भारतीय क्रिकेट जगत के असाधारण और अद्भुत शख्सियतों में अपना नाम शुमार करने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक दशक पूरे कर लिये हैं . दस साल पहले 23 साल की उम्र में झारखंड से निकलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में छा जाने के लिये कदम बढ़ाया. इसके बाद धोनी ने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा और लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गये. बतौर कप्तान भारत को टी-20 और एकदिवसीय विश्वकप दिलाकर धोनी ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया. दस साल के करियर में धोनी ने नाम, शोहरत, पैसा और वह सब कुछ कमाया जो एक खिलाड़ी पा सकता है. एक छोटे से शहर से निकलकर दुनिया में अपनी ऐसी पहचान बनाई कि देश के छोटे शहरों के खिलाड़ियों के लिए हर जगह दरवाजे खुल गये. धोनी ने अपनी सफलता से यह बात साबित की कि छोटे शहर के खिलाड़ी भी बड़े कारनामे कर सकते हैं बस उन्हें एक अदद मौके की तलाश होती है.
दस साल पहले 23 दिसंबर 2004 को बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में मजबूत कद काठी और लंबे बालों वाला एक लड़का टीम इंडिया के लिए बल्लेबाजी करने उतरा और बिना खाता खोले पवेलियन वापस लौट गया. महेंद्र सिंह धोनी नाम के इस खिलाड़ी को जिस वक्तभारतीय टीम में जगह दी गई थी, तब भारतीय टीम को एक ऐसे विकेटकीपर की तलाश थी जो एक अच्छा बल्लेबाज़ भी हो. क्योंकि उस दौर में भारतीय टीम कई मैचों में करीबी हार मिली थी जिन्हें निचले क्रम की मजबूती की वजह से जीता जा सकता था. उस वक्त किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह खिलाड़ी आने वाले वर्षों में भारतीय क्रिकेट का चाल, चरित्र और चेहरा पूरी तरह बदल देगा. आज दस साल बाद महेंद्र सिंह धोनी को कैप्टन कूल के नाम से जाना जाता है. बतौर कप्तान धोनी ने भारतीय टीम को सफलता के शिखर पर ले गए. आज विश्व में एकदिवसीय और टी-20 मैचों में उनके जैसा कोई फिनिशर नहीं हैं.
धोनी के बल्ले की पहली बार चमक साल 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ विशाखापट्टनम में 123 गेंदों पर 148 रनों की शतकीय पारी के दौरान दिखाई पड़ी थी. इस मैच में भारत को 58 रनों से जीत हासिल हुई थी. इसके बाद धोनी का बल्ले ने साल 2005 में ही श्रीलंका खिलाफ जयपुर में आग उगली. धोनी ने उस मैच में 145 गेंदों में 183 रनों की नाबाद पारी खेली. इसके बाद धोनी की पहचान विकेटकीपर से बढ़कर एक विशुद्ध बल्लेबाज की हो गई जो लंबे-लंबे छक्के मारता है. धोनी के टीम में आने से भारतीय टीम की सालों पुरानी विकेटकीपर -बल्लेबाज की खोज खत्म हो गई. नयन मोंगिया के बाद न जाने कितने विकेटकीपर टीम में आये और गये. लेकिन धोनी के आने के बाद भारतीय टीम ज्यादा संतुलित नज़र आ ने लगी थी.
राहुल द्रविड़ की कप्तानी में टीम इंडिया को साल 2007 में वेस्टइंडीज में खेले गए एकदिवसीय विश्वकप में पहले ही दौर के बाद बाहर होना पड़ा था. विश्वकप में हार की निराशा की वजह से सचिन, सौरव और राहुल जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों ने दक्षिण अफ्रीका में होने वाले टी-20 विश्वकप से दूरी बना ली थी. चयनकर्ताओं के सामने कप्तान चुनने की समस्या आ खड़ी हुई. ऐसे में धोनी के हाथों में टी-20 विश्वकप के लिए कमान सौंपी गई. वीरेंद्र सहवाग और युवराज सिंह जैसे खिलाड़ियों की मौजूदगी में धोनी को कप्तान बनाने का रिस्क चयनकर्ताओं ने लिया. धोनी ने अप्रत्याशित रूप से टीम इंडिया को पहला टी-20 विश्वकप विजेता बना दिया. इसके बाद साल 2007 में धोनी को एकदिवसीय टीम की भी कप्तानी सौंप दी गई. कुछ समय बाद इस बात का खुलासा हुआ कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की सलाह के बाद चयनकर्ताओं ने धोनी को कप्तान बनाने का निर्णय किया था. यह बात धोनी ने भी एक इंटरव्यू में स्वीकार की थी. सचिन ने धोनी की क्रिकेट की समझ को परख लिया था. इसके बाद 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज में कप्तान अनिल कुंबले के संन्यास लेने के बाद धोनी को टेस्ट कप्तान बना दिया गया. धोनी ने जहां हाथ रखा वह सोने का हो गया या कहें कि भाग्य लगातार उनका साथ देता गया. किसी ने उन्हें कैप्टन विथ मिडास टच, किसी ने करिश्माई कप्तान तो किसी ने कैप्टन कूल कहा. धोनी हर बात को सही साबित करते रहे. धोनी एक तरह से सफलता का पैमाना बन गए. दुनिया का बड़े से बड़ा खिलाड़ी धोनी के ठंडे दिमाग और क्रिकेटीय चपलता का कायल हो गया. उनकी तरकश में हर समय विपक्षी खेमे के लिए तीर तैयार रहता है. धोनी ने खुद को बड़े मैचों में साबित किया. जिस समय दूसरे खिलाड़ी दबाव में आ जाते थे. वहां धोनी ने ठंडे दिमाग से बल्लेबाजी करते हुए अधिकांश मैचों को आखिरी ओवर तक ले गए और भारत को विजयी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. धीरे-धीरे धोनी विश्व के नंबर?एक एकदिवसीय बल्लेबाज़ बन गए. धोनी के कप्तान रहते भारतीय टीम ने लक्ष्य का पीछा करने में महारत हासिल कर ली. यह लंबे समय तक भारत की कमजोरी रही थी. आउट ऑफ द बॉक्स निर्णय लेना धोनी की सबसे बड़ी खूबी है. वह फाइनल जैसे अहम मुक़ाबले में भी रिस्क लेने से नहीं चूकते हैं. धोनी ने अपनी कप्तानी की पहली ही परीक्षा में टी-20 विश्वकप के फाइनल में आखिरी ओवर में गेंद जोगिंदर शर्मा के हाथों में देकर सबको चौंका दिया था. जोगिंदर ने मिसबाह-उल-हक़ को आउट करके भारत को पहला टी-20 विश्वकप विजेता बना दिया था. इसी तरह धोनी साल 2011 में विश्वकप के फाइनल में फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी करने उतरे और 91 रनों की नाबाद पारी खेलकर टीम को 28 साल बाद विश्व चैंपियन बना दिया. धोनी के करियर रिकॉर्ड पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि केवल नेतृत्व क्षमता ही नहीं एक बल्लेबाज और विकेटकीपर के तौर पर भी उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन कर खुद को साबित किया है. विकेटकीपर के तौर पर उनके नाम अंतरराट्रीय क्रिकेट में 500 कैच भी दर्ज हैं. धोनी अब तक अपने करियर में 250 एकदिवसीय मैचों की 219 पारियों में 8192 रन, 89 टेस्ट मैचों की 142 पारियों में 4841 रन और 50 टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैचों की 45 पारियों में 849 रन बना चुके हैं. एक दिवसीय मैचों में वह 9 शतक और 56 अर्धशतक लगा चुके हैं. 183 रन नाबाद उनका उच्चतम स्कोर है यह किसी भी भारतीय विकेट कीपर द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा स्कोर है. टेस्ट मैचों में उनके नाम 6 शतक और 33 अर्धशतक हैं. टेस्ट मैचों में उनका सर्वाधिक स्कोर 224 रन है जो उन्होंने चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ साल 2013 में बनाया था.
आउट ऑफ द बॉक्स निर्णय लेना धोनी की सबसे बड़ी खूबी है. वह फाइनल जैसे अहम मुक़ाबले में भी रिस्क लेने से नहीं चूकते हैं. धोनी ने अपनी कप्तानी की पहली ही परीक्षा में टी-20 विश्वकप के फाइनल में आखिरी ओवर में गेंद जोगिंदर शर्मा के हाथों में देकर सबको चौंका दिया था. जोगिंदर ने मिसबाह-उल-हक़ को आउट करके भारत को पहला टी-20 विश्वकप विजेता बना दिया था.
बतौर कप्तान धोनी के नाम कई विशिष्ट उपलब्धियां दर्ज हैं. धोनी विश्व के एक मात्र कप्तान हैं जो आईसीसी की तीनों 2007 में टी-20 विश्वकप, 2011 में आईसीसी एकदिवसीय विश्वकप और 2013 में आईसीसी चैंपियंस टॉफी जीत चुके हैं. वह भारत के अब तक के सबसे सफल कप्तान हैं. धोनी ने अब तक 166 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी की है और 93 मैचों में विजयी रहे हैं, जबकि उन्हें 59 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है. 4 मैच टाई रहे हैं. बतौर कप्तान सबसे ज्यादा मैच जीतने के मामले में धोनी पांचवें पायदान पर हैं उनका जीत प्रतिशत 60.89 है. टेस्ट मैचों में धोनी ने बतौर 89 टेस्ट मैचों में कप्तानी की है जिसमें 27 में जीत 18 में हार मिली जबकि 14 मैच ड्रा रहे हैं. घरेलू धरती पर धोनी ने टीम को टेस्ट मैचों में सफलता दिलवाई लेकिन विदेशी सरजमीं पर वह टीम को टेस्ट मैचों में जीत नहीं दिला सके. यह धोनी के एक दशक लंबे करियर का सबसे कमजोर पक्ष है. इसे लेकर उनकी आलोचना होती रही है कई बार तो आलोचकों ने उन्हें विदेशी धरती पर सबसे कमजोर भारतीय कप्तान भी बताया. बावजूद इसके टीम इंडिया आईसीसी की टेस्ट रैंकिंग में नंबर एक पर भी पहुंची. धोनी ने टीम इंडिया को नंबर वन एकदिवसीय टीम भी बनाया. आईपीएल में उनकी टीम, चेन्नई सुपर किंग्स सबसे सफल टीम है. उन्होंने टीम को 2010 और 2011 में आईपीएल चैंपियन बनवाया. इसके अलावा 2010 और 2014 चैंपियंस लीग चैंपियन भी बनवाया. खेलों की दुनिया में भारतीय कप्तान जितने सफल हैं उसी तरह कमाई की दुनिया में भी धोनी ने अच्छे-अच्छों को पछाड़ दिया है. 25 साल तक देश का प्रतिनिध्त्व करने वाले सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी भी धोनी से कमाई के मामले में पिछड़ गए हैं. फोर्ब्स की सूची में धोनी सर्वाधिक कमाई करने वाले दुनिया के शीर्ष एथलीटों में शामिल हैं. उन्हें फोर्ब्स ने विश्व में 22 वें स्थान पर रखा है. उनकी सालाना कमाई खेल और प्रायोजनों से करीब तीन करोड़ डॉलर की है. धोनी देश के करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल भी हैं. टाइम मैग्जीन ने धोनी को साल 2011 में विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की सूची में भी शामिल किया था. धोनी क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों पर भी ध्यान दे रहे हैं. धोनी ने हॉकी लीग की रांची की टीम में, इंडियन सुपर लीग की टीम चेननईयन एफसी में हिस्सेदारी खरीदी है. साथ ही वह बाइक रेसिंग की एक टीम के भी मालिक हैं.
धोनी का नाम आईपीएल फिक्सिंग विवाद में आ रहा है. हालांकि इस मामले की जांच कर रही मुदगल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दायर कर दी है. रिपोर्ट कोर्ट ने अभी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है. लेकिन चेन्नई टीम के मलिकाना हक को लेकर कोर्ट ने टिप्पणी की है. टीम का मलिकाना हक़ रखने वाली इंडिया सीमेंट्स में धोनी वाइस चेयरमैन भी हैं, उन्होंने मुदगल समिति के सामने दिए बयान में मुख्य आरोपी गुरुनाथ मयप्पन को मजह एक खेल प्रेमी बताया था, इस वजह से उनकी भूमिका संदिग्ध नज़र आ रही है.
इस विवाद से इतर धोनी ने भारतीय क्रिकेट को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया है. वह सौरव गांगुली की परंपरा को बतौर कप्तान आगे ले गये हैं. अगले महीने ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में हो रहे विश्वकप में भारतीय टीम धोनी के नेतृत्व में खिताब बचाने के लिए उतर रही है. धोनी के नेतृत्व में आईसीसी की प्रतियोगिताओं में भारत के अब तक के बेमिसाल प्रदर्शन के आधार पर यह आशा की जा सकती है कि धोनी के नेतृत्व में टीम इंडिया विश्व खिताब बचाने की पुरजोर कोशिश करेगी. धोनी अनहोनी को होनी, बनाते हुए टीम इंडिया को एक बार फिर विश्व चैंपियन बना दें तो किसी को इस पर अचरज नहीं होना चाहिए.