आपदा के बाद हुई क्षति की भरपाई के लिए पुनर्वास और पुनर्निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी व स्वच्छता अभियान के संचालन के लिए राज्य को 10 हजार करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने की मांग शामिल है. ॠषिकेश का आईडीपीएल कारखाना व एचएमटी जैसे उपक्रमों को दोबारा शुरू करने की मांग पर भी कांग्रेस केंद्र सरकार को घेरना चाहती है. आईडीपीएल व एचएमटी दोनों मुद्दे कांग्रेस के दस साल के कार्यकाल में भी प्रमुखता से उठे हैं.
केंद्र सरकार की ओर से गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक ईको सेंसिटिव जोन घोषित किए जाने के निर्णय के खिलाफ पूरे प्रदेश में फिर से राजनीति गरमाने लगी है. राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पत्र लिख कर केंद्र सरकार के समक्ष विरोध दर्ज कराया है. दूसरी तरफ राज्य के भाजपा नेता भी इस मसले पर राजनीति कर रहे हैं. ईको सेंसिटिव जोन से प्रभावित गंगा घाटी के ग्रामीण भी इस फैसले के खिलाफ भाजपा के साथ लामबंद होने लगे हैं. यह मसला कांग्रेस के लिए गले की फांस बनता जा रहा है. गंगोत्री से उत्तरकाशी तक ईको सेंसिटिव जोन घोषित होने से गंगा सहित अन्य कई नदियों में निर्माणाधीन और प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर भी संकट के बादल मंडराने शुरू हो गये हैं. गंगा की अविरलता और पर्यावरण संरक्षण के लिए केंद्र सरकार पहले ही गंगा घाटी में निर्माणाधीन 600 मेगावाट क्षमता की लोहारी नागपाला, 450 मेगावाट क्षमता की पाला मनेरी सहित कई प्रस्तावित छोटी-बड़ी जल विद्युत परियाजनाओं को बंद करने का फरमान जारी कर चुकी है. सरकार के इस निर्णय का स्थानीय लोगों ने विरोध भी किया था. लेकिन पर्यावरण वैज्ञानिकों और बांध विरोधियों के विरोध के कारण सरकार अपने निर्णय पर अड़िग रही. इस निर्णय से खासकर 40 प्रतिशत कार्य पूर्ण होने वाली लोहारी
नागपाला जलविद्युत परियोजना पर एनटीपीसी करीब एक हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुकी थी. परियोजना निर्माण में जल, जंगल और जमीन को जो नुकसान होना था और इसकी भरपाई करना संभव नहीं है. क्षेत्र के लोगों के लिए खोखले हुए पहाड़ों का हर दिन दरकना परेशानी का सबब बना हुआ है. गंगा वैली में निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं को फिर से शुरू कराने का राज्य सरकार प्रयास कर रही थी.
ईको सेंसिटिव जोन घोषित करने के लिए तैयार किये गये ड्राफ्ट में तय मानकों के अनुसार नदी तट से पांच किमी के दायरे में किसी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकेगा. साफ है कि गंगा वेली में जो स्थिति वर्तमान समय में है, उसमें किसी तरह छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. स्कूल, कॉलेज और सरकारी भवन, सड़क और निजी भवनों का निर्माण भी बिना अनुमति के इस क्षेत्र में नहीं हो सकेंगे. इसके अलावा खनन आदि पर भी पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा. ईको सेंसिटिव जोन को लेकर दो साल पहले भी क्षेत्र में खूब हल्ला हुआ है. भाजपा सहित कई संगठनों से जुड़े लोगों ने इसके विरोध में कई बार धरना-प्रदर्शन भी किया. इतना ही नहीं कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया था और इस कानून को रद्द करने का जनता को आश्वासन दिया था. अब केंद्र में भाजपा की सरकार है और ईको सेंसिटिव जोन घोषित करना या न करना केंद्र के निर्णय पर ही निर्भर है. फिर भी भाजपा की राज्य इकाई ने इसका खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है. इसने राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय विधायकों को भी घेरना शुरू कर दिया है. देखना यह है कि भाजपा का विरोध ईको सेंसिटिव जोन को हटाने में कितना कामयाब होगा. यह तो आने वाला समय ही बतायेगा. फिलहाल स्थानीय विधायक व राज्य सरकार के समक्ष यह मसला काफी पेचिदा हो गया है. इसका सीधा असर 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पड़ने की भी पूरी संभावना है.
बहरहाल, कई मुद्दों पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एजेंडे में जल विद्युत परियोजनाओं का मुद्दा ही नहीं है, जबकि जल विद्युत
परियोजनाओं का मुद्दा आज की तारीख में सबसे ज्वलंत है. दिलचस्प बात यह है कि जिन मुद्दों को लेकर कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी है, उनमें कई ऐसे हैं जिन पर दस साल से सियासत हो रही है. मसलन, एक मांग यह है कि राज्य के समुचित विकास के लिए अगले दस वर्षों के लिए विशेष औद्योगिक पैकैज की शुरुआत की जाए. विशेष औद्योगिक पैकेज की मांग राज्य सरकार साल 2010 से लगातार करती आ रही है, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इस बीच राज्य की पांच लोकसभा सीटों में चार कांग्रेस के पास थी.
इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा ग्रीन बोनस, आपदा के बाद हुई क्षति की भरपाई के लिए पुनर्वास और पुनर्निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी व स्वच्छता अभियान के संचालन के लिए राज्य को 10 हजार करोड़ का आर्थिक पैकेज दिए जाने की मांग शामिल है. ॠषिकेश का आईडीपीएल कारखाना व एचएमटी जैसे उपक्रमों को दोबारा शुरू करने की मांग पर भी कांग्रेस केंद्र सरकार को घेरना चाहती है. आईडीपीएल व एचएमटी दोनों मुद्दे कांग्रेस के दस साल के कार्यकाल में भी प्रमुखता से उठे हैं.
वर्ष 2004 से 2014 तक दिल्ली में कांग्रेस की ही सरकार रही है. जिन सात मुद्दों को लेकर कांग्रेस दिल्ली में राज्य की आवाज उठाने जा रही है इनमें केंद्र सरकार की सेवाओं में राज्य को आरक्षण की परिधि में लाया जाए. चूंकि सामाजिक, आर्थिक व भौगोलिक परिस्थितियां जिन राज्यों की उत्तराखंड के समान हैं, वे राज्य केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण की परिधि में आ रहे हैं.