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बेंगलुरु में देश की पहली स्वदेशी तकनीक तैयार कर ली गई है जो दुश्मनों के ड्रोन्स को ढूंढ़ने और ट्रैक करने के बाद उसका खात्मा कर देगी। फिलहाल यह एक वर्किंग प्रोटोटाइप है। साल 2015 में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने दिल्ली में ड्रोन हमले का खतरा जाहिर किया था और साल 2016 में आईएएफ दक्षिणी कमान ने ड्रोन के होने की बात कही थी। ऐसे में ड्रोन अटैक के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।

यह प्रोटोटाइप रक्षा पीएसयू भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के पास है। बेंगलुरु स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के पूर्व डायरेक्टर (रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट) एटी कलघात्गी ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि बीईएल ने इस प्रोटोटाइप के प्रदर्शन के संबंध में यूजर एजेंसीज से बात की है और इसका पहला फील्ड डेमो दो महीने के भीतर हो सकता है।

माना जा रहा है कि इस ग्राउंड-बेस्ड सिस्टम का इस्तेमाल करने के लिए इसे सबसे पहले सीमावर्ती इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात सशस्त्र बल को दिया जा सकता है। इसके अलावा इसे एयरपोर्ट्स और संसद भवन जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर भी तैनात किया जा सकता है। ड्रोन को ढूंढ़ने के लिए यह पोर्टेबल प्रोटोटाइप रडार और इलेक्ट्रॉ-ऑप्टिकल ऐंड इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक सेंसर्स का इस्तेमाल करता है।

कलघात्गी ने कहा, ‘चूंकि यह एक प्रोटोटाइप है, इसलिए हमने एक छोटी रेंज का प्रोडक्ट तैयार किया जो 3-5 किमी. की सीमा में काम करता है। लेकिन हम रडार बदल सकते हैं और उपयोगकर्ता आवश्यकताओं के आधार पर सीमा बढ़ा सकते हैं।

यह ड्रोन को आसानी से सर्च करके ट्रैक कर सकता है, हालांकि उसे खत्म या डिसेबल करना चुनौतीपूर्ण होगा। अग्नि शक्ति का उपयोग करके एक ड्रोन नीचे सही नहीं होगा क्योंकि इसे शहरों या घनी आबादी वाले इलाकों में भी लॉन्च किया जा सकता है। कलघात्गी कहते हैं, ‘हमारे पास एक सॉफ्ट-किल प्रोटोटाइप तैयार है और हार्ड-किल प्रोटोटाइप तैयार करने के लिए बीईएल रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के साथ मिलकर काम कर रहा है।’

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