आख़िरकार सीबीआई ने 17 सालों की तफ्तीश के बाद केरल के बेहद चर्चित और विवादित सिस्टर अभया हत्याकांड में चार्जशीट दाखिल कर ही दी. सीबीआई ने सिस्टर अभया के हत्यारे के तौर पर फादर थामस कोट्टोर, फादर जोश पुथरूकाइल और नन सिस्टर सेफी को नामित किया है. सीबीआई ने यह चार्जशीट आईपीसी की धारा 302,201 और 449 / 34 के तहत दाख़िल की है. सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में केरल के चर्चों में फैले भ्रष्टाचार का साफ तौर पर ज़िक्र किया है और कहा है कि सिस्टर अभया उर्फ बीना थामस इसी अराजकता की शिकार बनी.
दर थामस कोट्टोर, फादर जोश पुथरूकाइल और नन सिस्टर सेफी ने अपने अवैध संबंधों को छुपाने की ग़रज़ से सिस्टर अभया का क़त्ल कर दिया. एर्नाकुलम के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में सीबीआई द्वारा पेश किए दस्तावेजों में इन तीनों आरोपियों के ख़िला़फ ठोस सबूत हैं. इनमें 133 साक्षियों, 67 दस्तावेजों, सात ठोस सबूतों के अलावा आरोपियों के ब्रेन मैपिंग टेस्ट, पॉलीग्राफी टेस्ट, फिंगर प्रिंट टेस्ट और नार्को टेस्ट के नतीजे शामिल हैं. इस मुक़ाम तक पहुंचने की ख़ातिर सीबीआई को बेहद जद्दोज़हद करनी पड़ी है. तमाम आरोपों से गुज़रना पड़ा है और धार्मिक संगठनों का तीव्र विरोध झेलना पड़ा है. साक्ष्यों को जुटाने के लिए सीबीआई को बड़ी मगज़मारी करनी पड़ी. 27 मार्च 1992 को जब सिस्टर अभया की लाश उसके हॉस्टल में पाई गई तो उसकी मौत के मामले की छानबीन का ज़िम्मा स्थानीय पुलिस को सौंपा गया. अभया की मौत का मामला सेक्शन 174 के तहत अप्राकृतिक मौत के रूप में दर्ज़ किया गया. क्राइम ब्रांच सीआईडी ने जांच के नाम पर लगभग दस महीनों तक मामले को लटकाए रखा और 30 जनवरी 1993 को इस केस का क्ला़ेजर रिपोर्ट दाख़िल कर दिया. सीआईडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सिस्टर अभया की हत्या नही हुई है बल्कि उसने आत्महत्या की थी.
लेकिन इस दरम्यान यह मामला लगातार सुर्ख़ियों में बना रहा था. सीआईडी की रिर्पोट आते ही जैसे सामाजिक संगठनों में उफान आ गया. उन्होंने इस नतीजे का विरोध करना शुरू कर दिया.
तब केरल सरकार के निवेदन पर सीबीआई ने सिस्टर अभया की मौत का मामला हत्या के मामले के तौर पर रजिस्टर्ड किया. सीबीआई के निदेशक अश्विनी कुमार बताते हैं कि इस केस को सुलझाने में सीबीआई को जाने कितने उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा. हत्या के लगभग एक साल बाद यह मामला सीबीआई के पास आया था. तब तक सारे सबूत मिट चुके थे. हत्या के समय नन द्वारा पहने गए कपड़े और दूसरी निजी चीज़ें, ग़ायब थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट, केमिकल रिपोर्ट और लेबोरेटरी रिपोट्र्स को मिटा दिया गया था या उन पर ओवर राइटिंग की गई थी. पह बात भी सामने आई कि हत्या कीशुरुआती जांच में लेबोरेटरी अधिकारियों ने पुलिस को जांच में मदद नहीं की थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र था कि अभया की मौत डूबने से हुई थी.
लिहाज़ा इस मामले में सीबीआई के सामने बहुत मुश्किलें थीं. यहां तक कि सच तक पहुंचने के लिए इस मामले के शुरुआती जांच अधिकारी वी वी आगस्टिन का नार्को टेस्ट भी कराना पड़ा. आगस्टिन हत्या की सुबह ही हास्टल में वारदात की जगह गए थे, पर वे सबूत जुटाने में नाकाम रहे थे. सबूत जुटाने के लिए सीबीआई ने डमी टेस्ट किया. सीबीआई की तफ्तीश में गवाहों के बयान, उस आधार पर मिले सबूतों और परिस्थितिजन्यसाक्ष्यों से यह बात साफ हो चुकी थी कि दो फादर और एक नन के बीच के त्रिकोणीय यौन संबंधों को छुपाने की वजह से अभया का क़त्ल हुआ था. मामला चूंकि कैथोलिक चर्च से जुड़ा था इसलिए हर एक क़दम सावधानी से उठाना था. अभया की लाश कोट्टयम के सेंट पीयूष एक्स कान्वेंट हॉस्टल के पिछवाड़े स्थित एक कुएं से पाई गई थी. उसके शरीर और सिर पर चोट के गहरे निशान थे. संयोग से इस बात का ज़िक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी था. जब सीबीआई ने तहक़ीक़ात शुरू की, तो उसके हाथ कोई सिरा नहीं आ रहा था. तब डमी टेस्ट किया गया. डमी को हर एंगल से घुमा कर उस कुएं में फेंका गया, ताकि पता चल सके कि अगर अभया ने आत्महत्या की थी तो कुएं में कूदने के दौरान उसे कहां कहां चोटें लग सकती थीं. इस टेस्ट से सीबीआई के हाथ बड़े अहम तथ्य लगे. पाया गया कि पोस्टमार्टम में जिन चोटों की चर्चा है, वे तो कुएं में इस तरह कूदने से आ ही नहीं सकतीं. ख़ासकर अभया के सिर पर लगी गहरी चोट.
शरीर पर पड़े घिसटने के निशान. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अभया की मौत का कारण सिर पर लगे चोट को ही बताया गया था. बस, सीबीआई ने इसे आधार बना कर अपनी तफ्तीश
आगे बढ़ाई. फिर तो शक़ की बिना पर आरोपियों से पूछताछ और गवाहों के बयानों का सिलसिला चल निकला. भारी
विरोध के बावजूद आरोपियों का नार्को टेस्ट कराया गया. मज़े की बात तो यह है कि नार्को टेस्ट में तीनों ही आरोपियों ने अपना गुनाह क़बूल किया है. पर होश में वे लगातार मुकरते रहे हैं. देर से ही सही, सीबीआई ने जांच कार्य पूरा करने में
सफलता पाई.
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