deoriaनारी संरक्षण गृहों, संप्रेक्षण गृहों और अनाथालयों में बच्चियों की दुर्दशा का ताजा अध्याय बिहार के मुजफ्फरपुर के बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी खुला. बेसहारा और मजबूर लड़कियों के साथ प्रायोजित दुर्व्यवहार कोई नई घटना नहीं है. निकृष्टतम स्तर का यह धंधा देश में लगातार चल रहा है. कभी-कभार घटनाएं उजागर हो जाती हैं तो चिल्लपों मचती है. जांच और कार्रवाई की औपचारिकताएं होती हैं, फिर मामला ठंडा पड़ते ही धंधा चालू हो जाता है.

हर बार यही होता है कि ऐसे घृणित धंधे में नेता, नौकरशाह, सफेदपोश, दलाल और सामाजिक संस्थाएं चलाने वालों का ‘नेक्सस’ उजागर होता है. लेकिन सत्ता व्यवस्था इस करतूत को स्थायी तौर पर काबू करने का कोई कारगर उपाय नहीं करती. यह उपाय क्यों नहीं होता? इस सवाल का जवाब बारी-बारी से सत्ता पर आरूढ़ होने वाले नेता और उनके तीमारदार नौकरशाह नहीं दे सकते, क्योंकि उनकी अय्याशियों और बदमिजाजियों का ‘उपाय’ इन्हीं लाचार महिलाओं की देह से होकर निकलता है.

मुजफ्फरपुर-देवरिया की ताजा घटना पर दुखी मेनका गांधी ने कितनी सटीक और असली बात कही कि वे दो साल से प्रत्येक सांसद को पत्र लिख कर आग्रह कर रही थीं कि सांसद अपने-अपने क्षेत्र में निराश्रित महिलाओं, लड़कियों और अनाथ बच्चों के लिए चलने वाली संस्थाओं का कम से कम एक बार निरीक्षण करें और वहां की स्थिति के बारे में उन्हें सूचित करें. लेकिन किसी भी सांसद ने मेनका के पत्र पर ध्यान नहीं दिया. मेनका की चिंता एक नेता या मंत्री की नहीं, बल्कि एक महिला की चिंता थी. इस चिंता ने तमाम सांसदों के असली सरोकार को भरी संसद में रेखांकित किया.

मेनका ने कहा है कि मुजफ्फरपुर-देवरिया की घटनाएं भयावह हैं. सांसदों के प्रति मेनका की नाराजगी संसद में अभिव्यक्त हुई, फिर भी सांसदों में इतना नैतिक बल नहीं था कि कोई एक भी सांसद उठ कर अपनी गलती के लिए माफी मांगता और इस दिशा में सक्रिय होकर समाज में उतरने की घोषणा करता. मेनका का सवाल और उस पर सांसदों की चुप्पी ही उस सवाल का जवाब है कि आखिर क्यों नहीं सत्ता ऐसे गलीज धंधे को काबू में करने का कोई स्थायी उपाय करती है.

मामला उजागर होने के बाद जब पुलिस ने तलाशी ली तो उत्तर प्रदेश के देवरिया स्थित नारी संरक्षण गृह से 42 में से 18 लड़कियां गायब मिलीं. लड़कियां आखिर कहां गईं? देवरिया संरक्षण गृह से भागी और बाद में बरामद हुई एक लड़की का बयान इस सवाल का जवाब है. उस लड़की ने कहा है कि हर रात काली, सफेद और लाल रंग की कारें आती हैं और लड़कियों को संरक्षण गृह से बाहर ले जाती हैं. सुबह इन लड़कियों को वापस छोड़ दिया जाता है. लेकिन फिर वो लड़कियां जार-जार रोने के अलावा कुछ बोल नहीं पातीं. अदालतों का रोल भी कोई दूध का धुला नहीं है. ऐसे मामलों में अदालतों का रोल डंवाडोल ही है.

देवरिया के विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाजिक सेवा संस्थान द्वारा संचालित नारी संरक्षण गृह में अनिमियता पाए जाने के बाद जब उसकी मान्यता स्थगित कर दी गई थी, तब कोर्ट ने उस पर रोक क्यों लगा दी थी? क्या अदालत को भी ऐसी घटनाओं के घटित होने की प्रतीक्षा रहती है? संरक्षण गृह की जिस संरक्षिका गिरिजा त्रिपाठी को कोर्ट का स्थगनादेश मिला था, वही महिला जरायम धंधा चलाने के आरोप में आज गिरफ्तार है. उसका पूरा परिवार इस धंधे में लिप्त था. संचालिका का पति मोहन त्रिपाठी और उसकी बेटी कंचनलता त्रिपाठी भी पकड़ी गई है.

संचालिका की बेटी ही संस्था की अधीक्षिका थी. इन सब पर मानव तस्करी करने, देह व्यापार चलाने और बाल श्रम से जुड़ी धाराओं की धज्जियां उड़ाने का मुकदमा दर्ज किया गया है. अब स्थगनादेश के औचित्य के बारे में अदालत से कौन पूछे? अदालत का मान-सम्मान है. निराश्रित महिलाओं और लड़कियों का मान-सम्मान थोड़े ही है? अब जब मुजफ्फरपुर और देवरिया में ऐसी घटना घट गई तब अदालत ने पूछना शुरू किया, ‘हर तरफ से बलात्कार और अनाचार की खबरें! देश में यह क्या हो रहा है?’ देश की सर्वोच्च अदालत ने यह सवाल सामने रखा, लेकिन उन अदालतों से यह हिसाब नहीं मांगा जिन्हें सड़कों के गड्‌ढे और ट्रैफिक जाम तो दिखता है, लेकिन निराश्रित महिलाओं की त्रासदी नहीं दिखती.

चलिए देर से ही सही, कुछ ठोस हो जाए तो गनीमत. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे निर्लज्ज धंधे को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत महसूस की है और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से देशभर के तीन हजार आश्रय गृहों के सामाजिक अंकेक्षण (ऑडिट) के तथ्य और सर्वेक्षणों की रिपोर्ट पेश करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इतनी बड़ी घटना हो जाती है और सरकार इतनी देर से जागती है, यह आश्चर्यजनक है. सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि इन घटनाओं को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि ये सब राज्य प्रायोजित गतिविधियां हैं.

इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी हरकत में आया. उच्च अदालत ने कहा कि सीबीआई जांच की मॉनिटरिंग वह खुद करेगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायाधीश यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि अगर यह यौन शोषण का मामला है, तो राजनेताओं, वीआईपी और पुलिसवालों की मिलीभगत के बिना यह कतई मुमकिन नहीं है. न्यायाधीशों ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि इस गोरखधंधे को मिल रहे नेताओं और वीआईपी हस्तियों के संरक्षण का पता लगाया जाए. हाईकोर्ट ने इतने बड़े अमानवीय कृत्य में केवल चार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई को संतोषजनक नहीं माना और पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई न होने पर गहरे सवाल उठाए.

हाईकोर्ट ने संरक्षण गृह की सभी लड़कियों के मजिस्ट्रेटी बयान की कॉपी तलब कर ली है और सरकार से पूछा है कि इन लड़कियों को अब कहां रखा गया है, उनकी सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं और लापता लड़कियों का पता लगाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं. कोर्ट ने लड़कियों को ढूंढ़ने और पुलिसवालों की जांच का जिम्मा गोरखपुर जोन के एडीजी को सौंपने के यूपी सरकार के फैसले पर मुहर लगाई, लेकिन स्पष्ट कहा कि एडीजी ने चार दिनों में ठोस कदम नहीं उठाए तो अदालत अगली सुनवाई में यह जिम्मेदारी किसी अन्य एजेंसी को दे सकती है.

18 लड़कियां तो लापता हैं ही, सात नवजात शिशु भी ग़ायब हैं

देवरिया के मां विंध्यवासिनी बालिका संरक्षण गृह से 18 लड़कियों के अलावा सात नवजात शिशुओं के भी लापता होने की सूचना आम नागरिकों को व्यथित कर रही है. जबकि अब शासन-प्रशासन लापता लड़कियों की संख्या साबित करने की हरकतों में भी लग गया है. लड़कियों और नवजात शिशुओं की रहस्यमय गुमशुदगी दिसम्बर 2017 में ही हुई, लेकिन शासन, प्रशासन और भाषण पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. नवजात शिशुओं की गुमशुदगी की सूचना सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को भी मिली थी. अथॉरिटी ने बाल कल्याण समिति और डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन अफसर (डीपीओ) से जानकारी मांगने की औपचारिकता पूरी कर ली, लेकिन देवरिया से जानकारी नहीं भेजे जाने पर कोई रेस्पॉन्स नहीं लिया. पुलिस और प्रशासन की खाल पर भी नवजातों के गुम होने का कोई असर नहीं पड़ा. घटना के बाद मुंह खोलने का साहस कर रहे बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ. एसके यादव ने कहा कि संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी के आगे पूरी सत्ता नतमस्तक रहती थी.

यादव ने माना कि सात नवजात बच्चों का रजिस्ट्रेशन होने के छह माह बाद भी उन्हें गोद देने (अडॉप्शन) की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई. अथॉरिटी की तरफ से बच्चों के ‘अडॉप्शन’ की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर डीपीओ को कई चिटि्‌ठयां लिखीं गईं, पर वहां से जवाब नहीं मिला. नवजात शिशुओं को गिरिजा त्रिपाठी के रजला स्थित शिशु गृह में रखा गया था. बाल कल्याण समिति ने बच्चों को गोरखपुर स्थित दत्तक केंद्र में रखे जाने की काफी कोशिश की, लेकिन गिरिजा त्रिपाठी के आगे समिति की एक नहीं चली. आखिरकार नवजात शिशु गायब ही हो गए. पता चला कि कई और नवजात शिशु लापता हैं, जिन्हें विभिन्न स्थानों से बरामदगी के शिशु गृह लाया गया था. लेकिन सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी में उनका पंजीकरण नहीं कराया गया और आज वे लापता हैं.

अब यह बात खुल कर सामने आ रही है कि देवरिया के मां विध्यवासिनी बालिका संरक्षण गृह समेत पांच संस्थाओं की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी और उसके परिवार ने सत्ता तक सीधी पहुंच का जमकर फायदा उठाया और मासूमों का भीषण शोषण किया. तब सारे जिम्मेदार अधिकारी और संस्थाएं चुप्पी साधे या चिटि्‌ठयां लिखते रहे. घटना उजागर होने के बाद सब एक-दूसरे को दोषी ठहराने में लगे हैं. 23 जून 2017 को गिरिजा त्रिपाठी की संस्था को ब्लैक लिस्टेड किया गया था.

इसके बाद भी पुलिस और प्रशासन की शह पर बच्चियों को बाल कल्याण समिति को बताए बगैर वहां भेजा जाता रहा. समिति ने आपत्तियां दर्ज कीं, जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखा. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. यह भी पता चल रहा है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का भी संरक्षण गृह में आना-जाना लगा रहता था. देवरिया संरक्षण गृह को वर्ष 2011 से अनुदान मिलना शुरू हुआ, लेकिन संस्था 2009 से ही चल रही थी. जून 2017 में अनुदान बंद होने के बाद भी संरक्षण गृह चलता रहा. साफ है कि बिना अनुदान पाए संस्था कैसे चल रही थी.

योगी और जोशी ने पूर्व की सरकारों पर दोष मढ़े, पर कुछ तथ्य भी खुले देवरिया घटना के उजागर होते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फौरन सक्रियता दिखाते हुए मामले की सीबीआई से जांच कराने की घोषणा कर दी. योगी ने बचाव का बेहतर रास्ता निकाला. सीबीआई जांच की घोषणा के बाद आम लोग चुप हो जाते हैं, वे ‘टोपी-ट्रांसफर’ की त्वरित प्रक्रिया नहीं समझ पाते. योगी ने पिछली सरकार पर ठीकरा फोड़ा, देवरिया की संस्था वर्ष 2009 से ही चल रही थी और पिछली सरकारों, यानि बसपा और सपा सरकारों ने उसे खूब धन-लाभ कराया. योगी ने सीबीआई जांच की घोषणा करते हुए यह भी जोड़ा कि देवरिया प्रकरण में पुलिस की संदेहास्पद भूमिका की भी जांच की जाएगी. मुख्यमंत्री ने बाल कल्याण समिति भी भंग कर दी.

योगी ने कहा कि सीबीआई द्वारा औपचारिक रूप से जांच ‘टेक-ओवर’ करने तक तीन सदस्यीय एसआईटी साक्ष्यों की निगरानी करेगी, ताकि उससे कोई छेड़छाड़ न हो. स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) इस टीम की सहायता करेगी. मुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि देवरिया प्रकरण की जांच के लिए महिला कल्याण विभाग की अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार और ‘महिला-हेल्पलाइन’ की अपर पुलिस महानिदेशक अंजू गुप्ता की जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. इसके बाद ही देवरिया के संरक्षण गृह की बालिकाओं को वाराणसी के संरक्षण गृह में शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया. मुख्यमंत्री ने यह माना कि जून 2017 में देवरिया के उक्त संरक्षण गृह की मान्यता समाप्त कर दी गई थी.

जिला प्रशासन को इस संरक्षण गृह को बंद करने और वहां रह रही बालिकाओं को स्थानांतरित किए जाने के निर्देश भी दिए गए थे, लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस दोष के लिए देवरिया के जिलाधिकारी का तबादला कर उनके खिलाफ चार्जशीट जारी की जा रही है. देवरिया के पूर्व जिला प्रोबेशन अधिकारी को भी निलम्बित कर दिया गया. सरकार ने देवरिया के मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान का पंजीकरण निरस्त कर दिया और रजिस्ट्रार चिट फंड ने हरकत में आते हुए गोरखपुर के वृद्ध आश्रम का पंजीकरण भी खारिज कर दिया.

योगी सरकार में महिला एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी ने ऐसे मौके पर विपक्ष पर प्रहार करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. डॉ. जोशी ने कहा, ‘जिनके समय में इन संस्थाओं ने जन्म लिया, आज वही इसे राजनीतिक रूप देने में लगे हैं.’ मंत्री ने कहा कि देवरिया की संदर्भित संस्था को वर्ष 2009-10 में मान्यता देकर बाल संरक्षण गृह, बालिका संरक्षण गृह और सुधार गृह का काम दिया गया था. उस समय प्रदेश में बसपा और सपा की सरकारें थीं.

डॉ. जोशी ने सपा सरकार के कार्यकाल में हुए ‘सचल’ पालना गृह भ्रष्टाचार प्रकरण का भी उल्लेख किया. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में जो लापरवाही, अनदेखी और मिलीभगत हुई उस बारे में पूछे गए सवाल पर मंत्री ने कहा कि इन सारे पहलुओं की छानबीन कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. डॉ. जोशी ने कहा कि प्रतिबंध लगने के बाद भी पुलिस लावारिस बच्चों-बच्चियों को संरक्षण गृह कैसे पहुंचाती रही, यह गंभीर विषय है और इसकी जांच कराई जा रही है.

विडंबना यह है कि उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समिति गठित है. इन समितियों को हर महीने कम से कम 20 संस्थाओं की जांच करनी होती है. जांच के लिए समिति को सरकार की तरफ से धन मिलता है. जब धन खर्च हुआ तो जांच क्यों नहीं हुई? और अगर जांच हुई तो संरक्षण गृहों में चलने वाले जरायम धंधे का पता क्यों नहीं चला? ये सवाल संदेहास्पद स्थितियों और आपसी मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं.

यह बात सही है कि सपा सरकार के आखिरी दौर में समितियों का गठन कर सदस्यों की नियुक्ति कर दी गई थी. डॉ. रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि सपा सरकार में जब लोक सेवा आयोग तक में सदस्यों की नियुक्ति में धांधली हुई, तो इन संस्थाओं में धांधली नहीं होने की क्या गारंटी है. डॉ. जोशी कहती हैं कि देवरिया कांड के खिलाफ आज जो खास राजनीतिक दलों के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें बताना चाहिए कि बाल कल्याण समिति में सदस्यों का गठन किसने किया था और उन सदस्यों ने कितनी संस्थाओं की जांच की थी? देवरिया में उस महिला को बाल कल्याण समिति का सदस्य बना दिया गया था, जो पहले देवरिया कांड की मुख्य अभियुक्त गिरिजा त्रिपाठी की संस्था की काउंसलर थी.

उल्लेखनीय है कि देवरिया की उक्त विवादास्पद संस्था उत्तर प्रदेश राज्य समाज कल्याण बोर्ड द्वारा संचालित ‘सचल पालना गृह’ में हुए भष्टाचार की सीबीआई जांच में भी शामिल है. बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष डॉ. रूपल अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, यूपी सरकार के महिला कल्याण विभाग और महिला कल्याण मंत्रालय को पत्र लिख कर यह सूचित किया था कि विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक नहीं पहुंच रहा है और इसमें स्वयंसेवी संस्थाओं की मिलीभगत है. लेकिन इन सूचनाओं का संज्ञान लेने के बजाय डॉ. अग्रवाल को ही अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. डॉ. रूपल अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा है कि उनके द्वारा उजागर किए गए तथ्यों की जांच करवा कर उचित कार्रवाई करें.

महिलाएं लापता? कहीं दूसरा देवरिया तो नहीं बनने जा रहा हरदोई?

हरदोई के बेनीगंज स्थित निराश्रित महिलाओं के संरक्षण गृह (स्वाधार गृह) में भी कुछ संदेहास्पद गतिविधियां चल रही हैं, लेकिन प्रशासन इसकी छानबीन या समयानुकूल कार्रवाई करने के बजाय उसे अभी से ढंकने की कोशिश में लगा है. हरदोई के स्वाधार-गृह का रजिस्टर बताता है कि वहां से 19 महिलाएं गायब हैं. हरदोई की यह संस्था भी एक एनजीओ द्वारा संचालित है. स्वाधार गृह में 21 महिलाओं के होने के बजाय वहां केवल दो महिलाएं ही पाई गईं. जिला प्रशासन ने 19 महिलाओं की गुमशुदगी प्रकरण की गहराई में जाने के बजाय यह कह दिया कि यह आर्थिक फर्जीवाड़ा है. सरकारी सहायता लेने के लिए स्वाधार गृह के रजिस्टर में 19 महिलाओं के फर्जी नाम भर दिए गए थे. विडंबना यह है कि जो डायलॉग संस्था दोहराती, वह संवाद जिला प्रशासन दोहरा रहा है. जबकि खुद हरदोई के जिलाधिकारी ने बेनीगंज में आयशा ग्रामोद्योग समिति पिहानी द्वारा संचालित स्वाधार गृह का निरीक्षण किया था.

जिलाधिकारी ने स्वाधार गृह के रजिस्टर में 21 महिलाओं के नाम पाए, लेकिन मौके पर केवल दो महिलाएं मिलीं. पहले तो जिला प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई करने की बात कही, फिर क्या हुआ कि अचानक जिला प्रशासन के सुर-ताल बदल गए. फिर डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन अफसर सुशील कुमार, संडीला के तहसीलदार पंकज सक्सेना, कानूनगो राम प्रकाश मिश्रा और बेनीगंज कोतवाल ने स्वाधार गृह का निरीक्षण किया. दोबारा निरीक्षण के बाद बताया गया कि रजिस्टर में 19 महिलाओें के नाम फर्जी हैं. जबकि स्वाधार गृह के संचालक मोहम्मद रजी और अधीक्षका आरती गृह में 21 महिलाओं के होने की बात पर अड़ी हैं. उनका कहना है कि जिलाधिकारी के निरीक्षण के समय संरक्षण गृह की महिलाओं मंदिर गई थीं.

अधिकारियों को दोबारा निरीक्षण में उसी गृह में 13 महिलाएं मौजूद पाई गई थीं. जिला प्रशासन इस मसले पर चुप्पी साधे है कि स्वाधार गृह के रजिस्टर में दर्ज 19 महिलाओं के नाम फर्जी हैं, तो वे 13 महिलाएं कौन थीं जो मौके पर पाई गईं? दाल में काला है, लेकिन काला हटाने के बजाय प्रशासनिक अधिकारी दाल को घोंटने में लगे हैं. प्रशासन ने स्वाधार गृह के संचालक और अधीक्षिका के खिलाफ फर्जीवाड़ा करने और काम में लापरवाही बरतने का मुकदमा दर्ज कराने की औपचारिकता निभा ली है. दबाव बढ़ने पर जिला प्रशासन ने स्वाधार गृह की अधीक्षिका आरती को गिरफ्तार कर लिया है. संस्था का संचालक मोहम्मद रजी फरार बताया जा रहा है.

देवरिया के बाद भी खाल पर असर नहीं, लखनऊ में हालत बदतर

देवरिया घटना से भी महिला और बाल कल्याण महकमे से जुड़े अधिकारियों की गैंडे जैसी खाल पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. राजधानी लखनऊ में जितने भी संरक्षण गृह, अनाथालय और रिमांड होम्स हैं, उनकी बदतर हालत की आधिकारिक पुष्टि हुई है. लखनऊ के जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा द्वारा गठित आठ टीमों ने विभिन्न इलाकों में स्थित संरक्षण गृहों की जांच की तो हालात जघन्य स्थिति में पाए गए. पूरी रिपोर्ट सरकार के समक्ष पेश कर दी गई है. लेकिन इस रिपोर्ट में भी ‘लोचा’ है. रिपोर्ट में कुछ संस्थानों की मान्यता का ही जिक्र है, बाकी संस्थानों की मान्यता का कोई जिक्र नहीं है. इससे राजधानी लखनऊ में कई केंद्रों के अवैध रूप से चलने की आशंका है. शासन को पेश रिपोर्ट पर कार्रवाई कब होगी? इस पर एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने कहा, ‘भगवान जाने.’

बहरहाल, जिलाधिकारी द्वारा गठित टीमों ने लखनऊ के 23 बालिका केंद्रों और महिला संरक्षण गृहों की त्वरित जांच कराई. दर्जनभर से अधिक केंद्रों में कोई सुरक्षा गार्ड नहीं है और साफ-सफाई की स्थिति भयावह है. लखनऊ के माल इलाके में तिवारीखेड़ा स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में जांच के दौरान आगंतुक रजिस्टर में गड़बड़ी पाई गई. लोग बालिका विद्यालय में धड़ल्ले से आते-जाते रहते हैं, लेकिन इसे रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जाता. जांच करने पहुंचे मलिहाबाद के एसडीएम जयप्रकाश अग्निहोत्री ने मुख्य वॉर्डन रंजीता सिंह को नया रजिस्टर बनाने की सख्त हिदायत दी. राजकीय महिला शरणालय: प्राग नारायण रोड स्थित इस संस्था में पंजीकृत सभी 76 लड़कियां मौके पर पाई गईं, लेकिन शरणालय की सफाई और दूसरी व्यवस्था अराजक स्थिति में मिली. संस्था में एक भी महिला होमगार्ड तैनात नहीं है, जबकि 29 जुलाई को इस संस्थान से एक संवासिनी भाग चुकी है. दयानंद बाल सदन: मोतीनगर स्थित इस संस्था में रजिस्टर्ड सभी 30 लड़कियां मौके पर मिलीं.

गंदगी का अंबार पाया. खंदारी बाजार के लखनऊ चिल्ड्रेन होम में रजिस्टर्ड सभी 17 लड़कियां मौके पर पाई गईं. इस संस्थान में कोई सुरक्षा गार्ड नहीं है. परिसर में अपार गंदगी मिली. इंदिरा नगर के स्नेह वेलफेयर सोसायटी (मानसिक महिला आश्रम गृह) में पंजीकृत सभी 14 युवतियां मौके पर पाई गईं. युवतियों ने जांच दल को बताया कि उन्हें न तो समय पर खाना दिया जाता है और निर्धारित मेनू का पालन होता है. संस्थान में सुरक्षा का भी इंतजाम नहीं है. इंदिरा नगर के आशा ज्योति (मानसिक) में रजिस्टर्ड सभी 16 बालक मौके पर थे. सुरक्षा के लिए कोई गार्ड नहीं पाया गया. कमरों और परिसर में गंदगी पाई गई. अलीगंज स्थित श्रीराम औद्योगिक अनाथालय में रजिस्टर्ड सभी 9 लड़के और 12 लड़कियां मौके पर मिलीं.

सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं पाया गया. त्रिवेणी नगर के गंगोत्री शिशु गृह में पंजीकृत सभी 12 बच्चे मौके पर पाए गए. सफाई की बेहद कमी पाई गई. छत पर बनी चारदीवारी इतनी छोटी पाई गई कि बच्चों के फांद कर भागने में कोई दिक्कत नहीं होगी. सुरक्षा का भी बंदोबस्त नहीं है. जानकीपुरम स्थित दृष्टि सामाजिक संस्थान में पंजीकृत सभी 212 लड़के-लड़कियां मौके पर मिलीं. लेकिन इस संस्थान में लड़के-लड़कियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. मोहान रोड के ममता मानसिक मंदित बालिका विद्यालय में 18 लड़कियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मौके पर सिर्फ 15 लड़कियां पाई गईं. बताया गया कि तीन लड़कियां घर गई हैं. मोहान रोड स्थित राजकीय संकेत मूक बधिर विद्यालय में 95 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, लेकिन जांच के दौरान 17 लापता मिले.

विद्यालय प्रबंधन ने बताया 17 बच्चे अपने घर गए हैं. विद्यालय के शौचालय में भीषण गंदगी पाई गई. मोहान रोड स्थित प्रयास विद्यालय में 39 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, लेकिन उनमें से पांच बज्जे नदारद मिले. उनके बारे में भी कहा गया वे घर गए हैं. विद्यालय में रहन-सहन और कमरों की सफाई जघन्य हालत में मिली. मोहान रोड के ही राजकीय विशेषीकृत बालगृह में सभी 99 रजिस्टर्ड बच्चे मौके पर तो मिले, लेकिन बालगृह में गंदगी का अंबार मिला. सफाई का कोई इंतजाम ही नहीं है. मोहान रोड स्थित स्पर्श दृष्टि बाधित बालिका इंटर कॉलेज में 97 लड़कियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन मौके से पांच लड़कियां गायब मिलीं. कॉलेज में सुरक्षा को कोई इंतजाम नहीं मिला. मोतीनगर स्थित लीलावती मुंशी (बालिका) निराश्रित बालगृह में रजिस्टर्ड सभी 62 लड़कियां मौके पर मिलीं. सफाई की हालत बहुत खराब पाई गई. मोतीनगर स्थित राजकीय बालिका गृह में रजिस्टर्ड सभी 60 लड़कियां मौके पर मिलीं.

लेकिन बालिका गृह के शौचालयों और परिसर में सफाई जघन्य हालत मिली. मोतीनगर स्थित राष्ट्रीय पश्चातवर्ती देखरेख संगठन (महिला) संस्थान में भी सभी 47 पंजीकृत बच्चे मौके पर मिले, लेकिन सफाई की स्थिति खराब मिली. गोलागंज स्थित ब्लू हैवन चिल्ड्रेन असाइलम में रजिस्टर्ड सभी 26 बच्चे मौके पर मिले. लेकिन यहां भी सफाई की हालत खराब है. चौक स्थित ऑल इंडिया शिया यतीमखाना में रजिस्टर्ड सभी 34 बच्चे मौके पर पाए गए, लेकिन सफाई का इंतजाम संतोषजनक नहीं पाया गया. तकरोही स्थित स्वैच्छिक संस्था निर्वाण (बालिका) में रजिस्टर्ड सभी 90 बच्चे मौके पर पाए गए.

संस्था में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और गार्ड भी तैनात पाया गया. आलमबाग स्थित स्नेहालया में पंजीकृत सभी 18 लड़कियां मौके पर पाई गईं. भोजन के साथ सुरक्षा, सफाई और शौचालय की स्थिति अपेक्षाकृत सही पाई गई. अमीनाबाद स्थित मुमताज़ दारुल यतामा संस्थान में रजिस्टर्ड सभी 87 बच्चे मौके पर थे. सफाई का बेहतर इंतजाम नहीं मिला और एक ही गार्ड की तैनाती सुरक्षा व्यवस्था की खामी है. मोहनलालगंज स्थित डॉन बास्को में रजिस्टर्ड सभी 57 बच्चे मौके पर मिले. यहां भी महज एक गार्ड तैनात पाया गया. कुर्सी रोज स्थित स्वैच्छिक संस्थान आशीर्वाद ट्रस्ट में रजिस्टर्ड सभी 19 लड़कियां मौके पर मिलीं. भोजन व साफ-सफाई संतोषजनक स्थिति में पाई गई.

जिन्हें निगरानी करनी थी, वे सोए थे या मिले हुए थे?

निराश्रित महिलाओं, लड़कियों और बच्चों की संस्थाओं पर नजर रखने के लिए बनी संस्थाएं क्या कर रही थीं? आम लोग कहते हैं कि ये संस्थाएं भी अवैध धंधे में बराबर की लिप्त हैं. यह महज लापरवाही का मसला नहीं है. प्रशासन से लेकर पुलिस और महिला एवं बाल कल्याण विभाग की जिला इकाई से लेकर स्थानीय थाना, लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू), बीट के सिपाही और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग महकमे के अधिकारी-कर्मचारी आखिर क्या करते रहे कि जरायम धंधा निर्बाध गति से होता रहा? संरक्षण गृहों की लड़कियां दुराचारियों के लिए बाहर भेजी जाती रहीं, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया? यह केवल लापरवाही नहीं है. बात जिलाधिकारी से शुरू होती है.

जिलाधिकारी की ड्यूटी में शामिल है संरक्षण और आश्रय गृहों का समय-समय पर औचक निरीक्षण करते रहना. फिर इस ड्यूटी का पालन क्यों नहीं किया गया? अगर यह ड्यूटी प्रतिबद्धता से की जाती, तो क्या देवरिया जैसी घटना घटती? जिलों के एसपी क्या करते रहे? निराश्रित महिलाओं और बच्चियों से देह का धंधा कराया जाता रहा और एसपी को पता नहीं चला? यह असंभव है. संरक्षण गृहों का निरीक्षण करने के एकमात्र काम के लिए प्रत्येक जिले में प्रोबेशन अफसर तैनात हैं. वे क्या करते रहे? शासन के समक्ष डीपीओ की एक भी रिपोर्ट ऐसी नहीं है, जो संरक्षण गृहों में चल रहे जरायम धंधे का जिक्र करती हो.

पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) क्या करती रही कि उसे संरक्षण गृहों के धंधे की सूचना नहीं मिली? एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल भी संदेह के घेरे में है. संरक्षण गृह की लड़कियों को देवरिया से गोरखपुर और अन्य स्थानों पर ले जाया जाता रहा, यहां तक कि विदेशों में भी भेज दिया गया, लेकिन सेल सोता रहा, या मिला रहा. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रिपरिषद ने देवरिया घटना पर निंदा प्रस्ताव पारित करते हुए सही कहा कि बच्चियों के साथ इस तरह का घोर अमानवीय नृशंसतम अपराध अधिकारियों और नेताओं के संरक्षण के बगैर संभव ही नहीं है.

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