आज ही के दिन रात के बारह बजे हम लोग बादीपोरा पहुंचे थे ! (3 जून 2022 !) लगभग साठ घंटों का सफर कलकत्ता से कश्मीर का ! फिर आठ जून का वापसी का उसी गाडीका टिकट था ! इसलिए हाथों में सिर्फ चार दिन का समय था ! तो पहले दिन चार जून को वटालु के सरकारी स्कूल में और गांव में, पांच जून को श्रीनगर के प्रेस एनक्लेव में ! कश्मीर टाईम्स का सिल ठोका हुआ गेट देखकर, अत्यंत बेचैन होकर वापस आते आते मन में आया, कि तीन हप्ते के बाद आपातकाल की घोषणा के 47 साल होने के समय केंद्र की सत्ताधारी पार्टी आपातकाल की घोषणा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटने की उस समय की कृती को लेकर काफी कशिदे पढेंगे ! लेकिन वर्तमान समय में भारत के अभिव्यक्ति की क्या स्थिति बनाकर रखी है ? उसकी कश्मीर और मुख्यतः कश्मीर टाईम्स जीता जागता उदाहरण है ! लगभग आजादी के बाद कश्मीर का पहला अंग्रेजी अखबार ! वेद भसिन तथा बलराज पूरी जैसे समाजवादी मित्रों ने मिलकर इस अखबार की शुरुआत की थी ! जो भारत और कश्मीर के बीच में पुल का काम करता था ! जवाहरलाल नेहरू तथा शेरे कश्मीर शेख अब्दुल्ला भी बलराज पूरी और वेद भसिन साहब के साथ सलाह मशविरा करते थे ! और नेहरूजी के साथ बलराज पूरी कश्मीर के सवाल पर अघोषित प्रतिनिधि के हैसियत से कई – कई बार सलाह मशविरा किया है ! और बाद में भी फारुख अब्दुल्ला या ओमर तथा मुफ्ती मोहम्मद साहब से लेकर ! हुर्रियत के सभी धडो से लेकर, विभिन्न कश्मीरी गुटों के बीच कड़ी के तौर पर ! इस अखबार के बारे में मुझे हुर्रियत के मुख्यालय में आधे दिन की बातचीत में बताया गया था ! (2006 के मई माह में)

वहीं के रेसिडेंसी रोडपर गुलशन नाम की किताबों की पुरानी दुकान में, शेख अब्दुल्ला की आत्मकथा आतिशे चिनार मील गई ! जो मै काफी दिनों से ढूंढने की कोशिश कर रहा था ! सौ साल से भी पुरानी दुकान है ! श्रीनगर जैसे जगह पर इतनी बड़ी और हर तरह की किताबों का खजाना देखने के बाद मुझे तो साहित्य का गुलमर्ग – सोनमर्ग जैसा लगा ! दुकान को सम्हालने वाली मोहतरमा के अदब और नफासत के साथ बढीया चाय – बिस्कुट तथा हमने खरीदें हुए किताबों को अपने खर्च से पार्सल से भेजने की व्यवस्था देखकर बहुत ही अच्छा लगा !


और वहीसे पत्रकार मित्र परवेज ऋषि के साथ उसके गांव नेसबल जिला बांदीपोरा जाकर कुछ मित्रों के साथ मुलाकात की ! और वहां के वहाकपोर और गंदरबल के मंदिर, और हजरत ख्वाजा हिलाल नक्सबंदी के दरगाह हिलाल आबाद ! और आरागम, यह सब बांदीपोरा जिले के आसपास के झेलम नदी के किनारे स्थित गांवों में पांच जून को ! आधा दीन सभी जगह जाकर लौटने के समय ! वापसी के सफर में मनिषा बॅनर्जी ने परवेज का इंटरव्यू लिया ! तब परवेज ऋषि और उसके परिवार की दास्तानगोई सुनकर ! उस रात मै सो नहीं सका ! रातमे वापस बादीपोरा आऐ !


परवेज ने एम बी ए इंदौर से किया होने के बावजूद ! आज वह पचास से अधिक उम्र का होने के बावजूद उसे कोई नौकरी नहीं मिली ! फिर उसने पत्रकार के हैसियत से अपनी अंग्रेजी पत्रिका निकालने की कोशिश की ! लेकिन बगैर विज्ञापन के कारण उसे भी बंद करना पड़ा ! क्योंकि उसके पिता तथा एक भाईसाहब को आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार कर के ! काफी दिनों तक जेल में बंद रखने के कारण ! परवेज ऋषि के पूरे परिवार की हालत खस्ता होने के कारण ! परवेज ऋषि को उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है !


यह कहानी कश्मीर के हर एक दो घर के बाद तिसरे घर की है ! अकेले नसबल और गंदरबल तथा आरागम के परिसर में पांच जून को सुन रहा था ! और यही पांच जून अडतालिस साल पहले पटना के गांधी मैदान की जनसभा को संबोधित करते हुए जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति अब नारा है ! भावी इतिहास हमारा है कि घोषणा की तारीख का भी है ! और सुदुर हिमालय की गोद में, अमरनाथ यात्रा के रास्ते पर, झेलम नदी के किनारे के इन गांवों में ! रह रहे हमारे मित्रों कि जिंदगी का क्या हाल हुआ है ?
हमारे देश में इस तरह के हजारों उदाहरण बिहार, महाराष्ट्र से लेकर आसाम, बंगाल तथा उत्तरपूर्व में देखने को मिलते हैं ! ऐसे परवेजो को आजादी के पचहत्तर साल के क्या मायने लगते होंगे ? आखिर आजादी के मायने क्या है ? यह सवाल मेरे जेहन में पांच जून की रात भर जागकर मेरे मन में एक तुफान उठ खड़ा हुआ था ! बंगाल में तो सत्तर के दशक में काकीनाडा के जिस घर में मै 22 – 23 जून को ठहरा था! संदिप काकू के पिता नक्सलियों के साथ शामिल होने के कारण पूरे घर पर आज भी उसके अवशेष देखने को मिले हैं ! पानी इकठ्ठा कर के बडी मुश्किल से नहाने- धोने का काम किया ! और यह उनके जीवन का रोज का काम है ! परवेज हो या सजल काकू ! मुझे लगता है कि एक ही नांव के यात्रि हैं ! भले परवेज के गांव का नाम नसबल हो और सजल के गांव का काकीनाडा !


और दुसरे दिन वापस श्रीनगर पंडित संपत प्रकाश के, डल लेक के किनारे स्थित मकान (जो उनके बेटे को बिजली आपूर्ति विभाग के एंजिनिअर होने के कारण मिला हुआ सरकारी आवास था !) में दोपहर तक बातचीत की !


और वहां से श्रीनगर विश्वविद्यालय तथा उसके बगल के कुछ अर्कालॉजिकल साईट बुर्जहोम 1961 के खुदाई के समय प्रागैतिहासिक जगह पर भी गए ! जिसके बारे में जानकारी प्राप्त करने पर पता चला है कि 1961 में प्रारंभ हुई बुर्जहोम की खुदाई से प्राप्त चिजे कश्मीर के प्रागैतिहासिक काल की सबसे विश्वसनीय जानकारी का स्रोत है ! लेकिन हम जब उसे देख रहे थे ! बिल्कुल बेवारस स्थिती मे था ! पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के बोर्ड लगी हुई थी ! लेकिन कोई भी व्यक्ति जगह पर मौजूद नहीं था ! जो हमारे देश का प्रातिनिधिक उदाहरण था ! हमारे सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को लेकर हम तोडमरोडकर राजनीतिक हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल जरूर करते हैं ! लेकिन उनके रखरखाव के प्रति कितने चौकस है ? इस का प्रतिनिधित्व करने वाली बात लगती है ! और संपूर्ण राजनीति तथाकथित ऐतिहासिक धरोहर के इर्द-गिर्द लाकर खडी कर दी है !


मनिषा बॅनर्जी को कुछ खरीददारी करना था ! तो श्रीनगर के मुख्य बाजारों में जाना हुआ ! सात तारीख को आखिरी दिन था ! तो कुछ मंदिरों में जाकर वहां के लोगों के साथ बातचीत की ! क्योंकि सुना था कि कश्मीर के सभी मंदिर तोडे गए हैं ! लेकिन एक भी मंदिर टुटा हुआ तो दूर की बात है ! लेकिन उसे देखभाल के नाम पर रह रहे पंडितोके तेवर भयानक रूप से मुसलमान विरोधी ! और भयंकर रूप से उच्चवर्णीय जातिय मानसिकता से सरोबार देखकर ! मायूसी लेकर वापस आऐ ! इस बार पंडितों के तेवर काफी हैरानी वाले लगे ! हालांकि उनकी शुरू से ही एक रट रहतीं है कि ! वह कश्यप ऋषि के वंशज पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के ज्ञान के भंडार वाले लोग हैं ! और वह आज भी अपने ज्ञानी होने का अहंकार पुचकारते रहते हैं ! और अब कश्मीर फाईल्स ने उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होने के कारण 95 – 96 % मुस्लिम आबादी को म्लेंछ (अस्पृश्यता ! ) खुलकर बोलते हुए देखकर ! मुझे लगा कि अब आने वाले हजारों सालों में भी एक एक पंडित के पिछे सेना के जवानों की बहाली की तो भी ! कश्मीरी हिन्दुओं के वंशश्रेष्ठत्वके अहंकार के कारण ! इनका कश्मीर में अपने घरों में जाकर रहना असंभव है !


वैसे भी बहुसंख्यक पंडितों की आदत गत तीस सालों से, सरकारी भत्ते और मुफ्त के राशन और नाममात्र के सरकारी विभागों की नौकरी की, आदतों के कारण, वह भी सिर्फ भत्तों की बढोतरी और अन्य सहुलियत बढ़ाने की मांग करते हुए ! देखकर लगता है कि ” इन्हें अब इसी तरह की जिंदगी जीने की आदत हो गई है”
अब 1990 के बाद पैदा हुए पीढ़ी को, बिल्कुल भी कश्मीर का नोस्टालजीआ बचा नहीं है ! तो वह वापस किस लिए जायेंगे ? जब उनके अभिभावकों को ही इच्छा नहीं रही ! तो यह बच्चे तो यही कैम्प में पैदा हुए हैं ! तो उन्हें यहीं का जीवन पसंद है ! मुझे लगता नहीं की कोई पंडित कश्मीर वापस जाना चाहता हैं !
और बीजेपी की भी सिर्फ राजनीतिक रूप से पंडितों के वीषय को सुलझाने से ज्यादा ! उसे भुनाने में ज्यादा रुचि है ! अगर बीजेपी इस विषय पर गंभीर होती तो, आजसे बीस साल पहले एन डी ए के पहले सरकार के स्थापना के समय में ही (अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार के समय) इस समस्या का समाधान कर सकते थे !


लेकिन पुनुन कश्मीर के नेताओं ने कहा कि “संघ या उसके राजनीतिक इकाई ने अपने छ साल के कार्यकाल में कुछ भी नहीं किया ! हाँ चुनाव में कश्मीरी हिन्दुओं की स्थिति को खुब भुनाते रहते हैं ! जैसे मुंबई के माफिया कुछ छोटे बच्चों के हाथ – पाव काटकर उन्हें अपाहिज बनाकर फुटपाथों और सिग्नल के साथ भिक मांगने के लिए बैठाकर कमाई करने वाली कहानियों के जैसा ! हम पंडितों के साथ पिछले तीस सालों से बीजेपी बिल्कुल यही व्यवहार करते आई है ! वर्तमान सरकार ने 370 हमारे लिए नहीं हटाया! सिर्फ धन्नासेठों के लिए संपूर्ण हिमालय की वादियों को नष्ट करने के लिए किया गया है ! क्योंकि तिन साल होने को है लेकिन हमारे लिए नहीं कोई पहल हो रही है और न ही कोई हम में से वापस जाने वाले हैं !”
मै पिछले तीस सालों से भारत – तिब्बत मैत्री संघ के साथ जुड़ा हूँ ! 1994 में तिब्बत स्वायत्त करने के लिए विशेष रूप से दिल्ली के हिमाचल प्रदेश भवन में, मंडी हाउस के पास ! एक तीन दिन का संमेलन आयोजित किया गया था ! और मुझे जमुना पार अशोक विहार(बुद्ध पार्क भी बोला जाता है !) में जहाँ तिब्बती शरणार्थी कैम्प है ! वहां मुझे ठहराया था! तो मैंने देखा कि तिब्बती लोग 1948 के बाद भारत आने लगे ! तो इन चालिस – पचास वर्षों में, जो बच्चों का जन्म भारत में आनेके बाद हुआ है ! उन्हें अपने देश के बारे में मां-बाप से सुनने के अलावा और कुछ अनुभव नहीं है ! इसलिए जो लगाव उनके माता-पिता का है ! उतना बच्चों का नहीं दिखाई देता है ! वह मजेसे पब कल्चर और पॉप संगीत की धुन में, अमेरिकी जिन्स कमर पर चढाकर, हाथों में बियर के टिन लेकर मस्त थे !

और दुसरे दिन तिब्बत मुक्ति के संमेलन के उद्घाटन समारोह के, मुख्य अतिथि श्री. जॉर्ज फर्नाडिस किसी कारणवश अचानक नही आ सके ! तो आयोजकों की, अचानक ही इस संमेलन का उदघाटन समारोह की अध्यक्षता डॉ. सुरेश खैरनार करेंगे कि ! घोषणा सुनकर मैं हक्काबक्का रह गया !


मैं कलकत्ता से एक सामान्य प्रतिभागी के हैसियत से आया था ! और आयोजकों ने क्या सोचते हुए मुझे उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता वाली जिम्मेदारी सौंपी ? और मुझे मजबूर होकर अपने अध्यक्षीय कुर्सी पर बैठने के लिए स्टेजपर चढना पड़ा !
और जीवन में पहली बार आदरणीय दलाई लामाजी से मिलने, और उनके बगल में दिनभर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! उसके पहले आदरणीय दलाई लामाजी के हाथों से मेरा तिब्बती साफा गले में डाल कर, सत्कार हुआ ! और उसके बाद दलाई लामाजी ने अपनी छाती से लगाकर मेरी पिठ पर दो – तीन मीनट थप-थपाने का, एक बच्चे को बडे बुजुर्ग करते वैसे अनुभव से मै आत्मविभोर हो गया था ! मेरी जिन्दगी में इस तरह का यह पहला अवसर था ! और लगभग सबेरे के तीन घंटे, और उसके बाद दोपहर के खाने के बाद फिर तीन घंटों के सेशन में दलाई लामा मेरे बगल में सामने के टेबल पर अपनी दोनों कोहनिया रखकर, अपने सरको उसके उपर रखते हुए ही ! ज्यादा समय रहे ! आयोजक समिति के अध्यक्ष डॉ आनंद कुमार ने बताया कि वह अभी – अभी योरप के दौरे से लौटकर आए हैं और बहुत ही हताश मनस्थिती में है ! उन्हें कोई भी आशा की किरण तिब्बत के सवाल को हल करने के लिए नही दिखाई दे रही है !


क्योंकि लगभग सभी लामा लोग, फिर जवान हो या बुजुर्ग ! सिर्फ एक ही बात बोलते थे कि हमारा चिन के साथ कोई बैर नही है ! हम तो सिर्फ घंटी को बजाकर बुद्ध वंदना गाकर हमारे देश को वापस लेंगे ! कमअधिक सभी वक्ताओं की भाषा और भुमिका एक ही थी ! उस कारणवश मेरे भाषण की तैयारी हो गई थी ! अन्यथा शुरू में मुझे अचानक ही अध्यक्ष बनाने के बाद मै बहुत चिंतित हो गया था कि, यहां पर क्या बोलुंगा ? लेकिन  छह-सात घंटों के लामा लोगों के एक सुर वाले बेसिरपैर के, भाषणों को सुनने के बाद मेरे तो तन-बदन में आग लग गई थी ! और माईक के सामने आते ही मैंने बहुत ही तैश के साथ ! भाषण देते हुए कहा कि “व्यक्तिगत जीवन में अध्यात्मिक साधना के लिए घंटी बजाकर बुद्ध वंदना करना ठीक है ! लेकिन किसी देश की स्वतंत्रता के लिए इस तरह के कर्मकाण्ड हजारों वर्ष करते रहे तो भी कुछ पत्ता भी हिलने वाला नहीं है ! और चीन जैसे जल्लादो के साथ पाला पड़ा है ! तो वह इस तरह की हरकतों से बाज नहीं आने वाला है ! देशों की आजादी के तरीके सालों साल अनेक देशों की जनता के प्रयत्नो से ! कई मुल्कों ने आज़ादी हासिल की है ! जैसे कि हालही में दक्षिणी अफ्रीका के आंदोलन के कारण ! नेल्सन मंडेला के नेतृत्व वाली सरकार का राज कायम हुआ है ! इसी तरह फिलिस्तीनी जनता की लड़ाई, तथा इरानी क्रांति, और खुद चीन की क्रांति का उदाहरण देते हुए ! कहा कि देश की स्वतंत्रता के लिए क्या किया जाए !”
बाद में आयोजको ने कहा कि ” दलाई लामा जो कोहनिया के उपर टेबल पर सर रख कर निढाल होकर बैठें थे ! तो जैसे आप बोलने लगे ! और जिस जोशीले अंदाज में आपने अपने बोलने की शुरुआत की थी ! तो उन्होंने उठकर बच्चों के जैसे तालियां बजाते हुए आपके भाषण को खुब सराहा है ! और कल आपको अपने प्रेसिडेंट सुट जो अशोका होटल में है ! आपको कल दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया है !”


तो मुख्य मुद्दा तिब्बती बच्चे कैसे, भारत की धरती पर जन्म होने के कारण ! उन्हें तिब्बत का नोस्टालजीआ लगभग नही के बराबर, देखने के कारण, मैने अपने अध्यक्षता वाली बात में ! इस बात का भी समावेश कर के, बात रखने की कोशिश की !” कि जितना लंबे समय तक आप लोगों के घंटी बजाते हुए बुद्ध वंदना चलते रहेगी ! उतनी ही तिब्बत की आजादी की लड़ाई दूर – दूर होने की संभावना है ! क्योंकि आप कि भारत में पैदा होने वाले पीढ़ी को, आपके जैसा तिब्बत की भूमि का आकर्षण नहीं है !
और आज बिल्कुल हमारे कश्मीर के पंडित मित्रों के बच्चों को देखते हुए ! मुझे अठ्ठाईस साल पहले तिब्बत के संमेलन के कारण ! तिब्बती लोगों के साथ ठहराया जाने के कारण ! मुझे उनके बच्चे – बच्चियों को नजदीक से देखने का मौका मिला ! तो यह बात मेरे ध्यान में आई थी ! जो कश्मीर के पंडितों के साथ 2006 से लगातार संपर्क में आने के कारण ! (पुनुन कश्मीर के निमंत्रण पर जम्मू और उसके आसपास के सभी शरणार्थी शिविरों में जाने का मौका मिला था !) समय-समय पर मेरी हर कश्मीर यात्रा के दौरान ! मैंने कश्मीरी पंडितों के साथ मुलाकात करने का प्रयास किया है !

और जून में कुछ पंडित व्हॅली में मंदिर तथा अन्य जगहों पर और वापसी के सफर के दौरान जागती तथा नगरोटा के कैम्पो में भी यही नजारा देखने को मिला है ! और मनमें यही टीस लेकर आया हूँ, कि 94% मुसलमानो को अछूत मानते हुए ! वापस व्हॅली में पंडितों का आना संभव हो सकता है ? समस्त भारत में इस्लाम और इसाई धर्म का आगमन भारत की जातीव्यवस्था के कारण हुआ है यह बात सौ साल पहले स्वामी विवेकानंद जी ने कहीं है ! इसके अलावा डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने 1936 के येवला की सभा में कहा था कि मैं हिंदु के रूप में पैदा जरुर हुआ हूँ ! लेकिन हिंदु के रूप में मरूंगा नही ! और मरने के सिर्फ पचास दिनों के भीतर 14 अक्तुबर 1956 के दिन नागपुर के दिक्षाभूमी पर अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदु धर्म का त्याग कर के बौद्ध धर्म की दिक्षा लेकर बुद्ध धर्म को अपनाया है ! और उस घटना से सबक लेने की जगह संघ के प्रमुख श्री माधव सदाशिव गोलवलकर ने कहा ” कि आखिर में डाॅ आंबेडकर ने हिंदु धर्म के एक पंथ बौद्ध धर्म के अंदर ही कुद लगाई” ! इस तरह के संकुचित विचार रखने वाले लोगों से भला कैसे हिंदु धर्म का रक्षण होगा ? और भारत की बहुआयामी संस्कृति को बढ़ावा !!
डॉ सुरेश खैरनार 4 जुलै 2022, नागपुर

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