RSS-6संघ को बने हुए लगभग 90 साल हो गए और 62-63 साल आज़ाद भारत में संघ काम करता रहा, लेकिन कोई भी उसके क्रियाकलाप को आज तक समझ नहीं पाया. पहली बार संघ पिछले नौ महीनों में अपने कई काम के तरीके लोगों के सामने रखता रहा है. संघ के बारे में यह माना जाता है कि वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और मुसलमानों या उनके एक वर्ग की आस्था इस देश के साथ नहीं है. सबसे पहले मोहन भागवत ने इसी धारणा के ऊपर काम करना शुरू किया और उन्होंने एक नया सिद्धांत नरेंद्र मोदी को दिया, जिसकी घोषणा अभी नरेंद्र मोदी ने नहीं की है, लेकिन जिसे कार्यरूप में परिणित करने की योजना मोहन भागवत ने अपने संघ के कोर ग्रुप के साथ बना ली है. और वह धारणा है कि हिंदुस्तान में जिस तरह हिंदुओं से निकले सिख, बौद्ध, जैन एवं दलित जैसे संप्रदाय हैं, उसी तरह मुसलमान भी हिंदुओं से निकला हुआ एक संप्रदाय है. मोहन भागवत के दिमाग की इस धारणा ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि हिंदुस्तान में रहने वाला प्रत्येक आदमी हिंदू है, भले ही वह सिख हो, ईसाई हो, बौद्ध हो, जैनी हो या फिर मुसलमान. उन्होंने मुसलमानों को एक अलग संप्रदाय के रूप में मानने की धारणा समाप्त करने का निर्देश अपने साथियों को दिया है और यह धारणा बहुत जल्दी देश के लोगों के सामने आने वाली है. नरेंद्र मोदी को यह निर्देश दिया गया कि वह इसी धारणा के ऊपर सबका विकास वाला सिद्धांत लागू करें, ताकि मुसलमानों को भी लगे कि यह सरकार उनके लिए काम करने वाली है.

पहली जो चुनौती मोहन भागवत के सामने है, वह यह है कि विश्‍व हिंदू परिषद घर वापसी की बात करती है, जिसकी वजह से दिल्ली चुनाव, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. उनकी दूसरी चुनौती भारतीय मज़दूर संघ की है, जो नरेंद्र मोदी की नीतियों को मज़दूर विरोधी मानता है और तीसरी चुनौती किसान संघ की है, जो नरेंद्र मोदी की नीतियों को किसान विरोधी मानता है. मोहन भागवत इन सारे संगठनों को फिलहाल आज़ादी दिए हुए हैं. उन्होंने नई आज़ादी स्वदेशी जागरण मंच को दी है कि उसे नरेंद्र मोदी के क्रियाकलापों में जहां भी गड़बड़ी लगती है, वह उसका विरोध करे. और इसीलिए भारतीय मज़दूर संघ ने नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया और किसान संघ किसानों के बाकी संगठनों के साथ मिलकर नरेंद्र मोदी के भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध कर रहा है. मोहन भागवत जानबूझ कर इन संगठनों को नियंत्रित नहीं कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि अगर विश्‍व हिंदू परिषद, भारतीय मज़दूर संघ और किसान संघ के आंदोलन होंगे, तो उससे नरेंद्र मोदी को नियंत्रित करने में उन्हें आसानी होगी. क्योंकि, मोहन भागवत यह जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने जिस स्वभाव से गुजरात में शासन किया, वही स्वभाव वह हिंदुस्तान में शासन चलाने में उपयोग में ला रहे हैं और यह स्वभाव आंतरिक लोकतंत्र के ख़िलाफ़ जाता है..

मोहन भागवत ने नरेंद्र मोदी को उनकी नीतियों पर चलने को कहा है, क्योंकि वह जानते हैं कि नरेंद्र मोदी अगर विश्‍व हिंदू परिषद के एक भी कार्यक्रम का समर्थन करते हैं, तो मुसलमान वोट उनसे दूर चला जाएगा. अगर वह भारतीय मज़दूर संघ के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं, तो उद्योग नहीं चलेंगे और अगर किसान संघ का समर्थन करते हैं, तो लंबित पड़ी हुई बहुत सारी परियोजनाएं ज़मीन के अभाव में रुक जाएंगी. इसलिए यहां पर मोहन भागवत की सीधी नीति है, विरोध करने वालों से कहो कि विरोध करो और शासन करने वालों से कहो कि वे सत्ता के सिद्धांतों के अनुसार शासन करें.

दूसरी तरफ़ मोहन भागवत ने नरेंद्र मोदी को उनकी नीतियों पर चलने को कहा है, क्योंकि वह जानते हैं कि नरेंद्र मोदी अगर विश्‍व हिंदू परिषद के एक भी कार्यक्रम का समर्थन करते हैं, तो मुस्लिम वोट उनसे दूर चला जाएगा. अगर वह भारतीय मज़दूर संघ के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं, तो उद्योग नहीं चलेंगे और अगर किसान संघ का समर्थन करते हैं, तो लंबित पड़ी हुई बहुत सारी परियोजनाएं ज़मीन के अभाव में रुक जाएंगी. इसलिए यहां पर मोहन भागवत की सीधी नीति है, विरोध करने वालों से कहो कि विरोध करो और शासन करने वालों से कहो कि वे सत्ता के सिद्धांतों के अनुसार शासन करें. मोहन भागवत का यह स्पष्ट मानना है कि कांग्रेस ने इस देश के लोगों को नाकारा बनाने में बहुत बड़ा रोल अदा किया है. उन्हें लगता है कि मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रम लोगों को अकर्मण्य बनाते हैं, काम न करने की प्रेरणा देते हैं. पर भागवत यह भी जानते हैं कि अगर वह अपने तीन संगठनों (विश्‍व हिंदू परिषद, भारतीय मज़दूर संघ, भारतीय किसान संघ) की मांगों का समर्थन करेंगे, तो सरकार नहीं चल पाएगी. इसलिए उन्होंने एक चरणबद्ध रणनीति बनाई है. वह इन विषयों को ज़िंदा रखना चाहते हैं और इन्हें ज़िंदा रखते हुए सरकार और देश को एक दबाव में लाना चाहते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साल भर का एजेंडा स़िर्फ अपने दो हज़ार अनुशांगिक संगठनों के बीच सामंजस्य बैठाना है. साथ ही यह ध्यान रखना है कि सरकार में बने मंत्री भ्रष्टाचार में न डूबें और संघ के स्वयंसेवक, जिन्होंने पहली बार सत्ता का इतने बड़े पैमाने पर रसास्वादन किया है, वे दलाली के काम में न लग जाएं. मोहन भागवत कश्मीर की बाढ़ को भारतीय जनता पार्टी के लिए फ़ायदे का सौदा मानते हैं. उनका मानना है कि जिस सेना के ऊपर कश्मीर के लोग पत्थर फेंकते थे, पहली बार उन्होंने सेना को हार पहनाए. आतंकवादी संगठन इन दिनों कश्मीर में कुछ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि सेना ने सीमा के ऊपर बहुत कड़ी चौकसी कर रखी है और जो देश के अंदर हैं, उन्हें सेना चुन-चुनकर मार रही है. संघ की राय पर सरकार ने यह ़फैसला किया है कि कश्मीर में सेना में मुसलमानों की सीधी भर्ती की योजना बनाई जाए और योजना बनाई जा रही है.
मोहन भागवत की टीम में भैया जी जोशी, एमजी वैद्य, इंद्रेश जी, दत्तात्रेय होसबोले, अशोक सिंहल और अरुण खन्ना मुख्य रूप से हैं. उनके साथ मिलकर मोहन भागवत सारे देश को संघ की विचारधारा के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के खेमे में कैसे लाया जाए, यह योजना बना रहे हैं. उन्हें इस बात से बहुत उत्साह मिला है कि मुसलमानों के एक मौलाना ने कहा कि भगवान शंकर पहले पैगंबर थे. उन्हें लगता है कि यह वक्तव्य मुसलमानों में एक नई सोच का परिचायक है. उन्होंने तय किया है कि वह नरेंद्र मोदी को वहां रोकेंगे, जहां उन्हें लगेगा कि मोदी ग़लत जा रहे हैं. और, जहां संघ के लोग ग़लत जाएंगे, उन्हें वहां रोकेंगे, क्योंकि संघ मोदी की सरकार पांच वर्ष चलाना चाहता है. दरअसल, संघ का मानना है कि मोदी की वजह से देश में पांच वर्ष में कायापलट हो सकता है. उसका ़फैसला साफ़ है कि पूरा संगठन एक स्वर में बोले. जो मोदी के विरोध में हैं, वे इतनी दूर न चले जाएं कि मोदी से उनका सामना हो, भले ही मोदी के कुछ काम कुछ संगठनों को न सुहाएं. उनका मानना है कि नरेंद्र मोदी कहीं कुछ देंगे, तो कहीं कुछ लेंगे. हो सकता है कि बहुत सारे लोगों को यह पसंद न आए, पर उनका विरोध का स्वर टकराहट में न बदले, इसकी ज़िम्मेदारी संघ ने अपने सिर पर उठाई है.

मोहन भागवत कश्मीर के लोगों को यह समझाना चाहते हैं कि अगर धारा 370 का वह हिस्सा हट जाए, जिसमें ज़मीन बाहर के लोगों को खरीदने की मनाही है, तो कश्मीर के लोगों को बहुत लाभ हो जाएगा. उनका मानना है कि कश्मीर में ज़मीन पांच करोड़ रुपये बीघा होगी, जबकि वहां प्रति व्यक्ति चार बीघा ज़मीन का औसत पड़ रहा है. अगर धारा 370 का यह हिस्सा हट जाता है, तो कश्मीर का लगभग हर व्यक्ति करोड़पति हो जाएगा.

मोहन भागवत कश्मीर के लोगों को यह समझाना चाहते हैं कि अगर धारा 370 का वह हिस्सा हट जाए, जिसमें ज़मीन बाहर के लोगों को खरीदने की मनाही है, तो कश्मीर के लोगों को बहुत लाभ हो जाएगा. उनका मानना है कि कश्मीर में ज़मीन पांच करोड़ रुपये बीघा होगी, जबकि वहां प्रति व्यक्ति चार बीघा ज़मीन का औसत पड़ रहा है. अगर धारा 370 का यह हिस्सा हट जाता है, तो कश्मीर का लगभग हर व्यक्ति करोड़पति हो जाएगा. जो अपनी चार बीघा ज़मीन बेच देगा, उसके पास बीस करोड़ रुपये आ जाएंगे. संघ इसी भाषा से कश्मीर के मुसलमानों को जीतना चाहता है. संघ ने यह अंतिम रूप से तय कर लिया है कि वरिष्ठ लोग, जिनमें श्री लालकृष्ण आडवाणी और मोहन जोशी शामिल हैं, अब उनका काम स़िर्फ सुझाव देना है और वह चाहते हैं कि सीनियर सिटिजंस क्लब के ये दो वरिष्ठ सदस्य देश में यह भावना फैलाएं कि हिंदू सुधरेगा, तो मुसलमान सुधरेगा और मुसलमान सुधरेगा, तो देश सुधरेगा. मुसलमानों को कैसे संघ के दायरे में लाया जाए और इसके लिए सौम्य भाषा का इस्तेमाल आडवाणी जी और जोशी जी करें, इसकी योजना बनाई गई है.
संघ ने मुस्लिम मंच बनाया है, जिसकी ज़िम्मेदारी उसने इंद्रेश जी को दी है और इंद्रेश जी आजकल बिल्कुल मुस्लिम हाव-भाव में देखे जाते हैं. वह ऊंचा पैजामा पहनते हैं, कान में रुई का फाहा रखते हैं और खिजाब भी लगाते हैं. वह मुसलमानों के भीतर यह भावना फैलाने में लगे हैं कि संघ और नरेंद्र मोदी उनके दोस्त हैं, दुश्मन नहीं. शायद इसीलिए मुसलमानों के नेताओं के बड़े तबके ने इंद्रेश जी से बातचीत की और अपनी समस्याएं उनके सामने रखीं. इसका एक हिस्सा प्रवीण तोगड़िया का शून्य होना है, क्योंकि तोगड़िया के भाषण मुसलमानों को चिढ़ाते हैं इसलिए उन्हें राजनीतिक परिदृश्य से एक किनारे करने का निर्देश संघ ने जारी किया है. संजय जोशी को उत्तर-पूर्व में काम करने की हिदायत दी गई है, लेकिन वह दिल्ली में रहना चाहते हैं, इसलिए उत्तर- पूर्व नहीं गए हैं.
अब मोहन भागवत का सबसे चतुर और चालाक राजनीतिक दांव. वह दांव है कि नरेंद्र मोदी के बहुत सारे कामों की वजह से देश में विरोध पनपेगा. विरोध के संभावित नेता संघ की नज़र में अन्ना हजारे जैसे लोग हैं और कुछ वे लोग, जो अब तक कांग्रेस के साथ थे, एनजीओ चलाते हैं, जिनमें पीवी राजगोपाल और राजेंद्र सिंह प्रमुख हैं. इन तीनों, खासकर अन्ना हजारे को अपने दायरे से बाहर न जाने देने की ज़िम्मेदारी उन्होंने गोविंदाचार्य को सौंपी है. गोविंदाचार्य को अटल जी की वजह से भाजपा से निकलना पड़ा था और उनका जो अध्ययन अवकाश शुरू हुआ था, वह आज तक चल रहा है.
गोविंदाचार्य उम्र में मोहन भागवत से लगभग आठ साल बड़े हैं. दोनों बहुत अच्छे मित्र हैं और लगभग हर पंद्रह दिनों में श्री मोहन भागवत और श्री गोविंदाचार्य की देश के मसले पर मुलाकात होती रहती है. बहुत सारी चीजों में गोविंदाचार्य जी की राय से मोहन भागवत सहमत होते हैं, पर शायद उन्होंने उसके ऊपर अमल करने का अपना कोई समय निर्धारित कर रखा है. पर संघ और भारतीय जनता पार्टी के दिशा निर्देशक-चाणक्य की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने देश में भविष्य में पैदा होने वाले संभावित विरोध के नेता के रूप में गोविंदाचार्य को आगे कर दिया है. संघ एक तरफ़ सरकार चला रहा है नरेंद्र मोदी के रूप में, वहीं दूसरी तरफ़ उनके कामों के प्रति स्वाभाविक रूप से उपजे विरोध का नेतृत्व भी उसने अपने सर्वाधिक विश्‍वासपात्र एवं संघ के स्वयंसेवक श्री गोविंदाचार्य जी को सौंपा है और यही आज का सबसे बड़ा खुलासा है कि श्री मोहन भागवत ने भारत की राजनीति को चारों तरफ़ से अपनी मुट्ठी में रखने की योजना बनाई है, जिसमें कांग्रेस, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे लोगों को हाशिये पर फेंक देने की रणनीति ज़मीन पर उतारी जा रही है.

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