talli-tal-naini-talहिमालयी राज्य उत्तराखंड भी इस बार बुरी तरह सूखे की चपेट में आ चुका है. गर्मी की शुरुआत होते ही हिमालय की सदा प्रवाहमान रहने वाली नदियां एवं निर्मल झीलें अभी से हांफती नजर आने लगी हैं. मौसम की बेरुखी का असर अब उत्तराखंड और नैनी झील पर भी दिखने लगा है. नैनीताल की मशहूर नैनी झील का जलस्तर तेजी से घट रहा है और झील का जलस्तर गिरकर अप्रैल माह में ही साढ़े सात फीट से भी नीचे चला गया. जानकारों का कहना है कि 82 वर्षों में ऐसी स्थिति पहली बार आई है. अगर मौसम का यही मिजाज रहा, तो पेयजल का संकट गहरा सकता है जो प्रशासन के लिए चिंता का विषय है. झील का जलस्तर कम होना प्रशासन के साथ ही पयर्टन व्यवसायियों और सैलानियों को भी चिंतित कर रहा है.

नैनी झील नैनीताल के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है. यहां के लोगों की पहचान है. झील की सेहत और खूबसूरती से नैनीताल की खूबसूरती है, क्योंकि पयर्टन ही यहां का मुख्य रोजगार है. इस झील से नैनीताल के साथ-साथ आसपास के इलाकों के लोगों को भी पीने का पानी और रोजगार मिलता है. 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर भारत सरकार ने नैनीताल की झील के संरक्षण और प्रबंधन के लिए लगभग 48 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना मंजूर की थी. इस योजना के तहत लगभग पांच करोड़ रुपये की लागत से झील में एयरेशन(सफाई) के अलावा और कोई काम नहीं हुआ. पिछले लगभग 18 सालों से नैनी झील की सालाना नाप-जोख तक नहीं हो पाई है.

नैनी झील के संरक्षण के लिए कराड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं. पयर्टन के कारण सलाना अरबों रुपये का कारोबार होता है. लेकिन आज तक नैनी झील के संरक्षण के लिए बनी योजनाओं पर पूरी तरह से काम नहीं हो पाया है. सरोवर नगरी में पयर्टन का मौसम शुरू होते ही माल रोड हो या फिर इससे लगे होटल हर जगह पयर्टकों की चहलकदमी दिखाई देने लगी है. लेकिन पयर्टन के व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों के चेहरे से रौनक गायब है जो पहले पयर्टन की शुरुआत होने के समय नजर आती थी. बीते वर्षों तक अप्रैल के महीने में नैनी झील लबालब भरी रहती थी. कहीं जाकर मई और जून के महीने में झील का जल स्तर कम होता था. झील में हमेशा इतना पानी रहता था कि यहां आने वाले सैलानी अपने आप ही झील को ओर आकर्षित हो जाते थे. लेकिन इस बार का नजारा बिल्कुल उलट है.

अप्रैल महीने के शुरुआत में ही झील का जलस्तर कम होने लगा था. वर्तमान में झील का पानी अपने प्राकृतिक स्वरूप से सात फीट से भी नीच जा चुका है, जिसकी वजह से तल्लीताल दर्शन घर पार्क, फांसी गधेरे, माल रोड में स्थित पुस्तकालय, तल्लीताल में झील नियंत्रण कक्ष, मल्लीताल में बोट स्टैंड और नैना देवी मंदिर के समीप डेल्टा बन गए हैं. उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग के झील नियंत्रण कक्ष के मुताबिक नैनी झील जब अपने प्राकृतिक स्वरूप में होती है, तब झील में अधिकतम 12 फुट पानी रहता है, जबकि नियंत्रण कक्ष द्वारा 11 अप्रैल को जब जलस्तर की जांच की गई, तो नैनी झील में सामान्य जल स्तर से माइनस तीन फुट(-3) ही पानी रह गया था. जिसकी वजह से नैनी झील अपने वास्तविक स्वरूप को खो चुकी है. ऐसे में जहां एक ओर झील सैलानियों के मन को नहीं भा रही है, तो वहीं दूसरी ओर इसका सीधा असर पयर्टन व्यवसाय पर पड़ने की आशंका की वजह से पयर्टन व्यवसायी खासे परेशान हैं.

पयर्टन व्यवसायिओं का कहना है कि जलस्तर कम होने की वजह से व्यवसाय खासा प्रभावित होगा. सैलानी यहां रुकने की जगह आसपास के क्षेत्रों में रुकना ज्यादा पसंद करेंगे, क्योंकि पयर्टक झील को इस रूप में देखकर निराश होंगे. सबसे ज्यादा चिंता की वजह यह है कि नैनी झील से पानी न छोड़े जाने के बावजूद भी जलस्तर लगातार घटता जा रहा है. झील का जल आखिर सूख क्यों रहा है? सूखती झील की वजह से लोगों की चिंताएं उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही है. लेकिन वहीं दूसरी ओर भीमताल, नौकुचियाताल और सातताल की झीलें लबालब हैं.

ऐसे में लोग सवाल कर रहे हैं कि नैनी झील का पानी इतनी से तेजी कहां जा रहा है? नैनीताल के लोगों का कहना है कि विभागीय अधिकारियों को इस बात की जांच करानी चाहिए कि जब पानी नहीं छोड़ा जा रहा है, तो फिर झील का पानी कहां जा रहा है? पेयजल संकट को देखते हुए नैनीताल जिला प्रशासन द्वारा नैनी झील की सफाई के लिए अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन यह भी कार्य धीमी गति से चल रहा है, इसे लेकर भी पयर्टन व्यवसायी चिंतित हैं. नैनी झील को बचाने के लिए समय रहते ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है. अगर नैनी झील की अनदेखी की गई, तो आने वाले दिनों में नैनी झील का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. प

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