दिल की बात लिखती हूँ
अपने जज़्बात लिखती हूँ
जो कुछ भी जीया है मैंने
समय को थाम लिखती हूँ
हाँ मैं खुद से ही अपनी
किस्मत की दास्तान लिखती हूँ..
जिन राहों से चलकर आई
उन कदमों के निशान लिखती हूँ
दिल की बात लिखती हूँ
अपने जज़्बात लिखती हूँ!
गलतियों को अपने निखारती रही
अच्छे कर्मों को भी सँजोती रही
अपनी कमजोरियों को ताकत में ढाल
किस्मत की परिभाषा बदलती रही
सही को सही लिखा
और गलत को कोहराम लिखती हूँ
हाँ मैं खुद से ही अपनी
किस्मत की दास्तान लिखती हूँ!
दुनिया ने कदम-कदम पर
मेरी राह में कांटे बिछाये
चलती रही, मैं बढ़ती रही
बिना रुके, बिना डगमगाए
कितनी ही कोशिशें हुईं मुझे तोड़ने की
हर इक जगह से मोड़ने की
किसी ने धक्का देकर गिराना चाहा
किसी ने मुझे मिटा के दबाना चाहा
ज़लील करते रहे, फब्तियाँ कसते रहे
ताने कसते रहे, मुझ पर हँसते रहे
लेकिन, मैं न टूटी इस अपमान से
बढ़ती रही पूरे शान से
मैं राह से डिगी नहीं
मैं ज़रा भी हिली नहीं
डरी नहीं, मरी नहीं
झुकी नहीं, मिटी नहीं
मैं रोज़ नई ज़िंदगी का
एक नया पैगाम लिखती हूँ..
हाँ मैं खुद से ही अपनी
किस्मत की दास्तान लिखती हूँ!
(डॉ. संतोष भारती, असिस्टेंट प्रोफेसर, अँग्रेज़ी विभाग, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय)
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