policeफैक्ट फाइल

  • 3 फरवरी को नोएडा के एक जिम ट्रेनर का फर्जी एनकाउंटर
  • विधानसभा व विधानपरिषद में उठा था फर्जी एनकाउंटर का मुद्दा
  • 1996 में प्रमोशन हेतु पुलिस ने किया था युवकों का एनकाउंटर
  • 112 लोगों की गवाही के बाद हुई थी चार पुलिसकर्मियों को सजा
  • मानवाधिकार हनन में सबसे आगे है उत्तर प्रदेश पुलिस
  • 22,655 शिकायतों में से 12,771 पुलिस के खिलाफ
  • 2017 में पूरे उत्तर प्रदेश में 895 पुलिस एनकाउंटर हुए

उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़, अपराधियों के साथ साठगांठ और निर्दोष लोगों को अकारण प्रताड़ित करने की अचानक तेज गति से बढ़ी प्रवृत्ति के कारण आम जनमानस में उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि में गिरावट आई है. हाल की कई घटनाओं से पुलिस महकमे की कार्यशैली पर गहरे सवाल खड़े हुए हैं. नोएडा में हुए फर्जी एनकाउंटर ने आम लोगों के मन में पुलिस के प्रति दहशत पैदा कर दिया है. आपको याद होगा कि बीते तीन फरवरी की रात को एक जिम ट्रेनर और उसके साथी को एक प्रशिक्षु सब इंस्पेक्टर ने गोली मार दी थी. फिर उक्त घटना को फर्जी मुठभेड़ का रूप दे दिया गया.   यह वाकया पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है. इस मामले की गूंज विधानसभा और विधानपरिषद तक सुनाई दी, लेकिन इसका कोई ठोस निराकरण नहीं हुआ.

फर्जी एनकाउंटर और इसके जरिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने का पुलिस का शॉर्टकट तरीका समाज के लिए खतरनाक है. यूपी में हो रहे कई फर्जी एनकाउंटर 1996 में गाजियाबाद के भोजपुर थाना इलाके में हुए फर्जी एनकाउंटर की याद दिलाते हैं, जिसे प्रमोशन पाने के लिए अंजाम दिया गया था. आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने के लिए पुलिसकर्मियों ने दो युवकों को पुलिया पर और दो युवकों को ईख के खेत में मार गिराया था. मुठभेड़ साबित करने के लिए उनके पास तमंचे रख दिए गए थे और उनसे 16 राउंड फायर किए जाने का दावा किया गया था. इस मामले में 112 लोगों ने गवाही दी थी. सीबीआई अदालत ने इस मामले में चार पुलिसकर्मियों को हत्या और फर्जी सबूत पेश करने का दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी.

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में सिधौली कोतवाली अन्तर्गत ग्राम बिशुनदासपुर में तीस दिसम्बर 2017 की रात को एक प्रशिक्षु उपनिरीक्षक सहित अन्य पुलिसकर्मियों ने एक दलित व्यक्ति की निर्ममतापूर्वक पिटाई की, फिर उसे पूरे गांव में घुमाया. पुलिस ने उस व्यक्ति से पांच सौ उठक-बैठक लगवाई और मुर्गा बनाकर चलवाया. इस घटना से स्थानीय लोग स्तब्ध हैं. लोगों का कहना है कि पुलिसकर्मियों को दी गई अतिरिक्त शक्तियों का लगातार बेजा इस्तेमाल हो रहा है लेकिन सरकार इस दिशा में कोई उचित कदम नहीं उठा रही है. इस तरह की घटनाओं के अलावा पुलिस विभाग अपने आंतरिक चारित्रिक विरोधाभासों में भी फंसा हुआ है और सार्वजनिक तौर पर अपनी बदनामी करा रहा है.

झूठी शिकायत पर निलंबन, पुलिसकर्मियों में रोष

पिछले दिनों मिर्जापुर जिले के अदलहाट थाने में तैनात एक उप निरीक्षक को उस गलती की सजा मिली, जो उसने की ही नहीं थी. एसपी ने चुगलखोरों की शिकायत पर उसे निलंबित कर दिया. विभाग में इस बेजा कार्रवाई को लेकर काफी रोष है. वाराणसी-सोनभद्र नेशनल हाईवे पर स्थित मिर्जापुर का अदलहाट थाना कमाऊ थानों में से एक है. यहां बराबर आवागमन रहने के साथ-साथ सोनभद्र से बड़ी संख्या में खनन से भरे बड़े वाहनों का भी आना-जाना लगा रहता है. इसके अलावा सोनभद्र की सीमा से लगे बिहार, सिंगरौली मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के रास्ते भी बड़े वाहनों का आवागमन होता है.

पिछले दिनों अदलहाट थाने में तैनात उपनिरीक्षक विजय प्रताप (जो अनुसूचित जाति से हैं) को महज इसलिए दंडित किया गया कि उन्होंने ओवरलोडेड ट्रक को छोड़ने से इंकार कर दिया. जबकि उत्तर प्रदेश शासन के आदेशानुसार अवैध खनन के साथ ओवरलोडेड ट्रकों को सीज करना पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी है. उपनिरीक्षक विजय प्रताप अपनी ड्यूटी पर थे और इसी क्रम में उन्होंने कुछ ओवरलोडेड वाहनों को पकड़ा था. अदलहाट के थानाध्यक्ष ने उन अवैध ओवरलोडेड ट्रकों को छोड़ने का दबाव बनाया. वाहन छोड़ने से मना करने पर थानाध्यक्ष ने दारोगा विजय प्रताप के खिलाफ मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी का कान भर दिया.

नतीजतन विजय प्रताप का स्थानान्तरण थाना हलिया (मध्य प्रदेश सीमा) कर दिया गया. इस बीच सोशल मीडिया पर अदलहाट के थाना प्रभारी का ऑडियो वायरल हो जाने के कारण मामले ने तूल पकड़ लिया. ऑडियो से थाना प्रभारी और खनन माफिया की मिलीभगत का खुलासा हो गया. दारोगा विजय प्रताप ने उसी ऑडियो का सहारा लेकर न्याय की गुहार लगाई तो एसपी ने उन्हें निलंबित कर दिया. जबकि विवादों में घिरे अदलहाट के थाना प्रभारी पर एसपी की कृपा दृष्टि बनी रही. पीड़ित उप निरीक्षक ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर न्याय की गुहार लगाई है.

अराजपत्रित पुलिस वेलफेयर संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह यादव कहते हैं कि बेजा कार्रवाइयों से पुलिसकर्मियों में तनाव और अधिकारियों के खिलाफ आक्रोश पैदा होता है. उन्होंने हाल में सिद्धार्थनगर जिले के शोहरतगढ़ के थानेदार शमशेर बहादुर सिंह को लाइन हाजिर किए जाने और मिर्जापुर के अदलहाट थाने के उप निरीक्षक विजय प्रताप को निलंबित किए जाने को सर्वथा गलत करार दिया. यादव पूछते हैं कि भ्रष्ट थानेदार का बेजा आदेश नहीं मानने वाले दारोगा की सराहना करने के बजाय उसे स्थानान्तरित करना और फिर निलंबित करना कहां का न्याय है! उन्होंने कहा कि इस चलन को बंद करना होना, वरना वह दिन दूर नहीं जब पुलिस के जवान अधिकारियों द्वारा बेजा उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन करने को विवश हो जाएंगे.

मानवाधिकार हनन में यूपी पुलिस अव्वल

यूपी राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) के आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में सबसे अधिक मानवाधिकारों का हनन पुलिस ही कर रही है. आयोग को मिली शिकायतों में 56 प्रतिशत शिकायतें पुलिस के खिलाफ हैं. यह स्थिति वर्ष 2017 के आखिरी महीने तक की है. उसके बाद तो स्थितियां और भी नकारात्मक दिशा में ही बदली हैं. स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश पुलिस मानवाधिकार के संवेदनशील मसले पर कोई ध्यान नहीं देती.

राज्य मानवाधिकार आयोग को मिली शिकायतों का आंकड़ा देखें, तो एक अप्रैल 2017 से लेकर 30 नवम्बर 2017 के बीच मानवाधिकार उल्लंघन की कुल 22,655 शिकायतों में से 12,771 शिकायतें पुलिस के खिलाफ थीं. इन शिकायतों में एनकाउंटर के नाम पर हत्या, पुलिस हिरासत में मौत, बिना एफआईआर थाने में बैठाने, पूछताछ के नाम पर हिरासत में लेने, जांच के नाम पर उत्पीड़न करने जैसी शिकायतें शामिल हैं. दूसरे नंबर पर शिकायतों में जमीन और राजस्व रिकॉर्ड से जुड़े मामले हैं. उत्तर प्रदेश में महिला उत्पीड़न के मामले भी तीसरे नंबर पर हैं.

कौन बन रहा है मुठभेड़ों का निशाना!

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 1200 मुठभेड़ों में 40 अपराधी मारे गए. आंकड़े बताते हैं कि महज 10 महीनों में 1100 से अधिक पुलिस मुठभेड़ों में 35 से अधिक अपराधी मारे गए. उत्तर प्रदेश में इस समय मुठभेड़ का बोलबाला है. मुख्यमंत्री इसे कानून व्यवस्था बहाल रखने का उपाय बताते हैं तो समाजवादी पार्टी कहती है कि हर मोर्चे पर नाकाम साबित होने के बाद अब योगी सरकार अपनी कमियों को छिपाने के लिए मुठभेड़ का सहारा ले रही है. उल्लेखनीय है कि मथुरा में 18 जनवरी को एक बच्चे की गोली लगने से मौत हुई थी, तो वहीं 15 सितंबर को नोएडा में एक कथित मुठभेड़ में मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को गोली लगी थी. राज्य सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि आम लोगों के अलावा अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया जा रहा है.

सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि पुलिस मुठभेड़ों में निर्दोष लोगों की हत्या हो रही है और पिछड़ी जातियों, दलितों, अल्पसंख्यकों और किसानों को निशाना बनाया जा रहा है. इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपराधियों के प्रति सहानुभूति दिखाना दुर्भाग्यपूर्ण है और लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. यूपी पुलिस के पूर्व आईजी एसआर दारापुरी कहते हैं कि सरकार को पुलिस मुठभेड़ों का ब्यौरा जारी करना चाहिए कि एनकाउंटर में मारे गए लोग किस समुदाय के थे और उनका अपराध क्या था.

हालांकि पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह का कहना है कि अपराधी जब निरंकुश हो जाए तो पुलिस के लिए ऐसा कदम उठाना आवश्यक हो जाता है. पुलिस पर हमला होने लगे तो गोली का जवाब गोली से देना ही पड़ता है. प्रकाश सिंह ने साफ-साफ कहा कि अपराध को समाप्त करने के लिए बहुत काम करने होते हैं. यूपी में हजार एनकाउंटर में अगर 30 से 35 अपराधी मरे तो यह कोई बड़ा आंकड़ा नहीं है. वे कहते हैं कि मानवाधिकार का अर्थ यह नहीं है कि बदमाश गोली चलाए और पुलिस चुपचाप खड़ी रहे.

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में पूरे उत्तर प्रदेश में 895 पुलिस एनकाउंटर हुए, जिसमें 26 अपराधियों को मार गिराया गया और 196 अन्य घायल हो गए. वर्ष 2018 के दो महीनों में यह संख्या 40 के करीब पहुंच चुकी है. बीते साल अपराध प्रभावित मेरठ जोन में ही 359 एनकाउंटर हुए. वर्ष 2017 में जिन 26 अपराधियों को मार गिराया गया, उनमें से केवल मेरठ जोन में हुए पुलिस एनकांउटर में 17 अपराधी मारे गए. मेरठ जोन में मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, सहारनपुर, मुजफ्फनगर, शामली, बागपत और बिजनौर जिले शामिल हैं. मेरठ के बाद आगरा जोन का नंबर है, जहां पिछले वर्ष 175 एनकाउंटर हुए. इस दौरान 469 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया, जबकि गोली लगने से 17 घायल हो गए. तीन बड़े अपराधी मुठभेड़ में मारे गए.

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