जयप्रकाश आंदोलन के दौरान प्रोफेसर महेंद्र कर्ण एन. एन. सिन्हा संस्थान के निदेशक थे ! और ए. एन. सिन्हा संस्थान के सामने पटना का एतिहासिक गाँधी मैदान है ! जेपी आंदोलन के दौरान कर्ण साहब और श्रीमती कर्ण आंदोलन के साथीयो के लिए रोटी सब्जी के बड़े-बड़े बर्तन अपने हाथों में लेकर बांटने वाले निदेशक शायद पहले और आखिरी रहे होंगे !
काश हमारे देश में ऐसे सौ भी अकादमीशियन हो तो संपूर्ण देश की तस्वीर बदल गई होती ! लेकिन ज्यादातर लोग अपने – अपने स्वार्थ को साधने में लगे हुए हैं ! अन्यथा आज पचहत्तर साल के आजादी के बाद भी ! गैर बराबरी से लेकर जाती-धर्म को लेकर, चल रहे झगड़ों में ! हमारे देश के लोग उलझे हुए नहीं रहते ! और महंगाई आसमान को छू रही है ! बेरोजगारी दिन-प्रतिदिन बढ रही है ! और भ्रष्टाचार के बारे क्या कहेंगे ?
गौतम अदानी जैसे आदमी को पच्चीस साल के भीतर दुनिया के सबसे बड़े अमीरों में शामिल कराने के लिए ! हमारे देश के सभी संसाधनों से लेकर संस्थानों को बेचने के बावजूद ! देश में कुछ भी हलचल हो नहीं रही है ! कार्ल मार्क्स के “धर्म अफीम है !” यह उक्ति शतप्रतिशत सही साबित हो रही है ! डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण जैसे समाजशास्त्री का जाना ऐसे समय में, और अधिक अखर रहा है ! जयप्रकाश आंदोलन में 1974 – 75 के समय में भारत के तमाम लेखक, कवि, पत्रकारों से लेकर डॉ. कर्ण के जैसे अकादमिक क्षेत्र के लोगों की बरबस याद आ रही है !
लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद ! चरवाहे विद्यालय से लेकर पहलवान विद्यालय की संकल्पना रखने वाले समाजशास्त्री ! और लालूजी ने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में कुछ हदतक दोनों योजनाओं को अमल में लाने का काम किया है ! मैंने 1972-75 के समय से जेपी आंदोलन के दौरान बिहार आना-जाना शुरू किया था !
और भागलपुर दंगे के बाद 1990 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार की तुलना में डॉ. कर्ण को जब कहा “कि महाराष्ट्र में दो सौ साल पहले फुले और उनके बाद सौ साल पस्चात डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को आत्मविश्वास दिलाने का प्रयास किया है ! लेकिन भगवान बुद्ध और महावीर की और सम्राट अशोक की भूमि को पिछले दो हजार साल के बाद ! और सम्राट अशोक के जैसे भारत के एकमात्र राज्य जो वर्तमान समय के अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक फैला हुआ होने के बावजूद ! आज बिहार के पिछड़े तथा दलितों में जो आत्मविश्वास बढते हूए देख रहा हूँ ! वह आने वाले पचास वर्षों में भारत के समाजशास्त्रीयो को इस बात का सज्ञान लेना पडेगा !”
इसके उदाहरण के लिए मैंने 90-91 में भागलपुर दंगे के बाद के काम के समय किसी पांडेजी के घर भोजन के लिए गए थे ! तो भोजन के पहले बातचीत में पांडेजी ने आंखों में पानी लाकर बहुत ही क्रोध और आवेश में कहा ” कि देखिए ना कुछ दिनों पहले ! सुरेशजी यह – – – – – पिछड़े वर्ग के लोगों की हमारे सामने खडे होकर आंख में आंख मिलाने की हिम्मत नहीं थी ! लेकिन लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद, इनके व्यवहार में परिवर्तन आया है ! और अब यह हमारे यहां आने के बाद खुद ही कुर्सी को खिंचकर बैठ कर आंखों में आखें मिलाकर बात करते हैं ! सुरेशजी यह देखकर मेरे तन-बदन मे आग लग जाती है !” और वह रोने लगे !
मैंने उन्हें बहुत ही प्रेम से समझाया कि” पांडेजी अब वह दिन रहे नहीं ! देखिए उधर दक्षिण अफ्रीका में सौ सालों पहले महात्मा गाँधी जी गए थे ! और काले – गोरे के भीतर अपने यहां जाति को लेकर जिस तरह छुआछूत और अभी आप बता रहे थे ! वैसे ही काले रंग के लोगों को गोरे रंग के लोगों ने व्यवहार किया है ! लेकिन नेल्सन मंडेला नामके नेता ने पैतिस साल इस बदलाव के लिए जेल में गुजार दिए ! और वह जेल में जवान थे तब गोरों की सरकारने उन्हें बंद कर दिया था ! और अब वह साठ साल से भी अधिक उम्र के होकर बाहर आए हैं ! और अब गोरे राष्ट्रप्रमुखों के जगह पर नेल्सन मंडेला की सत्ता आई है ! और यही जनतंत्र का तकाजा है ! और शेकडो सालों से पहले इंग्लैंड से अफ्रीकी देशों में गए ! गोरे लोगों को अब स्थानीय लोगों के आंदोलन के कारण ! सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है ! तो अब संपूर्ण विश्व में परिवर्तन की बयार चल रही है ! तो हमारे देश में भी होना स्वाभाविक है ! इसलिए आप अपने आपको मानसिक तकलीफ लेने की जगह बडा दिल करते हुए खुद को नए बदलाव के लिए तैयार कर लिजिए !
हमारे देश में भी रामास्वामी नायकर उर्फ पेरियार, कांशीरामजी, जयप्रकाश नारायण डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी तथा डॉ. राम मनोहर लोहिया, शिबू सोरेन, शंकर गुहा नियोगी, जयपालसिंह तथा डॉ. राम दयाल मुंडा, डॉ. बी. डी. शर्मा जैसे लोगों ने दलितों तथा महिलाओं आदिवासीयो और पिछड़े वर्ग के लोगों को लेकर काफी सार्थक पहल की है !
डॉ. राम मनोहर लोहिया जन्मना मारवाड़ी समाज के होने के बावजूद ! उन्होंने कहा कि “सौ मे पावे पिछडा साठ” क्योंकि हमारे देश की आबादी में हम तथाकथित सवर्ण समाज के लोगों की संख्या पच्चीस प्रतिशत भी नहीं है ! और जमीन, धन, संपत्ति सब कुछ इन उंची जाती के लोगों के हाथों में है ! तो हमें भी उदार होने की जरूरत है ! और पिछड़े या दलित अपने आंगन में आने पर उसे खुद ही सम्मान से आओ बेटा ! और खुद ही उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहोगे तो अच्छा होगा ! अन्यथा आप अपने बीपी को बढाकर अपनी तबीयत खराब करने की कोई जरूरत नहीं है ! जमाने के साथ इसे आपको स्विकार करना चाहिए ! और अपने आपको बदलने की जरूरत है !
वैसे ही मैंने सत्तर के दशक में पटना स्टेशन पर उतर कर, किसी भी साईकिल रिक्षेवाले को बोला कि मुझे कदमकुआ चलना है ! कितना लोगे ? तो वह झुककर हुजूर आपको जो देना हो दे दिजीए यह बोलता था ! और गंतव्य स्थल आने के बाद उसे रुपये अठन्नी जो भी हाथों में आए वह देने के बाद ! वह आपने क्या दिया इसे बगैर देखें, दोबारा हुजूर बोलते हुए झुककर सलाम करते हुए चुपचाप निकल जाता था !
लेकिन अस्सी वाले दशक में, पटना स्टेशन पर किसी भी रिक्षेवाले के साथ ! बगैर मोलभाव किए वह आपको बैठने नही देता है ! और अपने मनमर्जी से उनका इस्तेमाल करने की कोशिश की तो वह हुज्जत करते हुए अपने हिसाब से पैसे वसूल करने के बाद ही निकलेगा ! और कोई और होगा तो आपको दो बातें सुनाकर जाएगा ! यह परिवर्तन साधारण परिवर्तन नहीं है !
डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने महाराष्ट्र में दलित समुदाय के लोगों को आत्मविश्वास दिलाने के लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर जद्दोजहद की है ! लेकिन लालू प्रसाद यादव ने अपनी जनसभाओं में अपनी गरीबी तथा घर की माली हालत के बारे में लाखों लोगों की जनसभाओं में अपने पैर को उठाकर भरी सभा में सब को दिखाते हुए “देखों मै अपने जीवन में कभी भैंस चराने के लिए गया हूँ ! और भैंस ने मेरे पैर पर पैर रखने के कारण मेरा अंगूठे का यह हिस्सा खराब हो गया है ! उस सभा में बैठे हुए कितने लोग अपने आपको लालू प्रसाद यादव के साथ रिलेट करते होंगे ? और उनके भितर आत्मविश्वास पैदा होता होगा ! कि यह आदमी भी अपने जैसे परिस्थितियों से आकर, आज बिहार के मुख्यमंत्री पद पर पहुंचा है ! अगर आप समाज में काम कर रहे हैं ! और आपका दावा है ! “कि मैं वुमेन – मैंन इम्पॉवरमेंट करने की कोशिश कर रहा हूँ !” तो इसका मायने क्या हुआ ? डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण के साथ जब मैं इस तरह से बोलता था ! तो उन्होंने कहा “कि सुरेशजी अभितक लालू प्रसाद यादव को आंदोलन के साथीयो को कभी भी लालूजी बोलते हुए नही देखा ! और बहुत ही हीन भावना से बोलते हुए देखा हूँ !” मैंने कहा ” कि वह लाख संपूर्ण क्रांति के आंदोलन के नेता या कार्यकर्ता होंगे ! लेकिन कार्ल मार्क्स की भाषा में डि कास्ट या डि क्लास नही होने के कारण ! उनके अंदर की जाती या उनके वर्ग के कारण वह लालूप्रसाद यादव को उचित सम्मान नहीं दे रहे हैं ! डॉ. महेंद्र नारायण कर्ण यह सुनने के बाद बोलते थे “कि कभी आपकी और लालूजी की मुलाकात होनी चाहिए ! तो मैंने उन्हें कहा कि ” मैं व्यक्तिगत रूप से लालू प्रसाद यादव का भक्त नही हूँ ! एक सामाजिक कार्यकर्ता के नाते और हमारे देश की जातीव्यवस्था के कुडेकरकट के खिलाफ होने के कारण ! और सत्तर के दशक से बिहार में आना- जाना होने के कारण ! मेरा अपना निरिक्षण है ! इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से लालू प्रसाद यादवजी से मिलने में कोई रुचि नहीं है !”
बादमें वह पटना से शिलांग के उत्तर पूर्व केंद्रीय विश्वविद्यालय में ( नेहू ) समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर के रूप में गए थे ! और मै उस दौरान एन. ए. पी. एम. का पूर्व भारत का संयोजक के नाते, उत्तर पूर्व राज्यों की यात्रा पर जाता था ! तो उन्होंने मुझे ‘विकास की अवधारणा और उस के खिलाफ चल रहे जनांदोलनों के विषय पर’ अतिथि प्राध्यापक के रूप में पहली बार ! एक हप्ते के लिए अपने विभाग में आमंत्रित किया था ! और घर में वह अकेले ही रह रहे थे ! तो उन्होंने कहा “कि वैसे आपको हमारे विश्वविद्यालय के अतिथि के रूप में गेस्टहाउस में भी रहने की व्यवस्था है ! लेकिन मेरे निवास स्थान पर भी रहे तो हम दोनों और बातचीत कर सकते !” तो मैं शिलांग के नेहू के कैम्पस में उनके साथ रहा हूँ ! और मैंने गारो, खासी, बोडो, कर्बि इत्यादी जनजातीयो चल रहे विभिन्न आंदोलन करने वाले लोगों के साथ भी ! उनके साथ होने से उत्तर पूर्व के सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति को समझने के लिए विशेष रूप से मदद हुई है !
और इसी कारण, जब मैं राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहते हुए ! मैंने उनके स्वास्थ्य की स्थिति अच्छी नहीं रहते हुए भी ! उन्हें बिहार प्रदेश राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष पद पर आग्रह किया था ! और वह तैयार हुए ! और भागलपुर के श्री. उदयजी को कार्याध्यक्ष मनोनीत किया था ! उनके साथ का आखिरी प्रवास और मुलाकात चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी यात्रा बिहार राष्ट्र सेवा दल के तरफसे आयोजित की गई थी ! उसके दौरान हम उनके गाडी में ! श्रीमती कर्ण भी साथमे थी ! और शायद उनका पुश्तैनी घर उसी दिशा में होने के कारण ! संपूर्ण प्रवास के दौरान कहा अच्छी चाय या लिट्टी – चोखा तथा अन्य खाने – पिने की चिजे मिलती है ! वहां – वहां गाडी रोककर जाते हुए ! और वापसी के सफर में हम गाडी में जितने भी लोग थे ! और चालक को भी खूब खिलाते – पिलाते वापस पटना आने वाली यात्रा आखिरी यात्रा होगी इसकी कल्पना नहीं थी !
प्रमुख समाजशास्त्री तथा बिहार राष्ट्र सेवा दल पूर्व अध्यक्ष, जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित पटना के ए. एन. सिन्हा संस्थान के पूर्व निदेशक और मेरे घनिष्ठ मित्र प्रोफेसर एम. एन. कर्ण अब हमारे बीच नहीं रहे !
मुखतः बिहार के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में गहरी समझ रखने वाले ! और महिलाओं, अल्पसंख्यक समुदाय तथा दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों के बारे में गहरा अध्ययन और सरोकार रखने वाले लोगों में से एक समाजशास्त्री के नही रहने से ! और वर्तमान समय में उनकी अनुपस्थिति ! बहुत ही दुखद खबर है ! उनके परिवार के सभी सदस्यों के दुःख में राष्ट्र सेवा दल के तरफसे विनम्र श्रद्धांजली !
डॉ सुरेश खैरनार 10 अप्रैल 2023, नागपुर