पिछले बरस दिसंबर के सर्द मौसम में ही देश सीएए/एनआरसी को लेकर देश गर्म हुआ था… देश की राजधानी से लेकर सूबों की चौपालों तक इसकी चकल्लस थमी नहीं होती, अगर मौके पर आकर ‘कोरोना जी’ ने कदम नहीं थाम लिए होते…! दिसंबर की सर्द हवाओं से चला एक न दिखने वाला वायरस जून की अधगर्मियों तक लोगों से खेलता रहा…! असरात अब भी खौफ और भय के बने ही हुए हैं…! कभी दिन का अहतियात तो कभी रात की घर निकलाई पर पाबंदी और कभी जल्दी बाजार बंद कर दिए जाने के फरमान जारी हैं…! शुक्र है, अधबीच चुनावों ने आमद दे दी और कोरोना छुट्टी पर चला गया, वर्ना घर बैठे मक्खी मारने के हालात अब भी बने ही दिखाई देते…! आधे-पौने साल की घर बैठाई के बाद भी देश के मजबूत कंधे हड़तालों और तालेबंदी से हारा नहीं है…! अब इक्का-दुक्का मुद्दे नहीं, एकमुश्त तालों का कारोबार फलने-फूलने के आसार बने हुए हैं…! किसानों ने रोड़ रोक रखे हैं, डॉक्टरों ने एक दिन हड़ताल कर अस्पतालों को ताले जड़ने के संकेत दे दिए हैं… अब स्कूल वालों को लग रहा है कि इस दौड़ में हम पीछे न छूट जाएं…! लगे हाथ चेतावनी दे डाली है, स्कूल पूरी तरह खोलो, फीस की वसूलियां करने दो, वर्ना बंद का आह्वान होकर रहेगा…! कहीं सुना है कि विदेशों में हड़ताल के लिए लोग इतने खिलाफ होते हैं कि अपनी मांगों को सरकारों तक पहुंचाने के लिए आम दिनों से ज्यादा काम करके दिखाते हैं…! अपने मुल्क के थके-मांदे, कारोबार चौपट किए बैठे लोगों की हिम्मत की दाद दी जाती होगी, और बाहरी देश कभी मुंह दबाकर हंसते भी होेंगे कि इनकी मांग मनवाई का तरीका अजीब है, खुद का ही नुकसान करने पर आमादा रहते हैं यहां के लोग…! महीनों शाहीन बाग से लेकर देशभर में बन गए मोर्चाें से सरकारें हिली थीं, न राजधानी और आसपास के राज्यों को सील करने से उसके कानों पर कोई जूं रेंगी है, न डॉक्टरों की गीदड़ भभकी उसे दहला पाई और अब नई चेतावनी से उसे कोई खौफ होगा, इसकी कोई उम्मीद है…! हड़ताली देश में हड़ताल करने के नए-नए बहाने ईजाद होते रहेंगे, सरकारें अपने मन की कर रही हैं, करती रहेंगी…!

पुछल्ला
आम आदमी बनने की होड़!
प्रदेश की राजधानी भोपाल से एक ही दिन में एक जैसी दो आवाजें उठीं। एक संदेश मौजूदा मुखिया जी की तरफ से आया। दूसरा संकेत कुछ समय तक सिंहासन पर विराजे थके हुए नेता जी ने दिया है। मुखिया ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होकर खुद को आम कार्यकर्ताओं के साथ शामिल किया। नेता जी ने सन्यास लेने की तरफ बढ़ते कदमों की तरफ इशारा किया है। मुखिया जी के संदेश से लोग खुश हैं, ये आम कार्यकर्ता का सम्मान माना गया। खुश नेता जी के संकेत ने भी किया है, यह फैसला पहले ले लिया होता तो इतना रायता न फैला होता, जितना उन्होंने चंद दिनों की प्रदेश मौजूदगी से बिखेर दिया है।

खान अशु

 

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