क्या आप आरएसएस के सपनों का वैसा भारत चाहते हैं, जिसमें कॉरपोरेट घरानों की तूती बोलती हो और जिस भारत में सरकार का एकमात्र काम कॉरपोरेट घरानों की लूट के अनुकूल परिस्थितियां बना कर, उनकी चाकरी करना हो? क्या आप ऐसा भारत बनाना चाहते हैं, जिसमें गैरबराबरी लगातार बढ़ती जाए और इसे विकास का नाम देकर महिमामंडित किया जाए? क्या आप ऐसा भारत बनाना चाहते हैं, जिसमें राज्य सरकारें इसलिए लोकायुक्त बनाने को राजी न हों कि वे अपने ऊपर किसी भी तरह का अंकुश चाहती ही नहीं हैं?

लोकतंत्र स्वतंत्रता का वह शास्त्र है, जिसमें सभी एक-दूसरे के साथ ही स्वतंत्र होते हैं। यहां हर स्वतंत्रता की मर्यादा यह है कि वह हमेशा दूसरे से मर्यादित होने को प्रस्तुत रहे। लोकतंत्र हमें वहां तक तो रसगुल्ले जैसा लगता है, जहां तक वह हमें स्वतंत्रता देता है, लेकिन जैसे वह हमें यह भी बतलाने लगता है कि दूसरों की भी उतनी ही और वैसी ही स्वतंत्रता संरक्षित है, हमें लोकतंत्र नीम से भी कड़वा लगने लगता है और फिर आपातकाल ही उसका एकमात्र जवाब नजर आता है। आपातकाल हम सबका सबसे प्रिय काल है, अगर वह लगाने का निर्बाध अधिकार हमारे पास ही हो! केंद्र और राज्यों में बैठी हर सरकार कोशिश तो यही करती है कि कानून का राज बनाए रखने के लिए कठोर से कठोर कानून बना कर, सारे अधिकार अपनी मुट्ठी में किए जाएं। आपातकाल इससे अलग क्या था? और इससे अलग वह होता क्या है?

यह असली चुनौती है, जिसके सामने संघ ने हमें खड़ा कर दिया है। इसे देखने, पहचानने और सावधान हो जाने की घड़ी है।

कुमार प्रशांत

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