की मांग मंदड़िया बिक्री (शोर्ट सेलिंग) करने वालों और बड़े स्वर्ण खनिकों की तरफ से आती है. विशेष रूप से मंदड़िया बिक्री की उत्पति सट्टेबाजों, बचाव कोष (हेज फंड) और अन्य लोगों द्वारा स्वर्ण भाव में गिरावट पर सट्टा लगाना, ताकि इसकी वजह से कम कीमत पर स्वर्ण खरीद कर लाभ कमाया जा सके, लेकिन मंदड़िया बिक्री में एक तरह का अनुशासन होता है, इसलिए मंदड़िया बिक्री में देने के लिए बिक्रेता को आवश्यक रूप से स्वर्ण धातु उधार लेना पड़ता है, जिसकी भरपाई कुछ समय बाद स्वर्ण की पुनः खरीद के बाद हो जाती है.
स्वर्ण धातु की मंदड़िया बिक्री की एक और वजह बाज़ार के भागीदारों द्वारा नकदी वायदा कारोबार में शामिल होना है. यह उस वक़्त होता है, जब स्वर्ण वायदा मौजूदा बाज़ार भाव से सस्ता होता है. इसमें वे सस्ता स्वर्ण वायदा (फ्यूचर गोल्ड) खरीदते हैं और हाज़िर बाज़ार (स्पॉट मार्केट) में बेच देते हैं और फिर हेज मार्केटिंग के जरिया परिपक्वता पर बिना किसी जोखिम के मुनाफा कमाते हैं. इस तरह का व्यापार उस वक्त तक जारी रहता है, जब तक मूल्य में फर्क बना रहता है. चूंकि पूरी दुनिया में ऐसे उधार स्वर्ण की बहुत अधिक मांग है, इसलिए इसकी आपूर्ति बैंकों में जमा या लोन मार्केट के स्वर्ण से होती है. बैंकों में जमा और उधार दर लागू होते हैं, जिसे गोल्ड लीज रेट कहते हैं. दूसरी तरफ जब बाज़ार का भाव ऊपर चढ़ता है, तो स्वर्ण का भाव भी उपर चढ़ता है. ऐसे समय में उधार स्वर्ण की मांग आमतौर पर कम रहती है, इसलिए गोल्ड लीज रेट भी कम रहता है. यह गोल्ड लीज रेट सिद्धात रूप में मुद्रा ब्याज दर का मामूली हिस्सा होता है. ़िफलहाल यह 1 महीने, 2 महीने, 3 महीने और 1 साल में क्रमशः 0.09 प्रतिशत, 0.11 प्रतिशत, 0.25 प्रतिशत और 0.40 प्रतिशत रहा है.
जैसा कि ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है कि मंदड़िया बिक्री और बॉन्ड के क्रय-बिक्री करने वाले के आलावा एक और प्रकार का स्वर्ण धातु का कर्ज़दाता होता है, जो बड़े स्वर्ण खनिक होते हैं. ये लम्बी अवधि तक स्वर्ण उधार लेते हैं, ताकि उसे बाज़ार में बेच सकें और उससे हासिल पूंजी को नये खदान में लगा सकें. सोने के मूल्य से संबंधित प्राकृतिक हेज बना सकें, जिसमें मूल्य वृद्धि का कोई जोखिम भी नहीं हो.
उल्लेखनीय रूप से सोनार को स्वर्ण उधार देने को स्वर्ण धातु ऋण कहना विरोधाभाषी है, क्योंकि यह बुनियादी तौर पर स्वर्ण की खरीद-बिक्री है. जमा करने और क़र्ज़ के लेन-देन में जो भी उधार लिया जाता है, उसे वापस भी करना पड़ता है. इसलिए यह समझने में कोई अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं है कि प्रस्तावित मौद्रिकरण योजना से वांछित नतीजे नहीं हासिल होंगे.
एक और बात कि स्वर्ण जमा करने और उधार देने की प्रस्तावित योजना वस्तुतः प्रभावी होगी या नहीं, इसका दारोमदार पूरी तरह से इस बात पर है कि भारत में सक्रिय गोल्ड ट्रेडिंग (जिसमें मंदड़िया बिक्री और बॉन्ड क्रय-बिक्री और स्वर्ण खदानों के लिए ग्लोबल स्केलिंग शामिल हों) लागू कर पाते हैं या नहीं, लेकिन भारतीय पृष्ठभूमि में यह सारी चीज़ें नहीं हैं. ऊपर लिखित कारणों से सरकारी गोल्ड बॉन्ड और स्वर्ण मौद्रिकरण योजनाएं सफल नहीं हो पाएंगी. दरअसल, जो क़दम कारगर हो पाएगा, वह है वर्ष 2013-14 में आरबीआई द्वारा लागू किए गए स्वर्ण आयात के लिए भी दूसरी वस्तुओं की तरह समान शर्तें लागू की जाएं और स्वर्ण का आयात कन्साइनमेंट के आधार पर, अनिर्धारित मूल्य के आधार पर और धातु लोन के आधार पर बंद किया जाए.

(लेखक रिज़र्व बैंक ऑ़फ इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं)

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