राष्ट्रीय नदी गंगा सदियों से भारत के धर्म और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है. हिंदू धर्म को मानने वाले इसे मोक्ष देने वाली नदी मानते हैं. एक ऐसी नदी, जो मनुष्य को जीवन मरण के चक्र और सांसारिकता के बंधन से मुक्ति दिलाती है. उत्तराखंड की डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक सरकार ने इसी मोक्षदायिनी गंगा नदी के जल को बेचने की योजना कार्यान्वित करने की घोषणा की है. देश भर के साधु-संतों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है. वे खुलकर सरकार की इस योजना का विरोध कर रहे हैं. संत समाज के इस विरोध ने उत्तराखंड सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया है. साधु-संतों एवं हिंदू जनमानस ने सरकार के निर्णय को सनातन धर्म विरोधी और देश के करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ बताया है. ज्योतिषपीठ और द्वारिकामठ पीठाधीश्वर स्वरूपानंद सरस्वती एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी सहित हज़ारों संत भाजपा सरकार के इस क़दम को धर्म विरोधी बता रहे हैं और सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं. अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक़, मुख्यमंत्री निशंक को गंगा जल की बिक्री एक ऐसा धंधा नज़र आ रहा है, जिसमें स़िर्फ मुना़फा ही मुना़फा है और लागत बस नाम का. ख़बर तो यह है कि इस मुना़फे की योजना में हिस्सेदारी के लिए देश-विदेश के कई औद्योगिक घराने भी प्रयास में हैं. डॉ. निशंक की उत्तराखंड सरकार गंगाजल बेचकर अपनी जर्जर आर्थिक दशा सुधारना चाहती है. देश और विदेशों में रह रहे करोड़ों भारतीय जो गंगा और भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध आस्था रखते हैं, उन्हें पैकिंग में गंगा जल उपलब्ध कराने की सरकार की योजना के मूल में यही बात है. इसके लिए तर्क भले ही कुछ और दिए जा रहे हों. दरअसल इस योजना से सरकार को भारी राजस्व मिलने की उम्मीद है. सरकार गंगाजल को बेचने का काम हरिद्वार कुंभ 2010 से पूर्व करना चाहती है. कुंभ के अवसर पर लाखों-करोड़ों लोग हरिद्वार आते हैं. सरकार को उम्मीद है कि इस बार कुंभ में पांच करोड़ से भी ज़्यादा लोग भाग लेंगे. इस कारण सरकार अगले वर्ष अरबों रुपये कमाने की उम्मीद कर रही है.
सरकार की इस घोषणा से जगतगुरुशंकराचार्य का़फी मर्माहत हैं और नाराज़ भी. शंकराचार्य ने सा़फ शब्दों में यह ऐलान कर दिया कि सरकार की हरक़तों से लगता है कि न स़िर्फ उसका बुरा व़क्त आ गया है, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के भी सर्वनाश का समय आ गया है. उनका मानना है कि भाजपा सदैव धर्म के साथ खिलवाड़ करती रही है और अपने फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल करती रही है. उसकी नीयत और नीति में ही खोट है.
स्वामी जी का मानना है कि गंगा इस देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था की प्रतीक है. पूरे देश का जनमानस गंगा को मां कह कर पुकारता है. गंगाजल हमारी अस्मिता का प्रतीक है, जिसके साथ खिलवाड़ करने की छूट किसी को किसी भी हालत में नहीं दी जा सकती है.
उनका मानना है कि जिस गंगा के दर्शन से मुक्ति मिलने का विश्वास जनमानस में है, उस गंगा को अविरल धवला रूप में बहने दिया जाए. उनका मानना है कि जल से ही जीवन की परिकल्पना है. बिजली के बिना तो मानव रह सकता है, किंतु जल के बिना जीवन संभव नहीं है. स्वामी जी का कहना है कि गंगाजल अनंतकाल से लोगों को यूं ही मिलता रहा है. गंगाजल के लिए कभी शुल्क चुकाने की किसी को ज़रूरत नहीं पड़ी. गंगा दर्शन के बहाने हज़ारों लोग रोज देवभूमि आते हैं. अगर गंगा को प्रोडक्ट बना दिया गया तो गंगा तट पर बसे हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयाग एवं काशी आदि आध्यात्मिक आस्था के जो भी शहर हैं, उनकी गरिमा और इन तीर्थस्थलों के प्रति जनआस्थाकलंकित होगी. पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री चिदानंद ने भी सरकार के इस निर्णय को जनभावना के साथ खिलवाड़ बताया है.
साधु-संत भले ही सरकार के निर्णय को ग़लत ठहरा रहे हों और उनकी आलोचना कर रहे हों, लेकिन मुख्यमंत्री निशंक को इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती. गंगाजल को अपनी ओर से प्रोडक्ट का नाम देने और इस आधार पर सरकार के निर्णय की आलोचना करने वालों के प्रति वह गहरी नाराज़गी व्यक्त करते हैं. वह कहते हैं कि सरकार गंगाजल को बेच नहीं रही है, बल्कि देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का काम कर रही है. विदेशों में रह रहे लाखों-करोड़ों भारतीय, जो गंगाजल की महिमा से परिचित तो हैं, लेकिन गंगाजल तक उनकी पहुंच नहीं है. अगर ऐसे लोगों तक सरकार गंगाजल पहुंचा रही है तो इसमें क्या बुराई है. हमारा मक़सद गंगाजल को सर्वसुलभ बनाना है, न कि पैसे कमाना.
भारत सरकार ने गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी की मान्यता दी है. चार राज्यों से होकर गुज़रने वाली इस नदी के किनारे देश के कई बड़े शहर हैं और उन शहरों की औद्योगिक इकाइयां हैं. तमाम शहरों का कचरा गंगा नदी में गिरता है और गंगा नदी नहीं रह जाती है, गंदे नाले में तब्दील हो जाती है. पहाड़ से उतरकर मैदान में प्रवेश करते ही गंगा प्रदूषित जल की धारा बन जाती है. अगर पहाड़ पर भी गंगा नदी और उसके स्वरूप को बरक़रार नहीं रखा गया तो फिर इसकी अहमियत क्या रह जाएगी? उत्तराखंड में गंगाजल के कई बॉटलिंग प्लांट हैं, जो मिनरल वाटर के रूप में गंगाजल बेचते हैं. होलीगंगा के नाम से पवित्र गंगाजल बेचने वाली एक निजी कंपनी 4300 फीट की ऊंचाई पर गंगोत्री के निकट भागीरथी से गंगाजल की पैकिंग करवाती है. सरकार से इस कंपनी ने लाइसेंस हासिल कर रखा है. सवाल यह है कि सरकार रेवड़ी की तरह निजी कंपनियों को लाइसेंस बांटती रही और कुकुरमुत्ते की तरह बॉटलिंग प्लांट्स की स्थापना होती रही तो गंगोत्री, ग्लेशियर और गंगा का स्वरूप कैसे बरक़रार रह पाएगा. परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि तो कहते हैं कि सरकार गंगाजल बेचती है तो बेचे, लेकिन जल बेचकर सरकार को जो फायदा हो, उसका इस्तेमाल नदियों की स़फाई के लिए किया जाना चाहिए.