इस योजना को शुरू हुए तीन साल से ज्यादा बीत गए, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत देखकर ऐसा लगता है कि इसके जरिए ग्राम विकास का दावा सपना ही रह जाएगा. 2019 तक प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में 2 अन्य गांवों पर भी विकसित आदर्श ग्राम की मोहर लगनी थी. एसएजीवाई योजना के प्रथम वर्ष में कम-से-कम 500 लोकसभा सांसदों और 203 राज्यसभा सांसदों ने गांव चिन्हित कर दिए थे. इसके दूसरे दौर में 234 लोकसभा सांसद तथा राज्यसभा के 243 में से 136 सांसद किसी भी गांव को चिन्हित करने में विफल रहे. अन्तिम यानि तीसरे दौर में 90 प्रतिशत सांसदों ने अभी तक किसी गांव को गोद नहीं लिया है, जबकि 2019 की अन्तिम समय सीमा बहुत तेजी से करीब आ रही है.

 

narendra-modiतीन साल पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन 11 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य था सम्बन्धित सांसद की देख-रेख में चुनी हुई ग्राम पंचायतों का विकास करना और वहां लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना. इस योजना के तहत सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच में सुधार और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देने की बात की गई थी. इसके पीछे एक तर्क यह भी था एक गांव के विकसीत होने पर उसके पड़ोस के गांवों में भी सकारात्मक संदेश जाएगा और वहां भी लोग अपने जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए काम करेंगे.

इस योजना को शुरू हुए तीन साल से ज्यादा बीत गए, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत देखकर ऐसा लगता है कि इसके जरिए ग्राम विकास का दावा सपना ही रह जाएगा. 2019 तक प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में 2 अन्य गांवों पर भी विकसित आदर्श ग्राम की मोहर लगनी थी. एसएजीवाई योजना के प्रथम वर्ष में कम-से-कम 500 लोकसभा सांसदों और 203 राज्यसभा सांसदों ने गांव चिन्हित कर दिए थे. इसके दूसरे दौर में 234 लोकसभा सांसद तथा राज्यसभा के 243 में से 136 सांसद किसी भी गांव को चिन्हित करने में विफल रहे. अन्तिम यानि तीसरे दौर में 90 प्रतिशत सांसदों ने अभी तक किसी गांव को गोद नहीं लिया है, जबकि 2019 की अन्तिम समय सीमा बहुत तेजी से करीब आ रही है.

इस योजना में अच्छे स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाएं, गरीबों को आवास आदि के काम सम्मिलित किए गए थे. इन कार्यों के लिए पहले से जारी इंदिरा आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, मनरेगा, पंचायतों में उपलब्ध केंद्र राज्य के विभिन्न मदों की धनराशि व सांसद निधि आदि का सदुपयोग अपेक्षित था. लेकिन इसके अपेक्षित परिणाम नहीं आए. कई जगह राज्य सरकारों द्वारा सहयोग न करना और सभी विभागों में जरूरी तालमेल न होना भी इसका कारण बना. कई सांसदों ने तो गांव भी नहीं चुने. इस  योजना में विभिन्न स्तर पर होने वाली अड़ंगेबाजी भी बाधक बनी. इन सबके बीच मूल प्रश्न यह है कि सरकारी तंत्र के सामने आखिरकार क्या कठिनाइयां थीं? उन्होंने इस योजना के क्रियान्वयन में रूचि क्यों नहीं ली?

निःसन्देह इस योजना में कुछ त्रुटियां हैं. पहला तो यह कि इसमें आदर्श ग्राम विकसित करने के लिए अलग से बजट का प्रावधान नहीं किया गया. सांसदों के स्तर पर जो सबसे बड़ी परेशानी सामने आई वो यह कि सांसद अपने पूरे चुनाव क्षेत्र को एक नजरिए से देखते हैं. ग्रामीण स्तर पर वैसे भी जनप्रतिनिधि द्वारा किसी गांव विशेष को ज्यादा मदद देना बाकी गांवों के लिए नाराजगी का कारण बन जाता है. ऐसे में कई सांसदों का कहना है कि किसी एक गांव को चुन कर उसके विकास के लिए काम करने से उनका राजनीतिक हित प्रभावित हो सकता है. इस योजना की एक खामी यह भी है कि इसमें गांव की समस्याएं और जरूरत समझने की जहमत ही नहीं उठाई गई.

जमीनी हकीकतों को अच्छी तरह जांचे-परखे बिना ही आनन-फानन में योजनाएं घोषित हो गईं. यहां समझने की जरूरत है कि भारत अनेक विविधताओं और विभिन्नता से भरा देश है, हर गांव की समस्या अलग है, उसे समाधान के एक ही मॉडल से ठीक नहीं किया जा सकता. एक अहम मुद्दा यह भी है कि जब तक किसानों और ग्रामीणों की बदहाली दूर करने के व्यापक प्रयास नहीं किए जाएंगे, तब तक गांव कैसे विकसित होगा और इसके लिए सांसदों द्वारा गांव को गोद लेने से क्या फर्क पड़ेगा.

इसके लिए सबसे पहले ग्रामीणों के जीवन स्तर को सुधारने की पहल होनी चाहिए. वाशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय खाद्यान्न नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) ने हाल में 2017 के लिए ग्लोबल हंगर रिसर्च इंडेक्स (जीएचआई) की सूची जारी की है. इसमें जिन 119 देशों का अध्ययन किया गया, उनमें से भारत 100वें स्थान पर है. हद तो यह है कि 2016 की तुलना में भारत तीन स्थान नीचे खिसका है. भूखे लोगों के मामले में हम युद्ध से बुरी तरह पीड़ित इराक और उत्तर कोरिया से भी फिसड्डी हैं. इस रिपोर्ट से हम समझ सकते हैं कि हमारा देश लोगों के जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में किस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है. हमारी सरकार गांधी के ग्रामोदय की बात करती है, लेकिन हम समझ नहीं पाते कि गांवों के विकास के लिए गांधी का मॉडल क्या था.

गांधी के ग्राम पुनर्निर्माण की परिकल्पना उनके विचारों एवं मूल्यों पर आधारित है. गांधी के सपनों का गांव, साधन की पवित्रता के माध्य से लक्ष्य की पूर्ति, गैर प्रतिस्पर्द्धात्मक एवं अहिंसक समाज के गठन, वृहद उद्योगों के बजाय कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन, श्रम आधारित प्रौद्योगिकी की महत्ता, ग्रामीण गणराज्य एवं ग्राम स्वराज के आधार पर ग्राम स्वावलम्बन की स्थापना आदि पर आधारित था. गांधी की दृष्टि में विकेन्द्रित ग्रामीण विकास की रणनीति को ग्रामीण पुनर्निर्माण में आधारभूत बनाना अनिवार्य है. गांधी ग्रामीण विकास को सम्पोषित स्वरूप प्रदान करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने प्रकृति के दोहन की बजाय प्रकृति से तादात्म्य बनाने का सुझाव दिया. उनके मुताबिक, प्रकृति के पास इतना पर्याप्त स्रोत है कि वो संसार के समस्त प्राणियों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है.

गांधी ने आधुनिक मशीन आधारित उत्पादन प्रणाली की बजाय मानव श्रम आधारित उत्पादन प्रणाली पर बल दिया, क्योंकि उनकी दृष्टि में भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश में अधिकांश लोगों को रोजगार प्रदान करने का यह सर्वोत्तम विकल्प है. लेकिन वर्तमान में जिस रास्ते पर चलकर गांवों के विकास की बात की जा रही है, वो गांधी के सपनों के और गांधी की नीति के उलट हो रहा है. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण विकास के लिए वित्तीय एवं कामकाजी दृष्टि से पंचायतों का सशक्तिकरण किया जाए. गांवों के विकास कार्यों की समय-समय पर समीक्षा हो और सांसदों-विधायकों से छमाही या वार्षिक आधार पर रिपोर्ट तलब की जाय. जरूरत इस बात की भी है कि विकास प्रक्रिया गैर राजनीतिक हो.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here