हालांकि मुख्य वजह आज फेसबुक ने गंगा मुक्ति आंदोलन के जन्मदिन पर शुभकामनाएं देने की याद दिलाई ! तो मैंने और एक पोस्ट देखा कि आज गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख साथियों में से एक श्री अनिल प्रकाश के सत्तर वे जन्मदिन की भी फोटो देख कर बहुत ही सुखद आश्चर्य हुआ ! तो उन्हें फोन पर बधाई दी ! तो उन्होंने कहा कि सुरेशभाई आज मेरा 70 वा जन्मदिन है ! और गंगा मुक्ति आंदोलन का 22 फरवरी !
इसलिये साथियों आनेवाले 22 फरवरी को गंगा मुक्ति आंदोलन के दिवस के उपलक्ष में यह खुला पत्र लिख रहा हूँ ! मैं और शांतिनिकेतन की मित्र मनिषा बैनर्जी और उनकी सुपुत्री मेघना दिसंबर के 11, 12 और 13 तारीख को भागलपुर की यात्रा पर आए थे ! और इस बार सबौर के राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में ठहरने के कारण ! चंदेरी, राजपुर, बाबुपुर तथा रजिंदिपुर इत्यादी अगल बगल के गांवों में भी जाने का अवसर मिला !
मुख्य वजह थी कि भागलपुर दंगे के बत्तीस साल के बाद वर्तमान स्थिति का जायजा लेना ! और दंगे के बाद के पुनर्वास की स्थिति को देखना ! चंदेरी के पचास घर टाटा उद्योग समूह के पुनर्वास की योजना के अंतर्गत बनाये हैं ! और वहां पर चार परिवार छोड़कर छियालिस परिवार वापस नहीं आने के कारण ! आज तीस साल से अधिक समय होने के बावजूद खाली है ! और अन्य छीयालिस घर खंडहरों में तब्दील हो गए हैं ! यह बात हम लोगों ने 1990-91 के समय बनाने की शुरुआत होने के पहले ही कहीं थी ! कि स्थानीय लोगों को बगैर विश्वास में लिए, और उनके सहयोग के बीना किया जा रहा पुनर्वास ठीक नहीं है ! लेकिन तत्कालीन बिहार सरकार और टाटा समूह के कानों पर जूँ भी नहीं रेंगने के कारण उन्होंने जोर – जबरदस्ती से लाखो रुपये खर्च करने के बावजूद छियालिस घर खाली पड़े हैं ! यह है तथाकथित पुनर्वसन की झलक !
और इस विषय पर मै दिसंबर माह में विस्तार से लीख चुका हूँ ! पर आज का मुख्य विषय गंगा नदी के किनारे पर स्थित बाबुपुर तथा रजिंदिपुर गांव से पच्चीस – तीस साल पहले, गंगा नदी कम-से-कम एक या दो किलोमीटर दूर स्थित थी ! जो आज सिर्फ पचास मिटर की दूरी पर आ पहुंची हैं ! यह फोटो में मेघना गंगा नदी के किनारे जीस गाद के उपर खडी है ! वह बाबुपुर – रजिंदिपुर के पास की गंगा नदी के किनारे पर खडी है ! और आने वाले दिनों में गंगा मैया अपनी गोद में इन दोनों गांवों को समा लेगी क्योंकि हम लोग भागलपुर दंगे के बाद 1990 के समय इस क्षेत्र में काफी बार पैदल घुमे है ! और तब गंगा नदी दूर नजर आती थी ! जो आज दोनों गांवों के करीब से बह रही है ! तीस साल के भीतर यह प्राकृतिक बदलाव को देखते हुए ! मुझे लगता है कि भविष्य में गंगा किनारे स्थित काफी गांव शायद गंगा मैया की गोद में समा जा सकते हैं ! इस बार की यात्रा में हमारा यही निरीक्षण है ! और हम दुआ करते हैं कि हमारा निरिक्षण गलत साबित हो !
लेकिन एक वास्तविकता है कि, बचपन से ही सुनते या पढते आ रहा हूँ ! कि नदियों के किनारे मानवी सभ्यता और संस्कृतियों का विकास हुआ है ! और विनाश भी ! लेकिन भागलपुर के सबौर ब्लॉक के, बाबुपुर – रजिंदीपुर गंगा नदी के पास मे आ रहे तट को देखते हुए, लगता है कि नदियों की गोद में कई सभ्यताएं समा गई होगी ! सिंधू सभ्यता, नाईल, यमुना,नर्मदा, गंगा,यांगत्सी, व्होल्गा, डेन्यूब, ब्रह्मपुत्र वगैरह !
आप लोग हरसाल 22 फरवरी को गंगामुक्ती के दिवस पर विशेष रूप से गंगा नदी के संबंध में इकट्ठे होकर विचार विमर्श करते हो ! और इस साल भी करेंगे, तो मेरी तरफ से विनम्र सुचना है, कि आप लोग गंगा के स्रोतों से जैसे दियरा, जो बिहार का कुल दियारा क्षेत्र 9 लाख हेक्टेयर भूमि पर है ! जिसमें गंगा नदी का दियारा 2 लाख चालीस हजार हेक्टर क्षेत्र है !, बुढी गंडक दियारा क्षेत्र 2 लाख 30,000 हेक्टेयर, गंडक दियारा क्षेत्र 1 लाख 40,000 हेक्टेयर, कोशी 1 लाख 50,000 हेक्टेयर और सोन दियारा क्षेत्र 1 लाख 10,000 हेक्टेयर है ! इसमें गंगा नदी का दियारा क्षेत्र बिहार का मुख्य दियारा है ! जो गंगा के उत्तर और दक्षिण किनारे में काफी कृषि योग्य भूमि है ! और सालों साल की बाढ के साथ गाद आते रहने के कारण ! विलक्षण उपजाऊ भूमि में आता है ! लेकिन उसी बाढ के कारण वह बनते-बिगड़ते रहते हैं ! मतलब आज जो दियारा का गांव या लहलहाती खेती के साथ दिखाई दे रहा है ! वहां अगले साल शायद गंगा नदी अपनी ओट में उसे लेकर अविरल बह रही होगी ! वैसे ही अब किनारे पर बसे गांव भी आनेवाले समय में रहेंगे या नहीं ? यह प्राकृतिक स्थिति के बारे में भी आप लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही मै यह लिख रहा हूँ ! और साथ ही कुछ फोटो दे रहा हूँ !


आप लोग हमारे तुलना में, इस स्थिति से ज्यादा अवगत होने की संभावना है ! क्योंकि आप लोग उसी परिवेश में रह रहे हैं ! तीस सालों से भी पहले आंदोलन के कारण प्रायवेट मास्टर्स से गंगा की मुक्ति की कहानी डॉ योगेन्द्र और प्रोफेसर सफदर इमाम कादरी के संयुक्त तत्वावधान में संपादित की गई “गंगा को अविरल बहनें दो” किताब में तफ़सील से दीया है ! मैंने कुछ आकडे या तथ्यों को उसी किताब से लेकर ही दिए हैं !

लेकिन पृष्ठ नंबर 23-24 “दियारा क्षेत्र : उलझे भूमि संबंधो की पीड़ा” यह मुकुल जी द्वारा लिखित दो पन्ने छोड़ कर अन्य 135 पन्ने मुख्य रूप से गंगा मुक्ति आंदोलन के उपर ही है ! और वह स्वाभाविक है ! क्योंकि यह किताब 1990 में गंगा के सुल्तानगंज से पीरपैती तक के, शेकडो बरसों पहले से ही चली आ रही 80 किलोमीटर की लंबी जल – जमींदारों के कब्जे से मुक्त होने की लड़ाई के इतिहास का आलेख होने के कारण इसमें अन्य बातों का न होना स्वाभाविक है ! (इसलिए मैं बत्तीस साल के गंगा मुक्ति कानूनी रूप से होने के !) आंदोलन के साथीयो के सामने वर्तमान स्थिति, और मुख्यतः भागलपुर जिला और उसके गंगा नदी के दोनों तटों के गांवों की वर्तमान स्थिति ! जिसमें दो गांवों के निरिक्षण के कारण ! ध्यान आकर्षित करने के लिए ही यह पोस्ट लिखने का हेतु है ! आशा करता हूँ कि मेरे इस ध्यानाकर्षण को अन्यथा नहीं लेंगे ! सभी साथियों को क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
डॉ सुरेश खैरनार 18 फरवरी 2022, नागपुर

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