बिहार में कांग्रेस का चिंतन शिविर ख़त्म होने के बाद भी कांग्रेसी नेताओं के लिए एक बड़ी चिंता का विषय यह बना हुआ है क़ि आख़िर वे करें, तो क्या करें? कांग्रेस हमेशा से अपनी रणनीति के लिए जानी जाती है, लेकिन शायद कांग्रेस के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि जहां एक ओर कांग्रेस पार्टी की बिहार में कोई रणनीति नहीं बन पा रही है, तो वहीं दूसरी ओर पार्टी के बड़े नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में भी असमंजस का दौर चल रहा है. कांग्रेस के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह आख़िर किस तरह से बिहार विधानसभा चुनाव के लिए काम करेगी. चिंतन शिविर के चारों दिन एक विचारधारा रखने वाली पार्टी के नेताओं के विचार अलग-अलग नज़र आ रहे थे. इसके साथ ही बिहार कांग्रेस प्रभारी भी कहीं न कहीं राज्य के
नेताओं को समझाने में असमर्थ नज़र आ रहे थे. जहां एक तरफ़ बिहार कांग्रेस में फूट की बातें लगातार निकल कर सामने आ रही हैं, वहीं आलाकमान से लेकर प्रदेश के नेता तक असमंजस में पड़े हैं कि आख़िर जाएं, तो कहां जाएं.
बिहार में कई वर्षों से राजद के साथ कांग्रेस का गठबंधन है, लेकिन राज्य के मौजूदा राजनीतिक हालात में जहां राजद एवं जदयू विलय की तैयारी में लगे हैं, वहीं कांग्रेस अब समझ नहीं पा रही है कि वह विधानसभा चुनाव में अकेले उतरे या फिर लालू एवं नीतीश के साथ गठबंधन करे. चिंतन शिविर में इशारों-इशारों में बिहार कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने यह कह दिया है कि पार्टी को बैसाखी की ज़रूरत है. दूसरी तरफ़ ज़मीनी कार्यकर्ता मैदान में अकेले उतरने की बात कर रहे हैं. यह बात तो साफ़ हो गई है कि बिहार में कांग्रेस की ज़मीन दिनोंदिन खिसकती जा रही है. विधानसभा चुनाव को लगभग सात महीने शेष रह गए हैं, लेकिन कांग्रेस दोराहे पर खड़ी नज़र आ रही है. इस संदर्भ में बिहार प्रदेश कांग्रेस की पूर्व महासचिव जया मिश्रा ने बताया कि पार्टी अपना काम कर रही है और वक्त के साथ लोगों को उसकी रणनीति भी पता चल जाएगी. रही बात बिहार में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर की, तो यह शिविर जनता के लिए नहीं, बल्कि कुछ
गिने-चुने राजनेताओं के लिए आयोजित कराया गया था, इसलिए शिविर में ज़्यादा लोग नहीं दिखे. अब इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो कांग्रेस के नेता ही ज़्यादा अच्छी तरह से बता सकते हैं. बहरहाल जो भी हो, कांग्रेस एक ऐसे मोड़ पर खड़ी दिख रही है, जहां से वह आगे का रास्ता तय नहीं कर पा रही है. चुनाव जीतना तो बहुत दूर की बात है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता समीर सिंह ने कहा कि इस सिलसिले में सीपी जोशी ही बता सकते हैं. उन्होंने कहा कि सीपी जोशी राज्य के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क और राय-मशविरा करने के बाद आगे की रणनीति तय करेंगे. उन्होंने बताया कि पार्टी के चिंतन शिविर में अधिकांश नेताओं ने बिना कोई गठबंधन किए अकेले चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है. प्रदेश कांग्रेस के नेता राजद से जुड़कर चुनाव लड़ने के ख़िलाफ़ हैं. उनका मानना है कि राजद के साथ लड़ने से पार्टी को नुक़सान के सिवाय और कुछ हासिल नहीं होगा. जदयू से गठबंधन के सवाल पर समीर सिंह ने कहा कि जब तक नीतीश कुमार और लालू यादव स़िर्फ साथ थे, तब तक नीतीश की छवि काफी अच्छी थी, पर लालू यादव से हाथ मिलाकर उन्होंने अपनी छवि भी दागदार कर ली है. इतना ही नहीं, समीर सिंह ने तो नीतीश को लालू से अलग होने का सुझाव तक दे दिया और कहा कि अगर अपनी छवि सही करनी है, तो उन्हें लालू का साथ छोड़ देना चाहिए, क्योंकि जब-जब लालू यादव की बात होती है, तब-तब राज्य की जनता को जंगलराज का भूत डराने लगता है.
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष प्रवीण सिंह कुशवाहा ने यह बात खारिज कर दी कि कांग्रेस दोराहे पर खड़ी है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस जनता के पास गई ही नहीं, तो खारिज कैसे बता दिया गया? दल का प्रदेश नेतृत्व भले दुविधाग्रस्त है, लेकिन कांग्रेस जन पूरे दमखम के साथ चुनावी समर में उतरने के ख्वाहिशमंद हैं. कांग्रेस के ज़मीनी कार्यकर्ता बिहार में पार्टी के सुनहरे दिन वापस लाना चाहते हैं. निष्ठावान कांग्रेसी पार्टी को बिहार में नंबर एक का राजनीतिक दल बना सकते हैं. अब चुनाव में क्या होगा और क्या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन कांग्रेस की तस्वीर अभी तक साफ़ नहीं हो पाई है. हालांकि, कांग्रेस के बारे में एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि वह राजद-जदयू के साथ जाएगी. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस हारे या जीते, लेकिन वह इस बार अपना अस्तित्व बचाने के लिए अकेले ही चुनाव मैदान में कूदेगी. इस दूसरी संभावना को लेकर कांग्रेस के बिहार प्रभारी सीपी जोशी ने भी हाल में सदाकत आश्रम में आयोजित शिविर में अपना रुख साफ़ कर दिया है. अभी तो महज एक शुरुआत हुई है, माहौल में अभी कई और दिलचस्प नज़ारे सामने आने वाले हैं. कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी या गठबंधन के साथ, अभी यह कहना बहुत मुश्किल है. समय कम है और असमंजस ज़्यादा. ऐसे में कांग्रेस द्वारा निर्णय लिया जाना बहुत ज़रूरी है. कहीं ऐसा न हो कि बहुत देर हो जाए!